हिंदू धर्म की दश महाविद्याओं में से एक हैं – माँ कमला देवी, जिन्हें लक्ष्मी का तांत्रिक स्वरूप माना गया है। इनका पूजन भक्त को न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है, बल्कि भौतिक सुख, वैभव, धन, और शांति भी प्रदान करता है। “माँ कमला स्तोत्र” उनकी स्तुति के लिए अत्यंत प्रभावशाली और सिद्ध मंत्रात्मक स्तोत्र है, जिसका नियमपूर्वक पाठ करने से जीवन में चमत्कारी परिवर्तन संभव होता है।
माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र, लाभ, पाठ विधि और रहस्य जानें
माँ कमला का परिचय
माँ कमला, माँ लक्ष्मी का महाविद्या स्वरूप हैं। उन्हें ‘दश महाविद्याओं’ में दशवीं महाविद्या के रूप में स्थान प्राप्त है। इनका रूप अत्यंत शांत, शुभ्र और कोमल है, किंतु भीतर अद्वितीय तांत्रिक शक्ति समाहित है। ये विष्णुपत्नी के रूप में पूजी जाती हैं, जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं।
माँ कमला अन्य नाम:
श्रीकमला
तांत्रिक लक्ष्मी
वैश्णवी महाशक्ति
धूमावती स्तोत्र, दस महाविद्याओं की रहस्यमयी शक्ति
माँ कमला स्तोत्र क्या है?
“माँ कमला स्तोत्र” एक विशेष स्तुति है जिसमें देवी के दिव्य स्वरूप, गुण, शक्ति और कृपा का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र संस्कृत में है और विशेष रूप से धन-संपत्ति, सौभाग्य, संतोष, और विजय की प्राप्ति हेतु सिद्ध माना गया है।
माँ कमला स्तोत्र का महत्त्व
यह स्तोत्र मंत्रोच्चारण और स्तुति का संगम है।
इसमें देवी कमला की 24, 32 या 108 नामों का समावेश भी होता है।
यह संपत्ति, ऐश्वर्य, सफलता, सौंदर्य और कर्म-सिद्धि का सूचक है।
माँ कमला स्तोत्र के लाभ
इस स्तोत्र के नियमित पाठ से धन, वैभव, सौभाग्य और शांति की प्राप्ति होती है। यह आर्थिक संकट दूर करता है, व्यापार में वृद्धि लाता है और तांत्रिक बाधाओं से रक्षा करता है। साधना में सफलता और पारिवारिक सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
लाभ | विवरण |
---|---|
🪙 धन और वैभव | आर्थिक स्थिति में सुधार होता है, ऋण मुक्ति मिलती है। |
🙏 कर्म फल सिद्धि | जो कार्य अटक गए हों, वे गति पकड़ते हैं। |
🏠 घर में शांति | पारिवारिक तनाव, क्लेश, वाद-विवाद दूर होते हैं। |
💰 व्यापार में लाभ | व्यापार में वृद्धि, मुनाफा और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। |
🧘 ध्यान और साधना में सफलता | साधक को साधना में विशेष अनुभव और सिद्धि मिलती है। |
🕉️ तांत्रिक बाधा से रक्षा | यदि किसी पर तांत्रिक प्रयोग किए गए हों तो वह निष्क्रिय हो जाते हैं। |
तारा देवी स्तोत्र: महत्व, लाभ, विधि और सम्पूर्ण जानकारी
माँ कमला स्तोत्र पाठ विधि
प्रातः स्नान कर स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। देवी की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाकर कमलगट्टे की माला से स्तोत्र का पाठ करें। कमल पुष्प, पीला चंदन, और मिठाई अर्पित करें। शुक्रवार या पूर्णिमा के दिन पाठ विशेष फलदायक होता है।
स्थान और वातावरण: शांत और स्वच्छ पूजा स्थान चुनें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करें।
