हिंदू धर्म में भगवान शिव को संहारक, रक्षक और कल्याणकारी ईश्वर के रूप में पूजा जाता है। भगवान शिव के 12 प्रमुख शक्तिपीठों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। ये तीर्थ स्थान न केवल भारत के धार्मिक नक्शे में विशेष स्थान रखते हैं, बल्कि आध्यात्मिक साधना और मोक्ष की प्राप्ति के केंद्र माने जाते हैं।
इन 12 शिवलिंगों की महिमा का वर्णन ‘द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र’ में किया गया है, जिसे आदिशंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र उन भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो शिव की उपासना करते हैं और उनका आशीर्वाद पाना चाहते हैं।
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इस स्तोत्र में भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों का नाम, उनका स्थान और स्मरण का फल बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र को श्रद्धा से नित्य पाठ करता है, उसके सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है।
12 ज्योतिर्लिंगों का संक्षिप्त परिचय
भारत के 12 ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के शक्तिशाली और पवित्र मंदिर हैं, जहां शिव स्वयं लिंग रूप में प्रकट हुए। ये तीर्थस्थल सोमनाथ, महाकालेश्वर, केदारनाथ, विश्वनाथ जैसे स्थलों पर स्थित हैं। इनका दर्शन जीवन के पापों से मुक्ति, मोक्ष और शिवकृपा प्राप्ति के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।
क्रम | ज्योतिर्लिंग | स्थान | राज्य |
1 | सोमनाथ | सौराष्ट्र, वेरावल | गुजरात |
2 | मल्लिकार्जुन | श्रीशैल | आंध्र प्रदेश |
3 | महाकालेश्वर | उज्जैन | मध्य प्रदेश |
4 | ओंकारेश्वर | नर्मदा नदी, ममलेश्वर | मध्य प्रदेश |
5 | वैद्यनाथ | देवघर | झारखंड |
6 | भीमशंकर | पुणे के पास | महाराष्ट्र |
7 | रामेश्वर | रामेश्वरम | तमिलनाडु |
8 | नागेश्वर | द्वारका के पास | गुजरात |
9 | विश्वनाथ | वाराणसी | उत्तर प्रदेश |
10 | त्र्यंबकेश्वर | नासिक | महाराष्ट्र |
11 | केदारनाथ | हिमालय | उत्तराखंड |
12 | घृष्णेश्वर | एलोरा के पास | महाराष्ट्र |
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ज्योतिर्लिंग की विशेषता
1. सोमनाथ : सोमनाथ पहला ज्योतिर्लिंग है। यह समुद्र के किनारे स्थित है और चंद्रदेव ने यहाँ तपस्या की थी।
2. मल्लिकार्जुन : यह पर्वत पर स्थित है। माता पार्वती और शिव का यह मंदिर दक्षिण भारत का प्रमुख शिवपीठ है।
3. महाकालेश्वर : काल के भी काल — महाकाल। यह मंदिर मृत्यु और काल पर विजय का प्रतीक है।
4. ओंकारेश्वर : यह शिवलिंग ओंकार (ॐ) के आकार में स्थित है। यह द्वीप पर बसा है और यहाँ शिव की दो रूपों में पूजा होती है — ओंकारेश्वर और ममलेश्वर।
5. वैद्यनाथ : शिव यहाँ वैद्य (चिकित्सक) रूप में पूजे जाते हैं। कहते हैं रावण ने यहाँ शिवलिंग स्थापित किया था।
6. भीमशंकर : यह जंगलों के मध्य स्थित है। शिव ने यहाँ त्रिपुरासुर का वध किया था।
7. रामेश्वर : राम भगवान ने यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी, जब वह लंका पर चढ़ाई करने जा रहे थे।
8. नागेश्वर : नागों के देवता के रूप में शिव की यहाँ पूजा होती है। यह राक्षसों से रक्षा का स्थान है।
9. काशी विश्वनाथ : यहाँ शिव साक्षात विश्व के नाथ के रूप में विराजमान हैं। काशी को मोक्ष नगरी कहा गया है।
10. त्र्यंबकेश्वर : गंगा का उद्गम स्थल गोदावरी यहाँ से निकलती है। शिव का त्रिनेत्र यहाँ दर्शनीय है।
11. केदारनाथ : हिमालय में बसा यह तीर्थ कठिन परंतु अत्यंत पवित्र है। यह पंचकेदारों में सबसे प्रमुख है।
12. घृष्णेश्वर : यह शिवलिंग शिवभक्त घृष्णा की तपस्या से प्रकट हुआ। यह मंदिर अजंता-एलोरा के निकट है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र पाठ की विधि
स्थान और समय: प्रातः या संध्या काल में शांत स्थान पर बैठें।
स्नान एवं वस्त्र: शुद्ध स्नान के बाद सफेद या पीले वस्त्र पहनें।
दीपक जलाएं: घी का दीपक जला कर शिवलिंग के समक्ष रखें।
मंत्र से शुरुआत करें: ॐ नमः शिवाय।
फिर द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ करें।श्रद्धा और ध्यान: पाठ के समय मन को एकाग्र रखें और भगवान शिव के स्वरूप का ध्यान करें।
अर्घ्य या जल चढ़ाएँ: हर श्लोक के बाद जल या पुष्प अर्पित कर सकते हैं।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र पाठ से होने वाले लाभ
पुनर्जन्म से मुक्ति: स्तोत्र के अनुसार सात जन्मों के पाप नष्ट होते हैं।
कर्म सुधार: व्यक्ति के कर्म शुद्ध होते हैं और जीवन में सुधार आता है।
