अर्गला स्तोत्रम् : सनातन धर्म की परंपरा में देवी उपासना का विशेष महत्व है। देवी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्तोत्रों और मंत्रों का पाठ किया जाता है। इन्हीं में से एक विशेष स्तोत्र है “अर्गला स्तोत्रम्”। यह स्तोत्र शक्ति की उपासना का एक अत्यंत प्रभावशाली साधन माना जाता है। यह मुख्यतः दुर्गा सप्तशती (चण्डी पाठ) के साथ पढ़ा जाता है, और इसके पाठ से साधक को दिव्य शक्तियों की प्राप्ति होती है।
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अर्गला स्तोत्र का अर्थ और महत्व
अर्गला का शाब्दिक अर्थ : “अर्गला” शब्द का अर्थ होता है “अवरोध” या “रुकावट”। आध्यात्मिक दृष्टि से इसका तात्पर्य है उन सभी अवरोधों को हटाना जो साधना के मार्ग में बाधा उत्पन्न करते हैं। अर्गला स्तोत्र का पाठ करने से साधक की आंतरिक और बाह्य बाधाएं दूर होती हैं, जिससे वह माँ भगवती की कृपा सहज रूप से प्राप्त कर सकता है।
अर्गला स्तोत्र महत्वपूर्ण विशेषताएँ
दुर्गा सप्तशती से संबद्ध: अर्गला स्तोत्रम् दुर्गा सप्तशती के प्रारंभिक स्तोत्रों में से एक है और इसकी रचना ऋषि मार्कण्डेय द्वारा की गई मानी जाती है।
माँ दुर्गा की विविध रूपों की स्तुति: इसमें भगवती के कई रूपों – महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली – की स्तुति की गई है।
अंतःकरण को शुद्ध करने वाला: यह स्तोत्र मन, बुद्धि और आत्मा को शुद्ध करता है, जिससे साधक की साधना और जीवन दोनों में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
रक्षा कवच: यह स्तोत्र एक कवच की तरह कार्य करता है और नकारात्मक ऊर्जा, भय और संकटों से सुरक्षा प्रदान करता है।
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अर्गला स्तोत्र पाठ विधि
समय और दिन
नित्य पाठ: प्रतिदिन सुबह या शाम स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर पढ़ा जा सकता है।
विशेष दिन: नवरात्रि, अष्टमी, नवमी, अमावस्या, या पूर्णिमा को इसका विशेष फल मिलता है।
स्थान
शांत, स्वच्छ और पूजनीय स्थान पर बैठकर पाठ करें।
माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाकर आरंभ करें।
विधि
संकल्प लें और माँ दुर्गा का ध्यान करें।
“ॐ नमश्चण्डिकायै” मंत्र से आरंभ करें।
शुद्ध उच्चारण के साथ श्लोकों का पाठ करें।
पाठ के बाद प्रार्थना करें और आभार व्यक्त करें।
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अर्गला स्तोत्र के लाभ
मानसिक शांति और आत्मबल में वृद्धि : इस स्तोत्र का नियमित पाठ मानसिक चिंता और भय को दूर करता है। इससे आत्मबल और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
जीवन की बाधाओं का नाश : “अर्गला” का अर्थ ही बाधाओं का निवारण है। अतः यह स्तोत्र जीवन की नकारात्मक ऊर्जा, शत्रु बाधा, रोग और आर्थिक संकट को दूर करता है।
आध्यात्मिक उन्नति : यह स्तोत्र साधना पथ के अवरोधों को दूर करता है और साधक को माँ भगवती के साक्षात्कार की ओर अग्रसर करता है।
शुभ फल की प्राप्ति : नवरात्रि आदि अवसरों पर इसका पाठ विशेष फलदायी होता है। इससे लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा तीनों की कृपा प्राप्त होती है।
अर्गला स्तोत्र: भिन्न नामों से प्रसिद्ध
कुछ स्थानों पर इसे “दुर्गा अर्गला स्तोत्रम्” या “चण्डी अर्गला स्तोत्रम्” के नाम से जाना जाता है। यह मुख्यतः दुर्गा सप्तशती के पूर्वार्ध में आता है और इसे कीलकम् और कवचम् के साथ पढ़ा जाता है।
अर्गला स्तोत्र
ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता,
श्रीजगदम्बाप्रीतयेसप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥
ॐ नमश्चण्डिकायै॥
मार्कण्डेय उवाच
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥1॥
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥2॥
मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥3॥
महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥4॥
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥
शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥6॥
वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥
अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥8॥
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥9॥
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥10॥
चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥11॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥12॥
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥13॥
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥14॥
सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥15॥
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥16॥
प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥17॥
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥18॥
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥19॥
हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥20॥
इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥21॥
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥22॥
देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥23॥
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥24॥
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥25॥
॥ इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
अर्गला स्तोत्रम् केवल एक साधारण स्तुति नहीं है, यह एक आध्यात्मिक साधन है जो साधक को शक्ति, शांति और सफलता की ओर अग्रसर करता है। माँ दुर्गा की यह स्तुति न केवल भय और विघ्नों का नाश करती है, बल्कि साधक को आत्म-ज्ञान और दिव्यता की ओर ले जाती है। इसका पाठ करने वाला साधक एक प्रकार से माँ के संरक्षण कवच में आ जाता है।
जो भी श्रद्धालु इसे नियमित रूप से भावपूर्वक पढ़ता है, उसे निश्चित ही देवी कृपा का अनुभव होता है। यह स्तोत्र हर आयु, हर स्थिति और हर वर्ग के व्यक्ति के लिए उपयुक्त और कल्याणकारी है।
प्रमुख हिंदी स्तोत्र | ||
श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम्
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FAQs”
प्र. 1: अर्गला स्तोत्र का पाठ कौन कर सकता है?
उत्तर: कोई भी श्रद्धालु व्यक्ति इसका पाठ कर सकता है। यह स्तोत्र न केवल साधकों बल्कि सामान्य भक्तों के लिए भी अत्यंत लाभकारी है।
प्र. 2: क्या इसका पाठ बिना गुरु के किया जा सकता है?
उत्तर: हाँ, अर्गला स्तोत्र का पाठ बिना किसी गुरु दीक्षा के भी किया जा सकता है, परंतु सही उच्चारण और भाव आवश्यक हैं।
प्र. 3: क्या इसे रात्रि में पढ़ सकते हैं?
उत्तर: हाँ, यह स्तोत्र दिन और रात्रि दोनों समय पढ़ा जा सकता है। रात्रि के समय इसे शांत वातावरण में पढ़ना अधिक प्रभावशाली माना जाता है।
प्र. 4: स्त्रियाँ मासिक धर्म के दौरान इसका पाठ कर सकती हैं क्या?
उत्तर: परंपरागत दृष्टि से, मासिक धर्म के दौरान स्तोत्र पाठ से परहेज किया जाता है। लेकिन आधुनिक भक्ति दृष्टिकोण इसे व्यक्तिगत श्रद्धा पर निर्भर मानता है।
प्र. 5: क्या अर्गला स्तोत्र से चमत्कार होते हैं?
उत्तर: "चमत्कार" शब्द व्यक्ति की दृष्टि पर निर्भर करता है। यह स्तोत्र मानसिक, आत्मिक और भौतिक स्तर पर सकारात्मक परिवर्तन लाता है, जिसे कई लोग चमत्कार स्वरूप अनुभव करते हैं।
प्र. 6: अर्गला स्तोत्र का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
उत्तर: नियमित एक बार पाठ करना भी पर्याप्त है, परंतु विशेष लाभ के लिए नवरात्रि में प्रतिदिन तीन बार पाठ करना फलदायी माना जाता है।
प्र. 7: क्या इस स्तोत्र का कोई निषेध (prohibition) है?
उत्तर: कोई विशेष निषेध नहीं है। श्रद्धा और आस्था से किया गया कोई भी पाठ मंगलकारी होता है।