तारा देवी स्तोत्र: महत्व, लाभ, विधि और सम्पूर्ण जानकारी

तारा देवी स्तोत्र महत्व, लाभ, विधि और सम्पूर्ण जानकारी

तारा देवी स्तोत्र: महत्व, लाभ, विधि और सम्पूर्ण जानकारी

तारा देवी, दस महाविद्याओं में से एक प्रमुख देवी हैं। इनका नाम ‘तारा’ का अर्थ है – उद्धार करने वाली। यह देवी संकट, भय और अज्ञानता से भक्तों को तारने वाली मानी जाती हैं। ‘तारा देवी स्तोत्र’ एक अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली स्तुति है, जिसका पाठ साधक को आध्यात्मिक उन्नति, ज्ञान और सुरक्षा प्रदान करता है।

यह स्तोत्र तंत्र मार्ग के अनुयायियों और शाक्त साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। तारा देवी को नील वर्ण, तीन नेत्रों वाली और करालवदना के रूप में पूजा जाता है। वह अज्ञान, मृत्यु भय, और सांसारिक बंधनों से मुक्ति दिलाने वाली देवी हैं।

दस महाविद्या स्तोत्र: पाठ विधि, लाभ व महत्व

तारा देवी का स्वरूप

रूप: नीलवर्णा, श्यामवर्णा

नेत्र: तीन नेत्रों वाली

हस्तों में: खड्ग, कमंडल, खप्पर और वरमुद्रा

वाहन: शव पर स्थित

स्थान: श्मशान भूमि में स्थित

संगिनी: चंद्रमा की छाया में विराजमान

तारा देवी स्तोत्र का महत्व

भय से मुक्ति: इस स्तोत्र के नियमित पाठ से भय, बाधा और कष्टों से मुक्ति मिलती है।

ज्ञान की प्राप्ति: तारा देवी ज्ञान की देवी भी हैं, वे अंधकार को मिटाकर ज्योति प्रदान करती हैं।

संकटों से उबारने वाली: जीवन में जब कोई रास्ता नहीं दिखता, तब तारा स्तुति उद्धार करती है।

मंत्र शक्ति की वृद्धि: यह स्तोत्र तांत्रिक शक्ति और साधना में सहायक है।

मुक्ति का मार्ग: मोक्ष की प्राप्ति की कामना रखने वाले साधक के लिए यह स्तोत्र अत्यंत फलदायक है।

तारा देवी स्तोत्र पाठ विधि

स्थान चयन: एक शांत, स्वच्छ और एकांत स्थान पर आसन लगाएं।

तारा यंत्र या चित्र की स्थापना करें।

दीपक और धूप प्रज्वलित करें

नील कमल या नीले पुष्प अर्पित करें।

तारा देवी बीज मंत्र:
“ॐ ह्रीं स्त्रीं हूं फट्” या
“ॐ तारे तुत्तारे तुरे स्वाहा”
का जप करें।

फिर स्तोत्र का पाठ करें – प्रतिदिन या मंगलवार और शनिवार को विशेष लाभ होता है।

तारा देवी की उपासना के लाभ

तारा देवी की उपासना से भय, बाधा और रोगों से मुक्ति मिलती है। यह साधना मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और ज्ञान की प्राप्ति में सहायक होती है। तांत्रिक साधकों के लिए यह विशेष फलदायी मानी जाती है और जीवन की समस्याओं से पार पाने में मार्गदर्शक बनती है।

लाभ विवरण
मानसिक शांति चिंताओं से मुक्ति मिलती है
संकट निवारण रोग, भय, बाधा से रक्षा
आध्यात्मिक जागृति ज्ञान और अंतःकरण की जाग्रति
तांत्रिक साधना सिद्धियों की प्राप्ति में सहायक
पारिवारिक कलह से मुक्ति घर में शांति और समृद्धि आती है

तारा साधना में सावधानियाँ

यह साधना अत्यंत शक्तिशाली है, अतः मार्गदर्शन में करें।

स्तोत्र पाठ के पूर्व शुद्धता व नियमों का पालन आवश्यक है।

कोई भी साधना श्रद्धा और विश्वास से करें, तभी पूर्ण फल प्राप्त होता है।

 तारा देवी को प्रिय भोग: क्या अर्पित करें माँ को प्रसन्न करने के लिए?

