माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र, लाभ, पाठ विधि और रहस्य जानें

माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र

माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र, लाभ, पाठ विधि और रहस्य जानें

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माँ छिन्नमस्ता कौन हैं?

माँ छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं में छठी देवी हैं। उनका स्वरूप अत्यंत रहस्यमयी, तांत्रिक और प्रतीकात्मक है। उनका नाम ही उनके स्वरूप की व्याख्या करता है — छिन्न (कटा हुआ) + मस्ता (सिर), अर्थात् वह देवी जिनका सिर कटा हुआ है और जो अपने ही रक्त से अपने भक्तों और सहचरी देवियों की तृप्ति करती हैं।

छिन्नमस्ता का स्वरूप पहली दृष्टि में भयावह प्रतीत होता है, परंतु वह अहंकार की समाप्ति, आत्मबलिदान, त्याग और कुंडलिनी शक्ति के जागरण का गूढ़ संदेश देता है।

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छिन्नमस्ता स्तोत्र क्या है?

छिन्नमस्ता स्तोत्र एक प्राचीन संस्कृत स्तोत्र है, जो माँ छिन्नमस्ता की स्तुति में रचा गया है। इसमें उनके स्वरूप, गुणों और शक्तियों का वर्णन है। यह स्तोत्र विशेषतः तांत्रिक साधना में उपयोग होता है और साधक को आत्मशक्ति, निर्भीकता, काम-वासना पर नियंत्रण और कुंडलिनी जागरण की ओर अग्रसर करता है।

माँ छिन्नमस्ता की तांत्रिक व्याख्या

कटा हुआ सिर: अहंकार का संहार और आत्मबलिदान का प्रतीक।

तीन रक्तधाराएं: एक स्वयं के मुख में, दो दाक्षिणी और वामिनी योगिनियों में — यह कुंडलिनी के तीन मार्गों (इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना) का सूचक है।

नग्न रूप: प्रकृति की मौलिक और निर्लिप्त अवस्था।

त्रिनेत्री: ज्ञान, क्रिया और इच्छा शक्ति की प्रतीक।

श्मशान में निवास: मृत्यु और परिवर्तन की स्वामिनी।

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माँ छिन्नमस्ता पौराणिक और तांत्रिक सन्दर्भ

देवी भागवत और तंत्र चूड़ामणि में छिन्नमस्ता का उल्लेख अत्यंत गूढ़ रूप में किया गया है।

वे महाशक्ति की उस अवस्था का प्रतिनिधित्व करती हैं जो त्याग, निर्भीकता, और अंतर्मन की विजय को दर्शाती है।

माँ छिन्नमस्ता साधना विधि (छिन्नमस्ता साधना कैसे करें?)

साधना का समय: अमावस्या, पूर्णिमा, या नवमी रात्रि विशेष फलदायी।

स्थान: श्मशान, एकांत स्थान, या शक्ति पीठ।

मंत्र जाप: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं छिन्नमस्तायै नमः।  या ॐ क्षौं ह्रीं ह्लीं ऐं व्रीं छिन्नमस्तिकायै नमः॥

संकल्प और ध्यान: माँ के काले, रक्तवर्ण रूप की कल्पना करें।

आसन और मुद्रा: सिद्धासन या वज्रासन, त्राटक या अग्नि के समक्ष ध्यान।

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 छिन्नमस्ता स्तोत्र के लाभ

लाभ विवरण
कामशक्ति पर नियंत्रण वासना, मोह और भ्रम का नाश
कुंडलिनी जागरण इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का संतुलन
निर्भीकता मृत्यु और भय का नाश
तांत्रिक सिद्धियाँ उच्च कोटि की साधनाओं में सफलता
आध्यात्मिक शक्ति चित्त की एकाग्रता और ब्रह्मज्ञान की ओर उन्नति

 छिन्नमस्ता स्तोत्र में रखने वाली सावधानियाँ

छिन्नमस्ता साधना गंभीर, शक्तिशाली और नियंत्रित साधना है। इसे किसी भी प्रकार की मनोरंजन, चमत्कार या परीक्षा के भाव से न करें।

