शिव मानस पूजा स्तोत्र, पाठ विधि, महत्व और लाभ, हिंदी अर्थ

शिव मानस पूजा स्तोत्र

शिव मानस पूजा स्तोत्र, पाठ विधि, महत्व और लाभ, हिंदी अर्थ

शिव मानस पूजा स्तोत्र  (Shiv Manas Puja Stotra) आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित एक अनूठा भक्तिमय स्तोत्र है। इसमें भगवान शिव की पूजा मात्र मन द्वारा भावनात्मक रूप से की जाती है—बिना बाह्य सामग्री के केवल कल्पना द्वारा। यह मानसिक पूजा शास्त्रों में सर्वोत्तम माना गया है

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शिव मानस पूजा स्तोत्र परिचय

शिव मानस पूजा स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक दिव्य स्तोत्र है, जिसमें भगवान शिव की मानसिक पूजा की जाती है। इसमें बिना किसी बाहरी सामग्री के केवल मन, भावना और कल्पना से पूजा अर्पित की जाती है। इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त शिवजी को रत्नजड़ित सिंहासन, दिव्य वस्त्र, चंदन, नैवेद्य, गीत, नृत्य आदि समर्पित करता है – वह भी केवल अपने मन से। यह स्तोत्र यह दर्शाता है कि सच्ची भक्ति के लिए बाह्य साधनों की नहीं, बल्कि श्रद्धा और संकल्प की आवश्यकता होती है। यह मानसिक पूजा की उच्चतम अभिव्यक्ति मानी जाती है।

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शिव मानस पूजा स्तोत्र आध्यात्मिक महत्व और लाभ

शिव मानस पूजा स्तोत्र मानसिक आराधना की श्रेष्ठ विधि है, जिसमें श्रद्धा ही मुख्य पूजन सामग्री है। यह स्तोत्र आंतरिक शुद्धि, एकाग्रता, शांति और शिव-सान्निध्य का अनुभव कराता है। नियमित पाठ से कर्मों का शोधन होता है और भक्त को आत्मिक बल व दिव्यता की अनुभूति होती है।

मानस पूजा का महत्व: बिना बाह्य सामग्री, केवल हृदय और इन्द्रियों की कल्पना से की जाने वाली पूजा को शास्त्रों में मंत्रात्मक पूजा से भी श्रेष्ठ माना गया है

श्रद्धा और भक्ति: यह स्तोत्र सच्ची श्रद्धा व सरल भक्ति को प्रेरित करता है—शिवजी को पाने का सहज मार्ग।

मनोवैज्ञानिक शांति: मानसिक पूजन के माध्यम से मन में स्थिरता, श्रद्धा और दिव्यता का संचार होता है।

संकल्पशक्ति: संकल्पपूर्वक अर्पित भाव श्रद्धा को मूर्त रूप में परिवर्तित करता है।

सावन माह में विशेष: श्रावण मास और हर सोमवार को इसे नियमित पाठ करने से मनोकामनाओं की पूर्ति मानी जाती है|

शिव मानस पूजा स्तोत्र – पाठ विधि

सुबह स्नान कर शांत स्थान पर बैठें। शिव मानस पूजा स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक को श्रद्धा से पढ़ें और मन में कल्पना द्वारा शिवजी को पूजन सामग्री अर्पित करें। कोई बाह्य वस्तु आवश्यक नहीं। भावना, संकल्प और एकाग्रता से किया गया मानसिक पूजन ही इस स्तोत्र की मुख्य विधि है।

समयप्रातः‑काल स्नानोपरांत अथवा सोमवार, सावन मास में विशेष रूप से शुभ।

स्थानशांत वातावरण, साफ स्थान, पूजक कहीं बैठकर मानसिक रूप से पूजोपचार करें।

प्रक्रियाप्रत्येक श्लोक पढ़ें, उसके बाद उसे पांच अर्थों सहित पूर्ण मनोभाव से अर्पित करें—मानस पूजन की शैली। ध्यान करें कि सभी अर्पित वस्तुएँ, गान, नृत्य आदि केवल मन में हों।

भावना और संकल्पसंकल्पपूर्वक पूजा अर्पित करें—“मेरा मन, वाणी, कर्म—सब आप की भक्ति है”।

