माता मातंगी का परिचय
माता मातंगी दस महाविद्याओं में से एक हैं। इन्हें तंत्रशास्त्र में “वाणी की देवी”, “ज्ञान की अधिष्ठात्री”, तथा “त्रिकालदर्शिनी” कहा गया है। मातंगी देवी को “उच्च वर्ग से बाहर की” अथवा “वर्जित मार्ग की देवी” माना गया है, जो यह दर्शाता है कि वे सामाजिक बंधनों से परे हैं और आंतरिक शुद्धता एवं सच्ची साधना को प्राथमिकता देती हैं।
देवी सरस्वती की ही एक तांत्रिक रूप में पूजनीय माता मातंगी का स्थान उन साधकों के लिए विशेष है जो वाणी, संगीत, लेखन, विद्वता, और रहस्यमयी साधनाओं में सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं।
उनका स्वरूप हरे रंग का माना गया है और वे वीणा धारण करती हैं, जिससे संकेत मिलता है कि वे संगीत और वाणी की देवी हैं। वे अपवित्रता और शुद्धता दोनों से परे हैं—और इसी कारण वे “अवधूत” मार्ग की भी अधिष्ठात्री कही जाती हैं।
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मातंगी स्तोत्र का महत्व
“मातंगी स्तोत्र” एक शक्तिशाली तांत्रिक स्तुति है, जो विशेष रूप से वाणी सिद्धि, अद्भुत स्मरण शक्ति, आकर्षण शक्ति, वशीकरण, एवं ज्ञान की प्राप्ति के लिए उपयोग में लाई जाती है। इसे श्रद्धापूर्वक पढ़ने से साधक को मानसिक शांति, त्वरित उत्तर और दिव्य संकेत प्राप्त होते हैं।
मातंगी स्तोत्र
वाणी दोष दूर करता है।
लेखन और वक्तृत्व में सहायता करता है।
कला-संगीत-साहित्य में रुचि और प्रतिभा बढ़ाता है।
हठी शत्रु या दुर्भावनापूर्ण संबंधों को नियंत्रण में लाने में सहायक होता है।
मातंगी स्तोत्र की व्याख्या
मातंगी स्तोत्र में देवी की महिमा, रूप, गुण, एवं शक्तियों का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र मुख्यतः चार विषयों पर केंद्रित है:
देवी का दिव्य स्वरूप: हर श्लोक देवी के भव्य और रहस्यमयी स्वरूप का चित्रण करता है, जैसे हरे रंग का वर्ण, संगीत के साथ संबंध आदि।
ज्ञान का स्रोत: देवी को “सर्वविद्या स्वरूपा” कहा गया है, जो दर्शाता है कि समस्त ज्ञान उन्हीं से उत्पन्न होता है।
वाणी और संगीत पर नियंत्रण: स्तोत्र में देवी की वीणा, वाणी शक्ति और चित्ताकर्षक स्वरूप की विशेष चर्चा है।
साधक की रक्षा: प्रत्येक पंक्ति में साधक देवी से आश्रय, सुरक्षा और मार्गदर्शन की याचना करता है।
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मातंगी स्तोत्र साधना विधि
मातंगी स्तोत्र की साधना विशेषतः वाणी सिद्धि, आकर्षण शक्ति, अथवा उच्च विद्या के लिए की जाती है। इसकी साधना विधि निम्नलिखित है:
आवश्यक सामग्री:
हरे वस्त्र
हरा आसन (कुशा या वील्व पत्र पर बैठना उत्तम)
शुद्ध घी का दीपक
दूर्वा, तुलसी या नीलकमल की माला
मातंगी यंत्र (यदि उपलब्ध हो)
शांत, एकांत स्थान
समय:
रात्रि में (विशेष रूप से चतुर्दशी, अमावस्या या बुधवार)
नवमी या त्रयोदशी तिथि भी श्रेष्ठ मानी जाती है
प्रक्रिया:
स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
