माँ भुवनेश्वरी स्तोत्र, पाठ, लाभ, विधि और FAQ हिंदी में

माँ भुवनेश्वरी स्तोत्र

माँ भुवनेश्वरी स्तोत्र, पाठ, लाभ, विधि और FAQ हिंदी में

हिंदू धर्म में दश महाविद्याओं का विशेष स्थान है, और उनमें से एक दिव्य स्वरूप हैं माँ भुवनेश्वरी। इन्हें “भुवन की ईश्वरी” अर्थात पूरे जगत की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इनकी स्तुति में रचित “भुवनेश्वरी स्तोत्र” एक अत्यंत प्रभावशाली एवं जाग्रत स्तुति है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उत्थान में सहायक है, बल्कि सांसारिक सुख-समृद्धि, सौभाग्य और आत्मिक शांति प्रदान करता है।

दस महाविद्या स्तोत्र

भुवनेश्वरी स्तोत्र क्या है?

भुवनेश्वरी स्तोत्र एक संस्कृत स्तुति है जिसमें देवी के विभिन्न नाम, स्वरूप, शक्तियाँ और उनके कृपालु भावों का वर्णन है। इसे पढ़ने से भक्त के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है, आत्मिक ऊर्जा बढ़ती है, और इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।

लाभ विवरण
1. मानसिक शांति तनाव, चिंता और बेचैनी को दूर कर मानसिक संतुलन देता है।
2. सौंदर्य और आकर्षण चेहरे पर तेज और वाणी में प्रभाव उत्पन्न करता है।
3. वैवाहिक सुख वैवाहिक जीवन में प्रेम, समझ और संतुलन लाता है।
4. संतान सुख संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपतियों को लाभ देता है।
5. वाणी सिद्धि वाणी में मधुरता, प्रभाव और सिद्धि आती है।
6. भाग्यवृद्धि भाग्य अनुकूल होता है, अचानक सुखद परिवर्तन आते हैं।
7. साधना में सफलता गूढ़ साधनाओं में सफलता और सहज सिद्धि प्रदान करता है।
8. ग्रह दोषों से मुक्ति विशेष रूप से चंद्र और शुक्र से जुड़े दोषों का नाश करता है।

भुवनेश्वरी स्तोत्र पाठ की विधि

स्थान का चयन: पूर्व दिशा की ओर मुख करके शांत स्थान पर बैठें।

वस्त्र: लाल, गुलाबी या पीले वस्त्र धारण करें।

आसन: ऊन या कंबल का आसन लें।

संकल्प: “मैं अमुक उद्देश्य हेतु माँ भुवनेश्वरी स्तोत्र का पाठ कर रहा/रही हूँ।”

मंत्र जाप से प्रारंभ: ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं भुवनेश्वर्यै नमः 

पाठ अवधि: न्यूनतम 11 बार, अधिकतम 108 बार पाठ करें।

नैवेद्य: खीर, फल, मिश्री, कमल गट्टे चढ़ाएं।

समापन: आरती व क्षमा प्रार्थना के साथ समाप्त करें।

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माँ भुवनेश्वरी देवी के 5 रहस्य

यहाँ माँ भुवनेश्वरी देवी के 5 रहस्यों को  प्रस्तुत किया गया है

क्रम रहस्य विवरण
1 सृष्टि की आदिशक्ति ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पूर्व विद्यमान, स्वयं ब्रह्म की शक्ति।
2 वाणी की जननी शब्द, मंत्र और वाणी की मूल स्त्रोत — वाग्देवी रूप में पूजित।
3 चंद्रमा की अधिपति चंद्र दोष व मानसिक विकारों को शांत करने वाली देवी।
4 त्रिगुणात्मक संचालिका सत्व, रज, तम तीनों गुणों का संतुलन और संचालन करती हैं।
5 नाम स्मरण से फलदायिनी केवल नाम-जप से ही सिद्धि, सौंदर्य व शांति की प्राप्ति संभव है।

भुवनेश्वरी स्तोत्र  तात्त्विक विवेचना (Philosophical Significance)

भुवनेश्वरी नाम का तात्पर्य है — “भुवन की ईश्वरी”। वे जगत की सत्ता की मूल शक्ति हैं।

