शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र क्या है?
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र एक शक्तिशाली संस्कृत स्तुति है जो देवी विंध्यवासिनी को समर्पित है। इसका पाठ शत्रु बाधा, नकारात्मक ऊर्जा, भय और मानसिक दुर्बलता से रक्षा करता है। यह स्तोत्र साधक को आत्मबल, साहस और देवी की कृपा प्रदान करता है, जिससे जीवन में विजय और शांति मिलती है। शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली संस्कृत स्तुति (स्तोत्र) है, जो देवी विंध्यवासिनी को समर्पित है। इसका मुख्य उद्देश्य होता है –
शत्रुओं से रक्षा,
मानसिक व आत्मिक शक्ति का जागरण,
जीवन में आ रहे अदृश्य विघ्नों, भय, बाधाओं, रोगों और दुर्भाग्य से मुक्ति।
यह स्तोत्र न केवल तांत्रिक दृष्टिकोण से प्रभावी है, बल्कि आध्यात्मिक शांति और आत्म-बल के लिए भी इसका पाठ अति फलदायी माना जाता है।
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शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र की आराध्य देवी कौन हैं?
इस स्तोत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं माँ विंध्यवासिनी — जो दुर्गा, लक्ष्मी और चामुंडा का समन्वित रूप मानी जाती हैं।
इनका निवासस्थान है विंध्याचल पर्वत (उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में)।
देवी को महाशक्ति का पूर्ण स्वरूप कहा जाता है, जो विशेष रूप से शत्रु नाश और भय से रक्षा के लिए पूजित होती हैं।
यह भी कहा जाता है कि माँ विंध्यवासिनी स्वयं दुर्गा सप्तशती में वर्णित योगमाया हैं, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय कंस को चुनौती दी थी।
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र ऐतिहासिक और पौराणिक सन्दर्भ
🔸 देवी का प्रकट होना : भागवत पुराण के अनुसार, जब कंस ने देवकी के आठवें पुत्र (भगवान श्रीकृष्ण) को मारने के लिए प्रयास किया, तब योगमाया ने जन्म लिया और कंस द्वारा फेंके जाने पर आकाश में जाकर बोलीं: “हे मूर्ख! तुझे मारने वाला कहीं और जन्म ले चुका है।”
इसके बाद वे विंध्याचल पर्वत पर जाकर विंध्यवासिनी नाम से पूजित होने लगीं।
🔸 शक्ति रूप में स्थापना: देवी विंध्यवासिनी को त्रिदेवी स्वरूप (दुर्गा-लक्ष्मी-सरस्वती) माना गया है। यह भी मान्यता है कि जब देवी ने महिषासुर, शुंभ-निशुंभ, चण्ड-मुण्ड आदि का वध किया, तब उन्होंने विभिन्न रूपों में पृथ्वी की रक्षा हेतु अपने अंश छोड़े। विंध्यवासिनी उन्हीं शक्तियों में से एक हैं।
🔸 ऐतिहासिक स्थल: विंध्याचल धाम आज भी एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है।
यहाँ की देवी को विशेष रूप से शत्रु नाशिनी, भयरूपा, कामना पूर्ण करने वाली कहा जाता है। नवरात्रि में यहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं और कई साधक यहाँ तांत्रिक साधनाएँ भी करते हैं।
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र एक ऐसा दिव्य और शक्तिशाली स्तोत्र है, जो न केवल मनुष्य को बाह्य संकटों से बचाता है, बल्कि उसे आत्मिक शक्ति, साहस और देवी कृपा से भर देता है। यह स्तोत्र सदियों से सिद्ध साधकों द्वारा अपनाया गया है और आज भी इसकी प्रभावशीलता उतनी ही है।
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शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र पाठ विधि व अनुष्ठान के नियम
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र का पाठ प्रातः या रात्रि में शुद्ध स्थान पर स्नान कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करें। दीपक, धूप, पुष्प अर्पित कर श्रद्धा से जप करें। नवरात्रि, अमावस्या या मंगलवार विशेष फलदायी होते हैं। नियमपूर्वक 11, 21 या 108 पाठ करें।
समय: ब्रह्म मुहूर्त (प्रात: 4 से 6 बजे) में या मध्यरात्रि में गुप्त स्थान पर।
स्थान: एकांत, शांत, शुद्ध स्थान (तांत्रिक प्रभाव हेतु नदी, पीपल वृक्ष या शिवालय समीप श्रेष्ठ)।
