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महाशिवरात्रि पर करे शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का पाठ, भोलेनाथ हरेंगे दुःख और कलेश

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने का मुहूर्त

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने का मुहूर्त बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस विशेष दिन पूजा का समय अत्यंत अनुकूल माना जाता है। महाशिवरात्रि के दिन, पूजा का सर्वोत्तम समय रात्रि के प्रारम्भिक समय, यानी सूर्यास्त के ठीक पहले का होता है। इस समय में भगवान शिव की पूजा करने से अत्यंत शुभ फल प्राप्त होता है और व्रत की समाप्ति भी की जाती है। इस दिन श्रद्धालु भक्त शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल अभिषेक करते हैं और अपने मन की पूर्णता के लिए प्रार्थना करते हैं। इसके अलावा, उन्हें रात्रि के विशेष समय में शिव की भक्ति करने का भी अवसर मिलता है।

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं : परिचय

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं भगवान शिव की महिमा को स्तुति और स्मरण करने के लिए एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” के महात्म्य का वर्णन करता है।

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं: अर्थ और महत्व

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं का अर्थ है “भगवान शिव की पंचाक्षरी मंत्र की स्तुति”। यह स्तोत्र भगवान शिव के गुणों की प्रशंसा करता है और उनके ध्यान की महत्ता को बताता है।

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं: प्रमुख श्लोक

इस स्तोत्र के प्रमुख श्लोकों में भगवान शिव की महिमा, गुण, और कृपा का वर्णन किया गया है। इन श्लोकों का पाठ करने से भक्त का मन भगवान की ओर लगता है और उसे आध्यात्मिक शक्ति मिलती है।

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं: ध्यान और लाभ

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का ध्यान करने से भक्त को चिंता, भय, और दुःख का सामना करने की क्षमता मिलती है। इस स्तोत्र का पाठ करने से मन शांत होता है और व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है।

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं: भगवान शिव की महिमा

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र में भगवान शिव की महिमा का उल्लेख है। इसमें भगवान शिव के गुणों, कल्याणकारी स्वरूप, और उनके शक्ति स्तुति की गई है।

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं: पाठ कैसे करें

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का पाठ करने के लिए सुबह-सुबह विशेष ध्यान देना चाहिए। इसका पाठ करते समय ध्यान और श्रद्धा से प्रत्येक श्लोक को सुनना चाहिए।

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं: प्रभाव

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का पाठ करने से भक्त को मन की शांति, आत्मिक उत्थान, और संतुलन मिलता है। यह स्तोत्र उसे आत्मनिर्भरता, साहस, और उत्साह का संदेश देता है।

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं: भक्ति में वृद्धि

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का पाठ करने से भक्ति में वृद्धि होती है। भक्त भगवान शिव के प्रति अधिक श्रद्धा और विश्वास रखता है।

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं: संबंधित कथाएँ

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का पाठ करने से संबंधित विभिन्न कथाएं और पुराणों में भगवान शिव की महिमा और उनके लीलाएं विस्तार से वर्णित हैं।

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रं: उपासना

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव की उपासना करने में अधिक लगाव आता है। भक्त भगवान शिव की भक्ति में अधिक समर्पित होता है।

  • शिव पञ्चाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्रम्

    श्रीमदात्मने गुणैकसिन्धवे नमः शिवाय

  • धामलेशधूतकोकबन्धवे नमः शिवाय।

    नामशेषितानमद्भावसिन्धवे नमः शिवाय

  • पामरेतरप्रधानबन्धवे नमः शिवाय ॥१॥

    कालभीतविप्रबालपाल ते नमः शिवाय

  • शूलभिन्नदुष्टदक्षफाल ते नमः शिवाय ।

    मूलकारणाय कालकाल ते नमः शिवाय

  • पालयाधुना दयालवाल ते नमः शिवाय ॥२॥

    इष्टवस्तुमुख्यदानहेतवे नमः शिवाय

  • दुष्टदैत्यवंशधूमकेतवे नमः शिवाय ।

    वृष्टिरक्षणाय धर्मसेतवे नमः शिवाय

  • अष्टमूर्तये वृषेन्द्रकेतवे नमः शिवाय ॥३॥

    आपदद्रिभेदटङ्कहस्त ते नमः शिवाय

  • पापहारिदिव्यसिन्धुमस्त ते नमः शिवाय।

    पापदारिणे लसन्नमस्तते नमः शिवाय

  • शापदोषखण्डनप्रशस्त ते नमः शिवाय ॥४॥

    व्योमकेश दिव्यभव्यरूप ते नमः शिवाय

  • हेममेदिनीधरेन्द्रचाप ते नमः शिवाय ।

    नाममात्रदग्धसर्वपाप ते नमः शिवाय

  • कामनैकतानहृद्दुराप ते नमः शिवाय ॥५॥

    ब्रह्ममस्तकावलीनिबद्ध ते नमः शिवाय

  • जिह्मगेन्द्रकुण्डल प्रसिद्ध ते नमः शिवाय ।

    ब्रह्मणे प्रणीतवेदपद्धते नमः शिवाय

  • जिह्मकालदेहदत्तपद्धते नमः शिवाय ॥६॥

    कामनाशनाय शुद्धकर्मणे नमः शिवाय

  • सामगानजायमानशर्मणे नमः शिवाय।

    हेमकान्तिचाकचिक्यकर्मणे नमः शिवाय

  • सामजासुराङ्गलब्धचर्मणे नमः शिवाय॥७॥

    जन्ममृत्युघोरदुःखहारिणे नमः शिवाय

  • चिन्मयैकरूपदेहधारिणे नमः शिवाय ।

    मन्मनोरथावपूर्तिकारिणे नमः शिवाय

  • सन्मनोगताय कामवैरिणे नमः शिवाय॥८॥

    यक्षराजबन्धवे दयालवे नमः शिवाय

  • दक्षपाणिशोभिकाञ्चनालवे नमः शिवाय ।

    पक्षिराजवाहहृच्छयालवे नमः शिवाय

  • अक्षिफाल वेदपूततालवे नमः शिवाय ॥९॥

    दक्षहस्तनिष्ठजातवेदसे नमः शिवाय

  • अक्षरात्मने नमद्बिडौजसे नमः शिवाय ।

    दीक्षितप्रकाशितात्मतेजसे नमः शिवाय

  • उक्षराजवाह ते सतां गते नमः शिवाय ॥१०॥

    राजताचलेन्द्रसानुवासिने नमः शिवाय

  • राजमाननित्यमन्दहासिने नमः शिवाय ।

    राजकोरकावतंसभासिने नमः शिवाय

  • राजराजमित्रताप्रकाशिने नमः शिवाय ॥११॥

    दीनमानवालिकामधेनवे नमः शिवाय

  • सूनबाणदाहकृत्कृशानवे नमः शिवाय ।

    स्वानुरागभक्तरत्नसानवे नमः शिवाय

  • दानवान्धकारचण्डभानवे नमः शिवाय ॥१२॥

    सर्वमङ्गलाकुचाग्रशायिने नमः शिवाय

  • सर्वदेवतागणातिशायिने नमः शिवाय ।

    पूर्वदेवनाशसंविधायिने नमः शिवाय

  • सर्वमन्मनोजभङ्गदायिने नमः शिवाय ॥१३॥

    स्तोकभक्तितोऽपि भक्तपोषिणे नमः शिवाय

  • माकरन्दसारवर्षिभाषिणे नमः शिवाय।

    एकबिल्वदानतोऽपि तोषिणे नमः शिवाय

  • नैकजन्मपापजालशोषिणे नमः शिवाय ॥१४॥

    सर्वजीवरक्षणैकशीलिने नमः शिवाय

  • पार्वतीप्रियाय भक्तपालिने नमः शिवाय ।

    दुर्विदग्धदैत्यसैन्यदारिणे नमः शिवाय

  • शर्वरीशधारिणे कपालिने नमः शिवाय ॥१५॥

    पाहि मामुमामनोज्ञदेह ते नमः शिवाय

  • देहि मे वरं सिताद्रिगेह ते नमः शिवाय ।

    मोहितर्षिकामिनीसमूह ते नमः शिवाय

  • स्वेहितप्रसन्नकामदोह ते नमः शिवाय ॥१६॥

    मङ्गलप्रदाय गोतुरंग ते नमः शिवाय

  • गङ्गया तरङ्गितोत्तमाङ्ग ते नमः शिवाय।

    संगरप्रवृत्तवैरिभङ्ग ते नमः शिवाय

  • अङ्गजारये करेकुरङ्ग ते नमः शिवाय ॥ १७॥

    ईहितक्षणप्रदानहेतवे नमः शिवाय

  • आहिताग्निपालकोक्षकेतवे नमः शिवाय।

    देहकान्तिधूतरौप्यधातवे नमः शिवाय

  • गेहदुःखपुञ्जधूमकेतवे नमः शिवाय ॥१८॥

    त्र्यक्ष दीनसत्कृपाकटाक्ष ते नमः शिवाय

  • दक्षसप्ततन्तुनाशदक्ष ते नमः शिवाय ।

    ऋक्षराजभानुपावकाक्ष ते नमः शिवाय

  • रक्ष मां प्रपन्नमात्ररक्ष ते नमः शिवाय ॥१९॥

    न्यङ्कुपाणये शिवंकराय ते नमः शिवाय

  • सङ्कटाब्धितीर्णकिङ्कराय ते नमः शिवाय ।

    पङ्कभीषिताभयंकराय ते नमः शिवाय

  • पङ्कजाननाय शंकराय ते नमः शिवाय ॥२०॥

    कर्मपाशनाश नीलकण्ठ ते नमः शिवाय

  • शर्मदाय नर्यभस्मकण्ठ ते नमः शिवाय ।

    निर्ममर्षिसेवितोपकण्ठ ते नमः शिवाय

  • कुर्महे नतीर्नमद्विकुण्ठ ते नमः शिवाय ॥२१॥

    विष्टपाधिपाय नम्रविष्णवे नमः शिवाय

  • शिष्टविप्रहृद्गुहाचरिष्णवे नमः शिवाय ।

    इष्टवस्तुनित्यतुष्टजिष्णवे नमः शिवाय

  • कष्टनाशनाय लोकजिष्णवे नमः शिवाय ॥२२॥

    अप्रमेयदिव्यसुप्रभाव ते नमः शिवाय

  • सत्प्रपन्नरक्षणस्वभाव ते नमः शिवाय ।

    स्वप्रकाश निस्तुलानुभाव ते नमः शिवाय

  • विप्रडिम्भदर्शितार्द्रभाव ते नमः शिवाय ॥२३॥

    सेवकाय मे मृड प्रसीद ते नमः शिवाय

  • भावलभ्य तावकप्रसाद ते नमः शिवाय ।

    पावकाक्ष देवपूज्यपाद ते नमः शिवाय

  • तावकाङ्घ्रिभक्तदत्तमोद ते नमः शिवाय ॥२४॥

    भुक्तिमुक्तिदिव्यभोगदायिने नमः शिवाय

  • शक्तिकल्पितप्रपञ्चभागिने नमः शिवाय ।

    भक्तसंकटापहारयोगिने नमः शिवाय

  • युक्तसन्मनःसरोजयोगिने नमः शिवाय ॥२५॥

    अन्तकान्तकाय पापहारिणे नमः शिवाय

  • शंतमाय दन्तिचर्मधारिणे नमः शिवाय ।

    सन्तताश्रितव्यथाविदारिणे नमः शिवाय

  • जन्तुजातनित्यसौख्यकारिणे नमः शिवाय ॥२६॥

    शूलिने नमो नमः कपालिने नमः शिवाय

  • पालिने विरिञ्चितुण्डमालिने नमः शिवाय ।

    लीलिने विशेषरुण्डमालिने नमः शिवाय

  • शीलिने नमः प्रपुण्यशालिने नमः शिवाय ॥२७॥

    शिवपञ्चाक्षरमुद्रां चतुष्पदोल्लासपद्यमणिघटिताम् ।

    नक्षत्रमालिकामिह दधदुपकण्ठं नरो भवेत्सोमः ॥२८॥

  • शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का पाठ करने से भक्त को आत्मिक ऊर्जा, शांति, और संतुलन मिलता है। यह स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का वर्णन करता है और भक्त को उनके ध्यान में लगाता है।

FAQs”

Q.1 :यह स्तोत्र किसकी स्तुति में है?

