माँ भैरवी स्तोत्र, लाभ, पाठ विधि और रहस्य

माँ भैरवी स्तोत्र

माँ भैरवी स्तोत्र, लाभ, पाठ विधि और रहस्य

माँ भैरवी स्तोत्र : भारतीय सनातन धर्म में देवी-पूजा की एक अत्यंत प्रभावशाली और रहस्यमयी शाखा है — शक्ति साधना, जिसमें 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। इन्हीं दस महाविद्याओं में से एक हैं माँ भैरवी, जिन्हें तंत्र की महाशक्ति, उग्रता और आध्यात्मिक शक्ति की प्रतीक माना गया है। भैरवी स्तोत्र माँ भैरवी को समर्पित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है जिसे साधक अपनी साधना में उपयोग करते हैं।

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Table of Contents

माँ भैरवी कौन हैं?

माँ भैरवी महाशक्ति दुर्गा का उग्र रूप हैं। वे तंत्र और शक्ति साधना की प्रमुख देवी हैं और उनका स्वरूप भयंकर होने के बावजूद अत्यंत करुणामयी भी है। ‘भैरवी’ शब्द का अर्थ होता है — वह देवी जो भय का नाश करती हैं। उनका रूप रौद्र और तेजस्वी होता है, लेकिन भक्तों के लिए वे अत्यंत कृपालु हैं।

भैरवी स्तोत्र क्या है?

भैरवी स्तोत्र एक पारंपरिक संस्कृत स्तोत्र है जिसमें माँ भैरवी के दिव्य स्वरूप, शक्ति और उनके विभिन्न नामों का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र साधक को आत्मशुद्धि, भयमुक्ति, शक्ति और साधना में सफलता प्रदान करता है। यह स्तोत्र तांत्रिक साधना के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।

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भैरवी स्तोत्र का महत्व

रोग, भय, और बाधाओं का नाश: यह स्तोत्र साधक को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाता है।

शक्ति साधना की सिद्धि में सहायक: तांत्रिक साधक भैरवी स्तोत्र के माध्यम से साधना में सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं।

नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा: घर या साधना स्थल पर इसका पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

अन्तर्मन की शुद्धि: आत्मिक उन्नति और ध्यान के लिए यह स्तोत्र उपयुक्त है।

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भैरवी साधना कैसे करें?

साधना काल: अमावस्या, अष्टमी, नवमी या नवरात्रि के समय विशेष फलदायी।

स्थान: शांत स्थान पर आसन लगाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।

मंत्र जाप: भैरवी बीज मंत्र —ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

भैरवी स्तोत्र पाठ विधि:

पहले गणेश वंदना करें।

फिर माँ दुर्गा या महाकाली की उपासना करें।

फिर भैरवी स्तोत्र का पाठ करें।

अंत में आचमन और क्षमा प्रार्थना करें।

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भैरवी स्तोत्र के लाभ

लाभ विवरण
आध्यात्मिक जागरण साधक को दिव्यता की अनुभूति होती है
आत्मरक्षा अदृश्य नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा मिलती है
मानसिक स्थिरता क्रोध, भय, भ्रम जैसे विकार समाप्त होते हैं
साधना सिद्धि उच्चतर तांत्रिक साधनाओं में सफलता मिलती है

माँ भैरवी का स्वरूप

चार भुजाएं – जिनमें वे खड्ग, त्रिशूल, कपाल और वरमुद्रा धारण करती हैं।

उनकी जिह्वा बाहर निकली हुई होती है – जो उनकी उग्रता दर्शाती है।

वे श्मशान में निवास करती हैं – प्रतीकात्मक रूप से अहंकार के नाश का संकेत देती हैं।

भैरवी स्तोत्र से संबंधित सावधानियाँ

  1. उचित नियम और संयम आवश्यक है।

  2. भैरवी साधना को मजाक या परीक्षा के रूप में न करें।

  3. सिर्फ प्रशिक्षित गुरु की सलाह से गहन तांत्रिक साधना करें।

  4. पवित्रता और ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है।

  5. भैरवी स्तोत्र और तंत्र शास्त्र

    तंत्र शास्त्र में भैरवी को त्रिकुट शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। वे ‘त्रैलोक्य मोहन’ तंत्र की अधिष्ठात्री हैं। स्तोत्र पाठ के माध्यम से साधक अपने चक्रों का जागरण करता है, विशेष रूप से मूलाधार से लेकर सहस्रार चक्र तक की ऊर्जा को सक्रिय करता है।

