आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ, सूर्यदेव की महिमा,स्तोत्र के फायदे, पाठ कैसे करें

आदित्य हृदय स्तोत्र: सूर्यदेव की महिमा

हमारे पूर्वजों ने सदैव आध्यात्मिकता को महत्वपूर्ण माना है। हिंदू धर्म में, स्तोत्रों का बहुत बड़ा महत्व है, जिनमें से एक है “आदित्य हृदय स्तोत्र”। यह स्तोत्र आदित्य देवता, अर्थात् सूर्यदेव की महिमा को समर्पित है।

स्तोत्र का परिचय :  “आदित्य हृदय स्तोत्र” को महर्षि अगस्त्य ने भगवान राम को सिखाया था। यह स्तोत्र रामायण के वनवास के समय की कथा है।

स्तोत्र की विशेषताएँ :  यह स्तोत्र मुख्यतः आदित्य देवता की प्रशंसा में है। इसमें आदित्य देवता की शक्ति और महिमा का वर्णन किया गया है।

स्तोत्र के फायदे : “आदित्य हृदय स्तोत्र” का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है। यह स्तोत्र रोग निवारण और समृद्धि के लिए भी प्रभावशाली है।

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कैसे करें

स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति का अनुभव होता है। सच्चे मन से और ध्यान से पाठ करने से इसके फायदे अधिक होते हैं।

आदित्य हृदय स्तोत्र के रहस्य :  “आदित्य हृदय स्तोत्र” के पाठ से व्यक्ति को आदित्य देवता की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र ध्यान और समर्पण की भावना को उत्पन्न करता है।

आध्यात्मिक साधना में  आदित्य हृदय स्तोत्र का उपयोग : स्तोत्र का पाठ करने से आध्यात्मिक साधना में व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्राप्त होता है। ध्यान और मंत्रजाप के साथ स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति का अन्तरंग अद्यात्मिक विकास होता है।

स्तोत्र के मार्गदर्शन में अर्जुन :  महाभारत में आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से अर्जुन ने अपनी शक्ति और साहस बढ़ाया था। यह स्तोत्र उनके आत्मविश्वास को मजबूत किया था।

स्तोत्र के महत्व का सारांश :  “आदित्य हृदय स्तोत्र” का पाठ करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक समृद्धि और शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

स्तोत्र का नियमित पाठ करने के लाभ :  स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को आनंद की अनुभूति होती है और उसकी आध्यात्मिक सफलता में मदद मिलती है। आध्यात्मिक साधना में “आदित्य हृदय स्तोत्र” का महत्वपूर्ण स्थान है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति मिलती है। इसे नियमित रूप से पाठ करने से आत्मा का संयम और आनंद मिलता है।

आदित्यहृदय स्तोत्र

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥

सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥

आदित्य हृदय स्तोत्र” का महत्व और लाभों का विस्तार स्पष्ट होता है। यह स्तोत्र आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शक्ति का स्रोत है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को आनंद और शांति की प्राप्ति होती है। हमारे पूर्वजों ने सदैव आध्यात्मिकता को महत्वपूर्ण माना है। हिंदू धर्म में, स्तोत्रों का बहुत बड़ा महत्व है, जिनमें से एक है “आदित्य हृदय स्तोत्र”। यह स्तोत्र आदित्य देवता, अर्थात् सूर्यदेव की महिमा को समर्पित है।

FAQs”

Q.1: "आदित्य हृदय स्तोत्र" क्या है?

Ans. "आदित्य हृदय स्तोत्र" एक हिंदू स्तोत्र है जो आदित्य देवता की महिमा को समर्पित है।

Q.2: आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किसने किया था?

Ans. महर्षि अगस्त्य ने भगवान राम को "आदित्य हृदय स्तोत्र" का पाठ सिखाया था।

Q.3:आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने के क्या फायदे हैं?

Ans. स्तोत्र का पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति, और शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

Q.4: क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से रोग निवारण हो सकता है?

Ans, हां, इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से रोग निवारण में मदद मिल सकती है।

Q.5: किस पुराण में "आदित्य हृदय स्तोत्र" का वर्णन है?

Ans. "आदित्य हृदय स्तोत्र" का वर्णन महाभारत में है। यह महाभारत के वीर योद्धा अर्जुन के द्वारा पाठ किया गया था।

 

अपराजिता स्तोत्र – दैवीय शक्ति का अनावरण और अपराजिता स्तोत्र – माँ दुर्गा की दिव्य शक्ति और वीरता का अनावरण

अपराजिता स्तोत्र: मानव जीवन का आध्यात्मिक आधार

अपराजिता स्तोत्र हिन्दू धर्म के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों में से एक है। यह स्तोत्र माँ दुर्गा को समर्पित है और उनके शक्ति और साहस की महिमा को गाता है। अपराजिता स्तोत्र के पाठ से भक्त अपने जीवन में साहस, उत्साह, और सफलता की ओर बढ़ते हैं।

अपराजिता स्तोत्र का महत्व

अपराजिता स्तोत्र का महत्व अत्यंत उच्च है। इसके पाठ से भक्त माँ दुर्गा की कृपा को प्राप्त करते हैं और उनके आशीर्वाद से अजेय बनते हैं। यह स्तोत्र विभिन्न कठिनाइयों और संघर्षों के समाधान में मदद करता है।

अपराजिता स्तोत्र के लाभ

  • भक्त इस स्तोत्र के पाठ से मानसिक शांति और साहस प्राप्त करते हैं।
  • यह स्तोत्र भक्तों को नकारात्मकता से मुक्ति दिलाता है और प्राणीकी रक्षा करता है।

अपराजिता स्तोत्र का पाठ

अपराजिता स्तोत्र को सबसे अच्छे तरीके से पढ़ने के लिए अध्यात्मिक नियमों का पालन करें। प्रातः और सायंकाल इसे नियमित रूप से पढ़ें और एक पवित्र स्थान पर बैठकर इसे जपें।

अपराजिता स्तोत्र के मंत्र

“नमो नमस्ते तु माँ अपराजिते, नमो नमस्ते च नमो नमः।”

अपराजिता स्तोत्र के प्रयोग

अपराजिता स्तोत्र के पाठ के बाद, भक्त को अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए माँ दुर्गा की आराधना करनी चाहिए।

अपराजिता स्तोत्र के महत्वपूर्ण बातें

  • अपराजिता स्तोत्र के पाठ से अपने जीवन को संतुलित और सफल बनाने की क्षमता मिलती है।
  • इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्त का मन शुद्ध होता है और वह नेगेटिविटी से मुक्त होता है।

अपराजिता स्तोत्र के चमत्कार

अपराजिता स्तोत्र के चमत्कारी प्रभाव अनगिनत हैं। लाखों भक्तों ने इस स्तोत्र के पाठ से जीवन में सफलता प्राप्त की है।

अपराजिता स्तोत्र

।।अथ श्री अपराजिता स्तोत्र।।

ॐ नमोऽपराजितायै ।।

ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः ।गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि ।श्री लक्ष्मीनृसिंहो देवता ।ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् ।हुं शक्तिः ।सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः ।।

विनियोग

ॐ नमोऽपराजितायै । ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः ।गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि । लक्ष्मीनृसिंहो देवता । ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् । हुं शक्तिः । सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः ।

ध्यान:

ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् ।।शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ।।१।।

शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम् ।।

बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ।।२।।

नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ।।३।।

मार्ककण्डेय उवाच :शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् ।।

असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ।।४।।

ॐ नमो नारायणाय,नमो भगवते वासुदेवाय,नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षायणे,क्षीरोदार्णवशायिने,शेषभोगपर्य्यङ्काय,गरुडवाहनाय,अमोघायअजायअजितायपीतवाससे ।। ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म, वाराह नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम ।वरद, वरद, वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तुते, स्वाहा ।। ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत -पिशाच-कूष्माण्ड-सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान् उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांश्चान्या हन हन पच पच मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय विद्रावय चूर्णय चूर्णय शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरुकुरु स्वाहा ।।

ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषीकेश, केशव,सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर, सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन,सर्वयन्त्रप्रभञ्जन, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर, सर्वबन्धविमोक्षण, सर्वाहितप्रमर्दन, सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोऽस्तुते स्वाहा ।।विष्णोरियमनुप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा ।।सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी ।।५।।

सर्वैंश्च पठितां सिद्धैर्विष्णोः परमवल्लभा ।।

नानया सदृशं किङ्चिद्दुष्टानां नाशनं परम् ।।६।।

विद्या रहस्या कथिता वैष्णव्येषापराजिता ।।

पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्सत्त्वगुणाश्रया ।।७।।

ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।।

प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ।।८।।

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ह्यभयामपराजिताम् ।।

या शक्तिर्मामकी वत्स रजोगुणमयी मता ।।९।।

सर्वसत्त्वमयी साक्षात्सर्वमन्त्रमयी च या ।।या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ।।सर्वकामदुधा वत्स शृणुष्वैतां ब्रवीमि ते ।।१०।।

य इमामपराजितां परमवैष्णवीमप्रतिहतां पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्यां जपति पठति शृणोति स्मरति धारयति कीर्तयति वा न तस्याग्निवायुवज्रोपलाशनिवर्षभयं, न समुद्रभयं, न ग्रहभयं, न चौरभयं, न शत्रुभयं, न शापभयं वा भवेत् ।

।क्वचिद्रात्र्यन्धकारस्त्रीराजकुलविद्वेषि-विषगरगरदवशीकरण-विद्वेष्णोच्चाटनवधबन्धनभयं वा न भवेत्।।एतैर्मन्त्रैरुदाहृतैः सिद्धैः संसिद्धपूजितैः ।।।। ॐ नमोऽस्तुते ।।

अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे, अपराजिते, पठति, सिद्धे जयति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, एकोनाशीतितमे, एकाकिनि, निश्चेतसि, सुद्रुमे, सुगन्धे, एकान्नशे, उमे ध्रुवे, अरुन्धति, गायत्रि, सावित्रि, जातवेदसि, मानस्तोके, सरस्वति, धरणि, धारणि, सौदामनि, अदिति, दिति, विनते, गौरि, गान्धारि, मातङ्गी कृष्णे, यशोदे, सत्यवादिनि, ब्रह्मवादिनि, कालि, कपालिनि, करालनेत्रे, भद्रे, निद्रे, सत्योपयाचनकरि, स्थलगतं जलगतं अन्तरिक्षगतं वा मां रक्ष सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा ।।यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि ।।म्रियते बालको यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत् ।।११।।

धारयेद्या इमां विद्यामेतैर्दोषैर्न लिप्यते ।।

गर्भिणी जीववत्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशयः ।।१२।।

भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां लिखित्वा गन्धचन्दनैः ।।

एतैर्दोषैर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत् ।।१३।।

रणे राजकुले द्यूते नित्यं तस्य जयो भवेत् ।।

शस्त्रं वारयते ह्योषा समरे काण्डदारुणे ।।१४।।

गुल्मशूलाक्षिरोगाणां क्षिप्रं नाश्यति च व्यथाम् ।।शिरोरोगज्वराणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम् ।।१५।।

इत्येषा कथिता विध्या अभयाख्याऽपराजिता ।।

एतस्याः स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते ।।१६।।

नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः ।।

न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः ।।१७।।

यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः ।।

अग्नेर्भयं न वाताच्व न स्मुद्रान्न वै विषात् ।।१८।।

कार्मणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च ।।

उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा ।।१९।।

न किञ्चित्प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया ।।

पठेद् वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा ।।२०।।

हृदि वा द्वारदेशे वा वर्तते ह्यभयः पुमान् ।।

हृदये विन्यसेदेतां ध्यायेद्देवीं चतुर्भुजाम् ।।२१।।

रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसमप्रभाम् ।।पाशाङ्कुशाभयवरैरलङ्कृतसुविग्रहाम् ।।२२।।

साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं मन्त्रवर्णामृतान्यपि ।।

नातः परतरं किञ्चिद्वशीकरणमनुत्तमम् ।।२३।।

रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा ।

प्रातः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणैरपि ।।

तदिदं वाचनीयं स्यात्तत्प्रीत्या प्रीयते तु माम् ।।२४।।

ॐ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि विद्यामपि महाबलाम् ।।

सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीम् ।।२५।।

दारिद्र्यदुःखशमनीं दौर्भाग्यव्याधिनाशिनीम् ।।

भूतप्रेतपिशाचानां यक्षगन्धर्वरक्षसाम् ।।२६।।

डाकिनी शाकिनी-स्कन्द-कूष्माण्डानां च नाशिनीम् ।।

महारौद्रिं महाशक्तिं सद्यः प्रत्ययकारिणीम् ।।२७।।

गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः ।।

तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः शृणु ।।२८।।

एकान्हिकं द्व्यन्हिकं च चातुर्थिकार्द्धमासिकम् ।।

द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्मासिकम् ।।२९।।

पाञ्चमासिकं षाङ्मासिकं वातिक पैत्तिकज्वरम् ।।

श्लैष्पिकं सात्रिपातिकं तथैव सततज्वरम् ।।३०।।

मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरम् ।द्व्यहिन्कं त्र्यह्निकं चैव ज्वरमेकाह्निकं तथा ।।क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणादपराजिता ।।३१।।

ॐ हॄं हन हन, कालि शर शर, गौरि धम्, धम्, विद्ये आले ताले माले गन्धे बन्धे पच पच विद्ये नाशय नाशय पापं हर हर संहारय वा दुःखस्वप्नविनाशिनि कमलस्तिथते विनायकमातः रजनि सन्ध्ये, दुन्दुभिनादे, मानसवेगे, शङ्खिनि, चाक्रिणि गदिनि वज्रिणि शूलिनि अपमृत्युविनाशिनि विश्वेश्वरि द्रविडि द्राविडि द्रविणि द्राविणि केशवदयिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनि दुर्म्मददमनि ।।शबरि किराति मातङ्गि ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।।ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान् सर्वान् दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणि वैष्णवि माहेश्वरि कौमारि वाराहि नारसिंहि ऐन्द्रि चामुन्डे महालक्ष्मि वैनायिकि औपेन्द्रि आग्नेयि चण्डि नैरृति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊर्ध्वमधोरक्ष प्रचण्डविद्ये इन्द्रोपेन्द्रभगिनि ।।ॐ नमो देवि जये विजये शान्ति स्वस्ति-तुष्टि पुष्टि-विवर्द्धिनि ।