Ans. यह स्तोत्र भगवान शिव की महिमा और गुणों की स्तुति में है।

Q.2: शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का अर्थ क्या है?

Ans. शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का अर्थ है "भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र की स्तुति"।

Q.3: यह स्तोत्र किस ऋषि द्वारा रचा गया है?

Ans. इस स्तोत्र को ऋषि आदि शंकराचार्य द्वारा रचा गया है।

Q.4: क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से मन को शांति मिलती है?

Ans. हां, शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का पाठ करने से मन को शांति और सुकून मिलता है।

Q.5: शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का पाठ किस समय करें?

Ans. शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का पाठ सुबह और शाम के समय में करना लाभकारी होता है।

Q.6: क्या इस स्तोत्र के पाठ से ध्यान लगता है?

Ans. हां, इस स्तोत्र के पाठ से ध्यान लगता है और मन शांत होता है।

महा शिवरात्रि पर करें शिव षडाक्षरा स्तोत्र का पाठ, प्राप्त होगा महादेव का आशीर्वाद

शिव षडाक्षरा स्तोत्र, महत्त्व और लाभ

शिव षडाक्षरा स्तोत्र हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण मंत्र है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंत्र ‘नमः शिवाय’ के छह अक्षरों से मिलकर बनता है। इसका पाठ करने से शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में संतुलन और शांति मिलती है।

षडाक्षरों का अर्थ : 

शिव षडाक्षरा मंत्र के प्रत्येक अक्षर का अपना महत्व है। ‘न’, ‘म’, ‘श’, ‘व’, ‘य’, ‘ह’ अक्षरों का जप करने से मनुष्य को आत्मिक और मानसिक शक्ति मिलती है। इस मंत्र के पाठ से रोग नाशक शक्ति प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

ध्यान और जप की तकनीकें :

शिव षडाक्षरा स्तोत्र का जप करने से मनुष्य की मानसिक शांति होती है और उसके मन में एकाग्रता बनी रहती है। इस मंत्र का जप करने की विशेष तकनीकें हैं जो व्यक्ति को ध्यान और साधना में सहायक होती हैं।

ध्यान के साथ ध्यान की तकनीकें:

शिव षडाक्षरा स्तोत्र का उच्चारण करके ध्यान धारण करने से व्यक्ति ईश्वर के साथ एकाग्र होता है और आत्मा के साथ संबंध स्थापित करता है। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और उसे आंतरिक शांति का अनुभव होता है।

चिन्ह और रिवाज:

शिव षडाक्षरा स्तोत्र के पाठ का उच्चारण करने के साथ-साथ शिव के विभिन्न चिन्हों और रिवाजों को भी मान्यता दी जाती है। ओम नमः शिवाय, रुद्राक्ष, और लिंगम इस मंत्र के साथ गहरा संबंध रखते हैं।

समकालीन अभ्यास और उनका अनुकरण:

आधुनिक युग में शिव षडाक्षरा स्तोत्र को आधुनिक धार्मिक और आध्यात्मिक संदर्भों में भी प्रयोग किया जाता है। योग और ध्यान अभ्यास में भी इस मंत्र का उपयोग किया जाता है जो आत्मिक साधना में सहायक होता है।

शिव षडाक्षर स्तोत्र
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं

गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् ।

खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं

संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥1॥

प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं

सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम् ।

विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोभिरामं

संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥2॥

प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं

वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम् ।

नामादिभेदरहितं षड्भावशून्यं

संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥3॥

शिव षडाक्षरा स्तोत्रम्

ॐकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिनः ।

कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ॥1॥

नमंति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां गणाः ।

नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नमः ॥2॥

महादेवं महात्मानं महाध्यानं परायणम् ।

महापापहरं देवं मकाराय नमो नमः ॥3॥

शिवं शांतं जगन्नाथं लोकानुग्रहकारकम् ।

शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नमः ॥4॥

वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कंठभूषणम् ।

वामे शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नमः ॥5॥

यत्र यत्र स्थितो देवः सर्वव्यापी महेश्वरः ।

यो गुरुः सर्वदेवानां यकाराय नमो नमः ॥6॥

षडक्षरमिदं स्तोत्रं यः पठेच्छिवसंनिधौ ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥7॥

शिव षडाक्षरा स्तोत्र का पाठ करना ध्यान और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है। यह मंत्र आत्मिक शक्ति को बढ़ाता है और व्यक्ति को आत्मा के साथ जोड़ता है। इसका नियमित जप करने से व्यक्ति को आंतरिक शांति और संतुलन मिलता है।

महा शिवरात्रि पर करें शिव तांडव स्तोत्र का पाठ, भोलेनाथ प्रसन्न होंगे

शिव तांडव स्त्रोत : महाशिवरात्रि एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जिसे हम हर साल मनाते हैं। यह पर्व भगवान शिव को समर्पित है और हम उन्हें अपनी पूजा और भक्ति से याद करते हैं। महाशिवरात्रि के इस पावन अवसर पर, शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने का एक विशेष महत्व है। इसका उपाय भोलेनाथ के आशीर्वाद से सभी कष्टों को दूर कर सकता है।

शिव तांडव स्तोत्र का महत्व

मान्यता है कि जब भगवान रावण ने कैलाश पर्वत का विशेष स्थान और भगवान शिव का ध्यान किया, तो उन्होंने एक शिव तांडव स्तोत्र रचा। यह स्तोत्र उनकी अत्यधिक भक्ति का परिणाम था और उसने उन्हें परम आनंद में ले लिया। इस स्तोत्र को पढ़ने से शिव की कृपा प्राप्ति होती है और सभी कष्टों का समाधान होता है।

महाशिवरात्रि का महत्व

महाशिवरात्रि हिन्दू पंचांग में बहुत ही महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। यह पर्व भगवान शिव के समर्पित होता है और भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन भक्त शिव की पूजा, अर्चना, और विशेषत: शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करते हैं।

कौन हैं भोलेनाथ?

भगवान शिव को भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है। वे प्रेम का देवता हैं और उनके भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। उनकी पूजा से भक्तों के जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 

शिवरात्रि पर भोलेनाथ की पूजा का उपाय

महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ की पूजा का उपाय यह है कि व्यक्ति को पहले अपने मन को शांत करना चाहिए। फिर उन्हें ध्यान में जाना चाहिए और भगवान शिव को प्रणाम करना चाहिए। उसके बाद, शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करके भगवान शिव की कृपा का अनुरोध करना चाहिए।

भगवान शिव के ध्यान का महत्व

भगवान शिव के ध्यान का महत्व अत्यंत उच्च है। उनकी ध्यान में जाने से व्यक्ति को शांति और सुख की प्राप्ति होती है।

शिव तांडव स्तोत्र का अर्थ

शिव तांडव स्तोत्र एक विशेष मंत्र है जो भगवान शिव की महिमा का गान करता है। इसका पाठ करने से शिव की कृपा प्राप्ति होती है और सभी कष्टों का समाधान होता है। इसके पाठ से व्यक्ति का मन शांत होता है और उसका आत्मा पवित्र होता है।

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने के लिए, व्यक्ति को पहले अपने मन को शांत करना चाहिए। फिर उन्हें ध्यान में जाना चाहिए और स्तोत्र का पाठ करते हुए भगवान शिव को समर्पित करना चाहिए।

शिव तांडव स्त्रोत  के लाभ

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक शांति मिलती है। इसके अलावा, यह उनके जीवन में सुख और समृद्धि लाता है।

शिव भक्ति का महत्व

शिव भक्ति का महत्व अत्यंत उच्च है। भगवान शिव के प्रति श्रद्धा रखने वाले व्यक्ति कभी भी अपने जीवन में कष्ट और दुःख का सामना नहीं करते हैं।

शिव तांडव स्त्रोत मन्त्रों का शक्तिशाली प्रभाव

मन्त्रों का पाठ करने से मानसिक और आध्यात्मिक शांति मिलती है। इन मन्त्रों का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्ति होती है और सभी कष्टों का निवारण होता है।

शिव तांडव स्तोत्र का विशेष महत्व

शिव तांडव स्तोत्र का विशेष महत्व है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक शांति मिलती है और उसका जीवन समृद्धि से भरा होता है।

मन को शांति और स्थिरता प्रदान करने के लिए करें शिव तांडव स्त्रोत

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से मन को शांति और स्थिरता मिलती है। इसके अलावा, यह व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है और उसे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद करता है।

शिव तांडव स्त्रोत सभी कष्टों को दूर करने का उपाय

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से सभी कष्टों का निवारण होता है और व्यक्ति का जीवन सुखमय हो जाता है।

शिव तांडव स्तोत्र का आध्यात्मिक महत्व

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति मिलती है और उसका जीवन समृद्धि से भरा होता है।

 शिव तांडव स्तोत्र
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥॥

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥॥

अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥॥

इति श्रीरावण कृतम्
शिव ताण्डव स्तोत्र संपूर्णम 

महाशिवरात्रि पर शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की कृपा से सभी कष्टों का समाधान होता है और उनके आशीर्वाद से हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।

FAQs”

Q.1 : महाशिवरात्रि पर शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कितनी बार करें?

Ans. शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कम से कम एक बार करना चाहिए, लेकिन यदि संभव हो तो उसे तीन बार पाठ करना अधिक फलदायी होता है।

Q.2: क्या शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से हर तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं?

Ans. हां, शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के कष्टों का समाधान होता है।

Q.3: क्या महाशिवरात्रि पर केवल शिव तांडव स्तोत्र का पाठ ही काफी है?

Ans. नहीं, अत्यंत प्रभावशाली होता है। साथ ही, भक्तों को शिव की पूजा और ध्यान में भी लगना चाहिए।

Q.4: क्या शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से किसी को अन्याय से मुक्ति मिलती है?

Ans. हां, शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से किसी को अन्याय से मुक्ति मिलती है और उसका जीवन उत्तम बनता है।

Q.5: क्या भगवान शिव का ध्यान करने से केवल शारीरिक रोगों का ही निवारण होता है?

