भारतीय सनातन धर्म में स्तोत्रों का विशेष महत्व है। ये स्तुतियाँ न केवल ईश्वर की महिमा का वर्णन करती हैं, बल्कि साधक के मन को शुद्ध, शांत एवं स्थिर भी बनाती हैं। इन्हीं स्तोत्रों में एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है – “श्री मारुति स्तोत्र”, जिसे भगवान हनुमान की उपासना हेतु रचा गया है। इस स्तोत्र का पाठ श्रद्धा एवं भक्ति से करने पर अद्भुत मानसिक एवं शारीरिक लाभ प्राप्त होते हैं।
श्री मारुति स्तोत्र का इतिहास
श्री मारुति स्तोत्र की रचना समर्थ रामदास स्वामी ने की थी। वे एक महान संत, योगी और छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु माने जाते हैं। रामदास स्वामी को हनुमान जी का परम भक्त माना जाता है। उन्होंने इस स्तोत्र के माध्यम से हनुमान जी के विविध रूपों और गुणों का वर्णन करते हुए उनके स्वरूप को जनमानस के समक्ष प्रस्तुत किया।
श्री मारुति स्तोत्र का पाठ
मारुति स्तोत्र संस्कृत और मराठी में उपलब्ध है। इसका आरंभिक पाठ इस प्रकार है:
“प्रपन्नार्थिहरं धैर्यं सर्वदोषविनाशनम्।
विष्णुमित्रप्रियं शूरं नमामि हनुमत्प्रियम्॥”
यह श्लोक हनुमान जी के उन गुणों की ओर संकेत करता है जो भक्तों के सभी कष्टों का नाश करने वाले हैं। पूरा स्तोत्र लगभग 11 से 17 श्लोकों में होता है, जिसमें हनुमान जी की शक्ति, भक्ति, वीरता, ब्रह्मचर्य, नम्रता और सेवा भाव का उल्लेख किया गया है।
पंचमुखी हनुमत कवच की शक्ति का अनावरण
श्री मारुति स्तोत्र का भावार्थ
श्री मारुति स्तोत्र में हनुमान जी को संकटमोचन, रक्षक, बलवान, बुद्धिमान, ब्रह्मचारी और श्रीराम के परम सेवक के रूप में वर्णित किया गया है। हर श्लोक में उनकी किसी न किसी विशेषता को नमन किया गया है।
“मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्…” इसका अर्थ है कि हनुमान जी मन की गति से भी तेज, वायु के समान वेगवान, इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं।
“रामदूतं शरणं प्रपद्ये” : मैं श्रीराम के दूत श्री हनुमान जी की शरण में जाता हूँ।
श्री मारुति स्तोत्र पाठ की विधि
1. समय: प्रातःकाल अथवा संध्या समय श्री मारुति स्तोत्र का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है। मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से इसका पाठ करने की परंपरा है।
2. स्थान: पवित्र स्थान जैसे मंदिर, पूजा कक्ष या किसी शुद्ध स्थान पर बैठकर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
3. नियम:
स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
मन, वचन और कर्म से पवित्र भाव रखें।
दीप प्रज्वलित कर हनुमान जी का ध्यान करें।
श्री मारुति स्तोत्र पाठ के लाभ
1. भय से मुक्ति: जो व्यक्ति श्री मारुति स्तोत्र का नियमित पाठ करता है, वह भय, भूत-प्रेत, बाधा, ग्रह दोष आदि से मुक्त रहता है।
2. मानसिक शांति: यह स्तोत्र मन को स्थिर करता है, चिंता और तनाव को दूर करता है।
3. शारीरिक बल: हनुमान जी को बल का प्रतीक माना गया है। इस स्तोत्र का पाठ शरीर में ऊर्जा और साहस का संचार करता है।
4. विद्या एवं बुद्धि: हनुमान जी को नवविद्याओं में पारंगत माना गया है। इस स्तोत्र का पाठ विद्यार्थियों को विशेष लाभ पहुंचाता है।
5. संकट नाश: यह स्तोत्र “संकटमोचन” के रूप में कार्य करता है। जीवन में आने वाली बाधाएँ सहजता से दूर होती हैं।
श्री मारुति स्तोत्र और महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में हनुमान जी को “मारुति” नाम से जाना जाता है। समर्थ रामदास स्वामी ने महाराष्ट्र में कई स्थानों पर मारुति मंदिरों की स्थापना की। उन्होंने मारुति को शक्ति, वीरता और राष्ट्रनिर्माण का प्रतीक बनाया। श्री मारुति स्तोत्र न केवल धार्मिक साधना का माध्यम था, बल्कि यह युवाओं में आत्मबल और राष्ट्रभक्ति जागृत करने का एक साधन भी था।
श्री मारुति स्तोत्र का सामाजिक महत्व : समर्थ रामदास जी ने श्री मारुति स्तोत्र के माध्यम से समाज में नैतिकता, संयम, भक्ति और पराक्रम का संदेश दिया। यह स्तोत्र व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में संतुलन बनाए रखने का एक साधन बन गया।
श्री हनुमान जी का दर्शन : श्री मारुति स्तोत्र के माध्यम से जो हनुमान जी का स्वरूप उभर कर आता है, वह केवल एक देवीय योद्धा नहीं, बल्कि एक आदर्श सेवक, ज्ञानी, योगी और संत का भी है।
श्री हनुमान जी के प्रमुख गुण:
ब्रह्मचर्य: हनुमान जी आजीवन ब्रह्मचारी रहे।
सेवा: उन्होंने श्रीराम के चरणों में पूर्ण समर्पण किया।
वीरता: उन्होंने लंका दहन किया, रावण की सभा में निर्भय खड़े हुए।
ज्ञान: वे चार वेदों और छह शास्त्रों में निपुण थे।
श्री मारुति स्तोत्र का अभ्यास कैसे करें?
