हिंदू धर्म में भगवान भैरव का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्हें भगवान शिव का रूप माना जाता है, जो सृष्टि के संहारक और रक्षक हैं। भैरव जी के कई रूप हैं, जिनमें बटुक भैरव प्रमुख हैं। बटुक भैरव का पूजा पाठ विशेष रूप से कष्टों से मुक्ति, मानसिक शांति और भय से सुरक्षा के लिए किया जाता है। बटुक भैरव स्तोत्र, जो विशेष रूप से उनके इस रूप की उपासना हेतु प्रस्तुत किया गया है, भक्तों के बीच काफी लोकप्रिय है।
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बटुक भैरव का स्वरूप
बटुक भैरव को एक छोटे बालक के रूप में चित्रित किया जाता है। उनके हाथ में त्रिशूल और डमरू होता है, और उनका चेहरा भय और क्रोध से परिपूर्ण होता है। बटुक भैरव की पूजा से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है और उसे भूत-प्रेत और अन्य बुरी शक्तियों से रक्षा मिलती है। बटुक भैरव का चित्रण उनकी क्रूरता और शक्ति को प्रदर्शित करता है, जिससे भक्तों को उनके भय का निवारण और संजीवनी शक्ति मिलती है।
बटुक भैरव स्तोत्र का महत्व
बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से बुरी शक्तियों से सुरक्षा, मानसिक शांति और जीवन में नकारात्मकता से बचने के लिए किया जाता है। यह स्तोत्र भगवान भैरव के आशीर्वाद से डर, दुख और परेशानियों को दूर करता है।
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बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कैसे करें?
स्थान चयन: स्तोत्र का पाठ करने के लिए स्वच्छ और शांत स्थान का चयन करें।
स्नान और शुद्धता: पहले स्नान करके शुद्ध मानसिकता से पूजा प्रारंभ करें।
पूजा सामग्री: बटुक भैरव की मूर्ति या चित्र, पुष्प, धूप, दीप, चंदन, और जल का उपयोग करें।
पाठ विधि: बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ 108 बार करें। यदि 108 बार नहीं कर सकते, तो 11 बार से भी शुभ लाभ प्राप्त हो सकता है।
प्रार्थना: पाठ के बाद भगवान भैरव से मनचाही शुभकामनाएं और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करें।
बटुक भैरव स्तोत्र के लाभ
दुखों का निवारण: इस स्तोत्र के नियमित पाठ से व्यक्ति के जीवन के सभी प्रकार के दुख समाप्त हो सकते हैं।
भय से मुक्ति: बटुक भैरव के आशीर्वाद से भय और बुरी शक्तियों का प्रभाव कम हो जाता है।
शरीर और मन की शांति: इस स्तोत्र का पाठ मानसिक शांति और शारीरिक आरोग्यता को बढ़ाता है।
सुरक्षा की प्राप्ति: भूत-प्रेत, नकारात्मक ऊर्जा और अन्य खतरों से सुरक्षा प्रदान होती है।
आध्यात्मिक उन्नति: बटुक भैरव के आशीर्वाद से व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन में प्रगति होती है।
बटुक भैरव स्तोत्र
ध्यान
वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥
दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्॥
मानस-पूजन
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः।
ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये निवेदयामि नमः।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
मूल-स्तोत्र
ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट् ॥1॥
श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।
रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः ॥2॥
कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।
त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः ॥3॥
शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः।
अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी-पतिः ॥4॥
धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्।
नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत् ॥5॥
कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।
त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत् ॥6॥
त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय।
बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग-वर-धारकः ॥7॥
भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु-लोचनः ॥8॥
प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः।
अष्ट-मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान-चक्षुस्तपो-मयः ॥9॥
अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः।
भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः ॥10॥
कपाल-धारी मुण्डी च, नाग-यज्ञोपवीत-वान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा ॥11॥
शुद्द-नीलाञ्जन-प्रख्य-देहः मुण्ड-विभूषणः।
बलि-भुग्बलि-भुङ्-नाथो, बालोबाल-पराक्रम ॥12॥
सर्वापत्-तारणो दुर्गो, दुष्ट-भूत-निषेवितः।
कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी-वश-कृद्वशी ॥13॥
जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया-मन्त्रौषधी-मयः।
सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ-विष्णुरितीव हि ॥14॥
॥ फल-श्रुति ॥
अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।
मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम् ॥15॥
य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट-शतमुत्तमम्।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा ॥16॥
न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।
पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः ॥17॥
मारी-भये राज-भये, तथा चौराग्निजे भये।
औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नजे भये ॥18॥
बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः।
सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव-कीर्तनात् ॥19॥
॥ क्षमा-प्रार्थना ॥
आवाहनङ न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।
पूजा-कर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर ॥
मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर।
मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु मे ॥
इति बटुक भैरव स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
बटुक भैरव स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली और लाभकारी मंत्र है जो व्यक्ति को मानसिक शांति, भय से मुक्ति और आंतरिक शक्ति प्रदान करता है। इसके नियमित पाठ से जीवन में सुख-शांति और सफलता प्राप्त की जा सकती है। इस स्तोत्र का पाठ हर किसी के लिए शुभ और लाभकारी होता है, खासकर उन लोगों के लिए जो मानसिक दबाव और डर से जूझ रहे होते हैं।
प्रमुख हिंदी स्तोत्र | ||
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FAQs”
प्रश्न 1: बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
उत्तर: बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ किसी भी शुभ अवसर पर किया जा सकता है। खासतौर पर मंगलवार और शनिवार के दिन इसका पाठ बहुत लाभकारी माना जाता है। विशेष रूप से मानसिक तनाव और भय की स्थिति में इस स्तोत्र का जाप करना चाहिए।
प्रश्न 2: बटुक भैरव की पूजा के लिए कौन सा दिन श्रेष्ठ है?
उत्तर: बटुक भैरव की पूजा मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से की जाती है। इन दिनों को भैरव पूजा के लिए शुभ माना जाता है।
प्रश्न 3: क्या बटुक भैरव का स्तोत्र एक बार में 108 बार पढ़ना जरूरी है?
उत्तर: यदि आप एक बार में 108 बार नहीं पढ़ सकते, तो कम से कम 11 बार तो इस स्तोत्र का पाठ जरूर करें। नियमित पाठ करने से ज्यादा लाभ होता है।
प्रश्न 4: बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ करने से क्या लाभ होता है?
उत्तर: बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ करने से भय, मानसिक कष्ट, और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। इसके अतिरिक्त, यह व्यक्ति को आंतरिक शांति और सुरक्षा प्रदान करता है।
प्रश्न 5: बटुक भैरव के बारे में और क्या जानना चाहिए?
उत्तर: बटुक भैरव भगवान शिव के ही एक रूप हैं, जो विशेष रूप से कष्टों से मुक्ति और मानसिक शांति देने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी पूजा से मानसिक संतुलन और जीवन में सकारात्मकता आती है।