Ans. नहीं, भगवान शिव का ध्यान करने से मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक रोगों का समाधान होता है।

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम, प्रमुख श्लोक, पाठ कैसे करें, शिवरामाष्टक स्तोत्रम का महत्व

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्र का अर्थ और महत्व

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्र का अर्थ है “भगवान राम के आठ श्लोक”। यह स्तोत्र भगवान राम की महिमा का वर्णन करता है और उनके गुणों की प्रशंसा करता है। इसका पाठ करने से भक्त की आत्मा शुद्ध होती है और उसका मन शांत रहता है।

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम् के लाभ

  • सौभाग्य और शांति का प्राप्ति: श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम् का पाठ करने से भक्त को सौभाग्य और शांति की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र उन्हें आत्मिक शांति का अनुभव करने में सहायक होता है।
  • भक्ति और उत्साह का उत्तेजन: श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम् का पाठ करने से भक्त की भक्ति और उत्साह में वृद्धि होती है। यह उन्हें भगवान राम के प्रति अधिक समर्पित बनाता है।
  • शत्रुओं का नाश: इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त के शत्रुओं का नाश होता है और वह अपने जीवन में स्थिरता और सुरक्षा का अनुभव करता है।
  • आत्मिक विकास: श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम् का पाठ करने से भक्त का आत्मिक विकास होता है। यह उन्हें सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलने में मदद करता है।
  • संतोष और समृद्धि: इस स्तोत्रम का नियमित पाठ करने से भक्त को संतोष और समृद्धि का अनुभव होता है। वह अपने जीवन में आर्थिक और आत्मिक दृष्टि से समृद्धि का अनुभव करता है।

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का महत्व

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम भगवान श्रीराम को समर्पित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जो उनकी महिमा का गुणगान करता है और उनकी प्रतिष्ठा को स्तुति करता है। यह स्तोत्र अष्टक (अठारह श्लोकों) का संग्रह है, जो भक्तों को भगवान श्रीराम के गुणों का स्मरण कराता है और उनकी कृपा को प्राप्त करने में सहायक होता है।

  • श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम के पाठ से भक्त सौभाग्य, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति में सफलता प्राप्त करता है। इसका पाठ करने से भक्त को मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है और वह अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है। यह स्तोत्र भक्तों को श्रीराम के नाम का जाप करने और उनकी आराधना में लगाव बढ़ाने में मदद करता है।
  • श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करने से भक्त के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होता है और वह उत्तम स्वास्थ्य, सुख, और संतुष्टि का अनुभव करता है। इसका पाठ भक्त को शत्रुओं से बचाने में सहायक होता है और उसे समस्त कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • इसलिए, श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करना धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, और यह भक्त को अपने जीवन में स्थिरता और शांति का अनुभव कराता है।

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का श्रद्धा और भक्ति में महत्व

  • श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करना श्रद्धा और भक्ति को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। श्रद्धा और भक्ति धार्मिकता में महत्वपूर्ण तत्त्व होते हैं जो भगवान की प्राप्ति में मार्गदर्शन करते हैं।
  • श्रद्धा का मतलब है विश्वास और विश्वास। जब हम श्रद्धा के साथ भगवान में विश्वास करते हैं, तो हमारी मानसिकता प्रेरित होती है और हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए समर्थ होते हैं। भक्ति का अर्थ है भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण। यह हमें भगवान की उपासना में लगाव बढ़ाता है और हमें उनके साथ गहरा संबंध बनाने में मदद करता है।
  • श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करने से श्रद्धालुओं की श्रद्धा और भक्ति में वृद्धि होती है। यह स्तोत्र उन्हें भगवान की कृपा को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है और उन्हें आत्मिक ऊर्जा और शांति की अनुभूति कराता है। श्रद्धा और भक्ति के साथ श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करना हमें आत्मिक विकास और धार्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम के प्रमुख श्लोक

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम भगवान श्रीराम के गुणों और महिमा का स्मरण करने वाला एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह अष्टक (अठारह श्लोकों) का संग्रह है, जो भक्तों को श्रीराम के भक्तिमय रूप को याद कराता है। इस लेख में, हम श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम के प्रमुख श्लोकों की जानकारी प्राप्त करेंगे।

    1. श्लोक 1: असिम श्रीराम चरण कमल रजुरेनु, जानकी प्राण का धन। इस श्लोक में श्रीराम के चरणारविंद की महिमा और जानकी माता सीता के प्राणों की महत्ता का वर्णन है।
    2. श्लोक 2: सिया रम जय जय राम, जंके राजपद दिन्हे विखान। यह श्लोक भक्तों को श्रीराम के भगवानी रूप की प्रशंसा करता है और उनकी समर्था को स्मरण करता है।
    3. श्लोक 3: जय जय रघुवीर समर्थ, तिनके काज सकल तुम सांचो। यह श्लोक भगवान राम की महानता और उनकी समर्था की स्तुति करता है।
    4. श्लोक 4: अच्युतानंदन हामारी भव धाम, सियापति राम चंद्र की जय।  इस श्लोक में भगवान श्रीराम की अद्वितीयता और महत्वपूर्णता का उल्लेख है।
    5. श्लोक 5: रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम। यह श्लोक भगवान राम की राजधानी और सीता राम के विशेषता का वर्णन करता है।
  • श्लोक – १: सौभाग्यदं शान्तिदं
    प्रथम श्लोक के अनुसार, यहां श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का प्रारंभ होता है। इस श्लोक में भगवान राम को सौभाग्य और शांति के दाता के रूप में समर्पित किया गया है। यह स्तोत्र श्रद्धालुओं को सौभाग्य, शांति, और सुख की प्राप्ति में मदद करता है।
  • श्लोक – २: भूतिदं भक्तिदं
    दूसरे श्लोक में, भगवान राम को भूति और भक्ति के दाता के रूप में वर्णित किया गया है। इस श्लोक के पाठ से, भक्त सच्ची भक्ति के साथ भगवान की कृपा को प्राप्त करता है।
  • श्लोक – ३: शत्रुमद्दं रिपुच्छद्दं
    तीसरे श्लोक में, भगवान राम को शत्रुओं का नाश करने वाले के रूप में वर्णित किया गया है। इसका मतलब है कि श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करने से व्यक्ति अपने शत्रुओं को परास्त कर सकता है और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ कैसे करें

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करने के लिए निम्नलिखित तरीके का पालन करें:

  • ध्यान से सुनें: स्तोत्र का पाठ करते समय ध्यान दें और मन को भगवान श्रीराम की ओर ले जाएं।
  • अध्ययन करें: श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम के श्लोकों को पढ़ें और उनका अर्थ समझें।
  • मन्त्रमुग्ध हों: हर श्लोक को ध्यानपूर्वक सुनें और मन्त्रमुग्ध हों।
  • आध्यात्मिक विचारों में लीन हों: स्तोत्र के पाठ से अपने आत्मिक विकास को समझें और अध्यात्मिक विचारों में लीन हों।
  • नियमितता: श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का नियमित पाठ करें, इससे आपका मन शांत और स्थिर होगा।
  • अनुष्ठान: इस स्तोत्र को अनुष्ठान मानकर नियमित रूप से पाठ करें, जो आपके जीवन में शांति और सकारात्मकता लाएगा।  इन सरल तरीकों का पालन करके आप श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ कर सकते हैं और उसके श्रेष्ठ लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करने का महत्व

  • श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करने का अत्यंत महत्व है। यह स्तोत्र भगवान श्रीराम की महिमा, गुण, और कृपा को स्मरण करने का एक अद्वितीय तरीका है। इसके पाठ से भक्त को आत्मिक शांति, उत्तरोत्तर प्रगति, और आत्म-साक्षात्कार की अनुभूति होती है। श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम के प्रत्येक श्लोक में भगवान राम के महान गुणों का उल्लेख होता है, जो भक्त को धार्मिक और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
  • इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त का मन पवित्रता और शुद्धता की ओर आकर्षित होता है। उन्हें अपने जीवन की उद्देश्यों का पुनरावलोकन करने का संदेश मिलता है और वे अपने जीवन को धार्मिक और नैतिक मूल्यों के साथ गुणवत्ता से जीने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। इसके अलावा, श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करने से मानसिक तनाव कम होता है, और व्यक्ति का मन शांत होता है। यह स्तोत्र भक्त को आत्म-संयम, सहनशीलता, और सच्चे प्रेम की शिक्षा देता है।
  • अतः, श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करना धार्मिकता, आध्यात्मिकता, और आत्मिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्तोत्र भक्त को भगवान राम के प्रति अधिक श्रद्धा और विश्वास के साथ जीने की प्रेरणा प्रदान करता है और उसे उच्चतम आदर्शों की ओर ले जाता है।

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम

शिव हरे शिव राम सखे प्रभो त्रिविधतापनिवारण हे प्रभो ।

अज जनेश्वर यादव पाहि मां शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥1॥
कमललोचन राम दयानिधे हर गुरो गजरक्षक गोपते ।

शिवतनो भव शङ्कर पाहि मां शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥2॥
सुजनरञ्जन मङ्गलमन्दिरं भजति ते पुरुषः परमं पदम्।

भवति तस्य सुखं परमद्भुतं शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥3॥
जय युधिष्ठिरवल्लभ भूपते जय जयार्जितपुण्यपयोनिधे।

जय कृपामय कृष्ण नमोऽस्तु ते शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥4॥
भवविमोचन माधव मापते सुकविमानसहंस शिवारते।

जनकजारत राघव रक्ष मां शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥5॥
अवनिमण्डलमङ्गल मापते जलदसुन्दर राम रमापते।

निगमकीर्तिगुणार्णव गोपते शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥6॥
पतितपावन नाममयी लता तव यशो विमलं परिगीयते।

तदपि माधव मां किमुपेक्षसे शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥7॥
अमरतापरदेव रमापते विजयतस्तव नामधनोपमा।

मयि कथं करुणार्णव जायते शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥8॥
हनुमतः प्रिय चापकर प्रभो सुरसरिद्धृतशेखर हे गुरो।

मम विभो किमु विस्मरणं कृतं शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥9॥
अहरहर्जनरञ्जनसुन्दरं पठति यः शिवरामकृतं स्तवम्।

विशति रामरमाचरणाम्बुजे शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥10॥
प्रातरुत्थाय यो भक्त्या पठेदेकाग्रमानसः।

विजयो जायते तस्य विष्णुमाराध्यमाप्नुयात् ॥11॥

FAQs”

Q.1: क्या श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करना शुभ है?

Ans. हां, श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करना शुभ होता है। यह भगवान राम की महिमा का गान करता है और भक्त को शांति और सौभाग्य की प्राप्ति में मदद करता है।

Q.2: कितनी बार श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ किया जाना चाहिए?

Ans. श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का नियमित पाठ किया जा सकता है। इसका पाठ दिन में एक बार या अनुस्तान में किया जा सकता है।

Q.3: क्या इस स्तोत्रम का पाठ करने से कोई विशेष लाभ होता है?

Ans. श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करने से शुभ कार्यों में सफलता मिलती है और व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति होती है।

Q.4: क्या इस स्तोत्रम का पाठ करने से धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति होती है?

Ans. हां, श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम का पाठ करने से धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह भगवान राम की प्रतिष्ठा बढ़ाता है और भक्त को उनकी कृपा मिलती है।

Q.5: क्या श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम को किसी विशेष अवस्था में पढ़ने का विधान है?