कामाङ्कुशे कामदुधे सर्वकामवरप्रदे ।।सर्वभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा ।आकर्षणि आवेशनि-, ज्वालामालिनि-, रमणि रामणि, धरणि धारिणि,तपनि तापिनि, मदनि मादिनि, शोषणि सम्मोहिनि ।।नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये ।।महाचान्द्रि महासौरि महामायूरि आदित्यरश्मि जाह्नवि ।।यमघण्टे किणि किणि चिन्तामणि ।।सुगन्धे सुरभे सुरासुरोत्पन्ने सर्वकामदुघे ।।यद्यथा मनीषितं कार्यं तन्मम सिद्ध्यतु स्वाहा ।।ॐ स्वाहा ।।ॐ भूः स्वाहा ।।ॐ भुवः स्वाहा ।।ॐ स्वः स्वहा ।।ॐ महः स्वहा ।।ॐ जनः स्वहा ।।ॐ तपः स्वाहा ।।ॐ सत्यं स्वाहा ।।ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा ।।यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छतु स्वाहेत्योम् ।।अमोघैषा महाविद्या वैष्णवी चापराजिता ।।३२।।

स्वयं विष्णुप्रणीता च सिद्धेयं पाठतः सदा ।।

एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजिता ।।३३।।

नानया सद्रशी रक्षा. त्रिषु लोकेषु विद्यते ।।

तमोगुणमयी साक्षद्रौद्री शक्तिरियं मता ।।३४।।

कृतान्तोऽपि यतो भीतः पादमूले व्यवस्थितः ।।

मूलधारे न्यसेदेतां रात्रावेनं च संस्मरेत् ।।३५।।

नीलजीमूतसङ्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् ।।उद्यदादित्यसङ्काशां नेत्रत्रयविराजिताम् ।।३६।।

शक्तिं त्रिशूलं शङ्खं च पानपात्रं च विभ्रतीम् ।।व्याघ्रचर्मपरीधानां किङ्किणीजालमण्डिताम् ।।३७।।

धावन्तीं गगनस्यान्तः तादुकाहितपादकाम् ।।

दंष्ट्राकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषिताम् ।।३८।।

व्यात्तवक्त्रां ललज्जिह्वां भृकुटीकुटिलालकाम् ।।

स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पानपात्रतः ।।३९।।

सप्तधातून् शोषयन्तीं क्रुरदृष्टया विलोकनात् ।।

त्रिशूलेन च तज्जिह्वां कीलयनतीं मुहुर्मुहः ।।४०।।

पाशेन बद्ध्वा तं साधमानवन्तीं तदन्तिके ।।अर्द्धरात्रस्य समये देवीं धायेन्महाबलाम् ।।४१।।

यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मन्त्रं निशान्तके ।।

तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापि योगिनी ।।४२।।

ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति ।।अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्ण्वीम् ।।४३।।

श्रीमदपराजिताविद्यां ध्यायेत् ।।

दुःस्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमित्ते तथैव च ।।

व्यवहारे भेवेत्सिद्धिः पठेद्विघ्नोपशान्तये ।।४४।।

यदत्र पाठे जगदम्बिके मया, विसर्गबिन्द्वऽक्षरहीनमीडितम् ।।तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे, सङ्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायताम् ।।४५।।

तव तत्त्वं न जानामि कीदृशासि महेश्वरि ।।

यादृशासि महादेवी तादृशायै नमो नमः ।।४६।।

FAQs”

Q: क्या अपराजिता स्तोत्र को किसी भी धार्मिक आधार पर  किया जा सकता है?

A: हां, अपराजिता स्तोत्र  धार्मिक आधार पर सीमित नहीं है और सभी को शक्ति, साहस, और सफलता की कामना करने का माध्यम है।

Q: क्या अपराजिता स्तोत्र के पाठ से कोई अलौकिक अनुभव होता है?

A: जी हां, कई भक्तों ने अपराजिता स्तोत्र के पाठ के बाद अलौकिक अनुभवों का वर्णन किया है। यह उन्हें माँ दुर्गा के प्रत्यक्ष संवाद का अनुभव कराता है।

Q: क्या अपराजिता स्तोत्र के पाठ से किसी को नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है?

A: हां, अपराजिता स्तोत्र के पाठ से भक्त नकारात्मकता और असुविधाओं से मुक्ति प्राप्त करते हैं। इससे उनका मन शुद्ध होता है और वह सकारात्मक सोचते हैं।

Q: क्या अपराजिता स्तोत्र का पाठ दिनचर्या में शामिल किया जा सकता है?

A: हां, अपराजिता स्तोत्र का पाठ दिनचर्या में शामिल किया जा सकता है। विशेष रूप से नवरात्रि जैसे धार्मिक अवसरों पर इसे  शुभ माना जाता है।

Q: क्या अपराजिता स्तोत्र को सुनने के लिए किसी विशेष आवश्यकता है?

A: नहीं, अपराजिता स्तोत्र को सुनने के लिए किसी विशेष आवश्यकता नहीं है। कोई भी व्यक्ति इसे अपनी आसानी से सुन सकता है और इसके चमत्कारी प्रभावों का आनंद उठा सकता है।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् पाठ के फायदे

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् पाठ के फायदे

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करने से हम अपने आत्मिक विकास के मार्ग पर अग्रसर होते हैं और अपने जीवन को धर्म, नैतिकता, और उच्चतम मूल्यों के साथ जीने के लिए प्रेरित होते हैं। सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करने से हमें माँ दुर्गा के प्रति आदर और विश्वास की भावना मिलती है, जो हमें जीवन में सफलता की ओर ले जाती है।

इस प्रकार, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् हमें आत्मिक उन्नति का मार्ग दिखाता है और हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है। यह हमें अपने जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करता है। सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करके हम अपनी भगवान् के प्रति श्रद्धा को मजबूत करते हैं और अपने जीवन में धर्म, साहस, और सच्चाई का पालन करते हैं।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र से आता है सकारात्मक परिवर्तन

जब हम सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करते हैं, तो हमें आत्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है और हमारा मन शांत, संतुलित और प्रसन्न रहता है। माँ दुर्गा के पाठ को नियमित रूप से करने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है और हम स्वयं को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित होते हैं। सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करने से हमें ध्यान, शांति, और आत्म-संयम मिलता है। यह हमें अपने आत्मा के साथ जुड़ने और माँ दुर्गा की कृपा को प्राप्त करने में सहायक होता है।

माँ दुर्गा के प्रति विश्वास और आदर्श से सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का नियमित जप करने से मानव जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है। यह पाठ अद्भुत आत्मिक शक्ति को जागृत करता है और साधक को माँ दुर्गा के आशीर्वाद से प्रेरित करता है। इस प्रकार, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रयास है जो जीवन को धार्मिकता, शांति, और समृद्धि की ओर प्रेरित करता है। यह पाठ न केवल आत्मिक उन्नति को प्राप्त करने में मदद करता है, बल्कि व्यक्ति को भगवान् के प्रति श्रद्धा और भक्ति में भी मदद करता है।

धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन और सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् के पाठ

धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन और सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् के पाठ के माध्यम से हम अपनी आत्मा को प्रकाशित कर सकते हैं और अपने जीवन को धार्मिक दृष्टिकोण से समृद्ध कर सकते हैं। माँ दुर्गा की कृपा से हमें शक्ति, सहनशीलता, और समर्थता प्राप्त होती है, जो हमें जीवन की हर कठिनाई का सामना करने में मदद करती है।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का नियमित पाठ करके हम अपनी आध्यात्मिकता को समृद्ध कर सकते हैं और माँ दुर्गा की कृपा को प्राप्त कर सकते हैं। इस पाठ को नियमित रूप से करने से हमें आत्मिक शांति, सुख, और सफलता मिलती है।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करने से  आता है ध्यान और समर्पण

