शिवाष्टकम् स्तोत्र: शिवाष्टकम् स्तोत्र भगवान शिव की स्तुति में रचित एक अत्यंत प्रभावशाली और लोकप्रिय स्तोत्र है। यह आठ श्लोकों का एक संग्रह है, जिसकी रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। शिवाष्टकम् के माध्यम से साधक भगवान शिव के रूप, गुण, शक्ति और करुणा का वर्णन करता है और उनकी कृपा की याचना करता है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक रूप से जागरण करने वाला है, बल्कि यह साधक के जीवन में शांति, शक्ति और मोक्ष की अनुभूति भी कराता है।
शिवाष्टकम् का पाठ विशेष रूप से सोमवार, शिवरात्रि, सावन मास और अन्य शिव-पर्वों पर किया जाता है। यह स्तोत्र हिंदी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है, और इसकी दिव्यता आज भी उतनी ही प्रबल है जितनी प्राचीन समय में थी।
सावन में शिव बिल्वाष्टकम स्तोत्रम पाठ के चमत्कारी लाभ | कब और कैसे करें पाठ?
सावन में शिवाष्टकम् स्तोत्र पाठ का महत्व
सावन मास भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे पवित्र माह माना जाता है। इस माह में शिवाष्टकम् स्तोत्र का पाठ विशेष फलदायी होता है। सावन में शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और साधक को मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ, और आत्मिक बल मिलता है। इस मास में किए गए शिवाष्टकम् के जाप से पापों का क्षय होता है और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। श्रद्धा से शिवाष्टकम् का पाठ सावन में करने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
शिवाष्टकम् स्तोत्र का हिंदी अर्थ एवं व्याख्या
शिवाष्टकम् स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव के विविध रूपों, गुणों और लीलाओं का वर्णन किया गया है। प्रथम श्लोक में उन्हें विश्वनाथ, प्राणनाथ, सदा आनंददायक, भूतनाथ आदि रूपों में पूजित किया गया है। दूसरे श्लोक में उनके गले की रुण्डमाला, सर्पों की आभूषण, मृगचर्म वस्त्र आदि द्वारा उनके अघोरी रूप का वर्णन है। प्रत्येक पद में भावार्थ यह है कि शिव, संहारकर्ता होते हुए भी करुणा के सागर हैं। वे योगियों के देव हैं, रक्षण करने वाले हैं, और समस्त ब्रह्मांड के नियंता हैं।
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शिवाष्टकम् स्तोत्र का लाभ और प्रभाव
शिवाष्टकम् स्तोत्र का पाठ मानसिक शांति, पापों की क्षमा, रोगों से मुक्ति और शिव कृपा प्राप्ति का अद्भुत साधन है। यह मोक्ष और आत्मिक जागरण का मार्ग है।
शिवाष्टकम् का नियमित पाठ:
मानसिक शांति प्रदान करता है।
पापों का क्षय करता है।
रोग, भय, दुख, दरिद्रता से मुक्ति दिलाता है।
शिव कृपा से जीवन में संतुलन और उन्नति मिलती है।
मृत्यु के उपरांत मोक्ष प्राप्त होता है।
शिवाष्टकम् स्तोत्र पाठ विधि
शिवाष्टकम् स्तोत्र पाठ के लिए प्रातः स्नान कर, शांत स्थान पर दीप जलाकर शिव का ध्यान करें। शुद्ध उच्चारण के साथ श्रद्धा पूर्वक स्तोत्र का पाठ करें।
सुबह स्नान करके शांत स्थान पर बैठें।
भगवान शिव का ध्यान करें, दीप जलाएं।
बेलपत्र, जल, चंदन अर्पित करें।
मंत्र का उच्चारण स्पष्ट रूप से करें।
प्रत्येक सोमवार और त्रयोदशी को विशेष फलदायी माना गया है।
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शिवाष्टकम् स्तोत्र तांत्रिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण
शिवाष्टकम् केवल भक्ति स्तोत्र नहीं है, यह एक शक्तिशाली साधना का माध्यम भी है। यह साधक के चित्त को शिव के ध्यान में स्थिर करता है। नादयोग, मंत्रयोग और ध्यानयोग से जोड़कर इसे तांत्रिक रूप से भी उपयोग में लाया जाता है। त्रिकाल संध्या में इसका जाप विशेष फलदायी माना गया है।
