“जगन्नाथ अष्टकम्” एक अत्यंत दिव्य और प्रभावशाली संस्कृत स्तोत्र है, जिसकी रचना महान संत आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। यह स्तोत्र भगवान जगन्नाथ के स्वरूप, लीलाओं और महिमा का गुणगान करता है। इसमें आठ श्लोक होते हैं जो भगवान के सौंदर्य, दया, और करुणा का चित्रण करते हैं। इसका पाठ करने से आत्मा को शांति, भक्ति में गहराई, और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन प्राप्त होते हैं।
जगन्नाथ अष्टकम का महत्व
जगन्नाथ अष्टकम् केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि आत्मा के शुद्धिकरण और भगवान के साक्षात्कार का साधन है। यह उन भक्तों के लिए विशेष उपयोगी है जो भक्ति मार्ग में गहराई चाहते हैं।
यह स्तोत्र भगवान जगन्नाथ के नित्य विग्रह का ध्यान है।
इसके पाठ से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
यह भक्ति, श्रद्धा और समर्पण को बढ़ाता है।
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जगन्नाथ अष्टकम पाठ की विधि
जगन्नाथ अष्टकम पाठ के लिए शांत स्थान चुनें। प्रातः या संध्या के समय स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। दीपक जलाकर भगवान जगन्नाथ का ध्यान करें और श्रद्धा से श्लोकों का पाठ करें। नियमितता, शुद्ध उच्चारण और भक्ति भाव से किया गया पाठ अत्यंत फलदायक होता है।
1. स्थान व समय
प्रातःकाल या संध्या समय, शांत वातावरण में पढ़ें।
किसी पवित्र स्थान जैसे मंदिर या घर के पूजाघर में बैठें।
2. आवश्यक सामग्री
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति या चित्र
घी का दीपक, अगरबत्ती
जल कलश, पुष्प, नैवेद्य
3. पाठ विधि
शुद्ध होकर आसन ग्रहण करें।
भगवान का ध्यान करते हुए एक-एक श्लोक श्रद्धापूर्वक पढ़ें।
श्लोक पढ़ते समय अर्थ को समझना लाभकारी होता है।
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जगन्नाथ अष्टकम् के लाभ
जगन्नाथ अष्टकम का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति, भक्ति में वृद्धि और पापों का नाश होता है। यह आत्मा को शुद्ध करता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है। भगवान जगन्नाथ की कृपा से कार्य सिद्धि, रोग मुक्ति और मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है।
लाभ | विवरण |
मानसिक शांति | नियमित पाठ से चिंता, भय और तनाव दूर होते हैं। |
आध्यात्मिक उन्नति | साधक के भीतर भक्ति, ध्यान और वैराग्य की भावना जागती है। |
पापों का नाश | शास्त्रों के अनुसार, भगवान के नाम और स्तुति से पापों का नाश होता है। |
दृष्टि शुद्धि | भगवान के सुंदर स्वरूप का ध्यान करने से अंत:करण निर्मल होता है। |
भगवान जगन्नाथ का स्वरूप और रहस्य
भगवान जगन्नाथ, जो पुरी (ओडिशा) में निवास करते हैं, श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रूप में पूजित हैं। उनकी मूर्ति सामान्य देवताओं की तरह नहीं होती – इसके पीछे एक महान रहस्य है। यह भक्तों को सिखाता है कि भगवान का स्वरूप बाह्य से नहीं, बल्कि आंतरिक भक्ति से जाना जाता है।
शंकराचार्य और जगन्नाथ अष्टकम
शंकराचार्य ने यह अष्टक पुरी में भगवान के दर्शन करते हुए लिखा था। यह उनके अद्वैत दर्शन और भक्ति दोनों का संगम है। उन्होंने इस स्तोत्र में न केवल भगवान के रूप का वर्णन किया है, बल्कि उनकी कृपा की अपील भी की है।
जगन्नाथ अष्टकम का पाठ कब करें?
