शिव षडाक्षरा स्तोत्र, महत्त्व और लाभ
शिव षडाक्षरा स्तोत्र हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण मंत्र है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंत्र ‘नमः शिवाय’ के छह अक्षरों से मिलकर बनता है। इसका पाठ करने से शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में संतुलन और शांति मिलती है।
षडाक्षरों का अर्थ :
शिव षडाक्षरा मंत्र के प्रत्येक अक्षर का अपना महत्व है। ‘न’, ‘म’, ‘श’, ‘व’, ‘य’, ‘ह’ अक्षरों का जप करने से मनुष्य को आत्मिक और मानसिक शक्ति मिलती है। इस मंत्र के पाठ से रोग नाशक शक्ति प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
ध्यान और जप की तकनीकें :
शिव षडाक्षरा स्तोत्र का जप करने से मनुष्य की मानसिक शांति होती है और उसके मन में एकाग्रता बनी रहती है। इस मंत्र का जप करने की विशेष तकनीकें हैं जो व्यक्ति को ध्यान और साधना में सहायक होती हैं।
ध्यान के साथ ध्यान की तकनीकें:
शिव षडाक्षरा स्तोत्र का उच्चारण करके ध्यान धारण करने से व्यक्ति ईश्वर के साथ एकाग्र होता है और आत्मा के साथ संबंध स्थापित करता है। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और उसे आंतरिक शांति का अनुभव होता है।
चिन्ह और रिवाज:
शिव षडाक्षरा स्तोत्र के पाठ का उच्चारण करने के साथ-साथ शिव के विभिन्न चिन्हों और रिवाजों को भी मान्यता दी जाती है। ओम नमः शिवाय, रुद्राक्ष, और लिंगम इस मंत्र के साथ गहरा संबंध रखते हैं।
समकालीन अभ्यास और उनका अनुकरण:
आधुनिक युग में शिव षडाक्षरा स्तोत्र को आधुनिक धार्मिक और आध्यात्मिक संदर्भों में भी प्रयोग किया जाता है। योग और ध्यान अभ्यास में भी इस मंत्र का उपयोग किया जाता है जो आत्मिक साधना में सहायक होता है।
शिव षडाक्षर स्तोत्र
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् ।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥1॥
प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम् ।
विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥2॥
प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम् ।
नामादिभेदरहितं षड्भावशून्यं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥3॥
शिव षडाक्षरा स्तोत्रम्
ॐकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिनः ।
कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ॥1॥
नमंति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां गणाः ।
नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नमः ॥2॥
महादेवं महात्मानं महाध्यानं परायणम् ।
महापापहरं देवं मकाराय नमो नमः ॥3॥
शिवं शांतं जगन्नाथं लोकानुग्रहकारकम् ।
शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नमः ॥4॥
वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कंठभूषणम् ।
वामे शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नमः ॥5॥
यत्र यत्र स्थितो देवः सर्वव्यापी महेश्वरः ।
यो गुरुः सर्वदेवानां यकाराय नमो नमः ॥6॥
षडक्षरमिदं स्तोत्रं यः पठेच्छिवसंनिधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥7॥
शिव षडाक्षरा स्तोत्र का पाठ करना ध्यान और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है। यह मंत्र आत्मिक शक्ति को बढ़ाता है और व्यक्ति को आत्मा के साथ जोड़ता है। इसका नियमित जप करने से व्यक्ति को आंतरिक शांति और संतुलन मिलता है।
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FAQs”
Q.1: शिव षडाक्षरा स्तोत्र मंत्र में प्रत्येक अक्षर का अर्थ क्या है?
Ans. प्रत्येक अक्षर भगवान शिव की विशेषता को प्रकट करता है।
Q.2: शिव षडाक्षरा स्तोत्र को कितनी बार जपना चाहिए?
Ans. शिव षडाक्षरा स्तोत्र का नियमित जप करना आत्मिक और मानसिक शक्ति को बढ़ाता है।
Q.3: क्या कोई भी शिव षडाक्षरा स्तोत्र का जप कर सकता है?
Ans. हां, कोई भी शिव षडाक्षरा स्तोत्र मंत्र का जप कर सकता है, जैसा कि उसके लिए योग्य माना जाता है।
Q,.4: शिव षडाक्षरा स्तोत्र मंत्र को जपने के लिए क्या कोई विशेष समय है?
Ans. कोई विशेष समय नहीं है, लेकिन सुबह और शाम को शिव षडाक्षरा स्तोत्र जप करना शुभ माना जाता है।
Q.5: शिव षडाक्षरा स्तोत्र मंत्र के जप के क्या लाभ हैं?
Ans. शिव षडाक्षरा स्तोत्र जप करने से आत्मिक जागरूकता, आंतरिक शांति, और भगवान शिव की कृपा मिलती है।