मां विंध्यवासिनी परिचय : भारत की सनातन धार्मिक परंपरा में देवियों को विशेष स्थान प्राप्त है। शक्ति की उपासना में मां दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के विविध रूपों का वर्णन मिलता है। इन्हीं में से एक अत्यंत शक्तिशाली और जाग्रत देवी हैं मां विंध्यवासिनी, जो उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित विंध्याचल पर्वत पर निवास करती हैं। इनके नाम का अर्थ है—वह देवी जो विंध्य पर्वत पर वास करती हैं। मां विंध्यवासिनी को विन्ध्याचलवासिनी देवी भी कहा जाता है।
मां विंध्यवासिनी का उल्लेख अनेक पुराणों एवं धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार, यह देवी त्रेता युग में श्रीराम के समय से भी पूर्व प्रकट हुई थीं। नवरात्रि के दौरान यहां लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। मां विंध्यवासिनी का स्तोत्र (Stotram) अत्यंत फलदायक, कल्याणकारी और पवित्र माना गया है। यह स्तोत्र मां की स्तुति में रचित एक भक्तिपूर्ण ग्रंथ है, जिसका पाठ करने से सभी प्रकार की बाधाएं, रोग, भय और क्लेश समाप्त होते हैं।
मां विंध्यवासिनी का स्वरूप और महत्व
मां विंध्यवासिनी का स्वरूप
मां विंध्यवासिनी देवी का स्वरूप अत्यंत दिव्य, तेजस्वी और मातृत्व भाव से परिपूर्ण है। देवी अष्टभुजा स्वरूप में सुशोभित हैं, जिनके हाथों में विविध आयुध जैसे त्रिशूल, खड्ग, कमल, चक्र, धनुष आदि होते हैं। वे सिंह पर सवारी करती हैं और उनका मुखमंडल तेज से दीप्त रहता है। वे एक करुणामयी, रक्षक और दानवों का संहार करने वाली शक्ति हैं।
मां विंध्यवासिनी पौराणिक कथा
कहा जाता है कि जब कंस ने देवकी के आठवें पुत्र को मारने की योजना बनाई, तो उसी समय योगमाया ने जन्म लेकर अद्भुत रूप धारण किया और कंस के हाथों से छूटकर आकाश मार्ग से होकर विंध्याचल पर्वत पर निवास करने लगीं। तभी से यह स्थान शक्ति उपासना का केंद्र बन गया।
मां विंध्यवासिनी स्तोत्रम् की विशेषता
मां विंध्यवासिनी स्तोत्र का उद्देश्य : “स्तोत्र” संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ होता है—स्तुति करना। स्तोत्र के माध्यम से हम देवी की शक्ति, करुणा, सौंदर्य, रक्षा क्षमता और उनकी कृपा का गान करते हैं। मां विंध्यवासिनी स्तोत्रम् एक ऐसा ही भक्तिपूर्ण ग्रंथ है जिसमें मां की महिमा का वर्णन किया गया है।
श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् | शक्तिदायिनी माँ दुर्गा का स्तुति पाठ हिंदी में
मां विंध्यवासिनी स्तोत्र का पाठ कैसे करें?
मां विंध्यवासिनी स्तोत्र पाठ विधि
स्थान: शुद्ध और शांत वातावरण में बैठें। यदि संभव हो तो मां विंध्यवासिनी के चित्र या मूर्ति के समक्ष दीप जलाकर पाठ करें।
समय: नित्य प्रातःकाल या संध्याकाल सर्वोत्तम समय माना गया है। नवरात्रि में इसका विशेष फल मिलता है।
शुद्धता: पाठ से पूर्व शारीरिक एवं मानसिक शुद्धता आवश्यक है। मन को एकाग्र कर देवी का ध्यान करें।
संकल्प: पाठ के प्रारंभ में संकल्प लें कि आप किस उद्देश्य से यह स्तोत्र पढ़ रहे हैं—स्वास्थ्य, सुख, शांति, संतान प्राप्ति, भय नाश आदि।
नियमिता: नित्य 11, 21 या 108 बार पाठ करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है।
मां विंध्यवासिनी स्तोत्र पाठ के लाभ
मन की शुद्धि: मां के स्तोत्र का पाठ मन को शुद्ध करता है, नकारात्मक विचारों का नाश करता है।
भय नाश: मानसिक भय, बुरे स्वप्न, अकाल मृत्यु और अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करता है।
संकटमोचक: जीवन के हर प्रकार के संकट—आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य संबंधी—से राहत मिलती है।