जब हम इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, हम देवी की सात्त्विक, राजस और तामस शक्तियों को जाग्रत करते हैं।

माँ भुवनेश्वरी की उपासना से मन, वाणी और कर्म – तीनों शुद्ध होते हैं।

यह स्तोत्र सर्वमंगलकारी है — जो सुख, समृद्धि, ज्ञान, मोक्ष सभी देता है।

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भुवनेश्वरी के 12 प्रमुख नाम

माँ भुवनेश्वरी के 12 प्रमुख नाम जैसे श्रीभुवनेश्वरी, जगदम्बा, त्रिगुणात्मिका, वाग्देवी आदि, देवी की शक्ति, करुणा, सौंदर्य और सृष्टि की अधिपत्यता दर्शाते हैं।

क्रम नाम अर्थ / विशेषता
1 श्रीभुवनेश्वरी संपूर्ण भुवन की अधिपति देवी
2 जगदम्बा समस्त जगत की माता
3 त्रिगुणात्मिका सत्व, रज और तम — तीनों गुणों से युक्त
4 वाग्देवी वाणी और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी
5 सृष्टिस्वरूपिणी सृष्टि की स्वरूपवाली, रचनात्मक शक्ति
6 चंद्रशेखरप्रियंवदा भगवान शिव को प्रिय व मधुर वाणीवाली देवी
7 महामाया माया की अधीश्वरी, ब्रह्मांड की रहस्यात्मक शक्ति
8 वरदायिनी वर देने वाली, कृपालु स्वरूप
9 सौम्या शांत, सौम्य, करुणामयी देवी
10 राजराजेश्वरी सभी राजाओं की अधिराज देवी
11 ललिता सौंदर्य, कोमलता व लीलामयी शक्ति का प्रतीक
12 विश्वेश्वरी समस्त विश्व की ईश्वरी

श्रीभुवनेश्वरीस्तोत्रम्

अथानन्दमयीं साक्षाच्छब्दब्रह्मस्वरूपिणीम् ।
ईडे सकलसम्पत्त्यै जगत्कारणमम्बिकाम् ॥

विद्यामशेषजननीमरविन्दयोने- var आद्यामशेष
र्विष्णोः शिवस्य च वपुः प्रतिपादयित्रीम् ।
सृष्टिस्थितिक्षयकरीं जगतां त्रयाणां
स्तुत्वा गिरं विमलयाम्यहमम्बिके त्वाम् ॥ १॥

पृथ्व्या जलेन शिखिना मरुताम्बरेण
होत्रेन्दुना दिनकरेण च मूर्तिभाजः ।
देवस्य मन्मथरिपोरपि शक्तिमत्ता
हेतुस्त्वमेव खलु पर्वतराजपुत्रि ॥ २॥

त्रिस्रोतसः सकलदेवसमर्च्चितायाः
वैशिष्ट्यकारणमवैमि तदेव मातः ।
त्वत्पादपङ्कजपरागपवित्रितासु
शम्भोर्जटासु सततं परिवर्तनं यत् ॥ ३॥

आनन्दयेत्कुमुदिनीमधिपः कलाना-
न्नान्यामिनः कमलिनीमथ नेतरां वा ।
एकस्य मोदनविधौ परमेकमीष्टे
त्वं तु प्रपञ्चमभिनन्दयसि स्वदृष्ट्या ॥ ४॥

आद्याप्यशेषजगतान्नवयौवनासि
शैलाधिराजतनयाप्यतिकोमलासि ।
त्रय्याः प्रसूरपि तया न समीक्षितासि
ध्येयासि गौरि मनसो न पथि स्थितासि ॥ ५॥

आसाद्य जन्म मनुजेषु चिराद्दुरापं
तत्रापि पाटवमवाप्य निजेन्द्रियाणाम् ।
नाभ्यर्चयन्ति जगतां जनयित्रि ये त्वां
निःश्रेणिकाग्रमधिरुह्य पुनः पतन्ति ॥ ६॥

कर्पूरचूर्णहिमवारिविलोडितेन
ये चन्दनेन कुसुमैश्च सुजातगन्धैः ।
आराधयन्ति हि भवानि समुत्सुकास्त्वां
ते खल्वखण्डभुवनाधिभुवः प्रथन्ते ॥ ७॥