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् का पाठ करने से हमें ध्यान और समर्पण की भावना मिलती है। यह हमें सच्ची धार्मिकता की ओर ले जाता है और हमें अपने जीवन को धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। माँ दुर्गा के इस पाठ के जाप से हम आत्मा के उत्कृष्टतम गुणों को जागृत करते हैं और अपने जीवन को समृद्ध, सांत्वना और सफलता के साथ भर देते हैं।  इस प्रकार, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् हमें आत्मा के साथ ही जीवन की सभी पहलुओं में सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा और शक्ति प्रदान करता है।

इस प्रकार, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् हमें माँ दुर्गा की शक्ति, सामर्थ्य, और कृपा के अनुभव का अवसर प्रदान करता है। इसे नियमित रूप से जप करने से हमें आत्मिक ऊर्जा मिलती है और हमारा मन शांत, स्थिर और संतुलित रहता है। इस पाठ को नियमित रूप से करने से हम अपने आत्मा को संबलित करते हैं और अपने जीवन को समृद्ध, सफल और खुशहाल बनाने में सहायक होते हैं। माँ दुर्गा का पाठ हमें ध्यान, आत्मविश्वास, और शांति की प्राप्ति के माध्यम से आत्मिक उत्थान करता है।

सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ

सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ निम्नलिखित है:

1. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ दुर्गा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

2. या देवी सर्वभू‍तेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

3. या देवी सर्वभू‍तेषु शांतिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

4. या देवी सर्वभू‍तेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

5. या देवी सर्वभू‍तेषु शांतिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

6. या देवी सर्वभू‍तेषु श्रुति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

7. या देवी सर्वभू‍तेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

 

जयंति मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

रूपं देवि जयंति मङ्गला दुर्गा क्रिया नमोऽस्तु ते॥

अन्य प्रार्थना और भक्ति के साथ, सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करने से माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम्

॥ अथ सप्तश्लोकी दुर्गा ॥
शिव उवाच:
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥

देव्युवाच:
शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ॥

विनियोग:
ॐ अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः ।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥2॥

सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥3॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ॥5॥

रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा
तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌ ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌ ॥7॥

॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌ ॥

FAQs”

क्या सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है?

हां, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है। यह अपने अध्ययन और ध्यान के लिए उपयुक्त है।

क्या सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र को संगीत के साथ पाठ किया जा सकता है?

हां, बहुत से लोग सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र को संगीत के साथ पाठ करते हैं। यह उन्हें आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्रदान करता है।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ किस भाषा में किया जाता है?

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ हिंदी भाषा में किया जाता है, लेकिन यह अन्य भाषाओं में भी उपलब्ध है।

क्या सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ करने से कोई विशेष लाभ होता है?

हां, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र का पाठ करने से आत्मिक उन्नति, मानसिक शांति, और जीवन में समृद्धि की प्राप्ति होती है।

श्री गणेश संकटनाशन स्तोत्र, गणपति बप्पा की कृपा का प्रतीक

श्री गणेश संकटनाशन स्तोत्र :

गणपति की उपासना

गणपति की उपासना  गणेश देव की उपासना के महत्व को विशेष रूप से बताता है। गणपति की उपासना के विभिन्न तरीके, मंत्र, और उपासना के फायदे का विस्तृत वर्णन किया गया है। गणपति की उपासना से आत्मशुद्धि, मानवता, और आनंद का स्रोत मिलता है। इस अध्याय में, हम गणपति की उपासना के माध्यम से आत्मिक विकास और उच्चतम ध्यान की प्राप्ति के बारे में जानेंगे। गणपति की उपासना से समस्याओं का समाधान, मन की शांति, और ध्यान की स्थिरता प्राप्त होती है।

में सकारात्मक परिवर्तन और उनकी आध्यात्मिक उन्नति होती है। इस अध्याय में, हम गणेश चालीसा के श्लोकों का विस्तारपूर्वक विवेचन करेंगे और उनका महत्व समझेंगे। गणेश चालीसा के पाठ से हमारे मन को शांति, संतुलन, और ध्यान की अवस्था मिलती है। इस अध्याय में, हम गणेश चालीसा के महत्व को समझने का प्रयास करेंगे और उसके प्रति भक्ति और श्रद्धा को बढ़ाने का मार्ग देखेंगे। गणेश चालीसा के पाठ करने से हमारे जीवन में आनंद, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। गणेश चालीसा के माध्यम से हम अपने मन को शुद्ध करते हैं और भगवान के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट करते हैं। इस अध्याय में हम गणेश चालीसा के महत्व को समझेंगे और उसके प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाने के लिए जानकारी प्राप्त करेंगे। गणेश चालीसा का पाठ करने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और आनंद की प्राप्ति होती है। इस अध्याय के माध्यम से हम गणेश चालीसा के महत्व को समझेंगे और उसके प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाने का मार्ग देखेंगे। गणेश चालीसा के पाठ करने से हमारे जीवन में आनंद, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। गणेश चालीसा के माध्यम से हम अपने मन को शुद्ध करते हैं और भगवान के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट करते हैं। इस अध्याय में हम गणेश चालीसा के महत्व को समझेंगे और उसके प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाने के लिए जानकारी प्राप्त करेंगे। गणेश चालीसा का पाठ करने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और आनंद की प्राप्ति होती है। इस अध्याय के माध्यम से हम गणेश चालीसा के महत्व को समझेंगे और उसके प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाने का मार्ग देखेंगे। गणेश चालीसा के पाठ करने से हमारे जीवन में आनंद, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। गणेश चालीसा के माध्यम से हम अपने मन को शुद्ध करते हैं और भगवान के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट करते हैं।

श्री वक्रतुण्ड महाकाय: गणेश का स्वरूप

हम गणेश देव के वक्रतुण्ड महाकाय रूप के महत्व को समझेंगे। वक्रतुण्ड महाकाय शब्द संस्कृत में ‘वक्र’ यानी ‘वक्राकृति’ और ‘तुण्ड’ यानी ‘महान’ का संयोजन है। यह शब्द गणेश देव के विशेष रूप को व्यक्त करता है जो कि उनकी अद्वितीयता को दर्शाता है। गणेश जी का वक्रतुण्ड महाकाय रूप उनकी अद्वितीय और अद्भुत स्वभाव को स्पष्ट करता है जो हमें दिखाता है कि वे हमेशा ही हमारे साथ हैं और हमारी समस्याओं का समाधान करने के लिए हमें सहायता कर रहे हैं। गणेश देव का यह रूप उनकी अत्यंत शक्तिशाली और विश्वव्यापी स्वरूप को दर्शाता है जो कि हमें दुःखों और संकटों से मुक्ति दिलाता है। इस अध्याय में, हम गणेश देव के वक्रतुण्ड महाकाय रूप के महत्व को समझेंगे और उनके इस अद्वितीय स्वरूप को गहराई से विश्लेषण करेंगे। गणेश देव के वक्रतुण्ड महाकाय रूप की उपासना करने से हम अपने जीवन में ध्यान, शांति, और समृद्धि का अनुभव करते हैं और वे हमेशा हमारे साथ हैं तथा हमें सभी परेशानियों से मुक्ति प्रदान करते हैं।