धार्मिक पुण्य: हर ज्योतिर्लिंग का स्मरण करने से तीर्थ दर्शन के बराबर फल मिलता है।
मानसिक शांति: नियमित पाठ से चिंता, भय और अस्थिरता समाप्त होती है।
परिवार में सुख-शांति: घर में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
अद्भुत आध्यात्मिक बल: साधना में सफलता मिलती है और भक्ति दृढ़ होती है।
शिव पंचाक्षर नक्षत्रमाला स्तोत्र का पाठ
आधुनिक जीवन में द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का महत्व
आज के व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन में यदि व्यक्ति केवल 5 मिनट निकालकर इस स्तोत्र का पाठ करे, तो मानसिक शांति, आत्मबल और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति हो सकती है। यह एक आध्यात्मिक कवच की भांति कार्य करता है, जो भीतर से व्यक्ति को सशक्त करता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – मूल संस्कृत पाठ
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालम् ॐकारं ममलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चंद्रकलावतंसम् ।
भक्तप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ 1 ॥
श्रीशैलशृंगे विविधप्रसंगे शेषाद्रिशृंगेऽपि सदा वसंतम् ।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेनं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥ 2 ॥
अवंतिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वंदे महाकालमहासुरेशम् ॥ 3 ॥
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैव मांधातृपुरे वसंतं ॐकारमीशं शिवमेकमीडे ॥ 4 ॥
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसं तं गिरिजासमेतम् ।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥ 5 ॥
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि ॥ 6 ॥
श्रीताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः ।
श्रीरामचंद्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥ 7 ॥
याम्ये सदंगे नगरेऽतिरम्ये विभूषितांगं विविधैश्च भोगैः ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ 8 ॥
सानंदमानंदवने वसंतं आनंदकंदं हतपापबृंदम् ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ 9 ॥
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसंतं गोदावरितीरपवित्रदेशे ।
यद्दर्शनात् पातकं पाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यंबकमीशमीडे ॥ 10 ॥
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमंतं संपूज्यमानं सततं मुनींद्रैः ।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥ 11 ॥
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसंतं च जगद्वरेण्यम् ।
वंदे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ॥ 12 ॥
ज्योतिर्मयद्वादशलिंगकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि भगवान शिव के 12 दिव्य रूपों का स्मरण है। यह साधक को अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर करता है, पापों से मुक्त करता है और अंततः भगवान शिव की कृपा प्राप्त करवाता है। नियमपूर्वक इसका पाठ करने से मानसिक शांति, भौतिक उन्नति और मोक्ष तक की प्राप्ति संभव है।
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FAQs”
Q1: क्या द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र बिना दीक्षा के पढ़ा जा सकता है?
उत्तर: हाँ, द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र शुद्ध मन और श्रद्धा से सभी लोग पढ़ सकते हैं। इसे पढ़ने के लिए किसी विशेष दीक्षा की आवश्यकता नहीं है।
Q2: द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
उत्तर: दैनिक एक बार पढ़ना पर्याप्त है। विशेष अवसरों पर तीन बार या 11 बार भी पढ़ सकते हैं।
Q.3: क्या द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र को याद करना आवश्यक है?
उत्तर: नहीं, आप पुस्तक या मोबाइल से भी पढ़ सकते हैं। लेकिन धीरे-धीरे स्मरण करना लाभकारी होता है।
Q4: क्या महिलाएँ द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं?
उत्तर: हाँ, महिलाएँ भी श्रद्धा से द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र पाठ कर सकती हैं। केवल मासिक धर्म के दिनों में पाठ न करने की परंपरा है।
Q5: क्या द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र सुनना भी उतना ही फलदायक है?
उत्तर: हाँ, यदि आप नहीं पढ़ पा रहे हैं तो भावपूर्वक सुनना भी लाभदायक है।
Q6: क्या इन ज्योतिर्लिंगों की यात्रा भी करनी चाहिए?
उत्तर: अवश्य। जीवन में कम से कम एक बार 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने से अद्भुत पुण्य प्राप्त होता है।