तारा देवी को तांत्रिक परंपरा में विशेष प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं, जो उनकी उग्रता और करुणा दोनों का प्रतीक होते हैं। तारा देवी को निम्नलिखित भोग विशेष प्रिय माने जाते हैं:

तारा देवी का प्रिय भोग:

नीले फूल (नीलकमल) – देवी के नीलवर्ण स्वरूप के अनुसार उन्हें नीले फूल अत्यंत प्रिय हैं।

नारियल – शक्ति और संकल्प का प्रतीक माना जाता है।

काले तिल और गुड़ – तारा देवी की कृपा पाने के लिए यह विशेष रूप से चढ़ाया जाता है।

दूध से बनी मिठाइयाँ – जैसे रसगुल्ला, पेड़ा आदि।

उड़द की दाल से बने पकवान – विशेष रूप से तंत्र साधना में प्रयुक्त होते हैं।

मद्य (तांत्रिक भोग) – कुछ विशेष साधनाओं में पंचमकार (मांस, मद्य आदि) तांत्रिक विधि अनुसार अर्पित किया जाता है, पर यह केवल दीक्षित साधकों के लिए होता है।

सामान्य भक्तों के लिए उपयुक्त भोग:

फल (केला, अनार, सेब)

मिश्री या बताशा

दूध-चावल (खीर)

नारियल और गुड़

नीले या काले वस्त्र चढ़ाना भी शुभ माना जाता है

नोट: तांत्रिक भोग केवल अनुभवी साधकों द्वारा ही विधिपूर्वक किया जाना चाहिए। सामान्य भक्त सरल, सात्त्विक भोग अर्पित करें और भावनापूर्वक प्रार्थना करें।

तारा देवी से जुड़ी कथाएं

 वज्रयान बौद्ध परंपरा में : बौद्ध धर्म में तारा को “महातारा” या “ग्रीन तारा” कहा जाता है। बोधिसत्व अवलोकितेश्वर के आंसुओं से उत्पन्न हुईं और भक्तों के दुखों को हरने वाली मानी जाती हैं। “ॐ तारे तुत्तारे तुरे स्वाहा” उनका सर्वप्रसिद्ध मंत्र है।

 मार्कण्डेय पुराण की कथा : एक बार समुद्र मंथन के समय राक्षसों ने अमृत चुराया, तब देवी तारा ने अद्भुत रूप धारण कर अमृत वापस प्राप्त किया और देवताओं को दिया। इसी कारण उन्हें ‘संकटमोचनिनी’ कहा गया।

तारा देवी स्तोत्र

श्रीगणेशाय नमः ।
मातर्नीलसरस्वति प्रणमतां सौभाग्यसम्पत्प्रदे
प्रत्यालीढपदस्थिते शवहृदि स्मेराननाम्भोरुहे । (शिवहृदि)
फुल्लेन्दीवरलोचने त्रिनयने कर्त्रीकपालोत्पले
खड्गं चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये ॥ १॥

वाचामीश्वरि भक्तिकल्पलतिके सर्वार्थसिद्धिश्वरि
गद्यप्राकृतपद्यजातरचनासर्वार्थसिद्धिप्रदे ।
नीलेन्दीवरलोचनत्रययुते कारुण्यवारान्निधे
सौभाग्यामृतवर्धनेन कृपयासिञ्च त्वमस्मादृशम् ॥ २॥

खर्वे गर्वसमूहपूरिततनो सर्पादिवेषोज्वले (शर्वे)
व्याघ्रत्वक्परिवीतसुन्दरकटिव्याधूतघण्टाङ्किते ।
सद्यःकृत्तगलद्रजःपरिमिलन्मुण्डद्वयीमूर्द्धज-
ग्रन्थिश्रेणिनृमुण्डदामललिते भीमे भयं नाशय ॥ ३॥

मायानङ्गविकाररूपललनाबिन्द्वर्द्धचन्द्राम्बिके
हुंफट्कारमयि त्वमेव शरणं मन्त्रात्मिके मादृशः ।
मूर्तिस्ते जननि त्रिधामघटिता स्थूलातिसूक्ष्मा
परा वेदानां नहि गोचरा कथमपि प्राज्ञैर्नुतामाश्रये ॥ ४॥

त्वत्पादाम्बुजसेवया सुकृतिनो गच्छन्ति सायुज्यतां
तस्याः श्रीपरमेश्वरत्रिनयनब्रह्मादिसाम्यात्मनः ।
संसाराम्बुधिमज्जने पटुतनुर्देवेन्द्रमुख्यासुरान्
मातस्ते पदसेवने हि विमुखान् किं मन्दधीः सेवते ॥ ५॥