Ans. नहीं, श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम को किसी विशेष अवस्था में पढ़ने का विधान नहीं है। इसे किसी भी समय पढ़ा जा सकता है और भगवान की आराधना के रूप में किया जा सकता है।

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम, भगवान शिव का दिव्य चमत्कार, शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का महत्व जानें

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम परिचय: हिन्दू आध्यात्मिकता के विशाल परिदृश्य में, शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम का महत्वपूर्ण स्थान है। इस पवित्र स्तोत्र का समर्पण भगवान शिव के प्रति भक्ति से भरा है और उसके श्लोक, कवित्तात्मक चित्रण और गहरे अर्थ से युक्त हैं, जो भक्तों के दिलों में आदर्श और भावनाओं को उत्तेजित करते हैं।

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम उत्पत्ति

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम उत्पत्ति और पृष्ठभूमि: शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम, जैसा कि नाम सुझाता है, भगवान शिव के लिए आठ श्लोकों या ‘अष्टकम’ का संग्रह है। इसकी उत्पत्ति प्राचीन समय में हुई और हिन्दू पौराणिक कथाओं में समाहित है। इस स्तोत्र के रचनाकार को श्रेष्ठ महान संत गोस्वामी तुलसीदास के रूप में माना जाता है, जो अपनी भक्तिमय रचनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं।

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम अर्थ

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम अर्थ की समझ: रुद्राष्टकम के प्रत्येक श्लोक भगवान शिव के विभिन्न पहलुओं को समझाता है, उनकी ब्रह्मांडीय शक्तियों से लेकर उनकी दयालु स्वभाव तक। स्तोत्र शिव के गुणों की प्रतिकटता में गहराई से उत्पन्न होता है, भक्तों के दिलों में आदर्श और श्रद्धा की भावना को जाग्रत करता है।

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम भक्तिमय

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम भक्तिमय मूल्य: हिन्दू धर्म में, शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम का विशेष महत्व है, जो भगवान शिव की पूजा का एक प्रभावशाली रूप है। भक्त इन श्लोकों का पाठ अत्यधिक भक्ति के साथ करते हैं, आशीर्वाद और आध्यात्मिक उन्नति की कामना करते हुए। स्तोत्र के साथ संबंधित रीति-रिवाज विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न होते हैं, लेकिन भगवान शिव के प्रति श्रद्धा का एक साझा धारा है।

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम आध्यात्मिक महत्व

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम आध्यात्मिक महत्व: यह स्तोत्र एक गहरा आध्यात्मिक उपकरण के रूप में काम करता है, साधकों को स्वायत्तता और ज्ञान के मार्ग पर मार्गदर्शन करता है। इसके श्लोक, प्रतीकता और रूपक से भरपूर होते हैं, जो अस्तित्व के गहरे रहस्यों और भगवान शिव की दिव्य स्वभाव की ओर ले जाते हैं।

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम पाठ के लाभ

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम पाठ के लाभ: शिव रुद्राष्टकम का पाठ करने से कई आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। अंतर्मन की शांति और साकार के साथ-साथ, इस स्तोत्र को भाग्यपूर्ण माना जाता है। बहुत से लोग इन पवित्र श्लोकों के पाठ में चिकित्सा गुणों को भी सम्मानित करते हैं।

लोकप्रिय व्याख्याएँ: सदियों के लंबे समय के दौरान, शिव रुद्राष्टकम ने विभिन्न विचारधाराओं से व्याख्याएँ प्राप्त की हैं। विभिन्न विचार-प्रणालियाँ स्तोत्र के अर्थ और महत्व पर विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं, इसे आध्यात्मिक गहराई में और अधिक समृद्ध करती हैं।

शिव रुद्राष्टक स्तोत्र मंत्र का जाप कैसे करें

हिंदू धर्म में मंत्रों का महत्व अत्यंत उच्च माना जाता है, और श्री शिव रुद्राष्टक स्तोत्र मंत्र का जाप करना भक्ति और ध्यान का एक महत्वपूर्ण तरीका है। इस मंत्र के जाप से व्यक्ति के मन की शांति होती है और उसका आत्मा से गहरा संबंध बनता है।

  1. शिव रुद्राष्टक स्तोत्र मंत्र का महत्व: श्री शिव रुद्राष्टक स्तोत्र मंत्र का महत्व अत्यंत उच्च है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है और उसे भगवान शिव के कृपालु होने का अनुभव होता है।
  2. शिव रुद्राष्टक स्तोत्र मंत्र का जाप कैसे करें? :  श्री शिव रुद्राष्टक स्तोत्र मंत्र का जाप करने के लिए सबसे पहले एक शांत और पवित्र स्थान चुनें। फिर मंदिर या ध्यान कक्ष में बैठें और प्रार्थना के साथ मंत्र का जाप करें।
  3. शिव रुद्राष्टक स्तोत्र मंत्र जाप के लाभ :  श्री शिव रुद्राष्टक स्तोत्र मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को आत्मिक शांति मिलती है और उसका जीवन सकारात्मक दिशा में बदलता है।
  4. शिव रुद्राष्टक स्तोत्र जाप के लिए तकनीकियाँ: मंत्र के सही उच्चारण के लिए ध्यान और निष्ठा के साथ मंत्र का जाप करें। ध्यान लगाने के लिए मन्त्र का अर्थ समझें और साथ ही अपनी सांसों को संगति में लाएं।
  5. शिव रुद्राष्टक स्तोत्र अर्थ को समझना :  मंत्र के अर्थ को समझने से व्यक्ति की ध्यान और आध्यात्मिक उन्नति होती है, और उसका मानसिक स्थिति में सुधार होता है।
  6. शिव रुद्राष्टक स्तोत्र जाप के सत्र की तैयारी : मंत्र का जाप करने के लिए शांत और साफ़ माहौल बनाएं, और ध्यान लगाने के लिए अपने मन को तैयार करें।
  7. शिव रुद्राष्टक स्तोत्र सही उच्चारण सुनिश्चित करना :  मंत्र के सही उच्चारण के लिए सावधानी बरतें और हर शब्द को स्पष्टता से उच्चारित करें।
  8. शिव रुद्राष्टक स्तोत्र संचितता बनाए रखना : नियमित जाप से मंत्र की ऊर्जा अपने को व्यक्ति के अंदर संचित कर लेती है।

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम का संस्कृति और समाज पर प्रभाव

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम का संस्कृति और समाज पर प्रभाव: शिव रुद्राष्टकम का प्रभाव धार्मिक सीमाओं से आगे बढ़ता है, कला, संगीत, और साहित्य में प्रविष्ट होकर। इसके श्लोकों से अनगिनत कलाकार, संगीतकार, और कवियों को प्रेरित किया जाता है, जो अपने रचनात्मक अभिव्यक्तियों के माध्यम से इसके विषयों को व्याख्या करते हैं। भगवान शिव के साथ जुड़े उत्सव और त्योहार भी रुद्राष्टकम के पाठ का अभिनंदन करते हैं, जो इसके सांस्कृतिक महत्व को और बढ़ाते हैं।

आधुनिक महत्व: आज के तेजी से बदलते समय में, शिव रुद्राष्टकम भक्तों के साथ एक सम्पूर्ण अनुभव प्रदान करता है, जो जीवन की चुनौतियों के बीच आत्मिक शांति और मार्गदर्शन प्रदान करता है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों के आगमन के साथ, स्तोत्र की व्यापक पहुंच में वृद्धि हुई है, जो भक्तों को विश्वभर में पहुंचाता है।

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं॥1॥ 

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो हं॥2॥

 तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजे हं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥

कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

 न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतो हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो॥8॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥9॥

सारांश में, शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम एक अविनाशी महान भगवान शिव की श्रीचरण पर एक अद्वितीय ओड़ है। इसके श्लोक, भक्ति और आदर से भरे हुए, साधकों को सांसारिक और दिव्य के बीच एक पुल बनाते हैं, आध्यात्मिक जागरूकता के मार्ग पर गाइड करते हैं।

FAQs”

Q.1: शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र के क्या फायदे हैं?

Ans. इसे हिंदू धर्म के सबसे शक्तिशाली स्तोत्र में से एक कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस स्तोत्र का पाठ करते हैं उन्हें आध्यात्मिक शांति और मानसिक स्पष्टता का आशीर्वाद मिलेगा।

Q.2: शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र किसने लिखा था?

Ans. रुद्र का अर्थ भगवान शिव की अभिव्यक्ति है और अष्टकम का अर्थ आठ छंदों का संग्रह है। यह प्रार्थना स्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित थी और इसे हिंदी महाकाव्य रामचरितमानस, उत्तरकांड (107वां दोहा या दोहा) में सम्मानजनक स्थान मिलता है।

Q.3: शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का जाप किसे करना चाहिए?

Ans. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक ब्राह्मण इस स्तोत्र का उच्चारण करता है। इससे पता चलता है कि रुद्राष्टकम का जाप सबसे पहले ब्राह्मण द्वारा शिव से आशीर्वाद पाने के लिए किया जाता है। राम चरित मानस के रचयिता तुलसीदास ने यह स्तोत्र लिखा है।

Q.4: शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय क्या बोलना चाहिए?

Ans. ॐ नमः शिवाय।

Q.5: शिव जी का कौन सा मंत्र जाप करना चाहिए?

Ans. शिवलिंग पूजा करते समय बोले जाने वाले मंत्र 1- ॐ ह्रीं ह्रौं नम: शिवाय॥ ॐ पार्वतीपतये नम:॥ ॐ पशुपतये नम:॥

कनकधारा स्तोत्र पाठ और महत्त्व, स्तोत्र  की महिमा, कनकधारा स्तोत्र के फ़ायदे

कनकधारा स्तोत्र : कनकधारा स्तोत्र एक उत्कृष्ट संस्कृत श्लोक है जो आदि शंकराचार्य द्वारा रचित किया गया है। यह स्तोत्र माता लक्ष्मी की महिमा का वर्णन करता है और उनकी कृपा को प्राप्त करने की प्रार्थना करता है।

कनकधारा स्तोत्र का महत्व : कनकधारा स्तोत्र को पढ़ने और सुनने से धन, सौभाग्य, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र की शक्ति से माता लक्ष्मी की कृपा मिलती है और वह अपने भक्तों को आर्थिक संघर्षों से निकालती हैं।

कनकधारा स्तोत्र का अर्थ

श्री शंकराचार्य की प्रशंसा : कनकधारा स्तोत्र के पाठ से हम आदि शंकराचार्य की महिमा का गुणगान करते हैं और उनकी कृपा की प्रार्थना करते हैं। उन्होंने इस स्तोत्र के माध्यम से माता लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की थी।

आर्थिक और आध्यात्मिक लाभ :  कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से न केवल आर्थिक संघर्षों का निवारण होता है, बल्कि यह आध्यात्मिक उत्थान और शांति का अनुभव भी प्रदान करता है।

कनकधारा स्तोत्र  का पाठ और महत्त्व

गणेश और लक्ष्मी मंत्र : कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से पहले गणेश मंत्र का जाप करना सुझावित है, जिससे शुभकारी ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसके बाद लक्ष्मी मंत्र का पाठ करना धन, सौभाग्य, और समृद्धि के लिए वरदान का स्त्रोत बनता है।

कनकधारा स्तोत्र  का पाठ सुनने और पढ़ने के लाभ: कनकधारा स्तोत्र को सुनने और पढ़ने से धन लाभ, सौभाग्य, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, इस स्तोत्र को पढ़ने से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है।

कनकधारा स्तोत्र के चमत्कार

आर्थिक संघर्षों का निवारण : कनकधारा स्तोत्र के पाठ से आर्थिक संघर्षों का निवारण होता है और धन की प्राप्ति होती है। इसकी शक्ति से व्यक्ति अपने आर्थिक और पारिवारिक संघर्षों को परिहार करता है।

