“भवानी अष्टकम्” एक अत्यंत प्रसिद्ध और प्रभावशाली संस्कृत स्तोत्र है जिसकी रचना महान शंकराचार्य जी ने की थी। यह स्तोत्र देवी पार्वती (भवानी) को समर्पित है। इसमें आठ श्लोक होते हैं, जो भक्त की संपूर्ण शरणागति और देवी की करुणा को दर्शाते हैं। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयोगी है, बल्कि भय, चिंता, कष्ट और रोगों से मुक्ति पाने के लिए भी अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
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भवानी अष्टकम् का अर्थ
भवानी अष्टकम में शंकराचार्य ने बताया है कि संसार में कोई भी स्थायी सहारा नहीं है – न माता, न पिता, न भाई, न धन, न मित्र, और न ही शरीर या कोई भौतिक साधन। केवल देवी भवानी ही एकमात्र आश्रय हैं। यह श्लोक आत्मसमर्पण, भक्ति और करुणा की भावना से ओतप्रोत हैं। इसमें हर श्लोक यह कहता है कि “गतिस्त्वं त्वमेका भवानी” अर्थात् “हे भवानी! केवल आप ही मेरी एकमात्र गति (शरण) हैं।
भवानी अष्टकम् का महत्व
भवानी अष्टकम् आत्मसमर्पण, भक्ति और देवी कृपा का प्रतीक है। यह स्तोत्र मानसिक शांति, भय नाश, और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है। नवरात्रि, उपवास या संकट के समय इसका पाठ विशेष फलदायक होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा व आध्यात्मिक बल प्रदान करता है।
आत्मसमर्पण का प्रतीक – यह स्तोत्र व्यक्ति को उसके अहंकार से मुक्त कर देवी के चरणों में सम्पूर्ण समर्पण का मार्ग दिखाता है।
मन की शुद्धि – इसका नियमित पाठ करने से हृदय की शुद्धि होती है और मन शांत रहता है।
संकटों से मुक्ति – भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक संकटों से राहत पाने में यह अष्टक चमत्कारी रूप से कार्य करता है।
भवानी कृपा – देवी भवानी को प्रसन्न करने का यह अत्यंत प्रभावशाली माध्यम है।
सकारात्मक ऊर्जा – इस स्तोत्र का उच्चारण घर, मंदिर या एकांत में करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
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भवानी अष्टकम् – उदाहरण
तांत्रिक दृष्टिकोण से: यह स्तोत्र साधना या तांत्रिक अनुष्ठानों में शक्ति जागरण के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
भक्तों के अनुभव: अनेक भक्तों ने बताया है कि इसके नियमित पाठ से जीवन में चमत्कारी परिवर्तन आए हैं।
भवानी अष्टकम् का पाठ कैसे करें (विधि)
1. पाठ का समय और स्थान
सुबह सूर्योदय के समय या संध्या काल श्रेष्ठ होता है।
एक शांत, स्वच्छ स्थान चुनें जहां ध्यान केंद्रित रह सके।
2. आवश्यक सामग्री
साफ आसन
देवी की प्रतिमा या चित्र
पुष्प, दीपक, धूप
3. पाठ विधि
पहले स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें।
देवी को प्रणाम कर पुष्प अर्पित करें।
दीपक जलाएं और धूप दें।
पूरी श्रद्धा व एकाग्रता से अष्टक के सभी श्लोकों का पाठ करें।
अंत में ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव…’ मंत्र बोलें।
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भवानी अष्टकम के लाभ
भवानी अष्टकम् का नियमित पाठ करने से भय, चिंता और मानसिक तनाव दूर होते हैं। भवानी अष्टकम स्तोत्र देवी की कृपा प्राप्त करने का सरल मार्ग है। साधक को आत्मबल, भक्ति में स्थिरता और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन मिलता है। यह कल्याणकारी और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली है।
| क्रमांक | लाभ का विवरण |