शिवाष्टकम् स्तोत्र करते समय रखने वाली सावधानियाँ
शिवाष्टकम् स्तोत्र करते समय मन, वचन और शरीर की पवित्रता बनाए रखें। उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध हो। नकारात्मक विचारों से दूर रहें। पाठ करते समय एकाग्रचित्त रहें और शिवलिंग या चित्र के सामने बैठें। दीपक जलाना शुभ होता है। दिखावा या लाभ की भावना से पाठ न करें।
शुद्ध उच्चारण करें।
किसी भी प्रकार की नकारात्मक भावना से मुक्त हो कर पाठ करें।
शिव की कृपा प्राप्त करने हेतु आचरण, वाणी एवं विचारों में शुद्धता रखें।
रात्रि पाठ के समय दीप अवश्य जलाएं।
शिवाष्टकम् स्तोत्र
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथनाथं सदानन्दभाजाम् ।
भवद्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ १ ॥
गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणेशाधिपालम् ।
जटाजूटभङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ २ ॥
मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महामण्डल भस्मभूषधरंतम् ।
अनादिह्यपारं महामोहहारं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ३ ॥
तटाधो निवासं महाट्टाट्टहासं महापापनाशं सदासुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणेशं महेशं सुरेशं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ४ ॥
गिरिन्द्रात्मजासंग्रहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्नगेहम् ।
परब्रह्मब्रह्मादिभिर्वन्ध्यमानं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ५ ॥
कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भोजनम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ६ ॥
शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्द पात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।
अपर्णाकलत्रं चरित्रं विचित्रं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ७ ॥
हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारम् ।
श्मशाने वदन्तं मनोजं दहन्तं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ८ ॥
स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणे पठेत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः ।
स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कलत्रं विचित्रं समासाद्य मोक्षं प्रयाति ॥ ९ ॥
॥ इति श्रीशिवाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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भावार्थ श्लोक 1 : हे शिव, शंकर, शंभु, आप पूरे जगत के भगवान हैं, हमारे जीवन के भगवान हैं, विभु हैं, दुनिया के भगवान हैं, विष्णु (जगन्नाथ) के भगवान हैं, हमेशा परम शांति में निवास करते हैं, हर चीज को प्रकाशमान करते हैं, आप समस्त जीवित प्राणियों के भगवान हैं, भूतों के भगवान हैं, इतना ही नहीं आप समस्त विश्व के भगवान हैं, मैं आपसे मुझे अपनी शरण में लेने की प्रार्थना करता हूं।
भावार्थ श्लोक 2 : जिनके गले में मुंडो की माला है, जिनके शरीर के चारों ओर सांपों का जाल है, जो अपार-विनाशक काल का नाश करने वाले हैं, जो गण के स्वामी हैं, जिनके जटाओं में साक्षात गंगा जी का वास है , और जो हर किसी के भगवान हैं, मैं उन शिव शंभू से मुझे अपनी शरण में लेने की प्रार्थना करता हूं।