गणपति के ब्रह्मचरित्र: एक प्रेरणादायक कथा

 हम गणेश देव के ब्रह्मचारी स्वरूप की कथा को जानेंगे। गणपति जी का ब्रह्मचारी रूप उनकी अद्भुत और प्रेरणादायक विशेषता को दर्शाता है। उनका ब्रह्मचारी स्वरूप हमें संयम, उत्तम चरित्र, और ध्यान की महत्वपूर्णता को सिखाता है। गणेश देव के इस रूप में, हमें जीवन में संयम और समर्पण का मार्ग दिखाते हैं, जो हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करता है। गणपति जी की ब्रह्मचारीता की कथा हमें यह बताती है कि कैसे वे अपनी साधना और साध्य के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ अपने उद्देश्य को प्राप्त किया। इस अध्याय में, हम गणपति देव के ब्रह्मचारी स्वरूप की कथा के महत्व को समझेंगे और उनकी इस अद्भुत गुणों का समालोचनात्मक विश्लेषण करेंगे। गणपति जी की ब्रह्मचारी स्वरूप की कथा हमें उनके उदात्त आदर्शों को अनुसरण करने की प्रेरणा देती है और हमें अपने जीवन में समर्पण और संयम की अहमियत को समझाती है।

श्री गणेश के शक्तिपीठ: अनन्य भक्ति का प्रतीक

हम गणेश देव के शक्तिपीठ के महत्व को समझेंगे। गणपति जी के शक्तिपीठ उनकी अनन्य भक्ति और समर्पण का प्रतीक हैं। ये स्थान समाज में धार्मिकता और आध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण केंद्र होते हैं और लोगों को आत्मिक शक्ति और संबल प्रदान करते हैं। गणपति जी के शक्तिपीठ पर भक्तों का अत्यंत समर्थन और संबल होता है और वहां उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह अध्याय हमें गणेश देव के शक्तिपीठ के प्रति भक्ति और समर्पण की अहमियत को समझाता है। गणपति जी के शक्तिपीठ पर भक्ति करने से हमारा अंतरंग और बाह्य समृद्धि होता है, और हमें आत्मिक शक्ति और संबल मिलता है। इस अध्याय में, हम गणपति जी के शक्तिपीठ के महत्व को विस्तार से जानेंगे और उनके शक्तिपीठ पर भक्ति का मार्ग देखेंगे। गणेश देव के शक्तिपीठ पर भक्ति करने से हमें आध्यात्मिक उन्नति और संबल मिलता है और हम अपने जीवन में सफलता की ओर अग्रसर होते हैं।

विघ्नहर्ता की आराधना: संकट से मुक्ति की ओर

 हम गणेश देव की आराधना के महत्व को समझेंगे। गणपति जी की आराधना से हम संकटों और बाधाओं से मुक्ति प्राप्त करते हैं और उनकी कृपा से हमें सभी कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है। गणेश देव की आराधना के द्वारा हम अपने जीवन में समृद्धि, शांति, और सुख की प्राप्ति के लिए आत्मा को प्रेरित करते हैं। गणपति जी की आराधना से हम अपनी भगवानी शक्तियों को जागृत करते हैं और अपने जीवन को एक नई दिशा में ले जाते हैं। इस अध्याय में, हम गणेश देव की आराधना के महत्व को समझेंगे और उनकी आराधना करने के लाभों का विवेचन करेंगे। गणेश देव की आराधना से हमें धैर्य, संयम, और समर्पण की भावना मिलती है और हम अपने जीवन को सफलता की ओर अग्रसर करते हैं।

गणेश के आराध्य कार्य: धर्म और सेवा का मार्ग

हम गणेश देव के आराध्य कार्य के महत्व को समझेंगे। गणपति जी के आराध्य कार्य धर्म और सेवा का मार्ग होते हैं, जो हमें समाज में नेतृत्व, उत्कृष्टता, और निष्काम कार्य की शिक्षा देते हैं। गणेश देव के आराध्य कार्यों के माध्यम से हम समाज के उत्थान और कल्याण के लिए योगदान करते हैं और उनकी कृपा से हमें सभी कार्यों में सफलता मिलती है। गणपति जी के आराध्य कार्य हमें धर्म, सेवा, और उत्कृष्टता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं और हमें समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझाते हैं। इस अध्याय में, हम गणेश देव के आराध्य कार्यों के महत्व को समझेंगे और उनके माध्यम से समाज में नेतृत्व और सेवा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होंगे। गणेश देव के आराध्य कार्य करके हम समाज में प्रकार्य उत्थान और सभी के लिए समृद्धि की प्राप्ति के लिए योगदान करते हैं।

गणेश देव की कृपा: भक्तों पर अनुग्रह

हम गणेश देव की कृपा के महत्व को समझेंगे। गणपति जी की कृपा उनके भक्तों पर अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जो हमें सभी कठिनाइयों और संकटों से पार पाने में सहायक होती है। गणेश देव की कृपा के बिना हम किसी भी कार्य में सफल नहीं हो सकते हैं, और उनके आशीर्वाद से हमें सभी संघर्षों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। गणेश देव की कृपा के बिना हमारा जीवन अधूरा होता है, और उनके आशीर्वाद से हमें सफलता की ओर आगे बढ़ने में सहायता मिलती है। इस अध्याय में, हम गणेश देव की कृपा के महत्व को विस्तार से जानेंगे और उनकी कृपा के आशीर्वाद से जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए उन्हें प्रार्थना करेंगे। गणेश देव की कृपा हमारे जीवन में समृद्धि और सफलता की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

गणेश पूजा का महत्व: विश्वव्यापी उत्तमता का स्रोत

हम गणेश पूजा के महत्व को समझेंगे। गणेश पूजा व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, शांति, और समृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण और आवश्यक धार्मिक क्रिया है। गणेश पूजा करने से हमारी आत्मा में शुद्धता और शक्ति का अनुभव होता है, और हमें भगवान गणेश के आशीर्वाद से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। गणेश पूजा के द्वारा हम अपने जीवन को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से संशोधित करते हैं, और हमें समस्त दुःखों और संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस अध्याय में, हम गणेश पूजा के महत्व को विस्तार से जानेंगे और उसके माध्यम से हमारे जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का आवाहन करेंगे। गणेश पूजा हमें धार्मिक और आध्यात्मिक उत्तमता की ओर ले जाती है और हमारे जीवन को एक उच्च स्तर पर संशोधित करती है।

गणेश जी के उपासना का तात्पर्य: आत्मज्ञान और स्वयं की पहचान

हम गणेश जी के उपासना के तात्पर्य को समझेंगे। गणेश जी की उपासना का मुख्य उद्देश्य हमें आत्मज्ञान और स्वयं की पहचान कराना है। गणेश जी की उपासना के द्वारा हम अपने आत्मा को पहचानते हैं और अपने असली स्वरूप को समझते हैं, जो कि हमारे सभी कार्यों में सफलता का गुप्त मूल है। गणेश जी की उपासना करने से हम अपने अंतरात्मा को प्रकट करते हैं और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। इस अध्याय में, हम गणेश जी के उपासना के महत्व को समझेंगे और उसके माध्यम से हमारे जीवन में स्वयं की पहचान और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए आत्मसाक्षात्कार का मार्ग देखेंगे। गणेश जी की उपासना हमें आत्मा की अद्वितीयता को समझाती है और हमें स्वयं की पहचान में मदद करती है।

 

गणेश देव की कृपा: भक्तों पर विशेष प्रभाव

इस अध्याय में, हम गणेश देव की कृपा के विशेष प्रभाव को समझेंगे। गणपति जी की कृपा हमारे जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जो हमें समस्त कठिनाइयों और संघर्षों से पार पाने में सहायक होती है। उनकी कृपा से हमें आत्मविश्वास मिलता है और हम सभी कार्यों में सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। गणेश देव की कृपा के बिना हमारा जीवन अधूरा होता है, और उनके आशीर्वाद से हमें सभी संघर्षों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। गणपति जी की कृपा हमें अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करती है और हमें अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रेरणा प्रदान करती है। इस अध्याय में, हम गणेश देव की कृपा के महत्व को समझेंगे और उनकी कृपा से हमारे जीवन में आने वाले परिणामों का विचार करेंगे। गणेश देव की कृपा हमें अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करती है और हमें सफलता की ओर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।