मातस्त्वत्पदपङ्कजद्वयरजोमुद्राङ्ककोटीरिणस्ते
देवा जयसङ्गरे विजयिनो निःशङ्कमङ्के गताः ।
देवोऽहं भुवने न मे सम इति स्पर्द्धां वहन्तः परे
तत्तुल्यां नियतं यथा शशिरवी नाशं व्रजन्ति स्वयम् ॥ ६॥

त्वन्नामस्मरणात्पलायनपरान्द्रष्टुं च शक्ता न ते
भूतप्रेतपिशाचराक्षसगणा यक्षश्च नागाधिपाः ।
दैत्या दानवपुङ्गवाश्च खचरा व्याघ्रादिका जन्तवो
डाकिन्यः कुपितान्तकश्च मनुजान् मातः क्षणं भूतले ॥ ७॥

लक्ष्मीः सिद्धिगणश्च पादुकमुखाः सिद्धास्तथा वैरिणां
स्तम्भश्चापि वराङ्गने गजघटास्तम्भस्तथा मोहनम् ।
मातस्त्वत्पदसेवया खलु नृणां सिद्ध्यन्ति ते ते गुणाः
क्लान्तः कान्तमनोभवोऽत्र भवति क्षुद्रोऽपि वाचस्पतिः ॥ ८॥

(फलश्रुतिः ।)
ताराष्टकमिदं पुण्यं भक्तिमान् यः पठेन्नरः । (ताराष्टकमिदं रम्यं)
प्रातर्मध्याह्नकाले च सायाह्ने नियतः शुचिः ॥ ९॥

लभते कवितां विद्यां सर्वशास्त्रार्थविद्भवेत्
लक्ष्मीमनश्वरां प्राप्य भुक्त्वा भोगान्यथेप्सितान् ॥ १०॥

कीर्तिं कान्तिं च नैरुज्यं सर्वेषां प्रियतां व्रजेत् ।
विख्यातिं चापि लोकेषु प्राप्यान्ते मोक्षमाप्नुयात् ॥ ११॥

इति श्रीबृहन्नीलतन्त्रे तारास्तोत्रं अथवा ताराष्टकं सम्पूर्णम् ॥

श्रीनीलसरस्वतीस्तोत्रम् च

तारा देवी स्तोत्र केवल एक पाठ नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है। यह साधक को भय, अज्ञान और अंधकार से निकालकर ज्ञान, सुरक्षा और मोक्ष की ओर ले जाती है। जिनके जीवन में बार-बार बाधाएं आती हैं, वे तारा देवी का आश्रय लें और नियमित रूप से स्तोत्र का पाठ करें – निश्चित ही जीवन में चमत्कारी परिवर्तन अनुभव करेंगे।

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FAQs”

प्रश्न 1: तारा देवी की पूजा कौन कर सकता है?

उत्तर: कोई भी भक्त, चाहे वह गृहस्थ हो या साधक, तारा देवी की भक्ति कर सकता है। विशेष रूप से संकटग्रस्त, भयभीत या आध्यात्मिक उन्नति की चाह रखने वालों के लिए यह अत्यंत उपयोगी है।

प्रश्न 2: क्या तारा देवी की साधना घर पर की जा सकती है?

उत्तर: हां, नियमपूर्वक और श्रद्धा से तारा देवी की साधना घर पर की जा सकती है। यथासंभव सुबह के समय या अमावस्या के दिन करना शुभ होता है।

प्रश्न 3: क्या यह स्तोत्र तांत्रिक साधना में भी प्रयुक्त होता है?

उत्तर: हां, तारा स्तोत्र तांत्रिक साधना का अभिन्न भाग है। तांत्रिक साधक इस स्तोत्र से देवी की कृपा प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 4: स्तोत्र पाठ का सर्वश्रेष्ठ समय क्या है?

उत्तर: ब्रह्ममुहूर्त (प्रातः 4 से 6 बजे तक) का समय श्रेष्ठ होता है। परंतु नियमितता और भाव ही सर्वोपरि हैं।

प्रश्न 5: क्या तारा देवी बौद्ध धर्म में भी पूजनीय हैं?

उत्तर: जी हाँ, तारा देवी बौद्ध धर्म में भी ग्रीन तारा और व्हाइट तारा के रूप में पूजी जाती हैं। वे करुणा और ज्ञान की प्रतीक हैं।

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