जगन्नाथ अष्टकम् का पाठ प्रातःकाल या संध्या के समय करना शुभ होता है। एकादशी, पूर्णिमा, जन्माष्टमी और रथयात्रा जैसे पावन अवसरों पर इसका विशेष महत्व है। प्रतिदिन श्रद्धा और एकाग्रता के साथ इसका पाठ करने से जीवन में शांति, भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
रथयात्रा के समय इसका विशेष महत्व है।
एकादशी, पूर्णिमा, या जन्माष्टमी के दिन पाठ करना अत्यंत फलदायक होता है।
प्रतिदिन 5 से 10 मिनट का समय देकर इसका पाठ जीवन में दिव्यता लाता है।
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जगन्नाथ अष्टकम का पाठ करते समय रखनी वाली सावधानिया
इसका पाठ करते समय मन शांत और एकाग्र रखें।
शुद्ध उच्चारण का अभ्यास करें, जिससे प्रभाव बढ़ता है।
पाठ को केवल मनोरंजन या दिखावे हेतु न करें – श्रद्धा सबसे आवश्यक है।
जगन्नाथ अष्टकम
कदाचित् कालिन्दी तट विपिन सङ्गीत करवो,
मुदाभीरी नारी वदन कमला स्वाद मधुपः।
रमा शम्भु ब्रह्मा सुरपति गणेशार्चित पदो,
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे॥ 1
भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिञ्छं कटितटे,
दुकूलं नेत्रान्ते सहचर-कटाक्षं विदधते।
सदा श्रीमद्-वृन्दावन-वसति-लीला-परिचयो,
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥2
महाम्भोधेस्तीरे कनक रुचिरे नील शिखरे,
वसन् प्रासादान्तः सहज बलभद्रेण बलिना।
सुभद्रा मध्यस्थः सकलसुर सेवावसरदो,
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे॥3
कृपा पारावारः सकलजलदश्रेणिरुचिरो,
रमावाणीरामः स्फुरदमलपङ्केरुहमुखः।
सुरेन्द्रैराराध्यः श्रुतिगणशिखागीतचरितो,
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे॥4
रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेव पटलैः,
स्तुति प्रादुर्भावं प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः।
दया सिन्धुर्बन्धुः सकल जगतां सिन्धु सुतया,
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे॥5
परब्रह्मापीड़ः कुवलय-दलोत्फुल्ल-नयनो,
निवासी नीलाद्रौ निहित-चरणोऽनन्त-शिरसि।
रसानन्दी राधा-सरस-वपुरालिङ्गन-सुखो,
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥6
न वै याचे राज्यं न च कनकमाणिक्यविभवं,
न याचेऽहं रम्यां सकलजनकाम्यां वरवधूम्।
सदा काले काले प्रमथपतिना गीतचरितो,
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे॥7
हर त्वं संसारं द्रुततरम् असारं सुरपते,
हर त्वं पापानां विततिम् अपरां यादवपते।
अहो दीनेऽनाथे निहित चरणो निश्चितमिदं,
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे॥8
जगन्नाथाष्टकं पुण्यं यः पठेत् प्रयतह् शुचिः।
सर्वपापविशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति॥9
जगन्नाथ अष्टकम हिंदी अर्थ सहित
भावार्थ 1 : जो कभी यमुना नदी के किनारे के जंगलों में संगीत से सबका मन मोह लेते हैं, जो गोपियों के कमल रूपी मुख का रसपान करने वाले भौंरे हैं। जिनके पवित्र चरणों की पूजा देवी लक्ष्मी, भगवान शिव, ब्रह्मा, देवराज इंद्र और श्री गणेश करते हैं, वे ब्रह्मांड के स्वामी जगन्नाथ मेरी आँखों के सामने प्रकट हों।
भावार्थ 2 : जिनके बाएं हाथ में बांसुरी है, मस्तक पर मोरपंख का मुकुट है और कमर पर रेशमी पीताम्बर वस्त्र सुशोभित है। जो अपने सहचरों (ग्वाल-बालों) पर हमेशा कृपा-दृष्टि रखते हैं। जो हमेशा वृन्दावन की पावन भूमि पर अपनी लीलाओं के लिए जाने जाते हैं, वे ब्रह्मांड के स्वामी जगन्नाथ मेरी आँखों के सामने प्रकट हों।
भावार्थ 3 : जो विशाल समुद्र के तट पर, सुनहरे और नीले शिखर वाले भव्य मंदिर में निवास करते हैं। जो अपने शक्तिशाली भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं, और जो सभी देवताओं को अपनी सेवा का अवसर प्रदान करते हैं, वे ब्रह्मांड के स्वामी जगन्नाथ मेरी आँखों के सामने प्रकट हों।