माला: रुद्राक्ष, लाल चन्दन या स्फटिक माला।
आसन: काले कुश या लाल ऊन का आसन।
संकल्प: मन में स्पष्ट रूप से उद्देश्य लें — शत्रु पर विजय, भय नाश, सुरक्षा या आत्मबल वृद्धि।
जप संख्या: आरंभ में कम से कम 108 बार, सिद्धि हेतु 1 लाख (100,000) तक।
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शत्रु नाश हेतु महत्त्व और चमत्कारिक प्रभाव
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र शत्रु नाश के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। इसके नियमित पाठ से छुपे शत्रु परास्त होते हैं, कोर्ट केस में विजय मिलती है और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा होती है। यह स्तोत्र साधक को अद्भुत आत्मबल, साहस और दैवी संरक्षण प्रदान करता है।
जिनके जीवन में शत्रु बाधा, मुकदमे, षड्यंत्र या धोखा जैसे संकट हों, उनके लिए यह स्तोत्र रक्षक बनता है।
मानसिक अवसाद, भय, आत्मविश्वास की कमी, दुर्भाग्य — इन सबके लिए यह अत्यंत उपयोगी है।
इस स्तोत्र के माध्यम से व्यक्ति दैवी शक्ति से जुड़ता है, और उसे आंतरिक दिशा‑निर्देश मिलने लगते हैं।
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र पड़ते समय रखने वाली सावधानियाँ
यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली है। अनुष्ठान में श्रद्धा, नियम और मर्यादा अति आवश्यक हैं।
बिना गुरु के इस स्तोत्र को सिर्फ शांति एवं सुरक्षा के उद्देश्य से ही करें। यदि इसे तांत्रिक प्रयोग हेतु कर रहे हैं, तो योग्य मार्गदर्शन लें।
स्तोत्र का दुरुपयोग या किसी को हानि पहुँचाने का भाव दोषपूर्ण परिणाम दे सकता है।
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शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र का महत्व व लाभ
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र केवल शत्रु नाशक मंत्र नहीं है, बल्कि यह साधक को दैवी शक्ति, मन की स्थिरता, और संकल्प सिद्धि प्रदान करता है। यह स्तोत्र साधक के चारों ओर एक अदृश्य रक्षाकवच बना देता है जो उसे बुरी शक्तियों, काले जादू, नजर दोष, और मानसिक दुर्बलता से बचाता है।
यह एक तांत्रिक स्तोत्र भी माना जाता है, जिसका उपयोग केवल आत्मरक्षा के लिए किया जाना चाहिए। बीज मंत्रों का समावेश होने से यह तेजस्वी और शीघ्र फलदायक हो जाता है।
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र प्रमुख लाभ (Benefits)
शत्रुओं का विनाश (Enemy Destruction) : छुपे हुए शत्रु, छल-कपट करने वाले लोग, कोर्ट केस, या राजनीति में विरोधियों से रक्षा करता है।
जो लोग आपको नुकसान पहुँचाना चाहते हैं, वे खुद हटने लगते हैं।
भय और मानसिक दुर्बलता से मुक्ति : मानसिक अस्थिरता, अनजाना डर, और भय के कारण जीवन में रुकावटें आ रही हों तो यह स्तोत्र अत्यंत उपयोगी है।
तांत्रिक व नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा : यह स्तोत्र बुरी नजर, जादू-टोना, तंत्र बाधा आदि से रक्षा करता है।
विशेष रूप से जो लोग ऊँचे पदों पर हैं या खुले विरोध का सामना कर रहे हैं, उनके लिए यह अमोघ उपाय है।
कार्य में सफलता और मार्ग में आने वाले विघ्नों का नाश : व्यवसाय, नौकरी, शिक्षा या किसी भी कार्य में बार-बार रुकावटें आ रही हों तो इसका नियमित जप मार्ग प्रशस्त करता है।
साहस और आत्मबल की वृद्धि : स्तोत्र का नित्य जप साधक को भयमुक्त, साहसी और निडर बनाता है।
यह मानसिक दृढ़ता और आंतरिक ऊर्जा को जाग्रत करता है।
दैवी कृपा और आध्यात्मिक उन्नति : यह केवल लौकिक लाभ नहीं देता, बल्कि साधक की आत्मा को भी शुद्ध करता है और उसे देवी से जोड़ता है।
साधना करने वाले को अंतर्ज्ञान, संकेत और दिव्य अनुभूतियाँ प्राप्त हो सकती हैं।
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किसे करना चाहिए शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र ?
