महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् – देवी दुर्गा की स्तुति का दिव्य ग्रंथ

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् – देवी दुर्गा की स्तुति का दिव्य ग्रंथ

भारतीय सनातन परंपरा में देवी दुर्गा को शक्ति की प्रतीक माना गया है। वे सृष्टि की रक्षिका, पालनकर्ता और विनाशकारिणी तीनों रूपों में पूजित हैं। महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् (Mahishasura Mardini Stotram) एक ऐसा प्रसिद्ध स्तोत्र है जिसमें देवी दुर्गा के महिषासुर पर विजय के दिव्य रूप का अत्यंत सुंदर वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र न केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि इसमें देवी की शक्ति, करुणा और संरक्षण देने वाली प्रवृत्ति की महिमा गाई गई है।

इस लेख में हम महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का इतिहास, शाब्दिक अर्थ, पाठ करने के लाभ, पाठ विधि और इससे जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

शमशान काली स्तोत्र: संपूर्ण पाठ, लाभ, अर्थ व जाप विधि

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् का इतिहास

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् की रचना आदि शंकराचार्य द्वारा मानी जाती है। यह संस्कृत में रचित स्तोत्र देवी दुर्गा के महिषासुर का वध करने वाले रूप की स्तुति है। यह देवी के “चंडी” स्वरूप का उल्लेख करता है, जिन्होंने दैत्यों का विनाश कर धर्म की स्थापना की थी। इसमें देवी के देवीय अस्त्र-शस्त्र, वाहन सिंह, भयंकर एवं सौम्य रूप, और उनकी अपराजेय शक्ति का अत्यंत काव्यात्मक वर्णन है।

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र की संरचना

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् कुल 21 श्लोकों में विभाजित है। प्रत्येक श्लोक में देवी के किसी विशिष्ट गुण, शक्ति और लीलाओं का वर्णन किया गया है। इसका प्रत्येक छंद “जय जय हे महिषासुरमर्दिनि राम्यकपर्दिनि शैलसुते” से समाप्त होता है, जो पाठ में तालबद्धता और भावनात्मक प्रवाह बनाए रखता है।

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र, सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् पाठ के फायदे

महिषासुर कौन था?

महिषासुर एक असुर था जिसे ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि कोई भी पुरुष देवता उसे पराजित नहीं कर सकता। अहंकारवश वह देवताओं को हराकर स्वर्गलोक का अधिपति बन बैठा। तब सभी देवताओं की शक्ति से उत्पन्न हुईं देवी दुर्गा, जिन्होंने नौ रातों तक युद्ध कर अंततः दसवें दिन महिषासुर का वध किया। यही घटना “विजयादशमी” के रूप में मनाई जाती है।

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् पाठ विधि

स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

दीप जलाएं और देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र के समक्ष बैठें।

श्री गणेश वंदना के बाद महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र का पाठ करें।

शुद्ध उच्चारण के साथ पाठ करें।

पाठ के अंत में देवी की आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं।

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् पाठ करने के लाभ

 भय से मुक्ति: इस स्तोत्र का पाठ मानसिक भय, नकारात्मकता और दुर्भावनाओं से मुक्ति दिलाता है।

  साहस और शक्ति की प्राप्ति: यह स्तोत्र आत्मबल और आत्मविश्वास को बढ़ाता है। यह विशेष रूप से महिलाओं के लिए सुरक्षा और आत्मबल प्रदान करने वाला है।

  रोगनाशक: नियमित पाठ से मानसिक तनाव और शारीरिक रोगों में भी राहत मिलती है।

 विघ्नों का नाश: जीवन में आने वाली बाधाएं, शत्रु कष्ट और बुरी दृष्टि से रक्षा करता है यह स्तोत्र।

 माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है: भक्तिपूर्वक पाठ करने से देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति आती है।

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् कब और कैसे करें पाठ?