भावार्थ 4 :जो कृपा के सागर हैं, जिनकी कांति वर्षाकालीन बादलों की तरह सुंदर है। जो देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती के प्रिय हैं, और जिनका मुख खिले हुए निर्मल कमल के समान है। जिनकी पूजा सभी देव करते हैं और जिनके चरित्र का गुणगान वेदों में किया गया है, वे ब्रह्मांड के स्वामी जगन्नाथ मेरी आँखों के सामने प्रकट हों।
भावार्थ 5 : जो रथ पर सवार होकर यात्रा करते हैं, और रास्ते में ब्राह्मणों के समूह द्वारा की गई स्तुतियों को हर कदम पर दयापूर्वक सुनते हैं। जो दया के सागर हैं, सभी लोकों के मित्र हैं और समुद्र की पुत्री लक्ष्मी के साथ हैं, वे ब्रह्मांड के स्वामी जगन्नाथ मेरी आँखों के सामने प्रकट हों।
भावार्थ 6 : जो परब्रह्म के मुकुटमणि हैं, जिनके नेत्र खिले हुए नीलकमल के समान हैं। जो नीलाद्रि (नीलगिरि पर्वत) पर निवास करते हैं और जिनके चरण शेषनाग के फन पर स्थित हैं। जो राधारानी के प्रेमपूर्ण आलिंगन के आनंद में डूबे रहते हैं, वे ब्रह्मांड के स्वामी जगन्नाथ मेरी आँखों के सामने प्रकट हों।
भावार्थ 7 : मैं न तो कोई राज्य मांगता हूँ, न ही सोना, माणिक्य या कोई सांसारिक वैभव। मैं न ही कोई सुंदर और सबकी कामना योग्य वधू मांगता हूँ। मैं तो बस यही चाहता हूँ कि जिनके चरित्र का गुणगान स्वयं भगवान शिव हर समय करते रहते हैं, वे ब्रह्मांड के स्वामी जगन्नाथ मेरी आँखों के सामने प्रकट हों।
भावार्थ 8 : : हे देवों के स्वामी! इस सारहीन संसार के दुखों को शीघ्र हर लीजिए। हे यदुपति! मेरे अनगिनत पापों के समूह को नष्ट कर दीजिए। हे प्रभु! आप हमेशा दीन-दुखियों और अनाथों पर अपनी चरण-कृपा रखते हैं, यह निश्चित है। हे जगन्नाथ स्वामी, आप मेरी आँखों के सामने प्रकट हों।
भावार्थ 9 : जो कोई भी इस पुण्यमय जगन्नाथ अष्टकम का पवित्र और एकाग्र मन से पाठ करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर अंत में विष्णुलोक (वैकुंठ धाम) को प्राप्त करता है।
जगन्नाथ अष्टकम् एक ऐसा दिव्य स्तोत्र है जो भक्त को भगवान के और निकट लाता है। इसके पाठ से मन, बुद्धि और आत्मा सभी को निर्मलता प्राप्त होती है। यह भक्ति, ज्ञान और योग तीनों का संगम है। यदि जीवन में स्थिरता, शांति, और आध्यात्मिक उन्नति की चाह हो, तो जगन्नाथ अष्टकम् का नियमित पाठ अवश्य करें।
”FAQs”
प्र.1: क्या जगन्नाथ अष्टकम केवल पुरी मंदिर में पढ़ा जाता है?
उत्तर: नहीं, जगन्नाथ अष्टकम कोई भी व्यक्ति किसी भी स्थान पर श्रद्धा से पढ़ सकता है। पुरी में जगन्नाथ अष्टकम पढ़ने का महत्व अधिक है, लेकिन इसकी भक्ति कहीं भी प्रभावशाली है।
प्र.2: क्या जगन्नाथ अष्टकम बिना अर्थ जाने पढ़ सकते हैं?
उत्तर: हां, लेकिन अर्थ समझकर जगन्नाथ अष्टकम पढ़ने से भावनाएं गहराई पाती हैं और मनोबल अधिक बढ़ता है।
प्र.3: क्या महिलाएं जगन्नाथ अष्टकम पाठ कर सकती हैं?
उत्तर: हां, जगन्नाथ अष्टकम स्तोत्र सभी भक्तों के लिए है। कोई जाति, लिंग या वर्ग भेद नहीं है।
प्र.4: क्या जगन्नाथ अष्टकम केवल रथयात्रा में पढ़ना चाहिए?
उत्तर: नहीं, जगन्नाथ अष्टकम प्रतिदिन, एकादशी, पूर्णिमा, या किसी भी शुभ दिन पढ़ा जा सकता है।
प्र.5: क्या जगन्नाथ अष्टकम स्तोत्र मनोकामना पूर्ति करता है?
उत्तर: हां, यदि श्रद्धा, विश्वास और नियमितता से जगन्नाथ अष्टकम पढ़ा जाए तो जगन्नाथ अष्टकम स्तोत्र मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायक होता है।
प्र.6: क्या जगन्नाथ अष्टकम कंठस्थ करना जरूरी है?
उत्तर: नहीं, आप पुस्तक या मोबाइल से देखकर भी जगन्नाथ अष्टकम पढ़ सकते हैं। धीरे-धीरे कंठस्थ हो जाए तो और भी अच्छा।