धूमावती स्तोत्र : धूमावती संस्कृत में ‘धूम + अवती’— जो धुएँ जैसी अस्पष्ट होती हैं—का अर्थ है। वे दस महाविद्याओं की सातवीं देवी हैं और उग्र व भयंकर रूप में पूजी जाती हैं। उनका स्वरूप मृत्यु, त्याग, वैराग्य, और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है। उनका वासनिरोधी गुण धर्म, साधना और ध्यान में गहनता लाता है।
धूमावती को विनाशिनी, निग्रहणी, राजविदा, काकध्वजा आदि नामों से भी जाना जाता है। वे सामाजिक लिमिटेशन, मोह, तृष्णा, और अवशेष संस्कारों का विनाश करती हैं, जिससे साधक के मन में वैराग्य और आध्यात्मिक दिशा जागृत होती है।
दस महाविद्या स्तोत्र: पाठ विधि, लाभ व महत्व
धूमावती का स्वरूप और प्रतीकत्व
धूमावती का चित्रण ठंडी, धूमिल व यम वर्ण-तत्व में होता है:
रंग: धूसर या पीतल मिश्रित काला (यानि मृत्यु धुएँ सा)
चौथी अवस्था: वृद्ध, फटे वस्त्र, काया पर धब्बे—त्याग, वैराग्य और ब्रह्मचर्य का प्रतीक
मेहनत: चूरन, पत्ता, ललाट सकल—दुःख, क्लेश और भोग की विशालता
हाथों में: शुंड (राहु का), मण्डल, त्रिशूल, वरद मुद्रा
सवारी: कोयल, चील, कौआ—गंभीरता, श्मशान, अंतरात्मा की चुप्पी और स्मृति
उनका धूप-धुएँ वाला स्वरूप अत्युच्च ध्यान एवं ब्रह्म अनुभूति हेतु मार्गदर्शक होता है।
धूमावती स्तोत्र
धूमावती स्तोत्र एक तांत्रिक स्तोत्र है, जो साधक को अवशेष, दुःख, भय, मोह आदि के विनाश की साधना में मदद करता है। इसमें देवी का वर्णन, उनकी महिमा, शक्तियों की व्याख्या और बीज मंत्रों के साथ पूजनूदेश्य का उल्लेख होता है।
तारा देवी स्तोत्र: महत्व, लाभ, विधि और सम्पूर्ण जानकारी
धूमावती स्तोत्र सामान्य संरचना:
प्रथम चरण – धूमावती का उच्चारण
बीज मंत्र – ‘ॐ धूं धूं धूमावत्यै नमः’
धूमावती स्तोत्र लाभ व उद्देश्य वर्णन
पूजा-विधि निर्देश
धूमावती स्तोत्र पाठ
धूमावती स्तोत्र विशेष पूजन सामाग्री एवं नियम
धूमावती स्तोत्र साधना विधि (पूजा–पाठ क्रम)
समय: अमावस्या, अष्टमी, चतुर्दशी, विशेष रूप से शुभ संध्याकाल
स्थान: शांत स्थल, पूर्व-दक्षिण मुख
वसुन्धरा: लाल या काले रंग का आसन
समागम:
लोटस फूल, धूप-दीप, रोली, चंदन, गायत्री और धूम्र (कपड़ा/राख)
विशेष पूजन सामाग्री: शमीपत्र, कौवा या कोयल का गूर्ज
प्रारंभ पूजन: गणेश वंदना → दुर्गा/शक्ति पूजन
बीज मंत्र जाप: 108 बार ‘ॐ धूं धूं धूमावत्यै नमः’
धूमावती स्तोत्र पाठ
समापन: मौन ध्यान → अचमन → प्रसाद वितरण
माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र, लाभ, पाठ विधि
धूमावती साधना के लाभ