बिना गुरु या मार्गदर्शन के अत्यधिक गूढ़ साधना से बचें।

मानसिक अस्थिरता, असंतुलित जीवनशैली या भावनात्मक कमजोरी की अवस्था में साधना न करें।

संयम, पवित्रता, ब्रह्मचर्य और नियमितता अनिवार्य है।

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छिन्नमस्ता की प्रतीकात्मक शक्ति और आध्यात्मिक रहस्य

कामशक्ति का आत्म-नियंत्रण द्वारा रूपांतरण।

अहंकार के संहार के बाद ही ज्ञानप्राप्ति संभव है।

तंत्र में छिन्नमस्ता को स्वाधिष्ठान और मणिपुर चक्र के बीच की शक्ति माना जाता है — जहाँ कामशक्ति को आध्यात्मिक शक्ति में बदला जाता है।

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छिन्नमस्ता के 5 रहस्यमय तथ्य

उनका रक्त स्वयं का होकर दूसरों को तृप्त करता है — त्याग और परोपकार का प्रतीक।

वे श्मशान में नाचती हैं — मृत्यु से ऊपर उठने का प्रतीक।

वे नग्न हैं — मूल प्रकृति और निर्लिप्तता की पहचान।

वे अपने ही सिर को धारण करती हैं — स्वतंत्र चेतना की द्योतक।

उनका त्रिनेत्र — तीनों कालों (भूत, वर्तमान, भविष्य) की ज्ञाता

दस महाविद्याओं में माँ छिन्नमस्ता का स्थान और महत्व

हिन्दू तंत्रशास्त्र में “दस महाविद्याएँ” माँ आदिशक्ति (महाकाली) के दस विशिष्ट रूप हैं। ये देवियाँ साधक के जीवन में भय, मोह, अज्ञान और मृत्यु जैसे बंधनों को समाप्त कर आत्मज्ञान और मुक्ति की ओर ले जाती हैं।

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माँ छिन्नमस्ता का स्थान

माँ छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं में छठे स्थान पर प्रतिष्ठित हैं। वे एक अत्यंत रहस्यमयी, उग्र और गूढ़ शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनका रूप, नाम और साधना सभी साधक को आत्मपरिवर्तन के कठिन लेकिन महान मार्ग पर ले जाते हैं।

माँ छिन्नमस्ता का प्रतीकात्मक महत्व

विशेषता अर्थ
कटा हुआ सिर अहंकार, शरीरबोध और मानसिक सीमाओं का त्याग
तीन रक्तधाराएं कुंडलिनी की तीन धाराएँ — इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना
नग्नता सत्य, मौलिकता और निर्लिप्तता
श्मशान निवास मृत्यु से ऊपर उठने की शक्ति
त्रिनेत्र त्रिकालदर्शिता – भूत, वर्तमान, भविष्य की ज्ञाता

माँ छिन्नमस्ता का गूढ़ महत्व

वे कामशक्ति का आत्मशक्ति में रूपांतरण हैं।

वे दिखाती हैं कि कैसे बलिदान और त्याग से आत्मिक तृप्ति और सर्वहित संभव होता है।

छिन्नमस्ता, आत्मबल, निर्भीकता और अनासक्ति की चरम सीमा हैं।

तांत्रिक साधना में माँ छिन्नमस्ता का महत्व

कुंडलिनी जागरण में इनकी साधना एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

साधक की वासना, लोभ और अहंकार का शमन करती हैं।

अत्यंत उग्र साधनाओं में प्रयुक्त होती हैं — विशेषकर तांत्रिक मार्ग के साधकों के लिए।

शक्ति और मुक्ति दोनों का संतुलन इन्हीं के माध्यम से संभव होता है।

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माँ छिन्नमस्ता: तंत्र की पराकाष्ठा

माँ छिन्नमस्ता की उपासना यह बताती है कि — विनाश ही नवनिर्माण की राह खोलता है। जब तक पुरानी चेतना नष्ट नहीं होती, तब तक ब्रह्मज्ञान संभव नहीं।