नेगेटिविटी को प्रतिरोध करना :  कनकधारा स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति नेगेटिविटी को प्रतिरोध करता है और प्रसन्नता की ऊर्जा को अपने जीवन में आमंत्रित करता है। इससे व्यक्ति के मनोबल में वृद्धि होती है और उसका आत्मविश्वास मजबूत होता है।

कनकधारा स्तोत्र  की महिमा

आध्यात्मिक उत्थान और शांति : कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति का आध्यात्मिक उत्थान होता है और उसे मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र मानव जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से पूर्ण करता है।

संस्कृति में कनकधारा स्तोत्र की महत्ता : कनकधारा स्तोत्र संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और लोग इसे धर्मिक सामग्री के रूप में मानते हैं। इसका पाठ करने से व्यक्ति को आर्थिक और आध्यात्मिक लाभ होता है।

कनकधारा स्तोत्र के पाठ का विशेष उपयोग

मंगल कामनाएं और आशीर्वाद : कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से मानव जीवन में मंगल कामनाएं और आशीर्वाद मिलते हैं। इसकी शक्ति से व्यक्ति के सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उसे उन्नति का मार्ग प्राप्त होता है।

दुखों का समाप्ति : कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में दुखों का समाप्ति होता है और उसे स्थिरता और खुशियों का अनुभव होता है। इस स्तोत्र की शक्ति से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और समाधान का अनुभव होता है।

कनकधारा स्तोत्र का महत्व

संगीत का आनंद : कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से मानव मन में संगीत का आनंद और शांति का अनुभव होता है। यह स्तोत्र मन को शांति और सुकून देता है और उसे अध्यात्मिक ऊर्जा से पूर्ण करता है।

मनोबल और आत्मविश्वास : कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति का मनोबल और आत्मविश्वास मजबूत होता है। इसकी शक्ति से व्यक्ति अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल होता है और उसके जीवन में सफलता का अनुभव होता है।

धन लाभ के लिए कनकधारा स्तोत्र

समृद्धि और सौभाग्य : कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को धन, समृद्धि, और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र की शक्ति से व्यक्ति अपने आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करता है और समृद्धि के साथ जीवन जीता है।

आर्थिक समृद्धि के लिए कनकधारा स्तोत्र : कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसकी शक्ति से व्यक्ति के जीवन में आर्थिक संपन्नता और समृद्धि का अनुभव होता है।

 श्री कनकधारा स्तोत्र 

अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती

भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।

अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला

माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः

प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।

माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या

सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –

मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।

ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –

मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –

मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।

आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं

भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या

हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।

कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला

कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –

र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।

मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –

र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्

माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।

मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं

मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –

मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।

दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं

नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –

दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।

दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां

पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति

शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।

सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै

तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै

रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।

शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै

पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै

नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।

नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै

नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि

साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।

त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि

मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः

सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।

संतनोति वचनाङ्गमानसै –

स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते

धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे

त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –

स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।

प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –

लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

कमले कमलाक्षवल्लभे

त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।

अवलोकय मामकिञ्चनानां

प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं

त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।

गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो

भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥

कनकधारा स्तोत्र एक अत्यंत प्राचीन और शक्तिशाली स्तोत्र है जो माता लक्ष्मी की कृपा को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करता है। इसकी शक्ति से व्यक्ति को धन, सौभाग्य, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

 

FAQs”

Q.1 : कनकधारा स्तोत्र का पाठ किस समय किया जाना चाहिए?

Ans. कनकधारा स्तोत्र का पाठ सुबह और शाम करने से अधिक लाभ होता है।

Q.2 : क्या कनकधारा स्तोत्र को रोज़ाना पढ़ना चाहिए?

Ans. हां, यदि संभव हो तो कनकधारा स्तोत्र को रोज़ाना पढ़ना चाहिए, इससे धन, सौभाग्य, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

Q.3 : कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने के कितने दिनों में परिणाम दिखता है?

Ans.: कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने के कुछ ही दिनों में उसके प्रभाव महसूस होने लगते हैं। लेकिन, यह नियमित रूप से पढ़ा जाना चाहिए।

Q.4 : कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से किसे लाभ होता है?

Ans. कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से सभी व्यक्ति को धन, सौभाग्य, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

Q.5 : क्या कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से किसी को किसी भी विशेष काम में सफलता मिलती है?

Ans. हां, कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को किसी भी काम में सफलता मिलती है और उसके जीवन में खुशियों की बौछार होती है।

Q.6 : क्या कनकधारा स्तोत्र का पाठ किसी अन्य स्तोत्र के साथ मिला कर किया जा सकता है?

Ans. हां, कनकधारा स्तोत्र का पाठ किसी अन्य स्तोत्र के साथ मिला कर किया जा सकता है। इससे आर्थिक समृद्धि के पारंपरिक प्राप्ति का अनुभव होता है।

आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ, सूर्यदेव की महिमा,स्तोत्र के फायदे, पाठ कैसे करें

आदित्य हृदय स्तोत्र: सूर्यदेव की महिमा

हमारे पूर्वजों ने सदैव आध्यात्मिकता को महत्वपूर्ण माना है। हिंदू धर्म में, स्तोत्रों का बहुत बड़ा महत्व है, जिनमें से एक है “आदित्य हृदय स्तोत्र”। यह स्तोत्र आदित्य देवता, अर्थात् सूर्यदेव की महिमा को समर्पित है।

स्तोत्र का परिचय :  “आदित्य हृदय स्तोत्र” को महर्षि अगस्त्य ने भगवान राम को सिखाया था। यह स्तोत्र रामायण के वनवास के समय की कथा है।

स्तोत्र की विशेषताएँ :  यह स्तोत्र मुख्यतः आदित्य देवता की प्रशंसा में है। इसमें आदित्य देवता की शक्ति और महिमा का वर्णन किया गया है।

स्तोत्र के फायदे : “आदित्य हृदय स्तोत्र” का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है। यह स्तोत्र रोग निवारण और समृद्धि के लिए भी प्रभावशाली है।

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कैसे करें

स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति का अनुभव होता है। सच्चे मन से और ध्यान से पाठ करने से इसके फायदे अधिक होते हैं।

आदित्य हृदय स्तोत्र के रहस्य :  “आदित्य हृदय स्तोत्र” के पाठ से व्यक्ति को आदित्य देवता की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र ध्यान और समर्पण की भावना को उत्पन्न करता है।

आध्यात्मिक साधना में  आदित्य हृदय स्तोत्र का उपयोग : स्तोत्र का पाठ करने से आध्यात्मिक साधना में व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्राप्त होता है। ध्यान और मंत्रजाप के साथ स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति का अन्तरंग अद्यात्मिक विकास होता है।

स्तोत्र के मार्गदर्शन में अर्जुन :  महाभारत में आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से अर्जुन ने अपनी शक्ति और साहस बढ़ाया था। यह स्तोत्र उनके आत्मविश्वास को मजबूत किया था।

स्तोत्र के महत्व का सारांश :  “आदित्य हृदय स्तोत्र” का पाठ करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक समृद्धि और शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

स्तोत्र का नियमित पाठ करने के लाभ :  स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को आनंद की अनुभूति होती है और उसकी आध्यात्मिक सफलता में मदद मिलती है। आध्यात्मिक साधना में “आदित्य हृदय स्तोत्र” का महत्वपूर्ण स्थान है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति मिलती है। इसे नियमित रूप से पाठ करने से आत्मा का संयम और आनंद मिलता है।

आदित्यहृदय स्तोत्र

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥

सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥

आदित्य हृदय स्तोत्र” का महत्व और लाभों का विस्तार स्पष्ट होता है। यह स्तोत्र आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शक्ति का स्रोत है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को आनंद और शांति की प्राप्ति होती है। हमारे पूर्वजों ने सदैव आध्यात्मिकता को महत्वपूर्ण माना है। हिंदू धर्म में, स्तोत्रों का बहुत बड़ा महत्व है, जिनमें से एक है “आदित्य हृदय स्तोत्र”। यह स्तोत्र आदित्य देवता, अर्थात् सूर्यदेव की महिमा को समर्पित है।

FAQs”

Q.1: "आदित्य हृदय स्तोत्र" क्या है?

Ans. "आदित्य हृदय स्तोत्र" एक हिंदू स्तोत्र है जो आदित्य देवता की महिमा को समर्पित है।

Q.2: आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किसने किया था?

Ans. महर्षि अगस्त्य ने भगवान राम को "आदित्य हृदय स्तोत्र" का पाठ सिखाया था।

Q.3:आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने के क्या फायदे हैं?

Ans. स्तोत्र का पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति, और शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

Q.4: क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से रोग निवारण हो सकता है?

Ans, हां, इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से रोग निवारण में मदद मिल सकती है।

Q.5: किस पुराण में "आदित्य हृदय स्तोत्र" का वर्णन है?

Ans. "आदित्य हृदय स्तोत्र" का वर्णन महाभारत में है। यह महाभारत के वीर योद्धा अर्जुन के द्वारा पाठ किया गया था।

 

अपराजिता स्तोत्र – दैवीय शक्ति का अनावरण और अपराजिता स्तोत्र – माँ दुर्गा की दिव्य शक्ति और वीरता का अनावरण

अपराजिता स्तोत्र: मानव जीवन का आध्यात्मिक आधार

अपराजिता स्तोत्र हिन्दू धर्म के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों में से एक है। यह स्तोत्र माँ दुर्गा को समर्पित है और उनके शक्ति और साहस की महिमा को गाता है। अपराजिता स्तोत्र के पाठ से भक्त अपने जीवन में साहस, उत्साह, और सफलता की ओर बढ़ते हैं।

अपराजिता स्तोत्र का महत्व

अपराजिता स्तोत्र का महत्व अत्यंत उच्च है। इसके पाठ से भक्त माँ दुर्गा की कृपा को प्राप्त करते हैं और उनके आशीर्वाद से अजेय बनते हैं। यह स्तोत्र विभिन्न कठिनाइयों और संघर्षों के समाधान में मदद करता है।

अपराजिता स्तोत्र के लाभ

  • भक्त इस स्तोत्र के पाठ से मानसिक शांति और साहस प्राप्त करते हैं।
  • यह स्तोत्र भक्तों को नकारात्मकता से मुक्ति दिलाता है और प्राणीकी रक्षा करता है।

अपराजिता स्तोत्र का पाठ

अपराजिता स्तोत्र को सबसे अच्छे तरीके से पढ़ने के लिए अध्यात्मिक नियमों का पालन करें। प्रातः और सायंकाल इसे नियमित रूप से पढ़ें और एक पवित्र स्थान पर बैठकर इसे जपें।

अपराजिता स्तोत्र के मंत्र

“नमो नमस्ते तु माँ अपराजिते, नमो नमस्ते च नमो नमः।”

अपराजिता स्तोत्र के प्रयोग

अपराजिता स्तोत्र के पाठ के बाद, भक्त को अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए माँ दुर्गा की आराधना करनी चाहिए।

अपराजिता स्तोत्र के महत्वपूर्ण बातें

  • अपराजिता स्तोत्र के पाठ से अपने जीवन को संतुलित और सफल बनाने की क्षमता मिलती है।
  • इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त का मन शुद्ध होता है और वह नेगेटिविटी से मुक्त होता है।

