श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् हिन्दू धर्म के भक्तिपूर्ण ग्रंथों में एक अत्यंत शक्तिशाली स्तुति है, जो देवी दुर्गा की महिमा, शक्ति और उनके विविध रूपों का वर्णन करती है। यह स्तोत्र न केवल देवी की आराधना का माध्यम है, बल्कि यह साधकों को आंतरिक बल, साहस, और विपत्तियों से रक्षा प्रदान करने वाला आध्यात्मिक मार्ग भी है।
देवी दुर्गा, शक्ति की सर्वोच्च अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। ‘दुर्गा’ शब्द का अर्थ है — ‘जो दुःखों का नाश करती हैं।’ उनके स्मरण मात्र से साधक भय से मुक्त होकर निर्भीक हो जाता है। श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् के नियमित पाठ से मानसिक शांति, शत्रुओं से रक्षा, और साधना में सफलता प्राप्त होती है।
श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् का इतिहास
श्री दुर्गा स्तोत्रों की रचना प्राचीन ऋषियों, संतों और महापुरुषों ने की थी। कई दुर्गा स्तोत्र प्रसिद्ध हैं, जैसे:
देवी कवच
किलक स्तोत्रम्
इनमें से कई स्तोत्र दुर्गा सप्तशती का ही भाग हैं और उनके पाठ के साथ पढ़े जाते हैं। श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् की रचना भक्तों की श्रद्धा और देवी के प्रति अगाध भक्ति का परिणाम है।
स्तोत्र का स्वरूप और भाषा
श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् संस्कृत में रचित होता है। इसमें देवी के विभिन्न रूपों, जैसे महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती आदि की स्तुति की जाती है। इसके श्लोकों में अद्भुत काव्य सौंदर्य, लय और तात्त्विक गहराई होती है।
इस स्तोत्र में देवी के दश महाविद्याओं, नवदुर्गा, अष्टभुजा, त्रिनेत्री, सिंहवाहिनी आदि स्वरूपों का वर्णन मिलता है। कई श्लोकों में उनके रौद्र रूपों की भी स्तुति की जाती है, जो अधर्म और अन्याय का विनाश करते हैं।
श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् का पाठ कैसे करें?
1. शुद्धता और संकल्प:
पाठ से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
घर के पूजा स्थल या किसी शांत स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
दीपक जलाएं और देवी को पुष्प अर्पित करें।
2. ध्यान:
मन को एकाग्र करें और दुर्गा देवी का ध्यान करें। मंत्र हो सकता है:
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।”
3. स्तोत्र का पाठ:
अब श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें। यदि संस्कृत कठिन लगे, तो हिंदी अनुवाद के साथ करें।
पाठ के बाद देवी से अपनी मनोकामना व्यक्त करें।
4. समापन:
आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं।
स्तोत्र पाठ के बाद कुछ क्षण मौन रहें और देवी के दिव्य रूप का स्मरण करें।
श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् के लाभ
1. भय और संकट से रक्षा: यह स्तोत्र व्यक्ति को अदृश्य भय, दुश्मनों, मानसिक तनाव और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
2. मनोबल और आत्मविश्वास में वृद्धि: देवी की स्तुति करने से साधक का आत्मबल बढ़ता है और वह किसी भी परिस्थिति का सामना कर सकता है।
3. आध्यात्मिक उन्नति: नियमित पाठ साधक को ध्यान, साधना और आत्मबोध के पथ पर अग्रसर करता है।
4. रोगों से मुक्ति: यह माना जाता है कि माँ दुर्गा की कृपा से असाध्य रोग भी दूर हो सकते हैं।
5. परिवार में शांति और समृद्धि: घर में यदि प्रतिदिन या सप्ताह में एक बार भी यह स्तोत्र पढ़ा जाए, तो घर में सुख-शांति और समृद्धि का वातावरण बना रहता है।
दुर्गा स्तोत्र का सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व
भारतवर्ष में विशेषतः नवरात्रि के दिनों में श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् का पाठ बड़े स्तर पर किया जाता है। मंदिरों में, घरों में, सार्वजनिक स्थलों पर देवी के 9 रूपों की पूजा होती है। इस स्तोत्र से न केवल धार्मिक आस्था जुड़ी है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का भी अभिन्न अंग है।
श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम्
श्री गणेशाय नमः|
नगरी प्रवेशले पंडुनंदन | तो देखिले दुर्गास्थान |
धर्मराजा करी स्तवन | जगदंबेचे तेधवा ||१||
जय जय दुर्गे भुवनेश्वरी | यशोदागर्भसंभवकुमारी |