अवशेष मोक्ष: जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों का नाश
भय-विनाश: संकुचित मन, डर और अविश्वास से मुक्ति
दीर्घायु एवं रोगनिवारण
वैराग्य जागृति
तंत्र-सिद्धि: शक्तिशाली तांत्रिक शक्तियों की प्राप्ति
धूमावती स्तोत्र सावधानियाँ व नियम
व्यक्ति का गुरु निर्देशन अनिवार्य
ब्रह्मचर्य विमुक्तता, शुद्धता, संयम
समय पूजन से विचलित न होना
मोह, अहंकार या दोषयुक्त साधक हेतु यह उपाय खतरनाक हो सकता है
केवल आध्यात्मिक तत्व से पूजन, विनाशकालीन साधना के उद्देश्य से नहीं
त्रिपुर सुंदरी स्तोत्र, लाभ, विधि व पाठ का महत्व
धूमावती स्तोत्र तांत्रिक दर्शन
धूमावती ब्रह्मचर्य की शक्ति हैं; नकारात्मक प्रभाव, अभिचार और काला तंत्र रचने वालों से रक्षा करती हैं। वे साधक को निरर्थक जीवनबंधनों से मुक्ति दिलाती हैं और शून्य-ब्रह्म की ओर अग्रसर करती हैं।
धूमावती स्तोत्र वैज्ञानिक दृष्टिकोण
ध्वनि विज्ञान: बीज मंत्रों का उच्चारण मस्तिष्क तरंगों को स्थिर करता है, तनाव मिटता है
मनोवैज्ञानिक: भय, तनाव, अवशेष स्मृतियों को दूर करना सरल होता है
न्यूरोलॉजिकल ब्रह्म: मंत्र व धूप का संयोजन मानसिक रिफ्रेशमेंट लाता है
धूमावती स्तोत्र
श्रीधूमावतीस्तोत्रम् धूमावत्यष्टकम् च
श्रीगणेशाय नमः ।
धूमायाः स्तोत्रम् ।
प्रातर्यास्यात् कुमारी कुसुमकलिकया जापमालां जपन्ती
मध्याह्ने प्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम् ।
सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां वहन्ती
सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालिकापातु युष्मान् ॥ १॥
बद्ध्वा खट्वाङ्गकोटौ कपिलवरजटा मण्डलम्पद्मयोनेः
कृत्वादैत्योत्तमाङ्गैः स्रजमुरसिशिरश्शेखरं तार्क्ष्यपक्षैः ।
पूर्णंरक्तैः सुराणां यममहिषमहाशृङ्गमादायपाणौ
पायाद्वोवन्द्यमानः प्रलयमुदितया भैरवः कालरात्र्याम् ॥ २॥
चर्वन्तीमस्थिखण्डं प्रकट कटकटा शब्दसङ्घातमुग्रं
कुर्वाणि प्रेतमध्ये कहहकहकहा हास्यमुग्रं कृशांङ्गी ।
नित्यं न्नित्यप्रसक्तां डमरुडिमडिमां स्फारयन्तीं मुखाब्जं
पायान्नश्चण्डिकेयं झझमझमझमा जल्पमाना भ्रमन्ती ॥ ३॥
टण्टण्टण्टण्टटण्टा ण्रकट टमटमा नाटघण्टां वहन्ती
स्फें स्फें स्फें स्फारकारा टकटकितहसा नादसङ्घट्ट भीमा ।
लोलम्मुण्डाग्रमाला ललहलहलहा लोललोलाग्रवाचं
चर्वन्तीचण्डमुण्डं मटमटमटिते चर्यषन्ती पुनातु ॥ ४॥
वामे कर्णे मृगाङ्कं पलयपरिगतं दक्षिणे सूर्यबिम्बं
कण्ठे नक्षत्रहारं वरविकटजटाजूटके मुण्डमालाम् ।
स्कन्धेकृत्वोरगेन्द्रध्वजनिकरयुतं ब्रह्मकङ्कालभारं
संहारे धारयन्ती ममहरतुभयं भद्रदा भद्रकाली ॥ ५॥