वस्त्र: स्वच्छ, पीले या लाल वस्त्र पहनें। महिलाएँ साड़ी और पुरुष धोती या कुर्ता पहन सकते हैं।
मंत्र उच्चारण से पूर्व ध्यान करें: “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कमलवासिन्यै नमः”
दीपक और धूप: गाय के घी का दीपक जलाएं, कमलगट्टे की माला रखें।
अर्पण: कमल पुष्प, पीला चंदन, केसर, और मिश्री अर्पित करें।
नियम: कम से कम 21 दिन तक लगातार पाठ करें। विशेष रूप से शुक्रवार को इसका प्रभाव तीव्र होता है।
भोग: खीर, मिठाई, या नारियल का भोग रखें।
माँ कमला स्तोत्र का भावार्थ (श्लोक अनुसार)
श्लोक 1: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कमलवासिन्यै नमः
भावार्थ: मैं उस देवी को नमन करता हूँ जो कमल पर विराजमान हैं, सौंदर्य, वैभव और आनंद की प्रतीक हैं।
श्लोक 2: पद्मासनस्थितायै नमः
भावार्थ: जो पद्मासन में स्थित हैं, स्थिर चित्त और ध्यान की अधिष्ठात्री हैं।
श्लोक 3: विष्णुप्रियायै नमः
भावार्थ: जो भगवान विष्णु को प्रिय हैं और उनके हृदय में निवास करती हैं।
माँ भुवनेश्वरी स्तोत्र, पाठ, लाभ, विधि और FAQ हिंदी में
माँ कमला की साधना तिथियाँ
माँ कमला की साधना के लिए दीपावली अमावस्या, कोजागरी पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा और प्रत्येक शुक्रवार अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इन दिनों में साधना करने से देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे धन, सौभाग्य और आध्यात्मिक सिद्धि सहज रूप से प्राप्त होती है।
तिथि | अवसर |
🌑 दीपावली अमावस्या | विशेष लक्ष्मी पूजन |
🌕 पूर्णिमा | साधना की सिद्ध रात |
📅 शुक्रवार | माँ लक्ष्मी/कमला का प्रिय दिन |
🪷 कोजागरी पूर्णिमा | धन और संपत्ति की प्राप्ति हेतु |
माँ कमला की उपासना में विशेष वस्तुएँ
कमलगट्टे की माला – सिद्धि के लिए अनिवार्य
पीली साड़ी – देवी को अर्पित की जाती है
स्वर्ण/पीतल की मूर्ति या चित्र – ध्यान हेतु
गुड़-धनिया भोग – देवी को प्रिय
माँ कमला स्तोत्र का महत्व
आज के युग में जब लोग धन, सफलता, मानसिक शांति और पारिवारिक संतुलन की तलाश में हैं, माँ कमला की साधना विशेष रूप से लाभकारी है। विशेषकर जो लोग:
व्यवसायी हैं
आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं
जीवन में स्थिरता चाहते हैं
आध्यात्मिक मार्ग पर चलना चाहते हैं
उनके लिए यह स्तोत्र अद्वितीय वरदान है।
दस महाविद्याओं में माँ कमला का महत्त्व
दस महाविद्याएँ तंत्र शास्त्र की दस प्रमुख देवियाँ हैं, जो ब्रह्मांड की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनमें माँ कमला को दसवीं महाविद्या के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। माँ कमला, देवी लक्ष्मी का ही तांत्रिक स्वरूप हैं और उन्हें वैभव, समृद्धि, और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
माँ कमला का महत्त्व दस महाविद्याओं में
जहाँ अन्य महाविद्याएँ उग्र रूप में प्रतिष्ठित हैं, वहीं माँ कमला सौम्य, शांत और दयालु स्वरूप में हैं।