भैरवी स्तोत्र का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

ध्वनि ऊर्जा (Sound Energy): स्तोत्र का नियमित उच्चारण मस्तिष्क की तरंगों को स्थिर करता है।

बीज मंत्रों की शक्ति: ‘ऐं’, ‘ह्रीं’, ‘क्लीं’ जैसे बीज मंत्रों से मन में कंपन उत्पन्न होता है जिससे ध्यान गहरा होता है।

मनोविज्ञान: नकारात्मक भावनाओं से मुक्ति मिलती है और आत्मबल बढ़ता है।

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भैरवी साधना से कैसे मूलाधार से सहस्रार चक्र को जाग्रत  करे 

भैरवी साधना कुंडलिनी शक्ति के जागरण की एक उग्र और त्वरित विधा मानी जाती है। माँ भैरवी मूलाधार चक्र (जड़) की अधिष्ठात्री हैं और सहस्रार चक्र तक ऊर्जा को ऊपर उठाने में सहायक होती हैं।

भैरवी साधना से कैसे मूलाधार से सहस्रार चक्र को जाग्रत  करे 
चक्र स्थान गुण भैरवी साधना में प्रभाव
मूलाधार रीढ़ की शुरुआत अस्तित्व, स्थिरता भय मुक्त करती हैं, आधार मजबूत करती हैं
स्वाधिष्ठान नाभि के नीचे भावनाएँ, इच्छाएँ अपवित्र वासनाओं को शुद्ध करती हैं
मणिपुर नाभि क्षेत्र आत्मबल, नियंत्रण आत्मविश्वास जागृत होता है
अनाहत ह्रदय प्रेम, करुणा प्रेम में शक्ति जागती है, भैरवी का करुणा रूप प्रकट होता है
विशुद्ध कंठ वाणी, अभिव्यक्ति मंत्र शक्ति विकसित होती है
आज्ञा भ्रूमध्य विवेक, अंतर्ज्ञान देवी दृष्टि जागती है, त्रिनेत्र की अनुभूति
सहस्रार सिर के ऊपर ब्रह्मज्ञान देवी का मिलन — अद्वैत अवस्था

भैरवी साधना में बीज मंत्र (ऐं ह्रीं क्लीं) का जप व ध्यान करके यह ऊर्जा क्रमशः चक्रों को पार करती है।
भैरवी के रूप में ऊर्जा ‘रक्त’ और ‘ज्वाला’ का प्रतीक है, इसलिए इसे शक्ति का उग्र जागरण मार्ग कहा जाता है।

भैरवी देवी की कल्पना कैसे करें

आँखें बंद करें, मेरुदंड सीधा रखें, शरीर स्थिर।

मूलाधार में रक्त-ज्वाला की कल्पना करें, जैसे लावा ऊपर उठ रहा हो।

भैरवी का रूप देखें:

त्रिनेत्री — जिनकी दृष्टि भीतर और बाहर दोनों को देखती है।

लाल आभा — जैसे देवी रक्त ज्वाला से बनी हों।

कपालमाला — यह अहंकार और मरणशीलता के अतिक्रमण का प्रतीक है।

देवी के मुख पर ध्यान दें — बाहर निकली हुई जिह्वा पर, जो कहती है: “मैं काल को भी निगल सकती हूँ।”

“ऐं ह्रीं क्लीं” मंत्र को हृदय से दोहराते हुए देवी को हृदय में आमंत्रित करें।

यह ध्यान रोज़ाना 10-15 मिनट करें। इसे भैरवी अंतर्धयान  कहा जाता है।

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भैरवी स्तोत्र तांत्रिक रहस्य

भैरवी का स्थान श्मशान में क्यों है?

श्मशान एक प्रतीक है अहम (Ego) के पूर्ण विसर्जन का।

वहाँ न कोई समाज है, न जाति, न परंपरा — वहाँ केवल “सत्य” है।

माँ भैरवी को तांत्रिक साधना में “श्मशान वासिनी” कहा जाता है, क्योंकि वह वहाँ निवास करती हैं जहाँ साधक मृत्यु, भय, वासना और भ्रम को पीछे छोड़ता है।

 तांत्रिक अर्थ:  जहाँ डर खत्म होता है, वहीं भैरवी प्रकट होती हैं।

भैरवी देवी त्रिनेत्र, जिह्वा, और कपालमाला के प्रतीकात्मक अर्थ

अंग प्रतीकात्मक अर्थ
त्रिनेत्र भूत, भविष्य और वर्तमान पर समान दृष्टि। यह भी सूचित करता है कि भैरवी ज्ञान, योग और तंत्र तीनों में पारंगत हैं।
जिह्वा बाहर निकली हुई क्रोध, भय, और समय को निगलने की शक्ति। यह काल पर विजय का प्रतीक है।
कपालमाला 50 कपाल (शब्दों / अक्षरों) का हार — यह वाणी, संस्कारों, और अहंकार को नष्ट करने की शक्ति दर्शाता है।

