आदित्य हृदय स्तोत्र: सूर्यदेव की महिमा
हमारे पूर्वजों ने सदैव आध्यात्मिकता को महत्वपूर्ण माना है। हिंदू धर्म में, स्तोत्रों का बहुत बड़ा महत्व है, जिनमें से एक है “आदित्य हृदय स्तोत्र”। यह स्तोत्र आदित्य देवता, अर्थात् सूर्यदेव की महिमा को समर्पित है।
स्तोत्र का परिचय : “आदित्य हृदय स्तोत्र” को महर्षि अगस्त्य ने भगवान राम को सिखाया था। यह स्तोत्र रामायण के वनवास के समय की कथा है।
स्तोत्र की विशेषताएँ : यह स्तोत्र मुख्यतः आदित्य देवता की प्रशंसा में है। इसमें आदित्य देवता की शक्ति और महिमा का वर्णन किया गया है।
स्तोत्र के फायदे : “आदित्य हृदय स्तोत्र” का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है। यह स्तोत्र रोग निवारण और समृद्धि के लिए भी प्रभावशाली है।
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कैसे करें
स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति का अनुभव होता है। सच्चे मन से और ध्यान से पाठ करने से इसके फायदे अधिक होते हैं।
आदित्य हृदय स्तोत्र के रहस्य : “आदित्य हृदय स्तोत्र” के पाठ से व्यक्ति को आदित्य देवता की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र ध्यान और समर्पण की भावना को उत्पन्न करता है।
आध्यात्मिक साधना में आदित्य हृदय स्तोत्र का उपयोग : स्तोत्र का पाठ करने से आध्यात्मिक साधना में व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्राप्त होता है। ध्यान और मंत्रजाप के साथ स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति का अन्तरंग अद्यात्मिक विकास होता है।
स्तोत्र के मार्गदर्शन में अर्जुन : महाभारत में आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से अर्जुन ने अपनी शक्ति और साहस बढ़ाया था। यह स्तोत्र उनके आत्मविश्वास को मजबूत किया था।
स्तोत्र के महत्व का सारांश : “आदित्य हृदय स्तोत्र” का पाठ करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक समृद्धि और शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
स्तोत्र का नियमित पाठ करने के लाभ : स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को आनंद की अनुभूति होती है और उसकी आध्यात्मिक सफलता में मदद मिलती है। आध्यात्मिक साधना में “आदित्य हृदय स्तोत्र” का महत्वपूर्ण स्थान है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति मिलती है। इसे नियमित रूप से पाठ करने से आत्मा का संयम और आनंद मिलता है।
आदित्यहृदय स्तोत्र
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥
पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥
हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥
तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥
आदित्य हृदय स्तोत्र” का महत्व और लाभों का विस्तार स्पष्ट होता है। यह स्तोत्र आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शक्ति का स्रोत है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को आनंद और शांति की प्राप्ति होती है। हमारे पूर्वजों ने सदैव आध्यात्मिकता को महत्वपूर्ण माना है। हिंदू धर्म में, स्तोत्रों का बहुत बड़ा महत्व है, जिनमें से एक है “आदित्य हृदय स्तोत्र”। यह स्तोत्र आदित्य देवता, अर्थात् सूर्यदेव की महिमा को समर्पित है।
FAQs”
Q.1: "आदित्य हृदय स्तोत्र" क्या है?
Ans. "आदित्य हृदय स्तोत्र" एक हिंदू स्तोत्र है जो आदित्य देवता की महिमा को समर्पित है।
Q.2: आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किसने किया था?
Ans. महर्षि अगस्त्य ने भगवान राम को "आदित्य हृदय स्तोत्र" का पाठ सिखाया था।
Q.3:आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने के क्या फायदे हैं?
Ans. स्तोत्र का पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति, और शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
Q.4: क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से रोग निवारण हो सकता है?
Ans, हां, इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से रोग निवारण में मदद मिल सकती है।
Q.5: किस पुराण में "आदित्य हृदय स्तोत्र" का वर्णन है?
Ans. "आदित्य हृदय स्तोत्र" का वर्णन महाभारत में है। यह महाभारत के वीर योद्धा अर्जुन के द्वारा पाठ किया गया था।