रामरक्षा स्तोत्र का संपूर्ण पाठ, पाठ करने की विधि, फ़ायदे

Ram Raksha Strotra

रामरक्षा स्तोत्र का संपूर्ण पाठ, पाठ करने की विधि, फ़ायदे

आवाहन की शक्ति

ऋषियों द्वारा लिखित रामरक्षा स्तोत्र के प्रारंभिक छंदों के साथ प्रार्थना की शुरुआत करें। इन छंदों में, भगवान राम की आराधना की जाती है और उनकी शक्तियों और सौंदर्य का वर्णन किया जाता है। यह प्रार्थना हमें भगवान के आदर्शों के प्रति आदर्शवादी और समर्पित बनाती है।

​आह्वान  :  प्रार्थना का आरंभ करते हैं संतों द्वारा लिखित रामरक्षा स्तोत्र के प्रारंभिक श्लोकों के साथ। इन श्लोकों में, भगवान राम की आराधना की जाती है और उनके शक्ति और सौंदर्य का वर्णन किया जाता है। यह प्रार्थना हमें भगवान के आदर्शों के प्रति आदर्शवादी और समर्पित बनाती है।

रामरक्षा स्तोत्र के श्लोकों की गहराई

रामरक्षा स्तोत्र के विभिन्न श्लोकों की गहराई में समझने के लिए, हमें उनके अर्थ और भाव को समझने की आवश्यकता होती है। इन श्लोकों में, भगवान राम की गुणों, लीलाओं और धर्म के महत्व का मंत्रण किया गया है। हमें उनकी अद्भुतता और महिमा का आनंद लेने के लिए उनके गहरे अर्थों को विश्लेषण करना चाहिए।

छंदों के अर्थ को समझना

रामरक्षा स्तोत्र के विभिन्न छंदों की गहराई में समझने के लिए, हमें उनके अर्थ और भाव को समझने की आवश्यकता होती है। इन छंदों में, भगवान राम की गुणों, लीलाओं और धर्म के महत्व का मंत्रण किया गया है। हमें उनकी अद्भुतता और महिमा का आनंद लेने के लिए उनके गहरे अर्थों को विश्लेषण करना चाहिए।

रामरक्षा स्तोत्र सुरक्षा कवच

रामरक्षा स्तोत्र के पाठ से हम अपने आप को भगवान राम के शक्तिशाली आवरण में सुरक्षित महसूस करते हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से हमारे जीवन को धार्मिक, मानवीय, और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उन्नति मिलती है। यह हमें संकटों से बचाने की शक्ति प्रदान करता है और हमें भगवान के निकटता में ले जाता है। रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से हम दिव्य कृपा का आनंद अनुभव करते हैं। इस स्तोत्र में उपस्थित शक्तिशाली मन्त्र हमें आत्मिक शांति, सुरक्षा, और स्थिरता का अनुभव कराते हैं। यह हमें आत्म-विकास और आध्यात्मिक उत्थान की ओर प्रेरित करता है।  रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से हमारा मन शांति, समृद्धि, और आनंद की ओर प्रवृत्त होता है। यह हमें अपने आप को भगवान के प्रति समर्पित करने का मार्ग दिखाता है और हमें आध्यात्मिक उत्थान की दिशा में अग्रसर करता है।

रामरक्षा स्तोत्र पाठ करने की विधि

रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने की विधि सरल और साधारण है, और इसे अनुयायियों द्वारा आसानी से सीखा और अपनाया जा सकता है। निम्नलिखित धार्मिक अनुष्ठान का पालन करके रामरक्षा स्तोत्र का पाठ किया जा सकता है:

  1. शुद्धता और ध्यान: पहले, शुद्ध और निर्मल मन के साथ ध्यान केंद्रित करें। ध्यान और शांति की अवस्था में, रामरक्षा स्तोत्र के पाठ का आयोजन करें।
  2. समर्पण: रामरक्षा स्तोत्र के पाठ से पहले, भगवान राम के प्रति अपना समर्पण और श्रद्धा प्रकट करें।
  3. विधि: स्तोत्र का पाठ करते समय, स्पष्ट उच्चारण और सही ताल का पालन करें। शब्दों को समझ कर और भावना के साथ पढ़ें।
  4. नियमितता: रामरक्षा स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करना महत्वपूर्ण है। इसे प्रतिदिन एक निश्चित समय पर पाठ करने का प्रयास करें।
  5. ध्यान: पाठ के दौरान, मन को एकाग्र करें और भगवान राम के चित्त में स्थिति को विचार करें।
  6. आवाज़: स्तोत्र का पाठ करते समय, आवाज़ को स्पष्ट और मधुर रखें। सही ध्वनि और ध्यान द्वारा, स्तोत्र की शक्ति को अधिकतम करें।

रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से पूर्व, ध्यान और शांति में अपने आप को विमुक्त करें, और भगवान राम के आशीर्वाद को प्राप्त करें।

रामरक्षा स्तोत्र संपूर्ण :

                                          श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
                                           श्रीगणेशायनम: 
                                             विनियोग 
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य। बुधकौशिक ऋषि:।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता। अनुष्टुप् छन्द:। सीता शक्ति:।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम्।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
                                     अथ ध्यानम्  
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामांकारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचंद्रम् ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥2॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥3॥
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥4॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥5॥
जिह्वां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥6॥
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥7॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥8॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तक:।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोऽखिलं वपु: ॥9॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत्।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण:।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥11॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥13॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥15॥
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥16॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षयाशुगनिषंग सङ्गिनौ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥20॥
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।
गच्छन्मनोरथोऽस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥21॥
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघूत्तम: ॥22॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥23॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥24॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥25॥
रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्।
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥26॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥27॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥30॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥31॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥34॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥37॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥

FAQs”

Q.1 : क्या रामरक्षा स्तोत्र का पाठ किसी भी समय में किया जा सकता है?

Ans. : हाँ, रामरक्षा स्तोत्र का पाठ किसी भी समय में किया जा सकता है, लेकिन सबसे अधिक लाभ के लिए सुबह के समय या सन्ध्या के समय इसे पाठ करना उपयुक्त होता है।

Q.2 : क्या रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से केवल भगवान की सुरक्षा मिलती है?

Ans. रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से हमें न केवल भगवान की सुरक्षा मिलती है, बल्कि हमारे मानसिक और आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होता है।

Q.3: क्या रामरक्षा स्तोत्र के पाठ का विधि अनिवार्य है?

Ans. हाँ, रामरक्षा स्तोत्र के पाठ की विधि का पालन करना उत्तम है ताकि हम इसे सही ढंग से पाठ करें और उसके प्रभाव को महसूस कर सकें।

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