प्रतिदिन एक समय निर्धारित करें।
शुद्ध उच्चारण का अभ्यास करें। यदि संभव हो तो गुरु से सीखें।
पाठ करते समय मन एकाग्र रखें और हनुमान जी के स्वरूप का ध्यान करें।
शनिवार या मंगलवार को विशेष पूजन करें।
श्री मारुति स्तोत्र (संस्कृत पाठ)
प्रपन्नार्तिहरं धैर्यं सर्वदोषविनाशनम्।
विष्णुमित्रप्रियं शूरं नमामि हनुमत्प्रियम्॥१॥
बलसागरगं धीमन् पिङ्गाक्षं पिङ्गकेशिनम्।
लालाटलोलनेत्रं च नमामि मारुतात्मजम्॥२॥
जगदुत्पत्तिकारणं च तस्मात् सर्वगुणार्णवम्।
कालाग्निं कालचक्रं च नमामि पिङ्गलोलुपम्॥३॥
सर्वशास्त्रज्ञदं शूरं नानाविद्याविशारदम्।
कपिराजं सुरश्रेष्ठं नमामि धरणीभृतम्॥४॥
उद्धृतसिंधुस्थानं च लङ्काभङ्गविधानकम्।
वायुपुत्रं महोत्साहं नमामि रामपालकम्॥५॥
अष्टसिद्धिप्रदं वीरं गरुडध्वजवन्दितम्।
अञ्जनीगर्भसंभूतं नमामि विघ्ननाशनम्॥६॥
भूतप्रेतपिशाचादि बाधां हन्ति महाबलः।
भक्तेभ्यो वरदो नित्यं नमामि श्रियसां निधिम्॥७॥
श्री मारुति स्तोत्र
भीमरूपी महारुद्रा, वज्र हनुमान मारुती।
वनारी अंजनीसूता, रामदूता प्रभंजना ।।1।।
महाबळी प्राणदाता, सकळां उठवीं बळें ।
सौख्यकारी शोकहर्ता, धूर्त वैष्णव गायका ।।2।।
दिनानाथा हरीरूपा, सुंदरा जगदंतरा।
पाताळ देवता हंता, भव्य सिंदूर लेपना ।।3।।
लोकनाथा जगन्नाथा, प्राणनाथा पुरातना ।
पुण्यवंता पुण्यशीला, पावना परतोषका ।।4।।
ध्वजांगे उचली बाहू, आवेशें लोटिला पुढें ।
काळाग्नी काळरुद्राग्नी, देखतां कांपती भयें ।।5।।
ब्रह्मांड माईला नेणों, आवळें दंतपंगती।
नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाळा, भृकुटी त्राहिटिल्या बळें ।।6।।
पुच्छ तें मुरडिलें माथां, किरीटी कुंडलें बरीं।
सुवर्णकटीकासोटी, घंटा किंकिणी नागरा ।।7।।
ठकारे पर्वताऐसा, नेटका सडपातळू।
चपळांग पाहतां मोठें, महाविद्युल्लतेपरी ।।8।।
कोटिच्या कोटि उड्डाणें, झेपावे उत्तरेकडे ।
मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू, क्रोधे उत्पाटिला बळें ।।9।।
आणिता मागुता नेला, गेला आला मनोगती ।
मनासी टाकिलें मागें, गतीस तूळणा नसे ।।10।।
अणूपासोनि ब्रह्मांडा, येवढा होत जातसे।
तयासी तुळणा कोठें, मेरुमंदार धाकुटें ।।11।।
ब्रह्मांडाभोंवते वेढे, वज्रपुच्छ घालूं शके।
तयासि तूळणा कैचीं, ब्रह्मांडीं पाहतां नसे ।।12।।
आरक्त देखिलें डोळां, गिळीलें सूर्यमंडळा ।
वाढतां वाढतां वाढे, भेदिलें शून्यमंडळा ।।13।।
धनधान्यपशुवृद्धी, पुत्रपौत्र समग्रही ।
पावती रूपविद्यादी, स्तोत्र पाठें करूनियां ।।14।।
भूतप्रेतसमंधादी, रोगव्याधी समस्तही ।
नासती तूटती चिंता, आनंदें भीमदर्शनें ।।15।।
हे धरा पंधराश्लोकी, लाभली शोभली बरी।
दृढदेहो निसंदेहो, संख्या चंद्रकळागुणें ।।16।।
रामदासी अग्रगण्यू, कपिकुळासी मंडण।
रामरूपी अंतरात्मा, दर्शनें दोष नासती ।।17।।