माँ छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं की मध्यवर्ती शक्ति हैं — जहाँ साधक को निर्णय लेना होता है कि वह सांसारिकता में बंधा रहेगा या आत्मिक जागरण की दिशा में कदम बढ़ाएगा। उनका स्थान छठा है — और यह स्थान दर्शाता है कि साधना की आधी दूरी पार करने के बाद ही साधक इस अत्यंत गूढ़ और शक्तिशाली देवी से साक्षात्कार कर सकता है।

उनकी पूजा और साधना, शक्ति के चरम स्तर पर पहुँचने के लिए अत्यंत आवश्यक मानी जाती है — जहाँ भय, वासना, अहंकार और मृत्यु का अतिक्रमण होता है।

माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र

आनन्दयित्रि परमेश्वरि वेदगर्भे मातः पुरन्दरपुरान्तरलब्धनेत्रे ।

लक्ष्मीमशेषजगतां परिभावयन्तः सन्तो भजन्ति भवतीं धनदेशलब्ध्यै ॥ १ ॥

लज्जानुगां विमलविद्रुमकान्तिकान्तां कान्तानुरागरसिकाः परमेश्वरि त्वाम् ।

ये भावयन्ति मनसा मनुजास्त एते सीमन्तिनीभिरनिशं परिभाव्यमानाः ॥ २ ॥

मायामयीं निखिलपातककोटिकूटविद्राविणीं भृशमसंशयिनो भजन्ति ।

त्वां पद्मसुन्दरतनुं तरुणारुणास्यां पाशाङ्कुशाभयवराद्यकरां वरास्त्रैः ॥ ३ ॥

ते तर्ककर्कशधियः श्रुतिशास्त्रशिल्पैश्छन्दोऽ- भिशोभितमुखाः सकलागमज्ञाः ।

सर्वज्ञलब्धविभवाः कुमुदेन्दुवर्णां ये वाग्भवे च भवतीं परिभावयन्ति ॥ ४ ॥

वज्रपणुन्नहृदया समयद्रुहस्ते वैरोचने मदनमन्दिरगास्यमातः ।

मायाद्वयानुगतविग्रहभूषिताऽसि दिव्यास्त्रवह्निवनितानुगताऽसि धन्ये ॥ ५ ॥

वृत्तत्रयाष्टदलवह्निपुरःसरस्य मार्तण्डमण्डलगतां परिभावयन्ति ।

ये वह्निकूटसदृशीं मणिपूरकान्तस्ते कालकण्टकविडम्बनचञ्चवः स्युः ॥ ६ ॥

कालागरुभ्रमरचन्दनकुण्डगोल- खण्डैरनङ्गमदनोद्भवमादनीभिः ।

सिन्दूरकुङ्कुमपटीरहिमैर्विधाय सन्मण्डलं तदुपरीह यजेन्मृडानीम् ॥ ७ ॥

चञ्चत्तडिन्मिहिरकोटिकरां विचेला- मुद्यत्कबन्धरुधिरां द्विभुजां त्रिनेत्राम् ।

वामे विकीर्णकचशीर्षकरे परे तामीडे परं परमकर्त्रिकया समेताम् ॥ ८ ॥

कामेश्वराङ्गनिलयां कलया सुधांशोर्विभ्राजमानहृदयामपरे स्मरन्ति ।

सुप्ताहिराजसदृशीं परमेश्वरस्थां त्वामाद्रिराजतनये च समानमानाः ॥ ९ ॥

लिङ्गत्रयोपरिगतामपि वह्निचक्र- पीठानुगां सरसिजासनसन्निविष्टाम् ।

सुप्तां प्रबोध्य भवतीं मनुजा गुरूक्तहूँकारवायुवशिभिर्मनसा भजन्ति ॥ १० ॥

शुभ्रासि शान्तिककथासु तथैव पीता स्तम्भे रिपोरथ च शुभ्रतरासि मातः ।

उच्चाटनेऽप्यसितकर्मसुकर्मणि त्वं संसेव्यसे स्फटिककान्तिरनन्तचारे ॥ ११ ॥

त्वामुत्पलैर्मधुयुतैर्मधुनोपनीतैर्गव्यैः पयोविलुलितैः शतमेव कुण्डे ।

साज्यैश्च तोषयति यः पुरुषस्त्रिसन्ध्यं षण्मासतो भवति शक्रसमो हि भूमौ ॥ १२ ॥