तैलाभ्यक्तैकवेणी त्रपुमयविलसत् कर्णिकाक्रान्तकर्णा
लौहेनैकेन कृत्वाचरणनलिनकामात्मनः पादशोभाम् ।
दिग्वासा रासभेन ग्रसतिजगदिदं मायया कर्णपूरा
वर्षिण्यातिप्रबद्धा ध्वजविततभुजा सासिदेवित्वमेव ॥ ६॥
सङ्ग्रामे हेतिकृत्वैस्सरुधिरदशनैर्यद्भटानां
शिरोभिर्मालामाबद्ध्यमूर्ध्नि ध्वजविततभुजा त्वं श्मशाने प्रविष्टा ।
दृष्टा भूतप्रभूतैः पृथुतरजघना बद्धनागेन्द्र काञ्ची
शूलग्रव्यग्रहस्ता मधुरुधिरसदा ताम्रनेत्रा निशायाम् ॥ ७॥
दंष्ट्रा रौद्रेमुखेऽस्मिंस्तवविशतिजगद्देवि सर्वं क्षणार्धात्
संसारस्यान्तकाले नररुधिरवशासम्प्लवेभूमधूम्रे ।
कालीकापालिकी सा शवशयनतरा योगिनी योगमुद्रा
रक्तारुद्धिः सभास्था मरणभयहरा त्वं शिवा चण्डघण्टा ॥ ८॥
धूमावत्यष्टकं पुण्यं सर्वापद्विनिवारकम् ।
यः पठेत् साधको भक्त्या सिद्धिं विन्दति वाञ्छिताम् ॥ ९॥
महापदि महाघोरे महारोगे महारणे ।
शत्रूच्चाटे मारणादौ जन्तूनां मोहने तथा ॥ १०॥
पठेत् स्तोत्रमिदं देवि सर्वत्र सिद्धिभाग्भवेत् ।
देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः ॥ ११॥
सिंह व्याघ्रादिकास्सर्वे स्तोत्र स्मरणमात्रतः ।
दूराद्दूरतरं यान्ति किं पुनर्मानुषादयः ॥ १२॥
स्तोत्रेणानेन देवेशि किं न सिद्ध्यति भूतले ।
सर्वशान्तिर्भवेद्देविह्यन्ते निर्वाणतां व्रजेत् ॥ १३॥
इत्यूर्ध्वाम्नाये धूमावती स्तोत्रं समाप्तम् ॥
धूमावती स्तोत्र साधना, वैराग्य, भय-रहित जीवन, और आत्मबल निर्माण का महत्वपूर्ण साधन है। यह बेहद शक्तिशाली और प्रारंभिक साधकों को भी गहरे आध्यात्मिक सत्य की अनुभूति प्रदान करती है।
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FAQs”
प्रश्न 1: क्या कोई भी व्यक्ति धूमावती स्तोत्र पढ़ सकता है?
उत्तर: हाँ, लेकिन नियम, पवित्रता और गुरु मार्गदर्शन अनिवार्य है।
प्रश्न 2:धूमावती स्तोत्र पढ़ने का सबसे उचित समय क्या है?
उत्तर: अमावस्या रात्रि, अष्टमी/चतुर्दशी के दिन और संध्याकाल उत्तम हैं।
प्रश्न 3: साधना के बाद क्या अनुभव होता है?
उत्तर: सहजता, वैराग्य, मानसिक स्थिरता, डरमुक्ति व भय-रहित जीवन अनुभव हो सकता है।
प्रश्न 4: पापी या दोषयुक्त व्यक्ति इसे पढ़ सकता है?
उत्तर: यदि सही गुरु मार्गदर्शन और नियमों का पालन हो, तो वह भी लाभ पा सकता है लेकिन सावधान रहें।
प्रश्न 5: कितनी अवधि तक स्तोत्र करना चाहिए?
उत्तर: प्रारंभिक रूप से 40 या 108 दिन का अनिवार्य है—पुनः अवधि साधक की श्रद्धा पर निर्भर।
प्रश्न 6: क्या धूमावती स्तोत्र से आर्थिक लाभ भी होता है?
उत्तर: आर्थिक लाभ प्राथमिक उद्देश्य नहीं; वैराग्य और आत्मज्ञान के परिणाम होते हैं।