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शिव मानस पूजा स्तोत्र सारांश

शिव मानस पूजा स्तोत्र एक संक्षिप्त पर अत्यंत गहन मानसिक पूजा विधि है

यह सम्पूर्ण पूजा केवल मन द्वारा समर्पित की जाती है

आराधक को वस्त्र, जल, फूल, दीप, संगीत आदि की कल्पना हृदय से करनी होती है

इससे भक्त को आंतरिक शांति, संवेदनशील श्रद्धा, दिव्यता का अनुभव मिलता है

यह विधि आधुनिक व्यस्त जीवन और भौतिक सीमाओं में श्रद्धालुओं के लिए आदर्श है |

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सावन में शिव मानस पूजा स्तोत्र के लाभ (फायदे):

सावन माह भगवान शिव को विशेष प्रिय है, और इस माह में “शिव मानस पूजा स्तोत्र” का पाठ अत्यंत फलदायी माना जाता है। इसके प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:

1. मनोकामना पूर्ति: सावन में श्रद्धापूर्वक शिव मानस पूजा करने से मन से की गई प्रार्थनाएँ शीघ्र फलित होती हैं।

2. आंतरिक शांति व मानसिक एकाग्रता: मानसिक पूजन के माध्यम से मन संयमित होता है, जिससे ध्यान में गहराई आती है।

3. पुण्य की प्राप्ति:  बिना किसी सामग्री के मन से की गई पूजा, विशेषकर सावन में, हजार गुना पुण्यदायिनी मानी गई है।

4. शिव कृपा और अनुग्रह: इस स्तोत्र का पाठ भावपूर्वक करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन के संकट दूर होते हैं।

5. जलाभिषेक का मानसिक विकल्प: जो भक्त गंगाजल या अभिषेक न कर सकें, उनके लिए यह मानसिक पूजन सर्वोत्तम विकल्प है।

शिव मानस पूजा स्तोत्र

अथ श्री शिवमानसपूजा स्तोत्र

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं।
नानारत्नविभूषितं मृगमदा मोदाङ्कितं चन्दनम्।।
जातीचम्पकविल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा।
दीपं देव! दयानिधे ! पशुपते ! हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥1॥

सौवर्णे नवरलखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं।
भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम्।।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं।
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥2॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं।
वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा।।
साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया।
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो !॥3॥

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रासमाधिस्थितिः।।
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम् ।।4।।

करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा,
श्रवणनयनजं वा मानसं वाऽपराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व,
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥5॥

॥इति श्रीशिवमानसपूजा सम्पूर्णम्॥

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भावार्थ श्लोक 1 : हे पशुपति देव! मैं अपने मन में ऐसी भावना करता हूं कि संपूर्ण रत्नों से निर्मित सिंहासन पर आप विराजमान हों। हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करा रहा हूं। स्नान के बाद रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित है। केसर कस्तूरी में बनाया गया चंदन आपके अंगों पर लगा रहा हूं। जूही, चंपा, बेलपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक आपको अर्पित कर रहा हूं, हे प्रभु आप इसे ग्रहण करें।

भावार्थ श्लोक 2 : हे महादेव! मैंने नवीन स्वर्णपात्र, जिसमें विविध प्रकार के रत्न जड़ित हैं, उसमे खीर, दूध और दही सहित पांच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के साथ कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल और ताम्बूल आपके समक्ष प्रस्तुत किया है। हे कल्याण नाथ! आप मेरी इस भावना को स्वीकार करें।

भावार्थ श्लोक 3 : हे भोलेनाथ! मैं आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर झल रहा हूं। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिख रहा है, उसे भी प्रस्तुत कर रहा हूं। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियां आपको प्रसन्न करने के लिए की जा रही है। स्तुति का गायन एवं आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम कर रहा हूं। हे प्रभु! आप मेरी यह नाना विधि स्तुति को स्वीकार करें।

भावार्थ श्लोक 4 : हे शंकर! आप मेरी आत्मा हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वती जी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोचता हूं, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला हर शब्द आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी ही आराधना है।