इन्दिरारमणसहोदरी | नारायणी चंडीके अंबीके ||२||
जय जय जगदंबे भवानी | मूळप्रकृती प्रणवरुपिणी |
ब्रह्मानंदपददायिनी | चिद्विलासिनी जगदंबे ||३
जय जय धराधरकुमारी | सौभाग्यगंगे त्रिपुरसुंदरी|
हेरंबजननी अंतरी |प्रवेशी तू अमुचिया ||४||
भक्तहृदयारविंद्रभ्रमरी | तुझिया कृपावलोकने निर्धारी |
अतिमूढ तो निगमार्थ करी | काव्यरचना अद्भुत ||५||
तुझिया आपंगते करून् | जन्मांधासी येती नयन् |
पांगुळ धावे पवनाहून | करी गमन त्वरेने ||६||
जन्माधाराभ्य जो मुका | होय वाचस्पतीसम बोलका |
तू स्वानंदसरोवरमराळिका | होसी भाविका सुप्रसन् ||७||
ब्रम्हानंदे आदि जननी | तव कृपेची नौका करुनी |
दुस्तर भवसिंधु लंघोनी | निवृत्ती तटा नेईजे ||८||
जय जय आदि कुमारीके | जय जय मूळपीठनायिके |
सकल सौभाग्यदायिके | जगदंबिके मूळप्रकृती ||९||
जय जय भर्गप्रियभवानी | भवनाशके भक्तवरदायिनी |
समुद्रकारके हिमनगनंदिनी | त्रिपुरसुंदरी महामाये ||१०||
जय आनंदकासारमराळिके | पद्मनयन दुरितकानन पावके |
त्रिविध ताप भवमोचके | सर्व व्यापके मृडानी ||११||
शिवमानस कनक लतिके | जय चातुर्य चंपक कलिके |
शुंभनिशुंभ दैत्यांतके | निजजनपालके अपर्णे ||१२||
तव मुखकमल शोभा देखोनी | इंदुबिंब गेले गळोनी |
ब्रम्हादिके बाळे तान्ही | स्वानंदसदनी नीजवीसी ||१३||
जीव शीव दोन्ही बालके | अंबे तुवा नीर्मीली कौतुके |
जीव तुझे स्वरुप नोळखे | म्हणोनी पडला आवर्ती ||१४||
शीव तुझे स्मरणी सावचित्त | म्हणोनी अंबे तो नित्यमुक्त |
स्वनंदपद हातासी येत् | कृपे तुझ्या जननीये ||१५||
मेळवुनी पंचभूतांचा मेळ् | तुवा रचिला ब्रह्माडगोळ |
इच्छा परतता तत्काळ | क्षणात निर्मूळ करीसी तू ||१६||
अनंतबालसूर्य श्रेणी | तव प्रभेमाजी गेल्या विरोनी |
सकल सौभाग्य शुभकल्याणी | रमा रमणे वरप्रदे ||१७||
शंबरारि रिपुवल्लभे | त्रैलोक्यनगरारंभस्तंभे |
आदिमाये आदिप्रभे | सकळारंभे मूळप्रकृती ||१८||
जय जय करुणामृतसरीते | निजभक्तपालके गुणभरीते |
अनंत ब्रह्मांडपालके कृपावंते | आदिमाये अपर्णे ||१९||
सच्चिदानंद प्रणवरुपिणी | चराचरजीव सकलव्यापिणी |
सर्गस्थित्यंतकारिणी | भवमोचनी महामाये ||२०||
ऐकोनी धर्मराजाचे स्तवन् | दुर्गादेवी झाली प्रसन्न |
म्हणे तव शत्रू संहारून् | रीज्यी स्थापीन धर्मा तू ते ||२१||
तुम्ही वास करावा येथे | प्रकटो नेदी जनाते |
शत्रू क्षय पावती तुमचे हाते | सुख अद्भुत तुम्हा होय ||२२||
तुवा जे केले स्तोत्रपठण् | हे जो करील पठण श्रवण ||
त्यासी सर्वदा रक्षीन् | अंतर्बाह्य निजांगे||२३||
इति श्री दुर्गास्तोत्र समाप्त
श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् केवल शब्दों का समूह नहीं है, यह एक शक्तिशाली साधना है जो साधक को बाह्य और आंतरिक दोनों तरह की बाधाओं से मुक्त करती है। यह स्तोत्र मातृशक्ति की आराधना के माध्यम से हमें जीवन में स्थिरता, शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। यदि आप अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, आत्मबल, और आध्यात्मिक शांति की तलाश में हैं, तो श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् का नियमित पाठ एक अद्भुत साधन बन सकता है।
प्रमुख हिंदी स्तोत्र | ||
FAQs”
1. श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम् कब पढ़ना चाहिए?
उत्तर: यह स्तोत्र किसी भी दिन पढ़ा जा सकता है, लेकिन नवरात्रि, मंगलवार, शुक्रवार, अष्टमी, नवमी, और अमावस्या के दिन इसका विशेष प्रभाव होता है।
2. क्या स्तोत्र का पाठ महिलाएं कर सकती हैं?
उत्तर: बिल्कुल! स्तोत्र का पाठ स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं। यह स्तुति सभी के लिए है।
3. क्या संस्कृत न जानने वालों के लिए यह कठिन है?
उत्तर: नहीं। अब हिंदी अनुवाद और उच्चारण मार्गदर्शिका के साथ कई संस्करण उपलब्ध हैं। आरंभ में आप हिंदी में पढ़कर भाव समझ सकते हैं।
4. क्या इसे बिना गुरु के पढ़ा जा सकता है?
उत्तर: हाँ, यदि आप श्रद्धा और शुद्ध मन से पढ़ते हैं, तो कोई बाधा नहीं है। यदि संभव हो तो किसी विद्वान या गुरु से मार्गदर्शन लें।
5. क्या केवल पाठ से ही लाभ होता है या नियम भी आवश्यक हैं?
उत्तर: पाठ से लाभ अवश्य होता है, लेकिन नियमितता, शुद्धता और आस्था से उसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।