।। इति श्रीरामदासकृतं संकटनिरसनं मारुतिस्तोत्रं संपूर्णम् ।।
श्री मारुति स्तोत्र केवल एक भक्ति रचना नहीं, अपितु एक आध्यात्मिक साधना का मार्ग है। यह भक्त को भयमुक्त, शक्तिशाली, बुद्धिमान और रामभक्ति में लीन बनाता है। जो भक्त श्रद्धा से इसका नित्य पाठ करता है, वह न केवल भौतिक कष्टों से मुक्ति पाता है, बल्कि उसे आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है। हनुमान जी का स्मरण स्वयं में शक्ति का संचार करता है। श्री मारुति स्तोत्र इस स्मरण को एक रूप देता है, जो हमें आत्मबोध, कर्तव्यबोध और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर करता है।
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श्री मारुति स्तोत्र |
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FAQs”
श्री मारुति स्तोत्र क्या है?
श्री मारुति स्तोत्र एक भक्ति स्तुति है जिसे समर्थ रामदास स्वामी ने भगवान हनुमान की महिमा का गुणगान करने हेतु रचा था। यह स्तोत्र हनुमान जी की शक्ति, भक्ति और सेवा भाव को समर्पित है।
श्री मारुति स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
उत्तर: इसका पाठ प्रातःकाल या संध्या समय करना उत्तम होता है। मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से पाठ करने से हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
श्री मारुति स्तोत्र पढ़ने से क्या लाभ होता है?
उत्तर: यह स्तोत्र भय, मानसिक तनाव, शारीरिक दुर्बलता, नकारात्मक ऊर्जा और ग्रह दोषों को दूर करता है। यह साहस, आत्मबल और भक्ति को जागृत करता है।
क्या श्री मारुति स्तोत्र का पाठ सभी कर सकते हैं?
हाँ, स्तोत्र का पाठ कोई भी श्रद्धालु कर सकता है। पुरुष, महिलाएं, विद्यार्थी, गृहस्थ सभी को इसका पाठ मानसिक शांति और शक्ति देता है।
क्या श्री मारुति स्तोत्र का पाठ केवल संस्कृत में करना जरूरी है?
उत्तर: नहीं, यदि आप संस्कृत नहीं जानते तो आप हिंदी अर्थ के साथ भी पाठ कर सकते हैं। भाव की शुद्धता और श्रद्धा अधिक महत्वपूर्ण होती है।
क्या श्री मारुति स्तोत्र का पाठ दैनिक करना चाहिए?
उत्तर: यदि संभव हो तो नित्य पाठ करना श्रेष्ठ है, अन्यथा सप्ताह में कम से कम दो बार (मंगलवार और शनिवार) अवश्य करें।
क्या श्री मारुति स्तोत्र से तंत्र बाधा दूर होती है?
उत्तर: हाँ, यह स्तोत्र विशेष रूप से नकारात्मक ऊर्जा, बुरी दृष्टि और तांत्रिक बाधाओं से रक्षा करता है। इसे "संकटमोचन" स्तोत्र भी कहा जाता है।
श्री मारुति स्तोत्र और हनुमान चालीसा में क्या अंतर है?
उत्तर: हनुमान चालीसा तुलसीदास जी द्वारा रचित अवधी भाषा की रचना है, जबकि श्री मारुति स्तोत्र संस्कृत में समर्थ रामदास जी द्वारा रचित स्तोत्र है। दोनों का उद्देश्य हनुमान भक्ति है, पर भाषा और शैली भिन्न है।