भैरवी देवी से संबंधित त्योहार

माँ भैरवी की पूजा विशेष रूप से कब होती है? आइये जानते है |

दिन महत्व
अमावस्या उग्र साधना के लिए उपयुक्त, शक्ति जागरण का विशेष काल
नवरात्रि (शारदीय, चैत्र) महाविद्याओं की आराधना का काल, विशेष रूप से अष्टमी-नवमी
चतुर्दशी (कृष्ण पक्ष) तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए उपयुक्त समय
गुप्त नवरात्रि तांत्रिक और रहस्यमयी साधनाओं का काल

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दस महाविद्याओं में माँ भैरवी का स्थान और महत्व

दस महाविद्याएं तंत्रशास्त्र की दस प्रमुख देवियाँ हैं जिन्हें महाशक्ति (आद्या शक्ति) के दस रूप माना जाता है। ये सभी देवियाँ ब्रह्मांडीय शक्तियों की प्रतीक हैं और मोक्ष, सिद्धि, ज्ञान, और शक्ति की प्राप्ति का साधन मानी जाती हैं।

भैरवी का स्थान: पाँचवीं महाविद्या

माँ भैरवी दस महाविद्याओं में पाँचवें स्थान पर आती हैं। वे दुर्गा या काली के अत्यंत उग्र और तेजस्वी रूप मानी जाती हैं। “भैरवी” का शाब्दिक अर्थ है — भय को हरने वाली, भैरव की शक्ति, या जिसके दर्शन मात्र से काल भयभीत हो जाए

भैरवी स्तोत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ॐ भैरव्यै नमः।
जय भैरवी कालरात्रि करालवदना।
त्रिनेत्रधारिणी चंडमुण्ड विनाशिनी॥
दुष्टदैत्यान्हन्त्री देवी कालिका भवतारिणी।
कपालमालिनी भद्रा चामुंडा रक्तचेतना॥