अपराजिता स्तोत्र के चमत्कार

अपराजिता स्तोत्र के चमत्कारी प्रभाव अनगिनत हैं। लाखों भक्तों ने इस स्तोत्र के पाठ से जीवन में सफलता प्राप्त की है।

अपराजिता स्तोत्र

।।अथ श्री अपराजिता स्तोत्र।।

ॐ नमोऽपराजितायै ।।

ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः ।गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि ।श्री लक्ष्मीनृसिंहो देवता ।ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् ।हुं शक्तिः ।सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः ।।

विनियोग

ॐ नमोऽपराजितायै । ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः ।गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि । लक्ष्मीनृसिंहो देवता । ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् । हुं शक्तिः । सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः ।

ध्यान:

ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् ।।शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ।।१।।

शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम् ।।

बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ।।२।।

नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ।।३।।

मार्ककण्डेय उवाच :शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् ।।

असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ।।४।।

ॐ नमो नारायणाय,नमो भगवते वासुदेवाय,नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षायणे,क्षीरोदार्णवशायिने,शेषभोगपर्य्यङ्काय,गरुडवाहनाय,अमोघायअजायअजितायपीतवाससे ।। ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म, वाराह नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम ।वरद, वरद, वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तुते, स्वाहा ।। ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत -पिशाच-कूष्माण्ड-सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान् उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांश्चान्या हन हन पच पच मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय विद्रावय चूर्णय चूर्णय शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरुकुरु स्वाहा ।।

ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषीकेश, केशव,सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर, सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन,सर्वयन्त्रप्रभञ्जन, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर, सर्वबन्धविमोक्षण, सर्वाहितप्रमर्दन, सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोऽस्तुते स्वाहा ।।विष्णोरियमनुप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा ।।सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी ।।५।।

सर्वैंश्च पठितां सिद्धैर्विष्णोः परमवल्लभा ।।

नानया सदृशं किङ्चिद्दुष्टानां नाशनं परम् ।।६।।

विद्या रहस्या कथिता वैष्णव्येषापराजिता ।।

पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्सत्त्वगुणाश्रया ।।७।।

ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।।

प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ।।८।।

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ह्यभयामपराजिताम् ।।

या शक्तिर्मामकी वत्स रजोगुणमयी मता ।।९।।

सर्वसत्त्वमयी साक्षात्सर्वमन्त्रमयी च या ।।या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ।।सर्वकामदुधा वत्स शृणुष्वैतां ब्रवीमि ते ।।१०।।

य इमामपराजितां परमवैष्णवीमप्रतिहतां पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्यां जपति पठति शृणोति स्मरति धारयति कीर्तयति वा न तस्याग्निवायुवज्रोपलाशनिवर्षभयं, न समुद्रभयं, न ग्रहभयं, न चौरभयं, न शत्रुभयं, न शापभयं वा भवेत् ।

।क्वचिद्रात्र्यन्धकारस्त्रीराजकुलविद्वेषि-विषगरगरदवशीकरण-विद्वेष्णोच्चाटनवधबन्धनभयं वा न भवेत्।।एतैर्मन्त्रैरुदाहृतैः सिद्धैः संसिद्धपूजितैः ।।।। ॐ नमोऽस्तुते ।।

अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे, अपराजिते, पठति, सिद्धे जयति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, एकोनाशीतितमे, एकाकिनि, निश्चेतसि, सुद्रुमे, सुगन्धे, एकान्नशे, उमे ध्रुवे, अरुन्धति, गायत्रि, सावित्रि, जातवेदसि, मानस्तोके, सरस्वति, धरणि, धारणि, सौदामनि, अदिति, दिति, विनते, गौरि, गान्धारि, मातङ्गी कृष्णे, यशोदे, सत्यवादिनि, ब्रह्मवादिनि, कालि, कपालिनि, करालनेत्रे, भद्रे, निद्रे, सत्योपयाचनकरि, स्थलगतं जलगतं अन्तरिक्षगतं वा मां रक्ष सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा ।।यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि ।।म्रियते बालको यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत् ।।११।।

धारयेद्या इमां विद्यामेतैर्दोषैर्न लिप्यते ।।

गर्भिणी जीववत्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशयः ।।१२।।

भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां लिखित्वा गन्धचन्दनैः ।।

एतैर्दोषैर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत् ।।१३।।

रणे राजकुले द्यूते नित्यं तस्य जयो भवेत् ।।

शस्त्रं वारयते ह्योषा समरे काण्डदारुणे ।।१४।।

गुल्मशूलाक्षिरोगाणां क्षिप्रं नाश्यति च व्यथाम् ।।शिरोरोगज्वराणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम् ।।१५।।

इत्येषा कथिता विध्या अभयाख्याऽपराजिता ।।

एतस्याः स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते ।।१६।।

नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः ।।

न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः ।।१७।।

यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः ।।

अग्नेर्भयं न वाताच्व न स्मुद्रान्न वै विषात् ।।१८।।

कार्मणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च ।।

उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा ।।१९।।

न किञ्चित्प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया ।।

पठेद् वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा ।।२०।।

हृदि वा द्वारदेशे वा वर्तते ह्यभयः पुमान् ।।

हृदये विन्यसेदेतां ध्यायेद्देवीं चतुर्भुजाम् ।।२१।।

रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसमप्रभाम् ।।पाशाङ्कुशाभयवरैरलङ्कृतसुविग्रहाम् ।।२२।।

साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं मन्त्रवर्णामृतान्यपि ।।

नातः परतरं किञ्चिद्वशीकरणमनुत्तमम् ।।२३।।

रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा ।

प्रातः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणैरपि ।।

तदिदं वाचनीयं स्यात्तत्प्रीत्या प्रीयते तु माम् ।।२४।।

ॐ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि विद्यामपि महाबलाम् ।।

सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीम् ।।२५।।

दारिद्र्यदुःखशमनीं दौर्भाग्यव्याधिनाशिनीम् ।।

भूतप्रेतपिशाचानां यक्षगन्धर्वरक्षसाम् ।।२६।।

डाकिनी शाकिनी-स्कन्द-कूष्माण्डानां च नाशिनीम् ।।

महारौद्रिं महाशक्तिं सद्यः प्रत्ययकारिणीम् ।।२७।।

गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः ।।

तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः शृणु ।।२८।।

एकान्हिकं द्व्यन्हिकं च चातुर्थिकार्द्धमासिकम् ।।

द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्मासिकम् ।।२९।।

पाञ्चमासिकं षाङ्मासिकं वातिक पैत्तिकज्वरम् ।।

श्लैष्पिकं सात्रिपातिकं तथैव सततज्वरम् ।।३०।।

मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरम् ।द्व्यहिन्कं त्र्यह्निकं चैव ज्वरमेकाह्निकं तथा ।।क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणादपराजिता ।।३१।।

ॐ हॄं हन हन, कालि शर शर, गौरि धम्, धम्, विद्ये आले ताले माले गन्धे बन्धे पच पच विद्ये नाशय नाशय पापं हर हर संहारय वा दुःखस्वप्नविनाशिनि कमलस्तिथते विनायकमातः रजनि सन्ध्ये, दुन्दुभिनादे, मानसवेगे, शङ्खिनि, चाक्रिणि गदिनि वज्रिणि शूलिनि अपमृत्युविनाशिनि विश्वेश्वरि द्रविडि द्राविडि द्रविणि द्राविणि केशवदयिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनि दुर्म्मददमनि ।।शबरि किराति मातङ्गि ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।।ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान् सर्वान् दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणि वैष्णवि माहेश्वरि कौमारि वाराहि नारसिंहि ऐन्द्रि चामुन्डे महालक्ष्मि वैनायिकि औपेन्द्रि आग्नेयि चण्डि नैरृति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊर्ध्वमधोरक्ष प्रचण्डविद्ये इन्द्रोपेन्द्रभगिनि ।।ॐ नमो देवि जये विजये शान्ति स्वस्ति-तुष्टि पुष्टि-विवर्द्धिनि ।

कामाङ्कुशे कामदुधे सर्वकामवरप्रदे ।।सर्वभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा ।आकर्षणि आवेशनि-, ज्वालामालिनि-, रमणि रामणि, धरणि धारिणि,तपनि तापिनि, मदनि मादिनि, शोषणि सम्मोहिनि ।।नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये ।।महाचान्द्रि महासौरि महामायूरि आदित्यरश्मि जाह्नवि ।।यमघण्टे किणि किणि चिन्तामणि ।।सुगन्धे सुरभे सुरासुरोत्पन्ने सर्वकामदुघे ।।यद्यथा मनीषितं कार्यं तन्मम सिद्ध्यतु स्वाहा ।।ॐ स्वाहा ।।ॐ भूः स्वाहा ।।ॐ भुवः स्वाहा ।।ॐ स्वः स्वहा ।।ॐ महः स्वहा ।।ॐ जनः स्वहा ।।ॐ तपः स्वाहा ।।ॐ सत्यं स्वाहा ।।ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा ।।यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छतु स्वाहेत्योम् ।।अमोघैषा महाविद्या वैष्णवी चापराजिता ।।३२।।

स्वयं विष्णुप्रणीता च सिद्धेयं पाठतः सदा ।।

एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजिता ।।३३।।

नानया सद्रशी रक्षा. त्रिषु लोकेषु विद्यते ।।

तमोगुणमयी साक्षद्रौद्री शक्तिरियं मता ।।३४।।

कृतान्तोऽपि यतो भीतः पादमूले व्यवस्थितः ।।

मूलधारे न्यसेदेतां रात्रावेनं च संस्मरेत् ।।३५।।

नीलजीमूतसङ्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् ।।उद्यदादित्यसङ्काशां नेत्रत्रयविराजिताम् ।।३६।।

शक्तिं त्रिशूलं शङ्खं च पानपात्रं च विभ्रतीम् ।।व्याघ्रचर्मपरीधानां किङ्किणीजालमण्डिताम् ।।३७।।

धावन्तीं गगनस्यान्तः तादुकाहितपादकाम् ।।

दंष्ट्राकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषिताम् ।।३८।।

व्यात्तवक्त्रां ललज्जिह्वां भृकुटीकुटिलालकाम् ।।

स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पानपात्रतः ।।३९।।

सप्तधातून् शोषयन्तीं क्रुरदृष्टया विलोकनात् ।।

त्रिशूलेन च तज्जिह्वां कीलयनतीं मुहुर्मुहः ।।४०।।

पाशेन बद्ध्वा तं साधमानवन्तीं तदन्तिके ।।अर्द्धरात्रस्य समये देवीं धायेन्महाबलाम् ।।४१।।

यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मन्त्रं निशान्तके ।।

तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापि योगिनी ।।४२।।

ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति ।।अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्ण्वीम् ।।४३।।

श्रीमदपराजिताविद्यां ध्यायेत् ।।

दुःस्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमित्ते तथैव च ।।

व्यवहारे भेवेत्सिद्धिः पठेद्विघ्नोपशान्तये ।।४४।।

यदत्र पाठे जगदम्बिके मया, विसर्गबिन्द्वऽक्षरहीनमीडितम् ।।तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे, सङ्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायताम् ।।४५।।

तव तत्त्वं न जानामि कीदृशासि महेश्वरि ।।

यादृशासि महादेवी तादृशायै नमो नमः ।।४६।।

FAQs”

Q: क्या अपराजिता स्तोत्र को किसी भी धार्मिक आधार पर  किया जा सकता है?