संतान प्राप्ति: संतानहीन दंपति के लिए यह स्तोत्र विशेष रूप से फलदायक माना गया है।
मोक्ष की प्राप्ति: नियमित पाठ करने से अंततः मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
दक्षिण काली स्तोत्र (खड्गमाला स्तोत्रम)
मां विंध्यवासिनी स्तोत्र मान्यताएं और चमत्कारी अनुभव
वर्षों से भक्तों द्वारा यह अनुभव किया गया है कि मां विंध्यवासिनी का स्तोत्र पाठ करने से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। कई भक्त बताते हैं कि गंभीर रोगों से मुक्ति मिली, परीक्षा में सफलता प्राप्त हुई, विवाह में अड़चनें समाप्त हुईं, कोर्ट-कचहरी के केस में विजय प्राप्त हुई।
विंध्याचल धाम और मां विंध्यवासिनी स्तोत्र का संबंध
विंध्याचल धाम को त्रिकोण शक्ति पीठों में से एक माना जाता है—कालिका, अष्टभुजा और सरस्वती। मां विंध्यवासिनी इन तीनों रूपों की साक्षात अभिव्यक्ति हैं। स्तोत्र का पाठ यदि इस स्थान पर किया जाए तो उसका फल कई गुना अधिक प्राप्त होता है।
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मां विंध्यवासिनी स्त्रोत का दर्शन—अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय
वास्तव में जब कोई भक्त संपूर्ण श्रद्धा से मां मां विंध्यवासिनी स्त्रोत पढ़ता है, तो उसकी चेतना एक विशेष ऊर्जामंडल में प्रवेश करती है। इससे मन की एकाग्रता, स्मरणशक्ति और आत्मबल में वृद्धि होती है। वैज्ञानिक रूप से भी यह सिद्ध हो चुका है कि नियमित जप और पाठ से मस्तिष्क की तरंगों में सकारात्मक परिवर्तन आता है।
मां विंध्यवासिनी स्तोत्रम् (संस्कृत मूल श्लोक)
ॐ नमो विंध्यवासिन्यै।
विन्ध्येश्वरीं भक्तजनार्तिहन्त्रीं
विन्ध्याचलाधिष्ठितदेवमातृम्।
वन्दे सदा भक्तसुखप्रदां तां
विन्ध्याविन्ध्येश्वरीं देववन्द्याम्॥ 1॥
शक्तिं स्वरूपां जगतां विधात्रीं
योगेश्वरीं योगसिद्धिप्रदात्रीम्।
अनादिकालप्रभवां सुरेशीं
विन्ध्याविन्ध्येश्वरीं नमत्सर्वजन्तुः॥ 2॥
सिंहासना रक्तवर्णां त्रिनेत्रां
शूलप्रहारीं कमलासनस्थाम्।
चक्रायुधां भूतिसंयुक्तदेहां
विन्ध्येश्वरीं शान्तिदां शरण्यां॥ 3॥
या शक्तिरूपा त्रिजगत्त्रयस्था
या ब्रह्मविष्णुशिवेन्द्रपूज्या।
सा विंध्यवासिनी देवी सुपूज्या
सर्वाभयं दाति भक्ताय नित्यम्॥ 4॥
काली च रुद्राणी च चामुण्डा देवी
भद्रकाली महालक्ष्मीः।
विन्ध्ये वसन्ती सा शक्ति
सर्वेषां दुष्टनाशिनी॥ 5॥
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ 6॥
विन्ध्येश्वरी स्तोत्रमिदं पठेन्नरः
शुद्धात्मना भक्तियुतो नित्यम्।
लभते स धर्मं सुखं आयुरारोग्यं
पुत्रं यशः श्रीमतिं ज्ञानम्॥ 7॥
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते॥ 8॥
ॐ नमो देवी विंध्यवासिन्यै
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥
मां विंध्यवासिनी स्तोत्रम्
निशुम्भ शुम्भ गर्जनी प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी।
बने रण प्रकाशिनी भजामि विन्ध्यवासिनी॥
त्रिशूल मुण्ड धारिणी धरा विघात हारिणी।
गृहे गृहे निवासिनी भजामि विन्ध्यवासिनी॥
दरिद्र दुःख हारिणी सतां विभूति कारिणी।
वियोग शोक हारिणी भजामि विन्ध्यवासिनी॥
लसत्सुलोचना लोचनी लता सदेव प्रदा।
कपाल शूल धारिणी भजामि विन्ध्यवासिनी॥
कराब्ज दानदाधरां शिवाशिवां प्रदायिनी।
वरा वराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनी॥
ऋषिन्द्र जामिनीप्रदां त्रिधा स्वरूप धारिणी।
जले स्थले निवासिनी भजामि विन्ध्यवासिनी॥
विशिष्ट सृष्टि कारिणी विशाल रूप धारिणी।
महोदरे विलासिनी भजामि विन्ध्यवासिनी॥
