राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली स्तुति है जो श्री राधारानी की कृपा प्राप्त करने के लिए गाई जाती है। यह स्तोत्र गौड़ीय वैष्णव परंपरा में अत्यधिक पूजनीय है और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करने के लिए भी इसका विशेष महत्व है, क्योंकि राधारानी की कृपा के बिना कृष्ण तक पहुँचना कठिन है।
दक्षिण काली स्तोत्र (खड्गमाला स्तोत्रम): महत्व, पाठ विधि और लाभ की संपूर्ण जानकारी
राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र का महत्व
श्री राधारानी को प्रेम, भक्ति और करुणा की मूर्ति माना जाता है। उनके “कृपा कटाक्ष” यानी कृपा से भरी हुई दृष्टि मात्र से साधक के जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन आ सकता है।
मन की शुद्धि
भक्ति मार्ग में प्रगति
कृष्ण कृपा की प्राप्ति
अहंकार का नाश
मानसिक शांति एवं प्रेम की अनुभूति
श्री काली तांडव स्तोत्रम्: अर्थ, लाभ, महत्व और पाठ विधि
पाठ विधि
प्रातःकाल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें।
शांत और पवित्र स्थान पर बैठें।
राधा-कृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने दीप प्रज्वलित करें।
पूरे भाव से स्तोत्र का पाठ करें।
पाठ के बाद “जय राधे” या “राधे राधे” का जप करें।
रामरक्षा स्तोत्र का संपूर्ण पाठ, पाठ करने की विधि, फ़ायदे
राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र के लाभ
लाभ | विवरण |
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आध्यात्मिक उन्नति | भक्ति मार्ग में तेजी से प्रगति होती है |
मानसिक शांति | चित्त शांत होता है और मन में स्थिरता आती है |
प्रेम की अनुभूति | भक्ति और प्रेम का संचार होता है |
कृष्ण प्राप्ति | राधा की कृपा से कृष्ण भी प्रसन्न होते हैं |
पापों का नाश | पिछले जन्मों के कर्म शांत होते हैं |
राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र
मुनीन्द्र–वृन्द–वन्दिते त्रिलोक–शोक–हारिणि
प्रसन्न-वक्त्र-पण्कजे निकुञ्ज-भू-विलासिनि
व्रजेन्द्र–भानु–नन्दिनि व्रजेन्द्र–सूनु–संगते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥१॥
मुनीन्द्र–वृन्द–वन्दिते त्रिलोक–शोक–हारिणि
प्रसन्न-वक्त्र-पण्कजे निकुञ्ज-भू-विलासिनि
व्रजेन्द्र–भानु–नन्दिनि व्रजेन्द्र–सूनु–संगते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥१॥
अनङ्ग-रण्ग मङ्गल-प्रसङ्ग-भङ्गुर-भ्रुवां
सविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्त–बाणपातनैः ।
निरन्तरं वशीकृतप्रतीतनन्दनन्दने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥३॥
मुख–प्रभा–परास्त–कोटि–शारदेन्दुमण्डले ।
विचित्र-चित्र सञ्चरच्चकोर-शाव-लोचने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥४॥मदोन्मदाति–यौवने प्रमोद–मान–मण्डिते
प्रियानुराग–रञ्जिते कला–विलास – पण्डिते ।
अनन्यधन्य–कुञ्जराज्य–कामकेलि–कोविदे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥५॥अशेष–हावभाव–धीरहीरहार–भूषिते
प्रभूतशातकुम्भ–कुम्भकुम्भि–कुम्भसुस्तनि ।
प्रशस्तमन्द–हास्यचूर्ण पूर्णसौख्य –सागरे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥६॥मृणाल-वाल-वल्लरी तरङ्ग-रङ्ग-दोर्लते
लताग्र–लास्य–लोल–नील–लोचनावलोकने ।
ललल्लुलन्मिलन्मनोज्ञ–मुग्ध–मोहिनाश्रिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥७॥
सुवर्णमलिकाञ्चित –त्रिरेख–कम्बु–कण्ठगे
त्रिसूत्र–मङ्गली-गुण–त्रिरत्न-दीप्ति–दीधिते ।
सलोल–नीलकुन्तल–प्रसून–गुच्छ–गुम्फिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥८॥
नितम्ब–बिम्ब–लम्बमान–पुष्पमेखलागुणे
प्रशस्तरत्न-किङ्किणी-कलाप-मध्य मञ्जुले ।
करीन्द्र–शुण्डदण्डिका–वरोहसौभगोरुके
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥९॥
अनेक–मन्त्रनाद–मञ्जु नूपुरारव–स्खलत्
समाज–राजहंस–वंश–निक्वणाति–गौरवे ।
विलोलहेम–वल्लरी–विडम्बिचारु–चङ्क्रमे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥१०॥
अनन्त–कोटि–विष्णुलोक–नम्र–पद्मजार्चिते
हिमाद्रिजा–पुलोमजा–विरिञ्चजा-वरप्रदे ।
अपार–सिद्धि–ऋद्धि–दिग्ध–सत्पदाङ्गुली-नखे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥११॥
मखेश्वरि क्रियेश्वरि स्वधेश्वरि सुरेश्वरि
त्रिवेद–भारतीश्वरि प्रमाण–शासनेश्वरि ।
रमेश्वरि क्षमेश्वरि प्रमोद–काननेश्वरि
व्रजेश्वरि व्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते ॥१२॥
इती ममद्भुतं-स्तवं निशम्य भानुनन्दिनी
करोतु सन्ततं जनं कृपाकटाक्ष-भाजनम् ।
भवेत्तदैव सञ्चित त्रिरूप–कर्म नाशनं
लभेत्तदा व्रजेन्द्र–सूनु–मण्डल–प्रवेशनम् ॥१३॥
राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः ।
एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ॥१४॥
यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः ।
राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा ॥१५॥
ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके ।
राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ॥१६॥
तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत् ।
ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ॥१७॥
तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम् ।
येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ॥१८॥
नित्यलीला–प्रवेशं च ददाति श्री-व्रजाधिपः ।
अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते ॥१९॥
॥ इति श्रीमदूर्ध्वाम्नाये श्रीराधिकायाः कृपाकटाक्षस्तोत्रं सम्पूर्णम ॥
राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र एक ऐसा आध्यात्मिक साधन है, जिससे राधारानी की कृपा से जीवन में प्रेम, आनंद और भक्ति की वर्षा होती है। यह स्तोत्र केवल शब्दों का समूह नहीं बल्कि आत्मा की पुकार है – राधा की कृपा पाने की।
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FAQs”
क्या यह स्तोत्र केवल ब्राह्मण ही पढ़ सकते हैं?
नहीं, यह स्तोत्र कोई भी श्रद्धालु पढ़ सकता है। केवल श्रद्धा और भक्ति आवश्यक है।
क्या इसे रोज़ पढ़ना चाहिए?
यदि संभव हो तो रोज़ पढ़ना अत्यंत शुभ होता है, परन्तु शुक्रवार या पूर्णिमा को विशेष फलदायक माना जाता है।
क्या इस स्तोत्र का कोई विशेष समय है?
प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त या शाम को संध्या समय इसका पाठ करना उत्तम होता है।
स्तोत्र पढ़ते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
पवित्रता, मन की एकाग्रता और राधारानी के प्रति पूर्ण समर्पण होना चाहिए।
स्तोत्र पढ़ते समय मंत्र या भजन भी गा सकते हैं क्या?
हाँ, स्तोत्र के साथ राधे राधे का जप या मधुर भजन गाना लाभदायक होता है।