गणेश जी के भक्तों की सेवा: समाज में योगदान

इस अध्याय में, हम गणेश जी के भक्तों की सेवा के महत्व को समझेंगे। गणेश जी के भक्तों की सेवा भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो समाज के उत्थान और कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान करती है। गणेश जी के भक्तों की सेवा से हम समाज में नेतृत्व, उत्कृष्टता, और सेवाभाव को बढ़ावा देते हैं और समाज के हर वर्ग को समान रूप से सम्मानित करते हैं। गणेश जी के भक्तों की सेवा से हम अपने जीवन में सामाजिक समृद्धि और समृद्धि की ओर अग्रसर होते हैं और उनकी कृपा से हमें सभी कार्यों में सफलता मिलती है। इस अध्याय में, हम गणेश जी के भक्तों की सेवा के महत्व को विस्तार से जानेंगे और उसके माध्यम से समाज में उत्थान और कल्याण के लिए कैसे योगदान किया जा सकता है। गणेश जी के भक्तों की सेवा से हम समाज को समृद्धि और सफलता की दिशा में ले जाते हैं और समाज के हर व्यक्ति को उसकी स्थिति के अनुसार सम्मान दिलाते हैं।

गणेश जी के आशीर्वाद: जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति

इस अध्याय में, हम गणेश जी के आशीर्वाद के महत्व को समझेंगे। गणेश जी के आशीर्वाद से हमें जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से हम अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करते हैं और उनके आशीर्वाद से हमें सभी कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। गणेश जी के आशीर्वाद से हमें आत्मविश्वास मिलता है और हम अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं। इस अध्याय में, हम गणेश जी के आशीर्वाद के महत्व को विस्तार से समझेंगे और उनके आशीर्वाद से हमें जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रेरित करेंगे। गणेश जी के आशीर्वाद से हमें जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है और हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं।

 श्री गणेश संकटनाशन स्तोत्र :

गणपती स्तोत्र ( संकटनाशन स्तोत्र )

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्
भक्तावासं स्मरेन्नित्यम् आयुष्कामार्थसिद्धये ॥१॥

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्
तृतीयं कृष्णपिङगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥२॥

लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धुम्रवर्णं तथाष्टकम् ॥३॥

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥४॥

द्वादशेतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नर:
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धीकरः प्रभो ॥५॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥६॥

जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्
संवत्सरेण सिद्धीं च लभते नात्र संशयः ॥७॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ॥८॥

इति श्रीनारदपुराणे सङ्कटनाशनं नाम श्रीगणपतिस्तोत्रं संपूर्णम्||

FAQs”

Q.1: क्या गणेश संकटनाशन स्तोत्र का जाप करने से लाभ होता है?

Ans. हां, गणेश संकटनाशन स्तोत्र का नियमित जाप करने से हमें बड़े संकटों से छुटकारा मिलता है।

Q.2: क्या इस स्तोत्र का उच्चारण रोगों से छुटकारा दिलाता है?

Ans. हां, गणेश संकटनाशन स्तोत्र का उच्चारण करने से रोगों का नाश होता है और हमें स्वस्थ और सकारात्मक बनाता है।

रामरक्षा स्तोत्र का संपूर्ण पाठ, पाठ करने की विधि, फ़ायदे

आवाहन की शक्ति

ऋषियों द्वारा लिखित रामरक्षा स्तोत्र के प्रारंभिक छंदों के साथ प्रार्थना की शुरुआत करें। इन छंदों में, भगवान राम की आराधना की जाती है और उनकी शक्तियों और सौंदर्य का वर्णन किया जाता है। यह प्रार्थना हमें भगवान के आदर्शों के प्रति आदर्शवादी और समर्पित बनाती है।

​आह्वान  :  प्रार्थना का आरंभ करते हैं संतों द्वारा लिखित रामरक्षा स्तोत्र के प्रारंभिक श्लोकों के साथ। इन श्लोकों में, भगवान राम की आराधना की जाती है और उनके शक्ति और सौंदर्य का वर्णन किया जाता है। यह प्रार्थना हमें भगवान के आदर्शों के प्रति आदर्शवादी और समर्पित बनाती है।

रामरक्षा स्तोत्र के श्लोकों की गहराई

रामरक्षा स्तोत्र के विभिन्न श्लोकों की गहराई में समझने के लिए, हमें उनके अर्थ और भाव को समझने की आवश्यकता होती है। इन श्लोकों में, भगवान राम की गुणों, लीलाओं और धर्म के महत्व का मंत्रण किया गया है। हमें उनकी अद्भुतता और महिमा का आनंद लेने के लिए उनके गहरे अर्थों को विश्लेषण करना चाहिए।

छंदों के अर्थ को समझना

रामरक्षा स्तोत्र के विभिन्न छंदों की गहराई में समझने के लिए, हमें उनके अर्थ और भाव को समझने की आवश्यकता होती है। इन छंदों में, भगवान राम की गुणों, लीलाओं और धर्म के महत्व का मंत्रण किया गया है। हमें उनकी अद्भुतता और महिमा का आनंद लेने के लिए उनके गहरे अर्थों को विश्लेषण करना चाहिए।

रामरक्षा स्तोत्र सुरक्षा कवच

रामरक्षा स्तोत्र के पाठ से हम अपने आप को भगवान राम के शक्तिशाली आवरण में सुरक्षित महसूस करते हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से हमारे जीवन को धार्मिक, मानवीय, और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उन्नति मिलती है। यह हमें संकटों से बचाने की शक्ति प्रदान करता है और हमें भगवान के निकटता में ले जाता है। रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से हम दिव्य कृपा का आनंद अनुभव करते हैं। इस स्तोत्र में उपस्थित शक्तिशाली मन्त्र हमें आत्मिक शांति, सुरक्षा, और स्थिरता का अनुभव कराते हैं। यह हमें आत्म-विकास और आध्यात्मिक उत्थान की ओर प्रेरित करता है।  रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से हमारा मन शांति, समृद्धि, और आनंद की ओर प्रवृत्त होता है। यह हमें अपने आप को भगवान के प्रति समर्पित करने का मार्ग दिखाता है और हमें आध्यात्मिक उत्थान की दिशा में अग्रसर करता है।

रामरक्षा स्तोत्र पाठ करने की विधि

रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने की विधि सरल और साधारण है, और इसे अनुयायियों द्वारा आसानी से सीखा और अपनाया जा सकता है। निम्नलिखित धार्मिक अनुष्ठान का पालन करके रामरक्षा स्तोत्र का पाठ किया जा सकता है:

  1. शुद्धता और ध्यान: पहले, शुद्ध और निर्मल मन के साथ ध्यान केंद्रित करें। ध्यान और शांति की अवस्था में, रामरक्षा स्तोत्र के पाठ का आयोजन करें।
  2. समर्पण: रामरक्षा स्तोत्र के पाठ से पहले, भगवान राम के प्रति अपना समर्पण और श्रद्धा प्रकट करें।
  3. विधि: स्तोत्र का पाठ करते समय, स्पष्ट उच्चारण और सही ताल का पालन करें। शब्दों को समझ कर और भावना के साथ पढ़ें।
  4. नियमितता: रामरक्षा स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करना महत्वपूर्ण है। इसे प्रतिदिन एक निश्चित समय पर पाठ करने का प्रयास करें।
  5. ध्यान: पाठ के दौरान, मन को एकाग्र करें और भगवान राम के चित्त में स्थिति को विचार करें।
  6. आवाज़: स्तोत्र का पाठ करते समय, आवाज़ को स्पष्ट और मधुर रखें। सही ध्वनि और ध्यान द्वारा, स्तोत्र की शक्ति को अधिकतम करें।

रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से पूर्व, ध्यान और शांति में अपने आप को विमुक्त करें, और भगवान राम के आशीर्वाद को प्राप्त करें।

रामरक्षा स्तोत्र संपूर्ण :

                                          श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
                                           श्रीगणेशायनम: 
                                             विनियोग 
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य। बुधकौशिक ऋषि:।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता। अनुष्टुप् छन्द:। सीता शक्ति:।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम्।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
                                     अथ ध्यानम्  
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामांकारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचंद्रम् ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥2॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥3॥
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥4॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥5॥
जिह्वां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥6॥
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥7॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥8॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तक:।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोऽखिलं वपु: ॥9॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत्।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण:।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥11॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥13॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥15॥
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥16॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षयाशुगनिषंग सङ्गिनौ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥20॥
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।
गच्छन्मनोरथोऽस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥21॥
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघूत्तम: ॥22॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥23॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥24॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥25॥
रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्।
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥26॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥27॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥30॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥31॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥34॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥37॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥

FAQs”

Q.1 : क्या रामरक्षा स्तोत्र का पाठ किसी भी समय में किया जा सकता है?

Ans. : हाँ, रामरक्षा स्तोत्र का पाठ किसी भी समय में किया जा सकता है, लेकिन सबसे अधिक लाभ के लिए सुबह के समय या सन्ध्या के समय इसे पाठ करना उपयुक्त होता है।

Q.2 : क्या रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से केवल भगवान की सुरक्षा मिलती है?

Ans. रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से हमें न केवल भगवान की सुरक्षा मिलती है, बल्कि हमारे मानसिक और आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होता है।

Q.3: क्या रामरक्षा स्तोत्र के पाठ का विधि अनिवार्य है?

Ans. हाँ, रामरक्षा स्तोत्र के पाठ की विधि का पालन करना उत्तम है ताकि हम इसे सही ढंग से पाठ करें और उसके प्रभाव को महसूस कर सकें।

पंचमुखी हनुमत कवच की शक्ति का अनावरण: सुरक्षा का एक दिव्य कवच

पंचमुखी हनुमत कवच आध्यात्मिक और रोगनाशक शक्ति का प्रतीक है। इस महत्वपूर्ण कवच का धारण करना सम्मान का संकेत होता है और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस लेख में, हम पंचमुखी हनुमत कवच के महत्व, लाभ, और उपयोग की गहराई से जानेंगे।

पंचमुखी हनुमत कवच के सार का अनावरण

दैवीय संरक्षण को अपनाना

भगवान हनुमान का संकेत लेकर, पंचमुखी हनुमत कवच भक्तों को दिव्य संरक्षण और शक्ति प्रदान करता है। इस धारण को करके, व्यक्ति नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षित रहता है और आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्राप्त करता है।

पंचमुखी हनुमत कवच की उत्पत्ति

पंचमुखी हनुमत कवच का विवरण हिंदू पौराणिक कथाओं में मिलता है। यह कवच भगवान हनुमान के आशीर्वाद से सन्तानों को दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है।

आध्यात्मिक महत्व

पंचमुखी हनुमत कवच की महत्वपूर्णता सिर्फ भौतिक अलंकरण में ही नहीं है। यह भक्ति और दिव्यता के बीच एक अटूट बंध का प्रतीक है, जो पहनने वाले के अंदर साहस और आत्म-समर्पण की भावना को उत्तेजित करता है।

आध्यात्मिक आह्वान

पंचमुखी हनुमत कवच को समय निर्धारित करते हुए, व्यक्तिगत दिव्य आशीर्वाद से युक्त एक आध्यात्मिक यात्रा पर जाना जाता है। प्रत्येक प्रार्थना के साथ, पवित्र मंत्रों की ध्वनि आकाशीय क्षेत्रों में गूंजती है, भक्त को दिव्य प्रार्थना में नामांकित किया जाता है।

अनुष्ठानिक मंगलाचरण

पंचमुखी हनुमत कवच की पूर्णता को प्राप्त करने के लिए, भक्त ध्यान, मंत्र पाठ, और हनुमान भगवान की प्रार्थना जैसे धार्मिक अभ्यासों को शामिल करें। इन पवित्र अनुष्ठानों के माध्यम से, वे एक गहरा संबंध स्थापित करते हैं, दिव्य कवच की सुरक्षा के वादे को स्थापित करते हैं।

पंचमुखी हनुमत कवच के लाभ

​आध्यात्मिक कवच

पंचमुखी हनुमत कवच धारण करने से, व्यक्ति आत्मिक सुरक्षा की अद्वितीय अनुभूति करता है। यह दिव्य कवच नकारात्मक ऊर्जाओं का प्रतिरोध करता है और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देता है।

ईश्वरीय मार्गदर्शन

पंचमुखी हनुमत कवच धारण करने से, व्यक्ति दिव्य मार्गदर्शन का आनंद लेता है। यह ध्यान और प्रार्थना के माध्यम से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में प्रेरित करता है।

पंचमुखी हनुमत कवच एक अद्वितीय धारण है जो भगवान हनुमान की कृपा और शक्ति को प्राप्त करने का माध्यम है। इसे धारण करने से हम नकारात्मकता से लड़ते हैं और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं। चलो, हम सब मिलकर पंचमुखी हनुमत कवच की दिव्य रक्षा और मार्गदर्शन का आनंद लें।

पंचमुखी हनुमत कवच

श्रीगणेशाय नमः ।

ॐ श्री पञ्चवदनायाञ्जनेयाय नमः । 
ॐ अस्य श्री पञ्चमुखहनुमन्मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः ।
गायत्रीछन्दः । पञ्चमुखविराट् हनुमान्देवता । ह्रीं बीजं ।
श्रीं शक्तिः । क्रौं कीलकं । क्रूं कवचं । क्रैं अस्त्राय फट् ।
इति दिग्बन्धः । 

श्री गरुड उवाच ।

अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणुसर्वाङ्गसुन्दरि ।
यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमतः प्रियम् ॥ 1॥

पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम् ।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ॥ 2॥

पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम् ।
दन्ष्ट्राकरालवदनं भृकुटीकुटिलेक्षणम् ॥ 3॥

अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् ।
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥ 4॥

पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् ॥

सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम् ॥ 5॥

उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् ।
पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥ 6॥

ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् ।
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥ 7॥

जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम् ।
ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥ 8॥

खड्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् ।
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥ 9॥

भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम् ।
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम् ॥ 10 ॥

प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम् ।
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ॥ 11॥

सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम् ।
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं
शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम ।
पीताम्बरादिमुकुटैरूपशोभिताङ्गं
पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि ॥ 12॥

मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम् ।
शत्रु संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर ॥ 13॥

ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं
परिलिख्यति लिख्यति वामतले ।
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं
यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता ॥ 14॥

ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय
सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय
नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय
सकलविषहराय स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोत्तरमुखायादिवराहाय
सकलसम्पत्कराय स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय
सकलजनवशङ्कराय स्वाहा ।

