नील सरस्वती स्तोत्र : यह माँ सरस्वती का एक अत्यंत प्रभावशाली प्रार्थना-सूक्त है, जिसे देवी नीलसरस्वती या नील तारा के रूप में पूजते हैं। यह स्तोत्र त्रास, बुद्धि-वृद्धि, विद्या, शत्रु-निष्पत्ति, और मोक्ष की प्राप्ति हेतु अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है। इसका विशेष पाठ विद्यार्थियों, विद्वानों, जादू-टोने का सामना कर रहे लोगों के जीवन में आशा उजागर करता है
नीलसरस्वती को ‘नीली देवी’ कहने का अर्थ है — वह स्वरूप में तारा की भाँति नीली और उर्जा रुपी हैं, जिनकी साधना तंत्रों से भी जुड़ी हुई मानी जाती है यह स्तोत्र केवल विद्याप्राप्ति का साधन नहीं है, बल्कि आंतरिक परिवर्तन और मानसिक रूपांतरण का मार्ग भी है।
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नीलसरस्वती स्तोत्र का पाठ
नील सरस्वती स्तोत्र में कूल 13 श्लोक हैं, जिनमें देवी का ध्यान, स्तुति और फलश्रुति शामिल है।
नीलसरस्वती स्तोत्र
ॐ अस्य श्री नीलसरस्वतीस्तोत्रमंत्रस्य
भगवान भैरवरृषिः
अनुष्टुप्छन्दः
नीलसरस्वती देवता
ह्रीं बीजं
क्लीं शक्तिः
सौ कीलकम्
नीलसरस्वतीप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥
घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयंकरि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्॥1॥
ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम्॥2॥
जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
दृष्टे नाशय शत्रूणां त्राहि मां शरणागतम्॥3॥
चिन्तितार्थप्रदे देवि भक्तानां भवसङ्कटे।
दर्शये सिद्धरूपं मे त्राहि मां शरणागतम्॥4॥
भानमण्डलनिर्मुक्ते नीलजिह्वानुकारिणि।
स्निग्धोदका तनुश्यामा त्राहि मां शरणागतम्॥5॥
विनिद्राणां शक्तिनां त्वं त्राता भक्तनमस्यामि।
कामदुघे वरारोहे त्राहि मां शरणागतम्॥6॥
चक्रराजमयखड्गे धाराधरसमप्रभे।
सहस्रकरसंयुक्ते त्राहि मां शरणागतम्॥7॥
खड्गचर्मधरां देवीं नीलमाल्यविभूषिताम्।
नीलकान्तीमालिन्याश्च त्राहि मां शरणागतम्॥8॥
मूलाधारस्थितां देवीं ब्रह्माण्डान्तविभूतिदाम्।
नमोस्तु नीलसरस्वत्यै त्राहि मां शरणागतम्॥9॥
जाद्यं हरेन्मे सुमतीं वितरति प्रत्यग्गिरीवेदिनि।
बाल्यं दधाति यशः स्मितं कवितां विद्यां च दत्वा पुनः।
दुर्भिक्षं व्यपनय्य शत्रुभयदं वित्तं च विद्यान्वितं।
दत्वा भक्तजनाय सा भगवती नीलाम्बरा पातु मे॥10॥
नीलसरस्वतीस्तोत्रमिदं भक्त्याऽतिसंयुतः।
यः पठेच्छृणुयाद्वापि सर्वान्कामानवाप्नुयात्॥11॥
इदं स्तोत्रं महारौद्रं महामोहमुचावहम्।
महाशत्रुप्रशमनं महावीदीर्णनाशनम्॥12॥
महाव्याधिहरं सर्वं महासारस्वतप्रदम्।
शतवर्षप्रमाणेन पठेद्यस्तु समाहितः।
सर्वत्र जयमाप्नोति त्रैलोक्येऽपि च वन्द्यते॥13॥
नील सरस्वती स्तोत्र – हिंदी अनुवाद
श्लोक 1 भावार्थ : हे घोर रूप वाली, उच्च स्वर में गरजने वाली और शत्रुओं के लिए भय का कारण बनने वाली देवी! हे भक्तों को वर देने वाली माँ! मैं आपकी शरण में हूँ, मेरी रक्षा कीजिए।
श्लोक 2 भावार्थ : हे देवी! देवता और असुर जिनकी पूजा करते हैं, सिद्ध और गन्धर्व जिनकी सेवा करते हैं, हे मूर्खता और पाप को हरने वाली माँ, मेरी रक्षा कीजिए। मैं आपकी शरण में हूँ।
श्लोक 3 भावार्थ : आप जटाओं से युक्त हैं और लहराती जिह्वा से अंधकार को समाप्त करने वाली हैं। आपकी दृष्टि मात्र से ही शत्रु नष्ट हो जाते हैं। हे माँ, मेरी रक्षा कीजिए।
श्लोक 4 भावार्थ : हे देवी! भक्तों की हर चिंता और संकट दूर कर उन्हें वांछित फल देने वाली हो। मुझे भी अपना सिद्ध रूप दिखाइए और मेरी रक्षा कीजिए।
श्लोक 5 भावार्थ : आप सूर्यमंडल की सीमाओं से परे हैं, आपकी जीभ नीली है, आपका शरीर श्याम और जल के समान स्निग्ध है। मेरी रक्षा कीजिए, हे देवी!
