मंगला चंडिका स्तोत्रम् एक अत्यंत शक्तिशाली और दिव्य स्तोत्र है, जो देवी दुर्गा के मंगलमयी रूप की स्तुति करता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से कष्टों के निवारण, रोग मुक्ति, शत्रु बाधा से सुरक्षा तथा सौभाग्य वृद्धि के लिए प्रभावशाली माना जाता है।
सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् पाठ के फायदे
मंगला चंडिका स्तोत्रम् क्या है?
“चंडी” देवी दुर्गा का वह रूप है, जो राक्षसों का नाश करती हैं और धर्म की स्थापना करती हैं। “मंगला” शब्द शुभता, सौभाग्य और कल्याण का प्रतीक है। जब ये दोनों शक्तिशाली शब्द एक साथ आते हैं, तो “मंगला चंडिका स्तोत्रम्” बनता है — जो देवी के मंगलमय चंडी रूप की स्तुति करता है।
मंगला चंडिका स्तोत्रम् के लाभ
🙏 संकटों से मुक्ति व सुरक्षा
🛡️ शत्रुओं पर विजय व नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा
💰 धन-वैभव व सुख-समृद्धि में वृद्धि
🧘 मानसिक शांति व भय का नाश
🏥 रोगों से राहत व स्वास्थ्य लाभ
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पाठ विधि
स्नान व ध्यान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
देवी दुर्गा के चित्र या मूर्ति के सामने दीप जलाएं।
चंदन, पुष्प, नैवेद्य अर्पित करें।
पूरे श्रद्धा भाव से स्तोत्र का पाठ करें।
विशेष रूप से मंगलवार और नवरात्रि में इसका पाठ अत्यंत फलदायक होता है।
पाठ का उचित समय
ब्रह्ममुहूर्त (प्रातः 4–6 बजे) में पाठ करना श्रेष्ठ होता है।
यदि संभव न हो, तो दिन के किसी भी समय शांत मन से किया जा सकता है।
स्तोत्र पाठ के दौरान ध्यान देने योग्य बातें
पाठ के समय मन स्थिर और शांत होना चाहिए।
मोबाइल, शोरगुल या बीच में बातचीत से बचें।
पाठ के बाद मौन रहकर देवी का ध्यान करें।
स्तोत्र को 11, 21 या 108 बार भी जप सकते हैं विशेष कामना हेतु।
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सामाजिक व मानसिक रूप से इसका प्रभाव
आत्मबल बढ़ाता है
मन में निडरता और साहस आता है
परिवार में कलह समाप्त होता है
भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है
मंगला चंडिका स्तोत्रम्
मंत्र-
॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व-पूज्ये देवि मंगल-चण्डिके। हूं हूं फट् स्वाहा॥
ध्यान –
देवीं षोड्शवष यां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम्।
सर्वरुपगुणाढ्यां च कोमलांगीं मनोहराम्॥
श्वेतचम्पकवर्णाभा चन्द्रकोटि-समप्रभाम्।
वह्निशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम्॥
बिभ्रतीं कवरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम्।
विम्बोष्ठीं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम्॥
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोत्पललोचनाम्।
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसम्पदाम्॥
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे॥
देव्याश्च द्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने।
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः॥
शंकर उवाच
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मंगलचण्डिके।
हारिके विपदां राशेर्हर्ष-मंगल-कारिके॥
हर्ष –मंगल –दक्षे चहर्ष-मंगल-चण्डिके।
शुभे मंगल-दक्षे च शुभ-मंगल-चण्डिके॥
मंगले मंगलार्हे चसर्व-मंगल-मंगले।
सतां मंगलदे देवि सर्वेषां मंगलालये॥
पूज्या मंगलवारे च मंगलाभीष्ट-दैवते।
पूज्ये मंगल-भूपस्य मनुवंशस्य संततम्॥
मंगलाधिष्ठातृदेविमंगलानां च मंगले।
संसार-मंगलाधारे मोक्ष –मंगल -दायिनी॥
सारे च मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम्।
प्रतिमंगलवारे च पूज्ये च मंगलप्रदे॥
स्तोत्रेणानेनशम्भुश्चस्तुत्वा मंगलचंडिका म्।
प्रतिमंगलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः॥
देव्याश्च मंगल-स्तोत्रं यं श्रृणोति समाहितः।
तन्मंगलं भवेच्छश्वन्न भवेत्तदमंगलम्॥
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FAQs”
प्रश्न 1: मंगला चंडिका स्तोत्रम् किस देवी को समर्पित है?
उत्तर: यह स्तोत्र देवी दुर्गा के चंडी रूप को समर्पित है।
प्रश्न 2: क्या इसे रोज़ पढ़ सकते हैं?
उत्तर: हाँ, इसे रोज़ श्रद्धा से पढ़ा जा सकता है। विशेष रूप से मंगलवार और नवरात्रि में पढ़ना अति फलदायक है।
प्रश्न 3: क्या इस स्तोत्र के पाठ से भय या शत्रु बाधा दूर होती है?
उत्तर: हाँ, यह स्तोत्र शक्ति व सुरक्षा प्रदान करता है और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
प्रश्न 4: क्या इसे किसी विशेष समय या नियम से पढ़ना चाहिए?
उत्तर: स्नान के बाद, शांत मन से और स्वच्छ वस्त्र पहनकर इसका पाठ करना चाहिए