वे भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की संपन्नता प्रदान करती हैं।
माँ कमला ध्यान, योग, और धन-सिद्धि की सशक्त देवी हैं।
उनके पूजन से तांत्रिक बल, गृह लक्ष्मी की कृपा, और जीवन में स्थायित्व प्राप्त होता है।
वे ही एकमात्र महाविद्या हैं जो भगवान विष्णु के साथ संबद्ध हैं, अन्य सभी शिव तत्त्व से जुड़ी हैं।
इस प्रकार, माँ कमला दस महाविद्याओं में संतुलन, वैभव और सौम्यता की प्रतीक हैं और साधक को दिव्य और सांसारिक दोनों लक्ष्यों की प्राप्ति कराती हैं।
माँ कमला स्तोत्र
श्री परमेश्वर उवाच (श्री भगवान उवाच )
ओंकाररूपिणी देवी विशुद्ध-सत्व-रूपिणी।
देवानां जननी त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 1 ॥
ओंकाररूपिणी देवी अलौकिकसत्त्वरूपिणी।
देवानां जननि त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरि ॥ ॥
तन्मात्रं चैव भूतानि तव वक्ष-स्थलं स्मृतम्।
त्वमेव वेदगम्य तु प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 2 ॥
तन्मात्रांचैव भूतानि तव मोक्षस्थलं स्मृतम्।
त्वमेव वेदगम्य तु प्रसन्ना भव सुन्दरी॥ 2॥
देव दानव गंधर्व यक्ष राक्षस किन्नर:।
स्तुयसे त्वं सदा लक्ष्मी प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 3 ॥
देव दानव गन्धर्व यक्ष राक्षस किन्नरः।
स्तुयसे त्वं सदा लक्ष्मी प्रसन्ना भव सुन्दरी ॥ 3 ॥
लोकातीता द्वैतिता समस्ता भूत वेष्टिता।
विद्वज जन कीर्तिता च प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 4 ॥
लोकातीता द्वैतातीता सर्वभूतवेष्टिता।
विद्वज्जनकीर्त्तिता च प्रसन्ना भव सुन्दरति ॥ 4 ॥
परिपूर्ण सदा लक्ष्मी त्रात्रि तु शरणार्थीषु।
विश्वद्य विश्वकात्रीं च प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 5 ॥
सुन्दरा सदा लक्ष्मी त्रात्रि तु शरणार्थिशु।
विश्वाद्या विश्वकत्रिं च प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ 5 ॥
ब्रह्मरूपा च सावित्री त्वद-दिप्त्या भासते जगत्।
विश्वरूपा वरेण्यं च प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 6 ॥
ब्रह्मरूपा च सत्या त्वद्दीप्त्या भासते जगत्।
विश्वरूपा वरेण्यं च प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ 6 ॥
क्षितिप-तेजो-मरुद-व्योम-पंच-भूत-स्वरूपिणी।
बंधदेहः कारणं त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 7 ॥
क्षित्यपतेजोमरुद्योमपञ्चभूतस्वरूपिणी।
बन्धादेः कारणं त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 7 ॥
महेशे त्वं हेमवती कमला केशवेपि च।
ब्राह्मणः प्रेयसी त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 8 ॥
महेशे त्वं हेमवती कमला केशवेऽपि च।
ब्रह्मणः प्रियसी त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ 8॥
चण्डी दुर्गा कालिका च कौशिकी सिद्धिरूपिणी।
योगिनी योगगम्य च प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 9 ॥
चण्डी दुर्गा कालिका च काशी सिद्धिरूपिणी।
योगिनी योगगम्य च प्रसन्ना भव सुन्दरी ॥ 9 ॥
बाल्ये च बालिका त्वं हि यौवने युवति च।
स्थविरे वृद्धरूपा च प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 10 ॥