श्लोक 6 भावार्थ : आप जाग्रत शक्तियों की रक्षक हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप कामनाओं को पूर्ण करने वाली और श्रेष्ठ सिंहासन पर विराजमान हैं। मेरी रक्षा कीजिए।
श्लोक 7 भावार्थ : आपके पास चक्र और तलवार हैं, जिनकी चमक पर्वत के समान तेजस्वी है। आप सहस्र भुजाओं से युक्त हैं। मेरी रक्षा कीजिए, हे माँ!
श्लोक 8 भावार्थ : आप तलवार और ढाल धारण करती हैं, नीले पुष्पों से सजी हैं और नीले आभूषणों से शोभायमान हैं। मेरी रक्षा कीजिए, हे नीलसरस्वती!
श्लोक 9भावार्थ : आप मूलाधार चक्र में स्थित हैं और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की विभूतियाँ प्रदान करती हैं। हे नीलसरस्वती, आपको मेरा नमस्कार है, मेरी रक्षा कीजिए।
श्लोक 10 भावार्थ : जो देवी मेरी मूर्खता दूर करती हैं, शुभ बुद्धि देती हैं, यश, कविता, ज्ञान और सौम्यता प्रदान करती हैं, दरिद्रता दूर करती हैं, शत्रु भय को हरती हैं, विद्या सहित धन देती हैं – वे भगवती नीलाम्बरा मेरी रक्षा करें।
श्लोक 11 भावार्थ : जो श्रद्धा सहित इस नीलसरस्वती स्तोत्र का पाठ या श्रवण करता है, वह अपने सभी इच्छित फल प्राप्त करता है।
श्लोक 12 भावार्थ : नील सरस्वती स्तोत्र अत्यंत रौद्र है, मोह नाश करता है, महान शत्रुओं को शांत करता है और भयंकर दोषों का नाश करता है।
श्लोक 13 भावार्थ : नील सरस्वती स्तोत्र सभी रोगों को हरने वाला और महान विद्या देने वाला है। जो साधक सौ वर्षों तक एकाग्रता से इसका पाठ करे, वह सर्वत्र विजय प्राप्त करता है और तीनों लोकों में पूजनीय होता है।
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नीलसरस्वती स्तोत्र का सार
नीलसरस्वती स्तोत्र माँ नीलसरस्वती की 13 श्लोकों वाली स्तुति है।
माँ का उग्र और रौद्र स्वरूप इसमें वर्णित है।
शत्रु नाश, बुद्धिवृद्धि, कवित्व, सिद्धि एवं मोक्ष की प्राप्ति हेतु यह अत्यंत फलदायक माना गया है।
नित्य पाठ से साधक को बल, ज्ञान और आत्मिक शक्ति मिलती है।
नील सरस्वती स्तोत्र का दैनिक जीवन में महत्व
नील सरस्वती स्तोत्र तांत्रिक साधना में अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। इसका नित्य जाप नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है। यह स्तोत्र क्रोध, भय, भ्रम और शत्रुओं से मुक्ति दिलाने में सहायक है। विद्यार्थी इसे पढ़कर स्मरण शक्ति और एकाग्रता में वृद्धि अनुभव करते हैं। साधक के अंदर आत्मबल और आत्मविश्वास विकसित होता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से काली, तारा या सरस्वती की साधना में उपयोगी होता है। दैनिक जीवन में इसका पाठ आत्मरक्षा, सफलता और मनोबल के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है।
नीलसरस्वती स्तोत्र का महत्व एवं फलश्रुति