जिन्हें बार-बार शत्रु बाधा, न्यायिक उलझन, या दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है।
जिनके घर या व्यवसाय में तांत्रिक/ऊपरी बाधाएँ हैं।
जो साधना के माध्यम से आत्मरक्षा व आत्मशक्ति चाहते हैं।
जिनका मन भयभीत, भ्रमित या मानसिक रूप से अशांत है।
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र विशेष साधना लाभ
यदि इस स्तोत्र का पाठ रुद्राक्ष माला से या विन्ध्याचल तीर्थ में किया जाए, तो इसका फल कई गुना बढ़ जाता है।
नवरात्रि, अमावस्या, और गुप्त नवरात्रि में इसका जप अत्यंत शुभ होता है।
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र
विनियोगः
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे ।
ॐ अस्य श्रीशत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र-मन्त्रस्य ज्वाला-व्याप्तः ऋषिः,
अनुष्टुप छन्दः, श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवता, श्रीशत्रु-जयार्थे (उच्चाटनार्थे नाशार्थे वा) जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः
शिरसि ज्वाला-व्याप्त-ऋषये नमः ।
मुखे अनुष्टुप छन्दसे नमः,
हृदि श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवतायै नमः,
अञ्जलौ श्रीशत्रु-जयार्थे (उच्चाटनार्थे नाशार्थे वा) जपे विनियोगाय नमः ।।
कर-न्यासः
ॐ श्रीशत्रु-विध्वंसिनी अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ त्रिशिरा तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ अग्नि-ज्वाला मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ घोर-दंष्ट्री अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ दिगम्बरी कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ रक्त-पाणि करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादि-न्यासः
ॐ रौद्री हृदयाय नमः ।
ॐ रक्त-लोचनी शिरसे स्वाहा ।
ॐ रौद्र-मुखी शिखायै वषट् ।
ॐ त्रि-शूलिनो कवचाय हुम् ।
ॐ मुक्त-केशी नेत्र-त्रयाय वौषट् ।
ॐ महोदरी अस्त्राय फट् ।
फट् से ताल-त्रय दें (तीन बार ताली बजाएँ)
और “ॐ रौद्र-मुख्यै नमः” से दशों दिशाओं में चुटकी बजाकर दिग्बन्धन करें ।
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र
“ॐ शत्रु-विध्वंसिनी रौद्री, त्रिशिरा रक्त-लोचनी ।
अग्नि-ज्वाला रौद्र-मुखी, घोर-दंष्ट्री त्रि-शूलिनी ।। १ ।।
दिगम्बरी मुक्त-केशी, रक्त-पाणी महोदरी ।”
फल-श्रुतिः- एतैर्नाममभिर्घोरैश्च, शीघ्रमुच्चाटयेद्वशी,
इदं स्तोत्रं पठेनित्यं, विजयः शत्रु-नाशनम् ।
सगस्त्र-त्रितयं कुर्यात्, कार्य-सिद्धिर्न संशयः ।।
शत्रु विन्ध्यवासिनी स्तोत्र का हिंदी अर्थ
विनियोगः
(संकल्प पूर्वक प्रयोग प्रारंभ)
सीधे हाथ में जल लेकर नीचे दिए गए विनियोग मंत्र को पढ़ें और फिर जल को भूमि पर छोड़ दें।
ॐ — इस “श्री शत्रु-विन्ध्यवासिनी स्तोत्र मंत्र” के ऋषि हैं: ज्वालाओं से घिरी हुई (ज्वाला-व्याप्त) शक्ति
छंद है: अनुष्टुप
देवी हैं: श्री शत्रु-विन्ध्यवासिनी
उद्देश्य: शत्रु पर विजय, शत्रु का नाश या उच्चाटन
इसी उद्देश्य से इस मंत्र का जाप करें
ऋष्यादि न्यासः
(देह पर देवत्व का आवाहन)
सिर पर: ज्वाला-व्याप्त ऋषये नमः