भावार्थ श्लोक 5 : हे परमेश्वर! मैंने हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं, वे जान में किए हों या फिर अनजाने में अर्थात वे विहित हों अथवा अविहित हों, उन सब पर क्षमा पूर्ण दृष्टि प्रदान करें। हे करुणा के सागर भोले भंडारी महादेव, आपकी जय हो।

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शिव मानस पूजा स्तोत्र भक्त को बाहरी सामग्री की बाधा से मुक्त कर देता है। यह केवल मन की शक्ति, श्रद्धा और भक्ति को सम्मान देता है। यहाँ शिवजी को दैनंदिन कर्मों, अनुभवों, मन की उच्चारण व संकल्प से पूजा की जाती है। यह स्तोत्र आधुनिक साधकों के लिए एक सरल, प्रभावशाली और गूढ़ मार्ग है।

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FAQs”

Q1: शिव मानस पूजा स्तोत्र क्या है?

उत्तर:शिव मानस पूजा स्तोत्र आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित पाँच श्लोकीय मानसिक पूजा स्तोत्र है, जहाँ शिवजी की सेवा केवल मन से—कल्पना द्वारा की जाती है

Q2: शिव मानस पूजा स्तोत्र में कितने श्लोक हैं?

उत्तर: शिव मानस पूजा स्तोत्र में कुल 5 श्लोक हैं, जो संक्षिप्त पर प्रभावशाली मानसिक पूजा विवेचन करते हैं।

Q3: शिव मानस पूजा स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

उत्तर: प्रातःकाल या सोमवार को शांत मन से बैठकर शिव मानस पूजा स्तोत्र का प्रत्येक श्लोक पढ़ें, तदुपरांत उसके भाव को कल्पना द्वारा भगवान शिव पर अर्पित करें।

Q4: क्या शिव मानस पूजा स्तोत्र पाठ में बाहरी सामग्री प्रयोग करने की आवश्यकता है?

उत्तर: नहीं। शिव मानस पूजा स्तोत्र को पूरी तरह मानस रूप में अर्पित करना चाहिए; कहावत है—मन की सुंदर कल्पना से ही शिव प्रसन्न होते हैं।

Q5: शिव मानस पूजा स्तोत्र से क्या लाभ मिलते हैं?

उत्तर: शिव मानस पूजा स्तोत्र पाठ से मन की शांति मिलती है

साकार पूजा की भावना बनी रहती है

मानसिक संकल्प की शक्ति बढ़ती है

मनोकामनाओं की पूर्ति होती है, विशेषकर सावन में नियमित पाठ से।

Q6: क्या शिव मानस पूजा स्तोत्र सभी लोग पढ़ सकते हैं?

उत्तर: हाँ, कोई भी – पुरुष, महिला, विद्यार्थी – बिना किसी विशेष योग्यता के शिव मानस पूजा स्तोत्र पढ़ सकता है, केवल श्रद्धा एवं भावना आवश्यक है।

Q7: क्या बिना संस्कृत ज्ञान के शिव मानस पूजा स्तोत्र पढ़ा जा सकता है?

उत्तर: बिल्कुल। शिव मानस पूजा स्तोत्र हिंदी भावार्थ सहित पढ़ें और मन में भावनात्मक रूप से अर्पण करें।

Q8: शिव मानस पूजा और अन्य पूजा जैसे शिव चालीसा में क्या अंतर है?

उत्तर: शिव चालीसा: भक्ति-काव्य में लिखित श्लोक, बाह्य पाठ
शिव मानस पूजा: मानस पूजा, बाह्य सामग्री नहीं, केवल मानसिक कल्पना व भाव।

Q9: शिव मानस पूजा स्तोत्र पाठ काआदर्श समय या माह कौन सा है?

उत्तर: श्रावण मास का प्रत्येक सोमवार और सावन‑काल अवधि में इसका रोज़ाना या हफ्ते में एक‑दो बार शिव मानस पूजा स्तोत्र पाठ विशेष शुभ माना जाता है।

Q10: त्रुटि, पाप-प्रायश्चित का कोई विधान है?

उत्तर: शिव मानस पूजा स्तोत्र अंतिम श्लोक में भक्त मात्र मन, वाणी, काया, कर्म से किए गए पाप को शिव से क्षमा मांगता है—यह आत्मशुद्धि की प्रक्रिया है।

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