आविश्य मध्यपदवीं प्रथमे सरोजे
सुप्ता हि राजसदृशी विरचय्य विश्वम् ।
विद्युल्लतावलयविभ्रममुद्वहन्ती
पद्मानि पञ्च विदलय्य समश्नुवाना ॥ ८॥

तन्निर्गतामृतरसैरभिषिच्य गात्रं
मार्गेण तेन विलयं पुनरप्यवाप्ता ।
येषां हृदि स्फुरसि जातु न ते भवेयु-
र्मातर्महेश्वरकुटुम्बिनि गर्भभाजः ॥ ९॥

आलम्बिकुण्डलभरामभिरामवक्त्रा-
मापीवरस्तनतटीं तनुवृत्तमध्याम् ।
चिन्ताक्षसूत्रकलशालिखिताढ्यहस्ता-
मावर्तयामि मनसा तव गौरि मूर्तिम् ॥ १०॥

आस्थाय योगमविजित्य च वैरिषट्क-
माबध्य चेन्द्रियगणं मनसि प्रसन्ने ।
पाशाङ्कुशाभयवराढ्यकरांशुवक्त्रा-
मालोकयन्ति भुवनेश्वरि योगिनस्त्वाम् ॥ ११॥

उत्तप्तहाटकनिभां करिभिश्चतुर्भि-
रावर्तितामृतघटैरभिषिच्यमाना ।
हस्तद्वयेन नलिने रुचिरे वहन्ती
पद्मापि साभयकरा भवसि त्वमेव ॥ १२॥

अष्टाभिरुग्रविविधायुधवाहिनीभि-
र्द्दोर्वल्लरीभिरधिरुह्य मृगाधिवासम् ।
दूर्वादलद्युतिरमर्त्यविपक्षपक्षा-
न्न्यक्कुर्वती त्वमसि देवि भवानि दुर्गे ॥ १३॥

आविर्न्निदाघजलशीकरशोभिवक्त्रां
गुञ्जाफलेन परिकल्पितहारयष्टिम् ।
रत्नांशुकामसितकान्तिमलङ्कृतां त्वा-
माद्यां पुलिन्दतरुणीमसकृन्नमामि ॥ १४॥

हंसैर्गतिः क्वणितनूपुरदूरदृष्टे
मूर्तेरिवाप्तवचनैरनुगम्यमानौ ।
पद्माविवोर्द्ध्वमुखरूढसुजातनालौ
श्रीकण्ठपत्नि शिरसैव दधे तवाङ्घ्री ॥ १५॥

द्वाभ्यां समीक्षितुमतृप्तिमतेव दृग्भ्या-
मुत्पाद्यता त्रिनयनं वृषकेतनेन ।
सान्द्रानुरागभवनेन निरीक्ष्यमाणे
जङ्घे उभे अपि भवानि तवानतोऽस्मि ॥ १६॥

ऊरू स्मरामि जितहस्तिकरावलेपौ
स्थौल्येन मार्द्दवतया परिभूतरम्भौ ।
श्रोणीभरस्य सहनौ परिकल्प्य दत्तौ
स्तम्भाविवाङ्गवयसा तव मध्यमेन ॥ १७॥

श्रोण्यौ स्तनौ च युगपत्प्रथयिष्यतोच्चै-
र्बाल्यात्परेण वयसा परिकृष्णसारः ।
रोमावलीविलसितेन विभाव्यमूर्ति-
र्मध्यं तव स्फुरतु मे हृदयस्य मध्ये ॥ १८॥

सख्यास्स्मरस्य हरनेत्रहुताशभीरो-
र्ल्लावण्यवारिभरितं नवयौवनेन ।
आपाद्य दत्तमिव पल्लवमप्रविष्टं
नाभिं कदापि तव देवि न विस्मरेयम् ॥ १९॥

ईशोऽपि गेहपिशुनं भसितं दधाने
काश्मीरकर्द्दममनु स्तनपङ्कजे ते ।
स्नानोत्थितस्य करिणः क्षणलक्षफेनौ
सिन्दूरितौ स्मरयतः समदस्य कुम्भौ ॥ २०॥