ॐ अस्य श्री पञ्चमुखहनुमन्मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र
ऋषिः । अनुष्टुप्छन्दः । पञ्चमुखवीरहनुमान् देवता ।

हनुमानिति बीजम् । वायुपुत्र इति शक्तिः । अञ्जनीसुत इति कीलकम् ।
श्रीरामदूतहनुमत्प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
इति ऋष्यादिकं विन्यसेत् ।

ॐ अञ्जनीसुताय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ वायुपुत्राय मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ अग्निगर्भाय अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ रामदूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ पञ्चमुखहनुमते करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
इति करन्यासः ।

ॐ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा ।
ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट् ।
ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुम् ।
ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ पञ्चमुखहनुमते अस्त्राय फट् ।
पञ्चमुखहनुमते स्वाहा ।
इति दिग्बन्धः ।

अथ ध्यानम् ।

वन्दे वानरनारसिंहखगराट्क्रोडाश्ववक्त्रान्वितं
दिव्यालङ्करणं त्रिपञ्चनयनं देदीप्यमानं रुचा ।
हस्ताब्जैरसिखेटपुस्तकसुधाकुम्भाङ्कुशाद्रिं हलं
खट्वाङ्गं फणिभूरुहं दशभुजं सर्वारिवीरापहम् ।

अथ मन्त्रः ।

ॐ श्रीरामदूतायाञ्जनेयाय वायुपुत्राय महाबलपराक्रमाय
सीतादुःखनिवारणाय लङ्कादहनकारणाय महाबलप्रचण्डाय
फाल्गुनसखाय कोलाहलसकलब्रह्माण्डविश्वरूपाय
सप्तसमुद्रनिर्लङ्घनाय पिङ्गलनयनायामितविक्रमाय
सूर्यबिम्बफलसेवनाय दुष्टनिवारणाय दृष्टिनिरालङ्कृताय
सञ्जीविनीसञ्जीविताङ्गदलक्ष्मणमहाकपिसैन्यप्राणदाय
दशकण्ठविध्वंसनाय रामेष्टाय महाफाल्गुनसखाय सीतासहित-
रामवरप्रदाय षट्प्रयोगागमपञ्चमुखवीरहनुमन्मन्त्रजपे विनियोगः ।

ॐ हरिमर्कटमर्कटाय बंबंबंबंबं वौषट् स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय फंफंफंफंफं फट् स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय खेंखेंखेंखेंखें मारणाय स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय लुंलुंलुंलुंलुं आकर्षितसकलसम्पत्कराय स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय धंधंधंधंधं शत्रुस्तम्भनाय स्वाहा ।
ॐ टंटंटंटंटं कूर्ममूर्तये पञ्चमुखवीरहनुमते
परयन्त्रपरतन्त्रोच्चाटनाय स्वाहा ।

ॐ कंखंगंघंङं चंछंजंझंञं टंठंडंढंणं
तंथंदंधंनं पंफंबंभंमं यंरंलंवं शंषंसंहं
ळंक्षं स्वाहा ।
इति दिग्बन्धः ।

ॐ पूर्वकपिमुखाय पञ्चमुखहनुमते टंटंटंटंटं
सकलशत्रुसंहरणाय स्वाहा ।

ॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुखहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा ।
ॐ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पञ्चमुखहनुमते मंमंमंमंमं
सकलविषहराय स्वाहा ।

ॐ उत्तरमुखायादिवराहाय लंलंलंलंलं नृसिंहाय नीलकण्ठमूर्तये
पञ्चमुखहनुमते स्वाहा ।

ॐ उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुंरुंरुंरुंरुं रुद्रमूर्तये
सकलप्रयोजननिर्वाहकाय स्वाहा ।

ॐ अञ्जनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोकनिवारणाय
श्रीरामचन्द्रकृपापादुकाय महावीर्यप्रमथनाय ब्रह्माण्डनाथाय
कामदाय पञ्चमुखवीरहनुमते स्वाहा ।

भूतप्रेतपिशाचब्रह्मराक्षसशाकिनीडाकिन्यन्तरिक्षग्रह-
परयन्त्रपरतन्त्रोच्चटनाय स्वाहा ।
सकलप्रयोजननिर्वाहकाय पञ्चमुखवीरहनुमते
श्रीरामचन्द्रवरप्रसादाय जंजंजंजंजं स्वाहा ।
इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः ।
एकवारं जपेत्स्तोत्रं सर्वशत्रुनिवारणम् ॥ १५॥

द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् ।
त्रिवारं च पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करं शुभम् ॥ १६॥

चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् ।
पञ्चवारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशङ्करम् ॥ १७॥

षड्वारं च पठेन्नित्यं सर्वदेववशङ्करम् ।
सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ १८॥

अष्टवारं पठेन्नित्यमिष्टकामार्थसिद्धिदम् ।
नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवाप्नुयात् ॥ १९॥

दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् ।
रुद्रावृत्तिं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ॥ २०॥

निर्बलो रोगयुक्तश्च महाव्याध्यादिपीडितः ।
कवचस्मरणेनैव महाबलमवाप्नुयात् ॥ २१॥

॥ इति श्रीसुदर्शनसंहितायां श्रीरामचन्द्रसीताप्रोक्तं
श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचं सम्पूर्णम् ॥

FAQs”

Q.1: क्या किसी को पंचमुखी हनुमत कवच प्राप्त करने के लिए किसी विशेष स्थिति में जाना होता है?

Ans. हां, पंचमुखी हनुमत कवच को प्राप्त करने के लिए विशिष्ट समय, धार्मिक उत्सव या समारोह में जाना होता है। इसे धारण करने से प्रार्थना करते समय भगवान हनुमान के आशीर्वाद को प्राप्त किया जा सकता है।

Q.2: पंचमुखी हनुमत कवच को प्राप्त करने के लिए क्या करना पड़ता है?

Ans. पंचमुखी हनुमत कवच को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को किसी प्रमुख मंदिर या आध्यात्मिक केंद्र में जाना होता है जहां इसे संतुलित किया जाता है। इसे धारण करने से पहले, व्यक्ति को पवित्र कार्यों को ध्यान में रखते हुए इसे शुद्ध करना चाहिए।

Q.3: पंचमुखी हनुमत कवच का उपयोग कैसे किया जाता है?

Ans. पंचमुखी हनुमत कवच का उपयोग दिव्य आशीर्वादों को प्राप्त करने और नकारात्मक ऊर्जाओं का प्रतिरोध करने के लिए किया जाता है। इसे प्रतिदिन धारण करके व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक उन्नति में आगे बढ़ता है।

Q.4: पंचमुखी हनुमत कवच का महत्व क्या है?

Ans. पंचमुखी हनुमत कवच का महत्व व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाने और दिव्यता की ओर ले जाने में है। इसका धारण करना व्यक्ति को भगवान हनुमान के आशीर्वाद का अनुभव कराता है।

Q.5: पंचमुखी हनुमत कवच किसे पहनना चाहिए?

Ans. पंचमुखी हनुमत कवच को कोई भी पहन सकता है जो दिव्य संरक्षा और मार्गदर्शन की खोज में है। यह प्रतिकूल परिस्थितियों में भगवान हनुमान के आशीर्वाद का अनुभव कराता है।

Q.6: पंचमुखी हनुमत कवच को कितनी बार प्रयोग किया जा सकता है?

Ans. पंचमुखी हनुमत कवच को व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में निर्धारित समय में प्रयोग कर सकता है। इसे धारण करने से उन्हें दिव्य संरक्षण और मार्गदर्शन प्राप्त होता है।