A: हां, अपराजिता स्तोत्र  धार्मिक आधार पर सीमित नहीं है और सभी को शक्ति, साहस, और सफलता की कामना करने का माध्यम है।

Q: क्या अपराजिता स्तोत्र के पाठ से कोई अलौकिक अनुभव होता है?

A: जी हां, कई भक्तों ने अपराजिता स्तोत्र के पाठ के बाद अलौकिक अनुभवों का वर्णन किया है। यह उन्हें माँ दुर्गा के प्रत्यक्ष संवाद का अनुभव कराता है।

Q: क्या अपराजिता स्तोत्र के पाठ से किसी को नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है?

A: हां, अपराजिता स्तोत्र के पाठ से भक्त नकारात्मकता और असुविधाओं से मुक्ति प्राप्त करते हैं। इससे उनका मन शुद्ध होता है और वह सकारात्मक सोचते हैं।

Q: क्या अपराजिता स्तोत्र का पाठ दिनचर्या में शामिल किया जा सकता है?

A: हां, अपराजिता स्तोत्र का पाठ दिनचर्या में शामिल किया जा सकता है। विशेष रूप से नवरात्रि जैसे धार्मिक अवसरों पर इसे  शुभ माना जाता है।

Q: क्या अपराजिता स्तोत्र को सुनने के लिए किसी विशेष आवश्यकता है?

A: नहीं, अपराजिता स्तोत्र को सुनने के लिए किसी विशेष आवश्यकता नहीं है। कोई भी व्यक्ति इसे अपनी आसानी से सुन सकता है और इसके चमत्कारी प्रभावों का आनंद उठा सकता है।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् पाठ के फायदे

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् पाठ के फायदे

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करने से हम अपने आत्मिक विकास के मार्ग पर अग्रसर होते हैं और अपने जीवन को धर्म, नैतिकता, और उच्चतम मूल्यों के साथ जीने के लिए प्रेरित होते हैं। सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करने से हमें माँ दुर्गा के प्रति आदर और विश्वास की भावना मिलती है, जो हमें जीवन में सफलता की ओर ले जाती है।

इस प्रकार, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् हमें आत्मिक उन्नति का मार्ग दिखाता है और हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है। यह हमें अपने जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करता है। सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करके हम अपनी भगवान् के प्रति श्रद्धा को मजबूत करते हैं और अपने जीवन में धर्म, साहस, और सच्चाई का पालन करते हैं।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र से आता है सकारात्मक परिवर्तन

जब हम सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करते हैं, तो हमें आत्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है और हमारा मन शांत, संतुलित और प्रसन्न रहता है। माँ दुर्गा के पाठ को नियमित रूप से करने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है और हम स्वयं को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित होते हैं। सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करने से हमें ध्यान, शांति, और आत्म-संयम मिलता है। यह हमें अपने आत्मा के साथ जुड़ने और माँ दुर्गा की कृपा को प्राप्त करने में सहायक होता है।

माँ दुर्गा के प्रति विश्वास और आदर्श से सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का नियमित जप करने से मानव जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है। यह पाठ अद्भुत आत्मिक शक्ति को जागृत करता है और साधक को माँ दुर्गा के आशीर्वाद से प्रेरित करता है। इस प्रकार, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रयास है जो जीवन को धार्मिकता, शांति, और समृद्धि की ओर प्रेरित करता है। यह पाठ न केवल आत्मिक उन्नति को प्राप्त करने में मदद करता है, बल्कि व्यक्ति को भगवान् के प्रति श्रद्धा और भक्ति में भी मदद करता है।

धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन और सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् के पाठ

धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन और सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् के पाठ के माध्यम से हम अपनी आत्मा को प्रकाशित कर सकते हैं और अपने जीवन को धार्मिक दृष्टिकोण से समृद्ध कर सकते हैं। माँ दुर्गा की कृपा से हमें शक्ति, सहनशीलता, और समर्थता प्राप्त होती है, जो हमें जीवन की हर कठिनाई का सामना करने में मदद करती है।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का नियमित पाठ करके हम अपनी आध्यात्मिकता को समृद्ध कर सकते हैं और माँ दुर्गा की कृपा को प्राप्त कर सकते हैं। इस पाठ को नियमित रूप से करने से हमें आत्मिक शांति, सुख, और सफलता मिलती है।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करने से  आता है ध्यान और समर्पण

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करने से हमें ध्यान और समर्पण की भावना मिलती है। यह हमें सच्ची धार्मिकता की ओर ले जाता है और हमें अपने जीवन को धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। माँ दुर्गा के इस पाठ के जाप से हम आत्मा के उत्कृष्टतम गुणों को जागृत करते हैं और अपने जीवन को समृद्ध, सांत्वना और सफलता के साथ भर देते हैं।  इस प्रकार, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् हमें आत्मा के साथ ही जीवन की सभी पहलुओं में सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा और शक्ति प्रदान करता है।

इस प्रकार, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् हमें माँ दुर्गा की शक्ति, सामर्थ्य, और कृपा के अनुभव का अवसर प्रदान करता है। इसे नियमित रूप से जप करने से हमें आत्मिक ऊर्जा मिलती है और हमारा मन शांत, स्थिर और संतुलित रहता है। इस पाठ को नियमित रूप से करने से हम अपने आत्मा को संबलित करते हैं और अपने जीवन को समृद्ध, सफल और खुशहाल बनाने में सहायक होते हैं। माँ दुर्गा का पाठ हमें ध्यान, आत्मविश्वास, और शांति की प्राप्ति के माध्यम से आत्मिक उत्थान करता है।

सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ

सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ निम्नलिखित है:

1. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ दुर्गा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

2. या देवी सर्वभू‍तेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

3. या देवी सर्वभू‍तेषु शांतिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

4. या देवी सर्वभू‍तेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

5. या देवी सर्वभू‍तेषु शांतिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

6. या देवी सर्वभू‍तेषु श्रुति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

7. या देवी सर्वभू‍तेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

 

जयंति मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

रूपं देवि जयंति मङ्गला दुर्गा क्रिया नमोऽस्तु ते॥

अन्य प्रार्थना और भक्ति के साथ, सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करने से माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम्

॥ अथ सप्तश्लोकी दुर्गा ॥
शिव उवाच:
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥

देव्युवाच:
शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ॥

विनियोग:
ॐ अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः ।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥2॥

सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥3॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ॥5॥

रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा
तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌ ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌ ॥7॥

॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌ ॥

FAQs”

क्या सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है?

हां, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है। यह अपने अध्ययन और ध्यान के लिए उपयुक्त है।

क्या सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र को संगीत के साथ पाठ किया जा सकता है?

हां, बहुत से लोग सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र को संगीत के साथ पाठ करते हैं। यह उन्हें आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्रदान करता है।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ किस भाषा में किया जाता है?

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ हिंदी भाषा में किया जाता है, लेकिन यह अन्य भाषाओं में भी उपलब्ध है।

क्या सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ करने से कोई विशेष लाभ होता है?

हां, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ करने से आत्मिक उन्नति, मानसिक शांति, और जीवन में समृद्धि की प्राप्ति होती है।

श्री गणेश संकटनाशन स्तोत्र, गणपति बप्पा की कृपा का प्रतीक

श्री गणेश संकटनाशन स्तोत्र :

गणपति की उपासना

गणपति की उपासना  गणेश देव की उपासना के महत्व को विशेष रूप से बताता है। गणपति की उपासना के विभिन्न तरीके, मंत्र, और उपासना के फायदे का विस्तृत वर्णन किया गया है। गणपति की उपासना से आत्मशुद्धि, मानवता, और आनंद का स्रोत मिलता है। इस अध्याय में, हम गणपति की उपासना के माध्यम से आत्मिक विकास और उच्चतम ध्यान की प्राप्ति के बारे में जानेंगे। गणपति की उपासना से समस्याओं का समाधान, मन की शांति, और ध्यान की स्थिरता प्राप्त होती है।

में सकारात्मक परिवर्तन और उनकी आध्यात्मिक उन्नति होती है। इस अध्याय में, हम गणेश चालीसा के श्लोकों का विस्तारपूर्वक विवेचन करेंगे और उनका महत्व समझेंगे। गणेश चालीसा के पाठ से हमारे मन को शांति, संतुलन, और ध्यान की अवस्था मिलती है। इस अध्याय में, हम गणेश चालीसा के महत्व को समझने का प्रयास करेंगे और उसके प्रति भक्ति और श्रद्धा को बढ़ाने का मार्ग देखेंगे। गणेश चालीसा के पाठ करने से हमारे जीवन में आनंद, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। गणेश चालीसा के माध्यम से हम अपने मन को शुद्ध करते हैं और भगवान के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट करते हैं। इस अध्याय में हम गणेश चालीसा के महत्व को समझेंगे और उसके प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाने के लिए जानकारी प्राप्त करेंगे। गणेश चालीसा का पाठ करने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और आनंद की प्राप्ति होती है। इस अध्याय के माध्यम से हम गणेश चालीसा के महत्व को समझेंगे और उसके प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाने का मार्ग देखेंगे। गणेश चालीसा के पाठ करने से हमारे जीवन में आनंद, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। गणेश चालीसा के माध्यम से हम अपने मन को शुद्ध करते हैं और भगवान के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट करते हैं। इस अध्याय में हम गणेश चालीसा के महत्व को समझेंगे और उसके प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाने के लिए जानकारी प्राप्त करेंगे। गणेश चालीसा का पाठ करने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और आनंद की प्राप्ति होती है। इस अध्याय के माध्यम से हम गणेश चालीसा के महत्व को समझेंगे और उसके प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाने का मार्ग देखेंगे। गणेश चालीसा के पाठ करने से हमारे जीवन में आनंद, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। गणेश चालीसा के माध्यम से हम अपने मन को शुद्ध करते हैं और भगवान के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट करते हैं।

श्री वक्रतुण्ड महाकाय: गणेश का स्वरूप

हम गणेश देव के वक्रतुण्ड महाकाय रूप के महत्व को समझेंगे। वक्रतुण्ड महाकाय शब्द संस्कृत में ‘वक्र’ यानी ‘वक्राकृति’ और ‘तुण्ड’ यानी ‘महान’ का संयोजन है। यह शब्द गणेश देव के विशेष रूप को व्यक्त करता है जो कि उनकी अद्वितीयता को दर्शाता है। गणेश जी का वक्रतुण्ड महाकाय रूप उनकी अद्वितीय और अद्भुत स्वभाव को स्पष्ट करता है जो हमें दिखाता है कि वे हमेशा ही हमारे साथ हैं और हमारी समस्याओं का समाधान करने के लिए हमें सहायता कर रहे हैं। गणेश देव का यह रूप उनकी अत्यंत शक्तिशाली और विश्वव्यापी स्वरूप को दर्शाता है जो कि हमें दुःखों और संकटों से मुक्ति दिलाता है। इस अध्याय में, हम गणेश देव के वक्रतुण्ड महाकाय रूप के महत्व को समझेंगे और उनके इस अद्वितीय स्वरूप को गहराई से विश्लेषण करेंगे। गणेश देव के वक्रतुण्ड महाकाय रूप की उपासना करने से हम अपने जीवन में ध्यान, शांति, और समृद्धि का अनुभव करते हैं और वे हमेशा हमारे साथ हैं तथा हमें सभी परेशानियों से मुक्ति प्रदान करते हैं।