बाल्ये च लहसुन त्वं हि यौवनेसीति च।
स्थविरे वृद्धरूपा च प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ 10 ॥
गुणमयी गुणातीता आद्य विद्या सनातनी।
महत्-तत्ववादी-संयुक्ता प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 11 ।
गुणमयी विद्या गुणातीता आद्या सनातनी।
महत्तत्त्वादिसंयुक्ता प्रसन्ना भव सुन्दरी ॥ ॥
तपस्विनी तपः सिद्धि स्वर्ग-सिद्धि-स्तदर्थिशु।
चिन्मयी प्रकृतिस्त्वं तु प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 12 ॥
तपस्विनी तपः सिद्धि स्वर्गसिद्धिस्तादर्थिशु।
चिन्मयी प्रकृतिस्त्वं तु प्रसन्ना भव सुन्दरी॥ 12 ॥
त्वम्-आदिर-जगतं देवि त्वमेव स्थिति-कारणम्।
त्वमन्ते निधन-स्थानं स्वेच्चचारा त्वमेवहि ॥ 13 ॥
त्वमादीर्जगतां देवि त्वमेव स्थितिकरणम्।
त्वमन्ते निधनस्थानं चाचारा त्वमेवही ॥ 13 ॥
चराचरणं भूतानां बहिर-अंत-स्तवमेव हि।
व्याप्य-व्याक-रूपेण त्वं भासि भक्त-वत्सले ॥ 14 ॥
चराचरणं भूतानां बहिरन्तस्त्वमेव हि।
व्याप्यव्याकरूपेण त्वं भासि भक्तवत्सले ॥ 14॥
त्वन्-मैया हृत-अज्ञान नष्टात्मनो विक्तसः।
गतागतं प्रपद्यन्ते पाप-पुण्य-वशात्-सदा ॥ 15 ॥
त्वन्मयया हृतज्ञान नष्टात्मानो विचेतसः।
गतागतं प्रपद्यन्ते पापपुण्यवशात्सदा ॥ 15 ॥
त्वन्-सत्यं जगत्-भाति शुक्तिका-रजातं यथा ।
यवन्ना ज्ञायते ज्ञानं चेतसा ननवगामिनी ॥ 16 ॥
तवनस्त्यं जग्भाति शुक्तिकारजतं यथा।
यवन्न ज्ञाते ज्ञानं चेतसा नानवगामिनी ॥ 16॥
त्वज-ज्ञानत्तु सदा युक्त: पुत्रदार-गृहादिषु।
रमन्ते विषयान-सर्वानन्ते दुःखप्रदान ध्रुवम् ॥ 17 ॥
त्वज्ज्ञानत्तु सदा युक्तः पुत्रदार्गृहादिषु।
रमन्ते विषयान्सर्वानन्ते दुःखतख् ध्रुवम् ॥ 17 ॥
त्वदाजन्य तु देवेशी गगन सूर्यमंडलम।
चंद्रश्च भ्रमते नित्यं प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 18 ॥
त्वदज्ञया तु देवेशि गग्ने सूर्यमंडलम्।
चन्द्रश्च भ्रमते नित्यं प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ आठ ॥
ब्रह्मेश-विष्णु-जननी ब्रह्मख्या ब्रह्म-संश्रय।
व्यक्तव्यक्त च देवेशि प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 19 ॥
ब्रह्मेशविष्णुजननि ब्रह्माख्या ब्रह्मसंश्रया:।
व्यक्तव्यक्त च देवेषि प्रसन्ना भव सुन्दरी ॥ 19 ॥
अचला सर्वगा त्वं हि मायातीता महेश्वरी।
शिवात्मा शाश्वत नित्य प्रसन्न भव सुंदरी ॥ 20 ॥
अचला सर्वगा त्वं हि मायातीता महेश्वरी।
शिवात्मा शाश्वता नित्या प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 20॥
सर्वकाया-नीयन्त्रि च सर्व-भूतेश्वरी।
अनंत निष्कल त्वं हि प्रसन्ना भवसुंदरी ॥ 21 ॥
सर्वकायनन्त्री च सर्वभूतेश्वरी।
अनंता निष्कला त्वं हि प्रसन्ना भवसुंदरि ॥ 21 ॥
सर्वेश्वरी सर्ववद्य अचिन्त्य परमात्मिका।
भुक्ति-मुक्ति-प्रदा त्वं हि प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 22 ॥
सर्वेश्वरी सर्वविद्या अचिन्त्य परमात्मिका:।
भुक्तिमुक्तिप्रदा त्वं हि प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ 22 ॥
ब्राह्मणी ब्रह्मलोके त्वं वैकुंठे सर्व-मंगला।
इन्द्राणि अमरवत्यम-अम्बिका वरुणाले ॥ 23 ॥