स्तुत्याऽनया त्वां त्रिपुरे स्तोष्येऽभीष्टफलाप्तये ।

या व्रजन्ति तां लक्ष्मीं मनुजाः सुरपूजिताम् ॥१॥

ब्रह्मादयः स्तुतिशतैरपि सूक्ष्मरूपां

जानन्ति नैव जगदादिमनादिमूर्त्तिम् ।

तस्माद्वयं कुचनतां नवकुंकुमाभां

स्थूलां स्तुमः सकलवाङ्मयमातृभूताम् ॥२॥

सद्यः समुद्यतसहस्रदिवाकराभां

विद्याक्षसूत्रवरदाभयचिह्नहस्ताम् ।

नेत्रोत्पलैस्त्रिभिरलंकृतवक्त्रपद्मां

त्वां हारभाररुचिरां त्रिपुरे भजामः ॥३॥

सिन्दूरपूररुचिरं कुचभार नम्रं

जन्मान्तरेषु कृतपुण्यफलैकगम्यम् ।

अन्योन्यभेदकलहाकुलमानसास्ते

जानन्ति किं जडधियस्तव रूपमम्ब ॥४॥

स्थूलां वदन्ति मुनयः श्रुतयो गृणन्ति

सूक्ष्मां वदन्ति वचसामधिवासमन्ये ।

त्वां मूलमाहुरपरे जगतां भवानि

मन्यामहे वयमपारकृपाम्बुराशिम् ॥५॥

चन्द्रावतंसकलितां शरदिन्दुशुभ्रां

पञ्चाशदक्षरमयीं हृदि भावयन्ति ।

त्वां पुस्तकं जपवटीममृताढ्यकुम्भं

व्याख्याञ्च हस्तकमलैर्द्दधतीं त्रिनेत्राम् ॥६॥

शम्भुस्त्वमद्रितनया कलितार्द्धभागो

विष्णुस्त्वमन्य कमलापरिबद्धदेहः ।

पद्मोद्भवस्त्वमसि वागधिवासभूमिः

येषां क्रियाश्च जगति त्रिपुरे त्वमेव ॥७॥

आकुञ्च्य वायुमवजित्य च वैरिषट्क-

मालोक्य निश्चलधियो निजनासिकाग्रम् ।

ध्यायन्ति मूर्ध्नि कलितेन्दुकलावतंसं

तद्रूपमम्न कृति तस्तरुणार्कमित्रम् ॥८॥

त्वं प्राप्य मन्मथरिपोर्वपुरर्द्धभागं

सृष्टि करोषि जगतामिति वेदवादः ।

सत्यं तदद्रितनये जगदेकमात-

र्नोचेदशेषजगतः स्थितिरेव न स्यात् ॥९॥

पूजां विधाय कुसुमैः सुरपादपानां

पीठे तवाम्ब कनकाचलगह्वरेषु ।

गायन्ति सिद्धवनिताः सह किन्नरीभि-

रास्वादितामृतरसारुणपद्मनेत्राः ॥१०॥

विद्युद्विलासवपुषं श्रियमुद्वहन्तीं

यान्तीं स्ववासभवनाच्छिवराजधानीम् ।

सौन्दर्यराशिकमलानि विकाशयन्तीं

देवीं भजे हृदि परामृत सिक्त गात्राम् ॥१२

आनन्दजन्मभवनं भवनं श्रुतीनां

चैतन्यमात्रतनुमम्ब तवाश्रयामि ।

ब्रह्मेशविष्णुभिरुपासित पादपद्मां

सौभाग्यजन्मवसतीं त्रिपुरे यथावत् ॥१३ ॥

सर्व्वार्थभावि भुवनं सृजतीन्दुरूपा

या तद्विभर्त्ति पुरनर्कतनुः स्वशक्त्या ।

ब्रह्मात्मिका हरति तत् सकलं युगान्ते

तां शारदां मनसि जातु न विस्मरामि ॥१४॥

नारायणीति नरकार्णवतारिणीति

गौरीति खेदशमनीति सरस्वतीति ।

ज्ञानप्रदेति नयनत्रयभूषितेति

त्वामद्रिराजतनये विबुधा वदन्ति ॥१५॥

श्रीभैरवीस्तोत्र महात्म्य

ये स्तुवन्ति जगन्मातः श्लोकैर्द्वादशभिः क्रमात् ।

त्वामनुप्राप्य वासिद्धि प्राप्नुयुस्ते परां गतिम् ॥१६॥

इति श्री भैरवीतंत्र भैरवभैरवीसंवादे श्रीभैरवीस्तोत्रं संपूर्णम् ।

भैरवी स्तोत्र केवल एक धार्मिक पाठ नहीं, बल्कि आत्मबल, साधना और ब्रह्मांडीय शक्ति के साथ जुड़ने का माध्यम है। जो साधक श्रद्धा और भक्ति से इसका पाठ करता है, वह न केवल अपने जीवन में स्थिरता पाता है, बल्कि आत्मिक उन्नति की दिशा में भी अग्रसर होता है। माँ भैरवी की कृपा से भय, कष्ट और अज्ञानता का नाश होता है और साधक दिव्यता की ओर बढ़ता है।

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FAQs”

प्रश्न 1: क्या भैरवी स्तोत्र को कोई भी पढ़ सकता है?

उत्तर: हाँ, लेकिन साधना में पूर्ण श्रद्धा, नियम और पवित्रता होनी चाहिए। गहन तांत्रिक साधना से पूर्व गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है।

प्रश्न 2: भैरवी स्तोत्र पढ़ने का सही समय क्या है?

उत्तर: सुबह ब्रह्म मुहूर्त में या रात के समय शांति में पाठ करना उत्तम है। अमावस्या, नवरात्रि, और चतुर्दशी विशेष फलदायक होती हैं।

प्रश्न 3: क्या भैरवी साधना से डर लगता है?

उत्तर: यदि आप निष्ठा और श्रद्धा से साधना करें तो डरने की आवश्यकता नहीं है। वे भय का नाश करती हैं, डर नहीं उत्पन्न करतीं।

प्रश्न 4: क्या स्त्रियाँ भैरवी स्तोत्र का पाठ कर सकती हैं?

उत्तर: हाँ, स्त्रियाँ भी माँ भैरवी की उपासना कर सकती हैं, विशेषकर दुर्गा या महाकाली रूप में उन्हें पूजती हैं।

प्रश्न 5: क्या भैरवी स्तोत्र से सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं?

उत्तर: यदि साधक पूर्ण नियमों से साधना करे और उसका उद्देश्य पवित्र हो तो यह संभव है। लेकिन साधना का उद्देश्य हमेशा आत्मिक उन्नति होना चाहिए, न कि केवल चमत्कार।

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