| 1 | आत्मबल और मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है |
| 2 | भय, चिंता, और मानसिक रोग दूर होते हैं |
| 3 | नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है |
| 4 | जीवन में शांति, प्रेम और समर्पण आता है |
| 5 | भक्ति मार्ग में प्रगति होती है |
| 6 | धन और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है |
| 7 | देवी का विशेष अनुग्रह प्राप्त होता है |
भवानी अष्टकम् और देवी पार्वती
देवी पार्वती को “भवानी” कहा जाता है जिसका अर्थ है – जो जीवन देती हैं। वह संपूर्ण ब्रह्मांड की जननी हैं। उनका यह स्तोत्र, विशेष रूप से नवरात्रि, सोमवार, या विशेष व्रतों के समय पढ़ा जाए तो अत्यधिक फलदायक होता है। शंकराचार्य द्वारा रचित यह अष्टक न केवल काव्यात्मक रूप से सुंदर है बल्कि आध्यात्मिक गहराई से भी भरपूर है |
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भवानी अष्टकम् का संगीत और लय
आजकल अनेक प्रसिद्ध गायकों द्वारा भवानी अष्टकम् का संगीतमय उच्चारण उपलब्ध है। राग और लय में यह स्तोत्र गाने से ध्यान और भावनाओं में और अधिक गहराई आती है। कुछ प्रमुख गायकों में अनुप जलोटा, पंडित जसराज आदि ने इसे प्रस्तुत किया है।
भवानी अष्टकम स्त्रोत्र
न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
भवाब्धावपारे महादुःखभीरु
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थ
न जानामि मुक्ति लयं वा कदाचित् ।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्ग
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः ।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये ।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः ।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
॥ इति भवानी अष्टकम् सम्पूर्णम् ॥
“भवानी अष्टकम्” केवल एक स्तोत्र नहीं, अपितु एक ऐसा आध्यात्मिक मार्ग है जो व्यक्ति को भक्ति, समर्पण और आत्मिक बल से जोड़ता है। जीवन के कठिन समय में यह स्तोत्र संबल प्रदान करता है। यदि आप अपने जीवन में शांति, सुरक्षा और देवी की कृपा पाना चाहते हैं, तो इस अष्टक का नियमित पाठ करें। यह आपके जीवन को दिशा, दृढ़ता और दिव्यता प्रदान करेगा।
”FAQs”
Q1. भवानी अष्टकम् किसने लिखा है?
उत्तर: भवानी अष्टकम् की रचना आदि शंकराचार्य जी ने की थी।
Q2. भवानी अष्टकम् किस देवता को समर्पित है?
उत्तर: भवानी अष्टकम स्तोत्र देवी पार्वती (भवानी) को समर्पित है।
Q3. भवानी अष्टकम् का पाठ कब करना चाहिए?
उत्तर: भवानी अष्टकम प्रातः या संध्या समय, विशेषतः नवरात्रि, सोमवार, या किसी देवी व्रत के दिन करना उत्तम होता है।
Q4. क्या भवानी अष्टकम स्तोत्र का जाप बिना संस्कृत ज्ञान के किया जा सकता है?
उत्तर: हां, भवानी अष्टकम का उच्चारण अभ्यास से सीखा जा सकता है और इसके अर्थ को समझकर भावपूर्वक किया जा सकता है।
Q5. क्या भवानी अष्टकम स्तोत्र सिर्फ महिलाएं या पुरुष ही पढ़ सकते हैं?
उत्तर: भवानी अष्टकम स्तोत्र सभी भक्तों – स्त्री, पुरुष, बच्चे – सभी के लिए उपयुक्त है।
Q6. भवानी अष्टकम् से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर: भवानी अष्टकम से मानसिक शांति, भय से मुक्ति, भक्ति में प्रगति, और देवी भवानी की कृपा प्राप्त होती है।
Q7. क्या भवानी अष्टकम् को किसी विशेष स्थान पर ही पढ़ना चाहिए?
उत्तर: नहीं, भवानी अष्टकम घर में, मंदिर में, या किसी शांत स्थान पर श्रद्धा से पढ़ा जा सकता है।