पहले गणपति, गुरु और इष्ट देव का स्मरण करें।
मातंगी देवी का ध्यान करें:
“ॐ ह्रीं ऐं मातंग्यै नमः” से ध्यान शुरू करें।
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फिर स्तोत्र का पाठ करें (कम से कम 11 बार)।
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अंत में देवी से प्रार्थना करें और अपना संकल्प प्रकट करें।
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मातंगी स्तोत्र लाभ व सावधानियाँ
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मातंगी स्तोत्र लाभ
वाणी दोष समाप्त होता है।
कला, संगीत, लेखन, और वक्तृत्व में चमत्कारी सुधार होता है।
विद्या, बुद्धि, स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है।
समाज में आकर्षण और वश में करने की शक्ति प्राप्त होती है।
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मातंगी स्तोत्र सावधानियाँ
देवी मातंगी तांत्रिक देवी हैं—साधना में शुद्धता, निष्ठा और मर्यादा अत्यंत आवश्यक है।
निंदा, अपवित्रता, वाणी का दुरुपयोग साधना में बाधा बनता है।
स्तोत्र का पाठ मनोरंजन या दिखावे के लिए न करें—यह मंत्र शक्ति से युक्त है।
दस महाविद्याओं में मातंगी देवी की भूमिका
दस महाविद्याओं में मातंगी देवी की भूमिका अत्यंत रहस्यमयी, विशिष्ट और साधना के गूढ़ मार्ग का संकेत करती है। वे इन दस महाविद्याओं में नवम स्थान पर प्रतिष्ठित हैं।
मातंगी देवी की भूमिका और महत्व
(क) तांत्रिक सरस्वती
मातंगी को सरस्वती का तांत्रिक रूप माना जाता है। यदि सरस्वती शुद्ध, सात्त्विक ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री हैं, तो मातंगी उस ज्ञान का गूढ़, रहस्यमय और प्रयोगात्मक रूप हैं। वह “वाणी, संगीत, विद्या, स्मृति, वश, आकर्षण और मनोविज्ञान” की देवी हैं।
(ख) वर्जित मार्ग की देवी:
मातंगी उन शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो समाज द्वारा ‘वर्जित’ या ‘अपवित्र’ मानी जाती हैं। परंतु तंत्र शास्त्र में यही वर्जनाएं आत्मा की मुक्ति का साधन बनती हैं।
उदाहरण:
वे अछूत कन्या के रूप में पूजनीय हैं।
उन्हें अन्न का भोग, विशेषतः जूठन (उच्छिष्ट) पसंद है।
साधक को अहंकार, शुद्धता-अशुद्धता के द्वैत से ऊपर उठना होता है।
(ग) ज्ञान और नियंत्रण की शक्ति:
मातंगी देवी वह शक्ति हैं जो विचारों, वाणी और भावनाओं को नियंत्रित कर सकती हैं। उनके आशीर्वाद से:
वाणी में प्रभाव और आकर्षण आता है।
लेखन, संगीत, कला में विलक्षणता आती है।
लोगों और विचारों को अपने पक्ष में मोड़ा जा सकता है।
(घ) दस महाविद्याओं में संतुलन की शक्ति:
यदि काली और भैरवी जैसे रूप उग्र हैं, और त्रिपुरसुंदरी सौम्य है, तो मातंगी इन दोनों धाराओं के बीच पुल की भूमिका निभाती हैं। वे गंभीर तंत्रमार्ग को संतुलित करने वाली सौंदर्य और विद्या की शक्ति हैं।
मातंगी साधना का उद्देश्य
महाविद्याओं की साधना मूलतः आत्मोत्थान और जगत को नियंत्रित करने के लिए की जाती है। मातंगी की साधना में साधक को:
अपनी वाणी को शुद्ध और प्रभावी बनाना होता है।
मन और इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त करना होता है।
आकर्षण और सम्मोहन जैसी सिद्धियाँ अर्जित करनी होती हैं।
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प्रतीकात्मक अर्थ
हरित वर्ण (हरा रंग): प्रकृति, संगीत, हृदय चक्र से जुड़ा हुआ है।
वीणा: सृजनात्मकता, ज्ञान और तालमेल का प्रतीक।
उच्छिष्ट भोग: “अहम” का विसर्जन और तात्त्विक एकत्व का प्रतीक।
मातङ्गी स्तोत्रम्
नमामि वरदां देवीं सुमुखीं सर्वसिद्धिदाम् ।
सूर्यकोटिनिभां देवीं वह्निरूपां व्यवस्थिताम् ॥ १॥
रक्तवस्त्र नितम्बां च रक्तमाल्योपशोभिताम् ।
गुंजाहारस्तनाढ्यान्तां परंज्योतिस्वरूपिणीम् ॥ २॥
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनाकर्ष दायिनी ।
मुण्ड कर्त्रिं शरावामां परंज्योतिस्वरूपिणीम् ॥ ३॥
स्वयम्भुकुसुम प्रीतां ऋतुयोनिनिवासिनीम् ।
शवस्थां स्मेरवदनां परंज्योतिस्वरूपिणीम् ॥ ४॥।
रजस्वला भवेन्नित्यं पूजेष्टफलदायिनी ।
मद्यप्रियं रतिमयीं परंज्योतिस्वरूपिणीम् ॥ ५॥
शिवविष्णुविरञ्चीनां साद्यां बुद्धिप्रदायिनीम् ।
असाध्यं साधिनीं नित्यां परंज्योतिस्वरूपिणीम् ॥ ६॥
रात्रौ पूजा बलियुतां गोमांस रुधिरप्रियाम् ।
नानाऽलङ्कारिणीं रौद्रीं पिशाचगणसेविताम् ॥ ७॥
इत्यष्टकं पठेद्यस्तु ध्यानरूपां प्रसन्नधीः ।
शिवरात्रौ व्रतेरात्रौ वारूणी दिवसेऽपिवा ॥ ८॥
पौर्णमास्याममावस्यां शनिभौमदिने तथा ।
सततं वा पठेद्यस्तु तस्य सिद्धि पदे पदे ॥ ९॥
इति एकजटा कल्पलतिका शिवदीक्षायान्तर्गतम् मातङ्गी स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
दस महाविद्याओं में मातंगी वह रहस्यमयी शक्ति हैं जो साधक को वाणी, मन, विचार, ज्ञान और इच्छा पर विजय दिलाती हैं। वे हमें यह सिखाती हैं कि शक्ति केवल बाह्य रूप में नहीं, अपितु वाणी, विचार और भावनाओं पर नियंत्रण में भी निहित है।
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FAQs”
Q1. क्या मातंगी स्तोत्र हर कोई पढ़ सकता है?
उत्तर: हाँ, लेकिन भाव और भक्ति के साथ। यदि आप मंत्र सिद्धि चाहते हैं, तो किसी गुरु से मार्गदर्शन लेना उचित रहेगा।
Q2. क्या स्तोत्र पढ़ने के लिए ब्राह्मण होना आवश्यक है?
उत्तर: नहीं, माता मातंगी सभी जातियों और वर्गों के लिए हैं। उनका स्वरूप ही वर्जित मार्ग का प्रतीक है—वे शुद्ध मन की चाह रखती हैं, न कि जाति की।
Q3. क्या इस स्तोत्र से वाणी सिद्धि होती है?
उत्तर: हाँ, नियमित और विधिपूर्वक पाठ करने पर वाणी में तेज, आकर्षण, और प्रभाव आता है।
Q4. कितने समय तक इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए?
उत्तर: कम से कम 21, 40 या 108 दिनों तक लगातार, हर दिन एक निश्चित समय पर पाठ करें
Q5. क्या मातंगी स्तोत्र को रात्रि में पढ़ सकते हैं?
उत्तर: हाँ, रात्रि में पाठ अधिक प्रभावशाली माना गया है, विशेषतः अमावस्या और त्रयोदशी पर।