मुख पर: अनुष्टुप छंदसे नमः
हृदय में: श्री शत्रु-विन्ध्यवासिनी देवतायै नमः
अंजलि में (हाथ जोड़कर): शत्रु-विजय के लिए जपे विनियोगाय नमः
कर-न्यासः
(अंगुलियों पर मंत्र सिद्धि हेतु स्पर्श)
अँगूठे पर: ॐ श्री शत्रु-विन्ध्यवासिनी अंगुष्ठाभ्यां नमः
तर्जनी पर: ॐ त्रिशिरा तर्जनीभ्यां नमः
मध्यमा पर: ॐ अग्नि-ज्वाला मध्यमाभ्यां नमः
अनामिका पर: ॐ घोर-दंष्ट्रि अनामिकाभ्यां नमः
कनिष्ठिका पर: ॐ दिगम्बरी कनिष्ठिकाभ्यां नमः
हथेली और हाथ की पीठ पर: ॐ रक्त-पाणी करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः
हृदयादि-न्यासः
(हृदय, मस्तक आदि पर विशेष मंत्रों का उच्चारण)
हृदय पर: ॐ रौद्री हृदयाय नमः
सिर पर: ॐ रक्त-लोचनी शिरसे स्वाहा
चोटी पर: ॐ रौद्र-मुखी शिखायै वषट्
कवच में: ॐ त्रिशूलिनी कवचाय हुम्
नेत्रत्रय में: ॐ मुक्त-केशी नेत्रत्रयाय वौषट्
अस्त्र में: ॐ महोदरी अस्त्राय फट्
फट् शब्द पर तीन बार ताली बजाएँ
फिर “ॐ रौद्र-मुख्यै नमः” कहते हुए दसों दिशाओं में चुटकी बजाकर दिग्बंधन करें
स्तोत्र
(मुख्य स्तुति भाग)
ॐ शत्रु-विन्ध्यवासिनी, रौद्र रूप वाली
तीन सिरों वाली, रक्त नेत्रों से युक्त
अग्नि-ज्वाला के समान प्रज्वलित, रौद्र मुख वाली
भयंकर दाँतों वाली, त्रिशूलधारिणी हो ॥ 1 ॥
नग्न वेशधारिणी, खुले बालों वाली
रक्त से सनी हथेलियों वाली, विशाल उदर वाली देवी हो ॥ 2 ॥
दुर्गाष्टोत्तर स्तोत्र | देवी दुर्गा के 108 नाम, महत्व और पाठ विधि
शत्रु विंध्यावासिनी स्तोत्र न केवल बाहरी संघर्षों में रक्षा करता है, बल्कि आंतरिक रूप से भी साधक को शक्तिशाली बनाता है। यह स्तोत्र देवी की कृपा का द्वार है—जहाँ शत्रुता, भय और अवरोधों का अंत होता है और साहस, शांति और सिद्धि का आरंभ।
प्रमुख हिंदी स्तोत्र | ||
श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम | ||
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भूतनाथ अष्टक | ||
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बिल्वाष्टकम् | ||
शत्रु विंध्यावासिनी स्तोत्र |
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FAQs”
1. शत्रु विंध्यावासिनी स्तोत्र क्या है?
यह देवी विंध्यावासिनी की स्तुति का अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है जो शत्रुओं से रक्षा और इच्छाओं की पूर्ति हेतु पढ़ा जाता है।
2. इसका पाठ कैसे करना चाहिए?
प्रातःकाल या रात्रि में शांत स्थान पर, नियमपूर्वक, शुद्ध मन से पाठ करना चाहिए।
3. क्या इसे कोई भी व्यक्ति कर सकता है?
हाँ, श्रद्धा और नियमों का पालन करते हुए कोई भी व्यक्ति इसका पाठ कर सकता है।
4. क्या स्तोत्र के साथ कोई यंत्र या विशेष साधना जुड़ी है?
हाँ, देवी विंध्यवासिनी यंत्र के साथ साधना करने से लाभ शीघ्र मिलता है।
5. यदि डर या असहजता लगे तो क्या करें?
ऐसी स्थिति में देवी दुर्गा या गायत्री मंत्र का पाठ करें और शांति प्राप्त करें। फिर पुनः स्तोत्र का पाठ करें।
6. क्या घर में इसका पाठ कर सकते हैं?
हाँ, यदि उद्देश्य मानसिक शांति और आत्मरक्षा है तो घर में किया जा सकता है। तांत्रिक प्रयोग के लिए विशेष स्थान और विधि आवश्यक है।