पुरंदर सेवितां मुरादी वंश खंडिनी।
विशुद्ध बुद्धि कारिणी भजामि विन्ध्यवासिनी॥
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मां विंध्यवासिनी की आरती के साथ स्तोत्र का समापन
मां विंध्यवासिनी स्तोत्र का पाठ पूर्ण करने के बाद मां की आरती करना अनिवार्य माना गया है। इससे मां की कृपा तुरंत प्राप्त होती है।
मां विंध्यवासिनी की आरती
जय विंध्यवासिनी माता, मैया जय विंध्यवासिनी माता।
अपने भक्तों की तू, बिगड़ी बना दे माता॥ धृ ॥
तेरे दरबार में माता, सब दुख दूर होते।
जो भी दर पर आया, खाली न वो लौटे॥ जय विंध्यवासिनी माता…
जो भी सच्चे भाव से, नाम तेरा है गाता।
विन्ध्याचल में मां, तू सबकी बिगड़ी बनाती॥ जय विंध्यवासिनी माता…
तेरे दर पे चढ़ता, जब नारियल, चुनरी।
मां तू तुरंत ही करती, झोली सबकी भर री॥ जय विंध्यवासिनी माता…
शेरोंवाली माता, संकट हरनेवाली।
मन की मुरादें सबकी, तू ही तो पूरी करनेवाली॥ जय विंध्यवासिनी माता…
दया करो मां मुझ पर, संकट दूर करो।
शरण में आए हैं हम, अब उद्धार करो॥ जय विंध्यवासिनी माता…
आरती पूरी जो कोई, श्रद्धा से है गाता।
मां विंध्यवासिनी उसकी, हर विपदा टाल जाती॥ जय विंध्यवासिनी माता
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते॥
मां विंध्यवासिनी स्तोत्रम् न केवल एक धार्मिक पाठ है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अनुभव भी है। यह हमें शक्ति, धैर्य, करुणा, ममता और साहस प्रदान करता है। यदि आप जीवन में परेशानियों से घिरे हैं और कोई मार्ग नहीं सूझता, तो एक बार श्रद्धा और विश्वास के साथ मां विंध्यवासिनी स्तोत्र का पाठ आरंभ करें। शीघ्र ही आप स्वयं मां की कृपा का अनुभव करेंगे।
“विन्ध्यवासिन्यै नमः।”
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FAQs”
1. मां विंध्यवासिनी कौन हैं?
मां विंध्यवासिनी देवी शक्ति का एक रूप हैं, जो उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर स्थित विंध्याचल पर्वत पर विराजमान हैं। वे देवी दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं, जो भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।
मां विंध्यवासिनी स्तोत्रम् क्या है?
यह एक भक्तिपूर्ण संस्कृत रचना है जिसमें मां विंध्यवासिनी की स्तुति, शक्ति, कृपा और महिमा का गुणगान किया गया है। इसका पाठ करने से मानसिक शांति, भय नाश और कष्टों से मुक्ति मिलती है।
मां विंध्यवासिनी स्तोत्रम् का पाठ कब करना चाहिए?
मां विंध्यवासिनी स्तोत्र का पाठ प्रातः या संध्या के समय किया जा सकता है। विशेष रूप से नवरात्रि, शुक्रवार और पूर्णिमा के दिन इसका पाठ अत्यंत फलदायक माना गया है।
मां विंध्यवासिनी स्तोत्रम् पढ़ने के क्या लाभ हैं?
मां विंध्यवासिनी स्तोत्र पाठ से मानसिक भय, रोग, आर्थिक संकट, शत्रु बाधा आदि समाप्त होते हैं। यह स्तोत्र मां की कृपा पाने का एक सरल और प्रभावशाली माध्यम है।
क्या मां विंध्यवासिनी स्तोत्रम् का पाठ घर पर कर सकते हैं?
हाँ, मां विंध्यवासिनी स्तोत्र घर पर पूरी श्रद्धा और नियम से पढ़ा जा सकता है। एक शांत और शुद्ध स्थान पर दीपक जलाकर मां का ध्यान करते हुए पाठ करें।
क्या मां विंध्यवासिनी स्तोत्र का पाठ बिना संस्कृत ज्ञान के संभव है?
हाँ, यदि आप शुद्ध उच्चारण न कर पाएं तो भी भावना और श्रद्धा से पाठ करें।
मां विंध्यवासिनी मंदिर कहां स्थित है?
मां विंध्यवासिनी मंदिर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में, गंगा नदी के तट पर स्थित विंध्याचल पर्वत पर स्थित है। यह भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है।