ब्रह्मानि ब्रह्मलोके त्वं वैकुंठे सर्वमंगला।
इन्द्राणी अमरावत्यम्बिका वरुणालये ॥ 30 ॥
यमलये कालरूपा कुबेर-भावने शुभा ।
महानंदाग्निकोने च प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 24 ॥
यमालये कालरूपा कुबेरभवने शुभा।
महानंदाग्निकोणे च प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ 24॥
नैऋत्यं रक्तदन्त त्वं वायव्यं मृग-वाहिनी ।
पाताले वैष्णवी-रूपा प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 25 ॥
नैऋत्यं रक्तदन्त त्वं वायव्यां मृगवाहिनी।
पाताले वैष्णवीरूपा प्रसन्ना भव सुन्दरी ॥ 25 ॥
सुरसा त्वं मणिद्वीपे ऐषान्यां शूलधारिणी ।
भद्रकाली च लंकायां प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 26 ॥
सुरसा त्वं मणिद्वीपे आषान्यां शूलधारिणी।
भद्रकाली च लङ्कायां प्रसन्ना भव सुन्दरी॥ 26 ॥
रामेस्वरी सेतुबंधे सिंहले देवमोहिनी ।
विमला त्वं च श्रीक्षेत्रे प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 27 ॥
रामवाणी सेतुबंधे सिंहले देवमोहिनी।
विमला त्वं च श्रीक्षेत्रे प्रसन्ना भव सुंदरि ॥ 27 ॥
कालिका त्वं कालीघाटे कामाख्या नीलपर्वत।
विरजा ओद्रदेशे त्वं प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 28 ॥
कालिका त्वं कालीघाटे कामाख्या नीलपर्वत।
विरजा ओद्रदेशे त्वं प्रसन्ना भव सुंदरि ॥ 28 ॥
वर्णनस्याम्-अन्नपूर्णा अयोध्यायां महेश्वरी।
गयासूरि गयाधामनि प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 29 ॥
वराणस्यामन्नपूर्णा अयोध्यायां महेश्वरी।
गया सुरि धामनि प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 29 ॥
भद्रकाली कुरुक्षेत्रे त्वंच कात्यायनी व्रजे ।
महामाया द्वारकायाम् प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 30 ॥
भद्रकाली कुरुक्षेत्रे त्वंच कात्यायनी वृजे।
महामाया द्वारकायां प्रसन्ना भव सुन्दरी ॥ 30 ॥
क्षुधा त्वं सर्वजीवनं वेला च सागरस्य हि ।
महेश्वरी मथुरायं च प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 31 ॥
क्षुधा त्वं सर्वजीवनां वेला च सागरस्य हि।
महेश्वरी मथुरायां च आकर्षका भव सुन्दरी॥ 31 ॥
रामस्य जानकी त्वं च शिवस्य मनमोहिनी ।
दक्षस्य दुहिता चैव प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 32 ॥
रामस्य जानकी त्वं च शिवस्य मनमोहिनी।
दक्षस्य दुहिता चैव प्रसन्ना भव सुन्दरी ॥ 32 ॥
विष्णु-भक्ति-प्रदानं त्वं च कंसासुर-विनाशिनी।
रावण-नाशिनां चैव प्रसन्ना भव सुंदरी ॥ 33 ॥
विष्णुभक्तिप्रदां त्वं च कंसासुरविनाशिनी।
रावणानाशिनां चैव प्रसन्ना भव सुन्दरी ॥ 33 ॥
लक्ष्मी-स्तोत्रम्-इदं पुण्यं यः पथेद्-भक्ति-संयुतः ।
सर्व-ज्वर-भयं नश्येत्-सर्व-व्याधि-निवारणम् ॥ 34 ॥
लक्ष्मीस्तोत्रमिदं पुण्यं यः पत्थेद्भक्तिससंयुतः।
सर्वज्वरभ्यं नश्येत्सर्वव्याधिनिवारणम् ॥ 34 ॥
इदं स्तोत्रं महा-पुण्यं-अपाद-उद्धार-कारणम् ।
त्रि-संध्याम-एक-संध्यां वा यः पठेत-सततः नरः ॥ 35 ॥
इदं स्तोत्रं महापुण्यमापादुद्धारकरणम्।
त्रिसंध्यमेकसन्ध्यं वा यः पथेत्सतं नरः ॥ 35 ॥
मुच्यते सर्व-पापेभ्यो तथा तु सर्वसंकट :।