नीलसरस्वती स्तोत्र का महत्व अत्यंत गहन है। यह माँ सरस्वती के उग्र और तांत्रिक रूप की स्तुति है, जो शत्रु नाश, बुद्धि विकास, भय से मुक्ति और आत्मिक बल प्रदान करती है। नियमित पाठ से विद्या, स्मरण शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
बुद्धि एवं स्मरण-शक्ति : यह स्तोत्र छात्रों और विद्यार्थियों के लिए विशेष लाभकारी है, क्योंकि संस्कृत श्लोकों द्वारा मानसिक सतर्कता और स्मरण शक्ति बढ़ती है
शत्रु-विनाश : वेबदुनिया, माय स्पिरिचुअल डायरी, भक्ति-भारत जैसे स्रोतों में कहा गया है कि नियमित रूप से पाठ करने पर कोई भी प्रकार का शत्रु बाधा नष्ट होती है
सिद्धि, धन, विद्या : छः महीने के नियमित पाठ से मोक्ष की प्राप्ति, धन-संपदा की वृद्धि तथा विशिष्ट विद्या (तर्क, व्याकरण आदि) मिलती है ।
आत्मिक व आध्यात्मिक विकास : यह स्तोत्र तंत्र साधना, विद्यार्थी मानसिकता और आत्म-शोध का मार्ग खोलता है, जहाँ साधक माँ से सम्पूर्ण रक्षा, ज्ञान और आरोग्य की कामना करता है ।
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नीलसरस्वती स्तोत्र पाठ के सरल और प्रभावशाली तरीके
नीलसरस्वती स्तोत्र का पाठ करने के लिए शुद्धता, आस्था और नियम आवश्यक हैं। नीचे इसकी विधियाँ दी जा रही हैं:
नीलसरस्वती स्तोत्र पाठ का स्थान और समय
शांत, पवित्र एवं स्वच्छ स्थान चुनें।
प्रातः ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4–6 बजे) या रात्रि के समय (9–12 बजे) उत्तम माना गया है।
एक ही स्थान और समय पर प्रतिदिन पाठ करने से सिद्धि शीघ्र होती है।
नीलसरस्वती स्तोत्र पाठ के लिए शुद्धि एवं आसन
स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
काले या नीले रंग का आसन (कुशासन या ऊनी आसन) प्रयोग करें।
आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
नीलसरस्वती स्तोत्र पाठ की पूजन विधि (संक्षेप में)
माँ नीलसरस्वती या तारा देवी का चित्र/मूर्ति सामने रखें।
धूप-दीप, नैवेद्य, पुष्प आदि से पूजन करें।
“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं उग्ग्रतारायै नमः” से ध्यान करें।
नीलसरस्वती स्तोत्र मंत्र जाप और पाठ
नीलसरस्वती स्तोत्र का पाठ साफ़ और स्पष्ट उच्चारण से करें।
यदि संभव हो तो रुद्राक्ष माला से एक या तीन बार पाठ करें।
पूर्ण मनोयोग और श्रद्धा आवश्यक है।
नीलसरस्वती स्तोत्र पाठ के नियम और सावधानियाँ
नीलसरस्वती स्तोत्र का पाठ किसी को कष्ट पहुँचाने हेतु न करें।
नीलसरस्वती स्तोत्र का पाठ करते समय क्रोध, निंदा, द्वेष से बचें।
नीलसरस्वती स्तोत्र का पाठ करते समय नियमितता और संयम आवश्यक है।
नीलसरस्वती स्तोत्र पाठ विशेष लाभ के लिए
अमावस्या, शनिवार या अष्टमी को पाठ विशेष फलदायी होता है।
मानसिक शांति, शत्रु नाश, तांत्रिक बाधा से रक्षा हेतु अत्यंत प्रभावी है।
नीलसरस्वती स्तोत्र पाठ विधियाँ
नीलसरस्वती स्तोत्र पाठ कब पढ़ें?