गणपति के ब्रह्मचरित्र: एक प्रेरणादायक कथा

 हम गणेश देव के ब्रह्मचारी स्वरूप की कथा को जानेंगे। गणपति जी का ब्रह्मचारी रूप उनकी अद्भुत और प्रेरणादायक विशेषता को दर्शाता है। उनका ब्रह्मचारी स्वरूप हमें संयम, उत्तम चरित्र, और ध्यान की महत्वपूर्णता को सिखाता है। गणेश देव के इस रूप में, हमें जीवन में संयम और समर्पण का मार्ग दिखाते हैं, जो हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करता है। गणपति जी की ब्रह्मचारीता की कथा हमें यह बताती है कि कैसे वे अपनी साधना और साध्य के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ अपने उद्देश्य को प्राप्त किया। इस अध्याय में, हम गणपति देव के ब्रह्मचारी स्वरूप की कथा के महत्व को समझेंगे और उनकी इस अद्भुत गुणों का समालोचनात्मक विश्लेषण करेंगे। गणपति जी की ब्रह्मचारी स्वरूप की कथा हमें उनके उदात्त आदर्शों को अनुसरण करने की प्रेरणा देती है और हमें अपने जीवन में समर्पण और संयम की अहमियत को समझाती है।

श्री गणेश के शक्तिपीठ: अनन्य भक्ति का प्रतीक

हम गणेश देव के शक्तिपीठ के महत्व को समझेंगे। गणपति जी के शक्तिपीठ उनकी अनन्य भक्ति और समर्पण का प्रतीक हैं। ये स्थान समाज में धार्मिकता और आध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण केंद्र होते हैं और लोगों को आत्मिक शक्ति और संबल प्रदान करते हैं। गणपति जी के शक्तिपीठ पर भक्तों का अत्यंत समर्थन और संबल होता है और वहां उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह अध्याय हमें गणेश देव के शक्तिपीठ के प्रति भक्ति और समर्पण की अहमियत को समझाता है। गणपति जी के शक्तिपीठ पर भक्ति करने से हमारा अंतरंग और बाह्य समृद्धि होता है, और हमें आत्मिक शक्ति और संबल मिलता है। इस अध्याय में, हम गणपति जी के शक्तिपीठ के महत्व को विस्तार से जानेंगे और उनके शक्तिपीठ पर भक्ति का मार्ग देखेंगे। गणेश देव के शक्तिपीठ पर भक्ति करने से हमें आध्यात्मिक उन्नति और संबल मिलता है और हम अपने जीवन में सफलता की ओर अग्रसर होते हैं।

विघ्नहर्ता की आराधना: संकट से मुक्ति की ओर

 हम गणेश देव की आराधना के महत्व को समझेंगे। गणपति जी की आराधना से हम संकटों और बाधाओं से मुक्ति प्राप्त करते हैं और उनकी कृपा से हमें सभी कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है। गणेश देव की आराधना के द्वारा हम अपने जीवन में समृद्धि, शांति, और सुख की प्राप्ति के लिए आत्मा को प्रेरित करते हैं। गणपति जी की आराधना से हम अपनी भगवानी शक्तियों को जागृत करते हैं और अपने जीवन को एक नई दिशा में ले जाते हैं। इस अध्याय में, हम गणेश देव की आराधना के महत्व को समझेंगे और उनकी आराधना करने के लाभों का विवेचन करेंगे। गणेश देव की आराधना से हमें धैर्य, संयम, और समर्पण की भावना मिलती है और हम अपने जीवन को सफलता की ओर अग्रसर करते हैं।

गणेश के आराध्य कार्य: धर्म और सेवा का मार्ग

हम गणेश देव के आराध्य कार्य के महत्व को समझेंगे। गणपति जी के आराध्य कार्य धर्म और सेवा का मार्ग होते हैं, जो हमें समाज में नेतृत्व, उत्कृष्टता, और निष्काम कार्य की शिक्षा देते हैं। गणेश देव के आराध्य कार्यों के माध्यम से हम समाज के उत्थान और कल्याण के लिए योगदान करते हैं और उनकी कृपा से हमें सभी कार्यों में सफलता मिलती है। गणपति जी के आराध्य कार्य हमें धर्म, सेवा, और उत्कृष्टता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं और हमें समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझाते हैं। इस अध्याय में, हम गणेश देव के आराध्य कार्यों के महत्व को समझेंगे और उनके माध्यम से समाज में नेतृत्व और सेवा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होंगे। गणेश देव के आराध्य कार्य करके हम समाज में प्रकार्य उत्थान और सभी के लिए समृद्धि की प्राप्ति के लिए योगदान करते हैं।

गणेश देव की कृपा: भक्तों पर अनुग्रह

हम गणेश देव की कृपा के महत्व को समझेंगे। गणपति जी की कृपा उनके भक्तों पर अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जो हमें सभी कठिनाइयों और संकटों से पार पाने में सहायक होती है। गणेश देव की कृपा के बिना हम किसी भी कार्य में सफल नहीं हो सकते हैं, और उनके आशीर्वाद से हमें सभी संघर्षों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। गणेश देव की कृपा के बिना हमारा जीवन अधूरा होता है, और उनके आशीर्वाद से हमें सफलता की ओर आगे बढ़ने में सहायता मिलती है। इस अध्याय में, हम गणेश देव की कृपा के महत्व को विस्तार से जानेंगे और उनकी कृपा के आशीर्वाद से जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए उन्हें प्रार्थना करेंगे। गणेश देव की कृपा हमारे जीवन में समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

गणेश पूजा का महत्व: विश्वव्यापी उत्तमता का स्रोत

हम गणेश पूजा के महत्व को समझेंगे। गणेश पूजा व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, शांति, और समृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण और आवश्यक धार्मिक क्रिया है। गणेश पूजा करने से हमारी आत्मा में शुद्धता और शक्ति का अनुभव होता है, और हमें भगवान गणेश के आशीर्वाद से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। गणेश पूजा के द्वारा हम अपने जीवन को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से संशोधित करते हैं, और हमें समस्त दुःखों और संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस अध्याय में, हम गणेश पूजा के महत्व को विस्तार से जानेंगे और उसके माध्यम से हमारे जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का आवाहन करेंगे। गणेश पूजा हमें धार्मिक और आध्यात्मिक उत्तमता की ओर ले जाती है और हमारे जीवन को एक उच्च स्तर पर संशोधित करती है।

गणेश जी के उपासना का तात्पर्य: आत्मज्ञान और स्वयं की पहचान

हम गणेश जी के उपासना के तात्पर्य को समझेंगे। गणेश जी की उपासना का मुख्य उद्देश्य हमें आत्मज्ञान और स्वयं की पहचान कराना है। गणेश जी की उपासना के द्वारा हम अपने आत्मा को पहचानते हैं और अपने असली स्वरूप को समझते हैं, जो कि हमारे सभी कार्यों में सफलता का गुप्त मूल है। गणेश जी की उपासना करने से हम अपने अंतरात्मा को प्रकट करते हैं और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। इस अध्याय में, हम गणेश जी के उपासना के महत्व को समझेंगे और उसके माध्यम से हमारे जीवन में स्वयं की पहचान और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए आत्मसाक्षात्कार का मार्ग देखेंगे। गणेश जी की उपासना हमें आत्मा की अद्वितीयता को समझाती है और हमें स्वयं की पहचान में मदद करती है।

 

गणेश देव की कृपा: भक्तों पर विशेष प्रभाव

इस अध्याय में, हम गणेश देव की कृपा के विशेष प्रभाव को समझेंगे। गणपति जी की कृपा हमारे जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जो हमें समस्त कठिनाइयों और संघर्षों से पार पाने में सहायक होती है। उनकी कृपा से हमें आत्मविश्वास मिलता है और हम सभी कार्यों में सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। गणेश देव की कृपा के बिना हमारा जीवन अधूरा होता है, और उनके आशीर्वाद से हमें सभी संघर्षों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। गणपति जी की कृपा हमें अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करती है और हमें अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रेरणा प्रदान करती है। इस अध्याय में, हम गणेश देव की कृपा के महत्व को समझेंगे और उनकी कृपा से हमारे जीवन में आने वाले परिणामों का विचार करेंगे। गणेश देव की कृपा हमें अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करती है और हमें सफलता की ओर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।

गणेश जी के भक्तों की सेवा: समाज में योगदान

इस अध्याय में, हम गणेश जी के भक्तों की सेवा के महत्व को समझेंगे। गणेश जी के भक्तों की सेवा भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो समाज के उत्थान और कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान करती है। गणेश जी के भक्तों की सेवा से हम समाज में नेतृत्व, उत्कृष्टता, और सेवाभाव को बढ़ावा देते हैं और समाज के हर वर्ग को समान रूप से सम्मानित करते हैं। गणेश जी के भक्तों की सेवा से हम अपने जीवन में सामाजिक समृद्धि और समृद्धि की ओर अग्रसर होते हैं और उनकी कृपा से हमें सभी कार्यों में सफलता मिलती है। इस अध्याय में, हम गणेश जी के भक्तों की सेवा के महत्व को विस्तार से जानेंगे और उसके माध्यम से समाज में उत्थान और कल्याण के लिए कैसे योगदान किया जा सकता है। गणेश जी के भक्तों की सेवा से हम समाज को समृद्धि और सफलता की दिशा में ले जाते हैं और समाज के हर व्यक्ति को उसकी स्थिति के अनुसार सम्मान दिलाते हैं।

गणेश जी के आशीर्वाद: जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति

इस अध्याय में, हम गणेश जी के आशीर्वाद के महत्व को समझेंगे। गणेश जी के आशीर्वाद से हमें जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से हम अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करते हैं और उनके आशीर्वाद से हमें सभी कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। गणेश जी के आशीर्वाद से हमें आत्मविश्वास मिलता है और हम अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं। इस अध्याय में, हम गणेश जी के आशीर्वाद के महत्व को विस्तार से समझेंगे और उनके आशीर्वाद से हमें जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रेरित करेंगे। गणेश जी के आशीर्वाद से हमें जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है और हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं।

 श्री गणेश संकटनाशन स्तोत्र :

गणपती स्तोत्र ( संकटनाशन स्तोत्र )

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्
भक्तावासं स्मरेन्नित्यम् आयुष्कामार्थसिद्धये ॥१॥

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्
तृतीयं कृष्णपिङगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥२॥

लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धुम्रवर्णं तथाष्टकम् ॥३॥

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥४॥

द्वादशेतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नर:
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धीकरः प्रभो ॥५॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥६॥

जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्
संवत्सरेण सिद्धीं च लभते नात्र संशयः ॥७॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ॥८॥

इति श्रीनारदपुराणे सङ्कटनाशनं नाम श्रीगणपतिस्तोत्रं संपूर्णम्||

FAQs”

Q.1: क्या गणेश संकटनाशन स्तोत्र का जाप करने से लाभ होता है?

Ans. हां, गणेश संकटनाशन स्तोत्र का नियमित जाप करने से हमें बड़े संकटों से छुटकारा मिलता है।

Q.2: क्या इस स्तोत्र का उच्चारण रोगों से छुटकारा दिलाता है?

Ans. हां, गणेश संकटनाशन स्तोत्र का उच्चारण करने से रोगों का नाश होता है और हमें स्वस्थ और सकारात्मक बनाता है।

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