सावित्री पूजा, जिसे वट सावित्री व्रत भी कहा जाता है, एक प्रमुख हिन्दू व्रत है जो विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए रखा जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य भारत की महिलाओं द्वारा किया जाता है। यह व्रत पौराणिक कथा पर आधारित है जिसमें पतिव्रता सावित्री ने अपने तप, श्रद्धा और बुद्धिमत्ता से अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से वापस प्राप्त किया था।
सावित्री पूजा (व्रत) कब मनाया जाता है?
सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे वट पूर्णिमा के रूप में ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह दिन वट (बड़) वृक्ष की पूजा से भी जुड़ा होता है।
सावित्री पूजा (व्रत) पौराणिक कथा
सावित्री व्रत की कथा महाभारत के वन पर्व में वर्णित है। कथा के अनुसार: राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री अत्यंत रूपवती, बुद्धिमान और धर्मपरायण थी। उसने वनवासी सत्यवान को पति रूप में चुना। नारद मुनि ने चेताया कि सत्यवान अल्पायु हैं, परंतु सावित्री ने दृढ़ संकल्प किया कि वही उनका पति होगा।
सावित्री ने विवाह के बाद सत्यवान के साथ वन में रहना शुरू किया। एक दिन, सत्यवान लकड़ी काटते समय मूर्छित हो गए और उनका प्राण यमराज ले गए। सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चल पड़ीं और अपनी तपस्या, व्रत, और बुद्धिमता से यमराज को प्रसन्न कर लिया। अंततः यमराज ने सत्यवान को जीवनदान दे दिया।
सावित्री पूजा व्रत की विधि
1. व्रत की तैयारी:
महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं।
पूजा के लिए वटवृक्ष (बड़ का पेड़) के नीचे स्थान बनाया जाता है या घर में वटवृक्ष की प्रतीकात्मक स्थापना की जाती है।
2. पूजन सामग्री:
वटवृक्ष की डाली या चित्र
कच्चा दूध, जल, लाल वस्त्र, हल्दी, सिंदूर, धूप, दीप, फूल, रोली, मौली, चना, फल, प्रसाद आदि।
3. पूजा विधि:
वटवृक्ष की तीन बार परिक्रमा की जाती है और मौली (धागा) बांधा जाता है।
सावित्री-सत्यवान की कथा सुनी जाती है।
यमराज, सावित्री, सत्यवान और वटवृक्ष का पूजन किया जाता है।
व्रती महिलाएं संध्या के समय व्रत खोलती हैं और पति के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं।
सावित्री व्रत का महत्व
यह व्रत पतिव्रता धर्म की सर्वोच्च मिसाल मानी जाती है।
इस व्रत से स्त्रियों को मानसिक शक्ति, संयम और आत्मबल की प्राप्ति होती है।
इसे करने से पति की आयु लंबी होती है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
सावित्री व्रत में क्या न करें
व्रत के दिन तामसिक भोजन, झूठ बोलना, या अपवित्रता से बचना चाहिए।
व्रत करते समय मन में पवित्रता और संयम बनाए !
FAQs”
1. सावित्री पूजा कब की जाती है?
सावित्री पूजा ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाई जाती है, जबकि दक्षिण भारत में इसे ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन वट पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
2. सावित्री व्रत कौन रखता है और क्यों?
यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं, जैसे सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए किया था।
3. सावित्री व्रत की मुख्य पूजा सामग्री क्या होती है?
व्रत में वटवृक्ष की पूजा की जाती है और इसके लिए मौली, चने, दूध, जल, हल्दी, फूल, दीप, धूप, रोली, फल और प्रसाद की आवश्यकता होती है।
4. क्या सावित्री व्रत की कोई विशेष कथा है?
हाँ, यह व्रत महाभारत की एक कथा पर आधारित है जिसमें सावित्री ने अपने तप और निष्ठा से यमराज से अपने मृत पति सत्यवान को वापस पाया।
5. सावित्री व्रत में क्या सावधानियां रखनी चाहिए?
व्रत के दिन संयमित आचरण, सात्विक भोजन, झूठ से परहेज़ और पूजा में पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है।