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले ॥ 36 ॥
मुच्यते सर्वपापेभ्यो तथा तु सर्वसंकटत्।
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले॥ 36 ॥
समस्तं च तथा चाइकं यः पथेद-भक्तित-पराः ।
स सर्व-दुष्करं तीरत्वा लभते परमं गतिम् ॥ 37 ॥
समग्रं च तथा चाकं यः पथेद्भक्तित्परः।
स सर्वदुष्करं तीर्थ्वा लभते परमं गतिम् ॥ 37 ॥
सुखदं मोक्षादं स्तोत्रं यः पथेद-भक्ति-संयुक्तः ।
सा तु कोटि-तीर्थ-फलं प्राप्नोति नात्र संशयः ॥ 38 ॥
सुखदं मोक्षदं स्तोत्रं यः पथेद्भक्तिसंयुक्तः।
स तु कोटितीर्थफलं प्राप्नोति नात्र संशयः ॥ 38 ॥
एका देवी तु कमला यस्मिस्तुष्ठा भवेत्-सदा।
तस्यऽसाध्यं तु देवेषि नास्तिकिन्चिज-जगत त्रये ॥ 39 ॥
एका देवी तु कमला यस्मिनस्तुस्ता भवेत्सदा।
तस्याऽसाध्यं तु देवेषि नास्तिकिञ्जगत त्रये ॥ 39 ॥
पथनाद-अपि स्तोत्रस्य किं न सिद्धयति भूतले।
तस्मात्-स्तोत्र-वरं प्रोक्तं सत्यं हि पार्वती ॥ 40 ॥
पादादपि स्तोत्रस्य किं न सिद्धयति भूतले।
तस्मात्स्तोत्रवरं प्रोक्तं सत्यं हि पार्वती ॥ 40॥
॥ इति श्रीकमला स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ ॥ इति श्रीकमला स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
“माँ कमला स्तोत्र” न केवल एक स्तुति है, बल्कि यह ध्यान, सिद्धि, समृद्धि और संतुलन की ओर ले जाने वाला मार्ग है। इसकी ऊर्जा और शक्ति को जो श्रद्धा और भक्ति से ग्रहण करता है, उसके जीवन में सुख, शांति, धन और दिव्यता का संचार होता है।
प्रमुख हिंदी स्तोत्र | ||
श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम | ||
दस महाविद्या स्तोत्र | ||
माँ भुवनेश्वरी स्तोत्र | ||
माँ धूमावती स्तोत्र |
FAQs”
Q1: माँ कमला स्तोत्र का पाठ कौन कर सकता है?
उत्तर: कोई भी स्त्री या पुरुष श्रद्धा से इसका पाठ कर सकता है। यह सभी के लिए फलदायी है।
Q2: क्या बिना दीक्षा के इसका पाठ किया जा सकता है?
उत्तर: हाँ, स्तोत्र का पाठ बिना दीक्षा के किया जा सकता है। केवल मंत्र-जप के लिए दीक्षा की आवश्यकता होती है।
Q3: क्या घर में ही स्तोत्र का पाठ करना उचित है?
उत्तर: बिल्कुल, घर में शांत और पवित्र स्थान पर माँ का पूजन कर स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।
Q4: स्तोत्र कितने समय में समाप्त हो जाता है?
उत्तर: सामान्य रूप से 10 से 15 मिनट में संपूर्ण स्तोत्र पढ़ा जा सकता है।
Q5: क्या इस स्तोत्र से तांत्रिक सिद्धि भी संभव है?
उत्तर: यदि गुरु मार्गदर्शन में तांत्रिक साधना की जाए तो सिद्धि भी प्राप्त की जा सकती है, परंतु साधारण पाठ से भी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
Q6: क्या स्तोत्र के साथ लक्ष्मी मंत्रों का जाप करना चाहिए?
उत्तर: हाँ, यदि संभव हो तो "ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः" या "ॐ श्रीं कमलायै नमः" का जाप भी करें।
Q7: माँ कमला और लक्ष्मी में क्या अंतर है?
उत्तर: माँ लक्ष्मी वैदिक स्वरूप हैं, जबकि माँ कमला तांत्रिक महाविद्या स्वरूप हैं। दोनों का मूल एक है, किंतु मार्ग भिन्न है।