अष्टमी, नवमी अथवा चतुर्दशी तिथि को करना उत्तम माना जाता है
नीलसरस्वती स्तोत्र पाठ संख्या
प्रति दिन कम से कम एक बार, लेकिन इस मंत्र का प्रभाव सुनिश्चित रूप से छः माह तक निरंतरता से पाठ करने पर प्राप्त होता है ।
नीलसरस्वती स्तोत्र पाठ योनिमुद्रा
पाठ के बाद योनिमुद्रा दिखाना और देवी को प्रणाम करना परम्परानुसार अनिवार्य है|
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नीलसरस्वती स्तोत्र मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक पूज्य है। यह सिर्फ एक स्तोत्र नहीं बल्कि श्रेय, ज्ञान, बुद्धि, रक्षा और मोक्ष की एक गहन साधना प्रणाली का हिस्सा है। पाँचों तत्वों—बुद्धि, स्मरण, रचनात्मकता, रक्षा और आध्यात्मिक उन्नति—का संपूर्णतः संयोग इसमें दिखाई देता है। यदि आप विद्यार्थी हैं, आत्म-ज्ञान की खोज में हैं, या किसी प्रकार की बाधा (जैसे शत्रुता, भय, मूढता) से मुक्त होना चाहते हैं—तो यह स्तोत्र आपकी यात्रा में परम सहायक सिद्ध हो सकता है।
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FAQs”
1. नील सरस्वती स्तोत्र किस देवता को समर्पित है?
नील सरस्वती स्तोत्र माँ सरस्वती का एक तांत्रिक एवं बुद्धि-वृद्धि रूप — नीलसरस्वती या नील तारा को समर्पित है।
2. नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ कब और कैसे किया जाता है?
अन्तरा तिथियों (अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी) को पाठ करना उत्तम।
नील सरस्वती स्तोत्र पाठ के बाद योनिमुद्रा दिखाएं तथा देवी को प्रणाम करें।
इसका निरंतर 6 माह तक श्रद्धा से पाठ करें।
3. नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ क्या लाभ देता है?
नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ बुद्धि, स्मरण-शक्ति, विद्या, तर्कशक्ति मजबूत करता है।
शत्रु-विनाश, रक्षा, मंगल की प्राप्ति होती है।
धन, कीर्ति और मोक्ष-सिद्धि की प्राप्ति होती है।
4. क्या नील सरस्वती स्तोत्र तंत्र से जुड़ा है?
हाँ, नील सरस्वती स्तोत्र तंत्रोक्त विधि से भी पूजेते हैं और यह दस महाविद्याओं में सामिल मानी जाती है
5. क्या नील सरस्वती स्तोत्र बच्चों को पढ़ना चाहिए?
बिल्कुल नील सरस्वती स्तोत्र बच्चों को मनोवचनी त्वरितता, अध्ययन में कुशलता और कला—संगीतात्मक क्षमता प्रदान करता है ।
6. क्या किसी विशेष यज्ञ की आवश्यकता है?
विशिष्ट मंत्र-अनुष्ठान, बलिहोम आदि तांत्रिक अनुष्ठान जिनमें यज्ञ विधि होती है, वह भी अपनाई जा सकती हैं। लेकिन सामान्य श्रद्धापूर्वक नील सरस्वती स्तोत्र पाठ भी पर्याप्त है।
7. क्या नील सरस्वती स्तोत्र की भाषा संस्कृत है?
हाँ, नील सरस्वती स्तोत्र मूल रूप से संस्कृत में है। कुछ स्थानों पर इसमें “ॐ” और बीज मंत्र (वं ह्रूं ह्रूं) भी सम्मिलित हैं।
8. क्या नील सरस्वती स्तोत्र पाठ के दौरान कोई अनुष्ठान विधि होनी चाहिए?
नील सरस्वती स्तोत्र पाठ के समय ध्यान केंद्रित करें।
योनिमुद्रा के साथ अंत में प्रणाम अनिवार्य है।
अध्यात्मिक शुद्धता—शुद्धि, फूल, दीप आदि रखें।
9. क्या नील सरस्वती स्तोत्र पाठ के बाद अन्य प्रकार का पूजन करना चाहिए?
यह आपकी श्रद्धा व आवश्यकता पर निर्भर है। वसंत पंचमी के अवसर पर विशेष वृद्धि होती है
10. नील सरस्वती स्तोत्र के पाठ में बाधा आने पर क्या करें?
नील सरस्वती स्तोत्र पाठ का समय निर्धारित करें, घर की वास्तु जांच कराएं, ध्यान-साधना से मन को स्थिर रखें। नियमितता इससे बचाव करती है।