नवरात्रि के नौ दिनों में इसका पाठ अत्यंत फलदायक माना जाता है।

मंगलवार और शुक्रवार को पाठ विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

संकट की घड़ी में अथवा शक्ति की आवश्यकता हो, तब इसका पाठ करें।

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्

अयिगिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दनुते
गिरिवरविन्ध्य शिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते। 1

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणी हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते।
दनुजनिरोषिणि दितीसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते। 2

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय श्रृंगनिजालय मध्यगते।
मधुमधुरे मधुकैटभ गञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते। 3

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचन्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते। 4

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूतकृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते। 5

अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शूलविरोधि शिरोधिकृतामल शूलकरे।
दुमिदुमितामर दुन्दुभिनाद महोमुखरीकृत तिग्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते। 6

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते। 7

धनुरनुसंग रणक्षणसंग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके।
कृतचतुरंग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते। 8

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झण-झण-झिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरसिंजितमोहित भूतपते।
नटितनटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते। 9

अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहरकांतियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनीकर वक्त्रवृते।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते।10

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक भिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
सित्कृत्पुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते।11

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमत्तंगगजराजपते
त्रिभिवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहनमन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते।12

कमलदलामल कोमलकांति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते।13

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुंजित रंजितशैल निकुञ्जगते।
निजगुणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते।14

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयूखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे।
जितकनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भरकुंजर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते।15

विजितसहस्त्रकरैक सहस्त्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सुनूसुते।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधि समाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते।16

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योनुदिनम् स शिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते।17

कनकलसत्कलसिन्धु जलैरनु सिंचिनुते गुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भ तटीपरिरम्भ सुखानुभवम्।
तवचरणम् शरणम् करवाणि नतामरवाणि निवासी शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते।18

तव विमलेन्दुकुलम् वदनेन्दुमलं सकलं ननुकूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते।19

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते।
यदुचितमत्र भवत्युररी कुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते।20

स्तुतिमिमां स्तिमितः सुसमाधिनां नियमतो यमतोनुदिनं पठेत्।
परमया रमया स निषेव्यते पिरजनोरिजनोपि तं भजेत् । ।

इति महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि एक आंतरिक शक्ति को जागृत करने का साधन है। यह हमें याद दिलाता है कि जीवन के संघर्षों से लड़ने के लिए हमारे भीतर ही देवी की शक्ति मौजूद है। यदि हम श्रद्धा, विश्वास और निष्ठा के साथ इसका पाठ करें, तो देवी दुर्गा न केवल हमारी रक्षा करती हैं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर मार्गदर्शन भी करती हैं।

प्रमुख हिंदी स्तोत्र

दक्षिण काली स्तोत्र

श्री काली तांडव स्तोत्रम्

श्री गणेश संकटनाशन स्तोत्र

श्री शिवरामाष्टक स्तोत्रम

रामरक्षा स्तोत्र

कनकधारा स्तोत्र

ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र

श्री नारायण स्तोत्र

शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र

अपराजिता स्तोत्र

शिव तांडव स्तोत्र

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र

शिव षडाक्षरा स्तोत्र

शमशान काली स्तोत्र

काली हृदय स्तोत्र

पंचमुखी हनुमत कवच

श्री विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र

आदित्य हृदय स्तोत्र

हनुमान तांडव स्त्रोत

शिव रुद्राष्टकम स्तोत्रम

हनुमान बाहुक स्तोत्र

दुर्गाष्टोत्तर स्तोत्र

धूमावती अष्टक स्तोत्र

महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रं 

FAQs”

Q1: महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् किसने रचा?

उत्तर: इसे आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। हालांकि कुछ विद्वान इसे अन्य संस्कृत कवियों की रचना भी मानते हैं।

Q2: क्या यह स्तोत्र केवल नवरात्रि में ही पढ़ा जाता है?

उत्तर: नहीं, इसे किसी भी दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक पढ़ा जा सकता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।

Q3: क्या इसका पाठ केवल महिलाएं कर सकती हैं?

उत्तर: नहीं, यह स्तोत्र सभी के लिए है — पुरुष, महिलाएं, विद्यार्थी, गृहस्थ या साधक। कोई भी इसका पाठ कर सकता है।

Q4: क्या इसका पाठ किसी विशेष राग में किया जाता है?

उत्तर: हाँ, पारंपरिक रूप से इसे एक विशिष्ट राग में संगीतबद्ध किया जाता है, जो इसे काव्य और भक्तिपूर्ण बनाता है। कई गायकों द्वारा इसे संगीतबद्ध किया गया है।

Q5: क्या महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् सुनने से भी लाभ होता है?

उत्तर: हाँ, यदि कोई पढ़ नहीं सकता तो श्रद्धा से इसका श्रवण करने से भी मानसिक शांति, बल और देवी कृपा प्राप्त होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top