जाग्रत्स्वपन्नपि शिवे तव मन्त्रराजमेवं विचिन्तयति यो मनसा विधिज्ञः ।

संसारसागरसमृद्धरणे वहित्रं चित्रं न भूतजननेऽपि जगत्सु पुंसः ॥ १३ ॥

इयं विद्या वन्द्या हरिहरविरिञ्चिप्रभृतिभिः पुरारातेरन्तः पुरमिदमगम्यं पशुजनैः ।

सुधामन्दानन्दैः पशुपतिसमानव्यसनिभिः सुधासेव्यैः सद्भिर्गुरुचरणसंसारचतुरैः ॥ १४ ॥

कुण्डे वा मण्डले वा शुचिरथ मनुना भावयत्येव मन्त्री संस्थाप्योच्चैर्जुहोति प्रसवसुफलदैः पद्मपालाशकानाम् ।

हैमं क्षीरैस्तिलैर्वां समधुककुसुमैर्मालतीबन्धुजातीश्वेतैरब्धं सकानामपि वरसमिधा सम्पदे सर्वसिद्ध्यै ॥ १५ ॥

अन्धः साज्यं समांसं दधियुतमथवा योऽन्वहं यामिनीनां मध्ये देव्यै ददाति प्रभवति गृहगा श्रीरमुष्यावखण्डा ।

आज्यं मांसं सरक्तं तिलयुतमथवा तण्डुलं पायसं वा हुत्वा मांसं त्रिसन्ध्यं स भवति मनुजो भूतिभिर्भूतनाथः ॥ १६ ॥

इदं देव्याः स्तोत्रं पठति मनुजो यस्त्रिसमयं शुचिर्भूत्वा विश्वे भवति धनदो वासवसमः ।

वशा भूपाः कान्ता निखिलरिपुहन्तुः सुरगणा भवन्त्युच्चैर्वाचो यदिह ननु मासैस्त्रिभिरपि ॥ १७ ॥

॥ इति माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥

माँ छिन्नमस्ता शक्ति, बलिदान, आत्म-नियंत्रण और ब्रह्मज्ञान की देवी हैं। उनका स्तोत्र साधक को आत्मिक रूप से सशक्त करता है, मन की चंचलता को समाप्त करता है, और उसे आत्म-ज्ञान की ओर अग्रसर करता है। यह साधना जितनी रहस्यमयी है, उतनी ही फलदायी भी, बशर्ते श्रद्धा, नियम और सही मार्गदर्शन हो।

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FAQs”

प्रश्न 1: क्या छिन्नमस्ता की पूजा सभी कर सकते हैं?

उत्तर: नहीं। यह साधना गूढ़ और उग्र होती है। गुरु की आज्ञा और मार्गदर्शन के बिना इसे करना अनुचित है।

प्रश्न 2: क्या स्त्रियाँ छिन्नमस्ता स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं?

उत्तर: हाँ, लेकिन विशेष नियमों का पालन जरूरी है और मानसिक संतुलन तथा शक्ति की जरूरत होती है।

प्रश्न 3: क्या छिन्नमस्ता साधना से कोई खतरा होता है?

उत्तर: यदि बिना नियम और मार्गदर्शन के करें तो मानसिक, भावनात्मक असंतुलन या भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। सतर्कता आवश्यक है।

प्रश्न 4: छिन्नमस्ता साधना का सर्वोत्तम समय क्या है?

उत्तर: मध्यरात्रि, अमावस्या की रात्रि, या नवरात्रि की नवमी रात्रि सर्वोत्तम मानी जाती है।

प्रश्न 5: छिन्नमस्ता की साधना का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर: अहंकार का त्याग, वासना पर नियंत्रण, आत्मज्ञान की प्राप्ति और तांत्रिक सिद्धियाँ प्राप्त करना।

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