कण्ठातिरिक्तगलदुज्ज्वलकान्तिधारा
शोभौ भुजौ निजरिपोर्मकरध्वजेन ।
कण्ठग्रहाय रचितौ किल दीर्घपाशौ
मातर्मम स्मृतिपथं न विलज्जयेताम् ॥ २१॥

नात्यायतं रुचिरकम्बुविलासचौर्यं
भूषाभरेण विविधेन विराजमानम् ।
कण्ठं मनोहरगुणं गिरिराजकन्ये
सञ्चिन्त्य तृप्तिमुपयामि कदापि नाहम् ॥ २२॥

अत्यायताक्षमभिजातललाटपट्टं
मन्दस्मितेन दरफुल्लकपोलरेखम् ।
बिम्बाधरं खलु समुन्नतदीर्घनासं
यत्ते स्मरत्यसकृदम्ब स एव जातः ॥ २३॥

आविस्त्वयारकरलेखमनल्पगन्ध-
पुष्पोपरि भ्रमदलिव्रजनिर्विशेषम् ।
यश्चेतसा कलयते तव केशपाशं
तस्य स्वयं गलति देवि पुराणपाशः ॥ २४॥

श्रुतिसुरचितपाकं धीमतां स्तोत्रमेतत्
पठति य इह मर्त्यो नित्यमार्द्द्रान्तरात्मा ।
स भवति पदमुच्चैस्सम्पदां पादनम्र-
क्षितिपमुकुटलक्ष्मीर्ल्लक्षणानां चिराय ॥ २५॥

श्रुतिसुरचितपाकन्धीमतां स्तोत्रमेतत्
पठति य इह मर्त्यो नित्यमार्द्द्रान्तरात्मा ।
स भवति पदमुच्चैस्सम्पदाम्पादनम्र-
क्षितिपमुकुटलक्ष्मीर्ल्लक्षणानाञ्चिरा य ॥ २६॥

इति श्रीभुवनेश्वरीस्तोत्रं समाप्तम् ॥

माँ भुवनेश्वरी स्तोत्र केवल एक स्तुति नहीं, एक शक्ति जागरण यंत्र है। यह मन, वाणी, विचार और जीवन को शुद्ध करता है। देवी की उपासना से साधक को न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि वह आत्मज्ञान, ध्यान और मोक्ष की ओर भी अग्रसर होता है। यदि आप अपने जीवन में स्थिरता, सौंदर्य, प्रेम और समृद्धि चाहते हैं, तो माँ भुवनेश्वरी की स्तुति अवश्य करें।

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FAQs”

Q1: भुवनेश्वरी स्तोत्र कब पढ़ना चाहिए?

उत्तर: यह स्तोत्र ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) या शाम को सूर्यास्त के बाद पढ़ना श्रेष्ठ होता है।

Q2: क्या स्तोत्र केवल महिलाएँ पढ़ सकती हैं?

उत्तर: नहीं, यह स्तोत्र स्त्री-पुरुष सभी के लिए लाभकारी है।

Q3: स्तोत्र पढ़ते समय किन नियमों का पालन करना चाहिए?

उत्तर: स्वच्छता, संयमित भोजन, सत्य वचन और नियमबद्धता का पालन आवश्यक है।

Q4: क्या बिना दीक्षा के यह स्तोत्र पढ़ा जा सकता है?

उत्तर: हाँ, यह स्तोत्र बिना दीक्षा के भी पढ़ा जा सकता है। परन्तु यदि आप इसे तांत्रिक प्रयोग में लेना चाहते हैं, तो गुरु दीक्षा आवश्यक है।

Q5: क्या नवरात्रि में इसका पाठ विशेष फल देता है?

उत्तर: बिल्कुल! नवरात्रि, पूर्णिमा, अमावस्या और शुक्रवार को पाठ करना अत्यंत फलदायक होता है।

Q6: भुवनेश्वरी स्तोत्र का प्रभाव कितनी जल्दी दिखता है?

उत्तर: श्रद्धा, नियम और निष्ठा से पढ़ा गया स्तोत्र शीघ्र फल देता है — सामान्यतः 11, 21 या 40 दिन के नियमित पाठ में शुभ परिणाम मिलने लगते हैं।

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