भावार्थ श्लोक 3 : हे शिव, शंकर, शंभु, जो दुनिया में खुशियाँ बिखेरते हैं, जिनकी ब्रह्मांड परिक्रमा कर रहा है, जो स्वयं विशाल ब्रह्मांड हैं, जो राख के श्रृंगार का अधिकारी है, जो प्रारंभ के बिना है, जो एक उपाय, जो सबसे बड़ी संलग्नक को हटा देता है, और जो सभी का भगवान है, मैं आपकी शरण में आता हूं।
भावार्थ श्लोक 4 : हे शिव, शंकर, शंभु, जो एक वात (बरगद) के पेड़ के नीचे रहते हैं, जिनके पास एक मनमोहक मुस्कान है, जो सबसे बड़े पापों का नाश करते हैं, जो सदैव देदीप्यमान रहते हैं, जो हिमालय के भगवान हैं, जो विभिन्न गण और असुरों के भगवान है, मैं आपकी शरण में आता हूं।
भावार्थ श्लोक 5 : हिमालय की बेटी के साथ अपने शरीर का आधा हिस्सा साझा करने वाले शिव, शंकर, शंभू, जो एक पर्वत (कैलाश) में स्थित है, जो हमेशा उदास लोगों के लिए एक सहारा है, जो अतिमानव है, जो पूजनीय है (या जो श्रद्धा के योग्य हैं) जो ब्रह्मा और अन्य सभी के प्रभु है, मैं आपकी शरण में आता हूं।
भावार्थ श्लोक 6 : हे शिव, शंकरा, शंभू, जो हाथों में एक कपाल और त्रिशूल धारण करते हैं, जो अपने शरणागत के लिए विनम्र हैं, जो वाहन के रूप में एक बैल का उपयोग करते है, जो सर्वोच्च हैं। विभिन्न देवी-देवता, और सभी के भगवान हैं, मैं ऐसे शिव की शरण में आता हूं।
भावार्थ श्लोक 7 : हे शिव, शंकर, शंभू, जिनके पास एक शीतलता प्रदान करने वाला चंद्रमा है, जो सभी गणों की खुशी का विषय है, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हमेशा शुद्ध हैं, जो कुबेर के मित्र हैं, जिनकी पत्नी अपर्णा अर्थात पार्वती है, जिनकी विशेषताएं शाश्वत हैं, और जो सभी के भगवान हैं, मैं आपकी शरण में आता हूं।
भावार्थ श्लोक 8 : शिव, शंकर, शंभू, जिन्हें दुख हर्ता के नाम से जाना जाता है, जिनके पास सांपों की एक माला है, जो श्मशान के चारों ओर घूमते हैं, जो ब्रह्मांड है, जो वेद का सारांश है, जो सदैव श्मशान में रहते हैं, जो मन में पैदा हुई इच्छाओं को जला रहे हैं, और जो सभी के भगवान है मैं उन महादेव की शरण में आता हूं।
भावार्थ श्लोक 9 : जो लोग हर सुबह त्रिशूल धारण किए शिव की भक्ति के साथ इस प्रार्थना का जप करते हैं, एक कर्तव्यपरायण पुत्र, धन, मित्र, जीवनसाथी और एक फलदायी जीवन पूरा करने के बाद मोक्ष को प्राप्त करते हैं। शिव शंभो गौरी शंकर आप सभी को उनके प्रेम का आशीर्वाद दें और उनकी देखरेख में आपकी रक्षा करें।
शिवाष्टकम् स्तोत्र केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि एक साधना है। यह भक्त को शिव से जोड़ता है, उसके अंदर स्थित शिवत्व को जाग्रत करता है। जो श्रद्धा और विश्वास से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र जीवन के हर क्षण में शिव की उपस्थिति का आभास कराता है। ॐ नमः शिवाय।
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”FAQs”
1: क्या शिवाष्टकम् स्तोत्र का पाठ कोई भी कर सकता है?
हां, शिवाष्टकम् स्तोत्र सार्वभौमिक है, इसे कोई भी श्रद्धापूर्वक कर सकता है।
2: क्या शिवाष्टकम् स्तोत्र का पाठ किसी विशेष दिन करना चाहिए?
सोमवार, प्रदोष, महाशिवरात्रि और सावन मास में शिवाष्टकम् स्तोत्र विशेष फलदायी होता है।
3: क्या शिवाष्टकम् का पाठ रात में किया जा सकता है?
हां, शिव एक रात्रिचर देव हैं, इसलिए शिवाष्टकम् स्तोत्र रात्रि पाठ भी मान्य है।
4: क्या शिवाष्टकम् स्तोत्र का जाप बिना गुरु के किया जा सकता है?
हां, यदि भक्ति सच्ची हो तो शिव स्वयं साधक के मार्गदर्शक बन जाते हैं।
5: क्या शिवाष्टकम् स्तोत्र से जीवन में चमत्कारी परिवर्तन आता है?
हां, शिवाष्टकम् स्तोत्र नियमित साधना से मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक परिवर्तन अनुभव किए जा सकते हैं।